Tuesday, April 22, 2025
Homeविचारमीडिया हलचलजगदीप धनखड़ 'कु*#%', हामिद अंसारी 'संविधान के रक्षक': TOI से लेकर The Wire तक...

जगदीप धनखड़ ‘कु*#%’, हामिद अंसारी ‘संविधान के रक्षक’: TOI से लेकर The Wire तक पड़े उप-राष्ट्रपति के पीछे, जब आया महाभियोग तब कहाँ गई थी ये चिंता?

भारत के राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी, जो संविधान के भी जानकार थे - उनका भी मानना था कि 'न्यायिक एक्टिविज्म' पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने चेताया था कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएँ लाँघकर कार्यपालिका और विधायिका का काम नहीं करना चाहिए।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक जज हैं – यशवंत वर्मा। कुछ ही दोनों पहले तक वो दिल्ली उच्च न्यायालय के जज हुआ करते थे। एक घटना के बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया गया। सोचिए, कितनी बड़ी ‘सज़ा’ है ये। ख़ैर, ‘सज़ा’ की तो हम बात करेंगे ही, लेकिन उससे पहले इस घटना के बारे में जान लेते हैं। वो घटना, जिसका जिक्र उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार (17 अप्रैल, 2025) को राज्यसभा की इंटर्नशिप प्रोग्राम के विदाई भाषण में किया। उनके इस भाषण से एक गिरोह विशेष को विशेष मिर्ची लगी हुई है।

जस्टिस यशवंत वर्मा और घर में करोड़ों रुपए कैश: क्या हैं सवाल

14-15 मार्च की रात में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में आग लग जाती है। दमकल विभाग को आग बुझाने के लिए बुलाया जाता है। उस समय जज और उनकी पत्नी घर पर नहीं होते हैं। घर में से बड़ी मात्रा में कैश बरामद होता है। दिल्ली पुलिस को बुलाया जाता है। न FIR होती है, न ज़ब्ती की कार्रवाई। ऊपर से पुलिसकर्मियों ने इस घटना का जो वीडियो बनाया था, उसे भी डिलीट करवा दिया जाता है। बाद में सफ़ाई दी जाती है कि वीडियो ग़लत हाथों में न पड़े, इसीलिए ऐसा किया गया।

जहाँ तक FIR की बात है, उस संबंध में ख़ुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान आता है कि बिना मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के हाईकोर्ट के जज पर एक अदद FIR तक नहीं की जा सकती। हाँ, CJI ज़रूर एक आंतरिक जाँच समिति बनाते हैं। जज यशवंत वर्मा ने ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि ये एकदम बेहूदा व अविश्वसनीय तर्क है कि वो स्टोररूम में इस तरह से कैश रखेंगे, जो उनके घर से अलग हटकर है। उनका कहना है कि उनके या उनके परिवार वालों को इसका कुछ अता-पता ही नहीं था।

सवाल तो कई हैं, उन्हीं सवालों पर बात करने को तो ‘न्यायपालिका पर हमला’ बताया जा रहा है। आख़िर स्टोररूम घर से बाहर हो या भीतर, था तो जज के परिवार के स्वामित्व में ही न? अगर उनके या उनके परिजनों ने नहीं, तो करोड़ों रुपए कैश कहाँ से आ गए? कैश मिलने न सही, आग लगने की घटना की जाँच के लिए भी कोई FIR दर्ज क्यों नहीं हुई? घटनास्थल को सील क्यों नहीं किया गया, जली हुई चीजें किसने हटाईं और कहाँ डालीं? इस घटना को मीडिया में आने में एक सप्ताह क्यों लग गए?

उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने क्या ग़लत कहा?

बार-बार ‘क़ानून का राज’ की बात की जाती है। अगर इस मामले में एक जज की भागीदारी नहीं रहती, तो कार्रवाई भी अलग तरीके से होती। यही तो कहा उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने – ‘क़ानून का राज’ होता तो स्थिति अलग होती। उन्होंने कहा कि भले ही पिटारे में कीड़े दबे हों या फिर अलमारी में कंकाल पड़े हों, समय आ गया है कि ढक्कन खोला जाए और अलमारी के दरवाजे खोल जाएँ। क्यों? ताकि ये कीड़े व कंकाल बाहर आ सकें, ताकि जनता देख सके कि अंदर क्या दबा था, ताकि इन सबकी पहचान करके सफ़ाई की जाए।

भारत में थप्पड़ मारने से लेकर नरसंहार तक के मामले में सबसे पहले FIR दर्ज की जाती है। इसका नाम ही है – फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट। फर्स्ट, यानी हर अपराध या संभावित अपराध के मामले में पहली कार्रवाई। जब FIR ही नहीं हुई तो जाँच क्या होगी, और यही तो है जिसे लेकर उप-राष्ट्रपति ने चिंता ज़ाहिर की। उनका कहना है कि उनपर भी FIR दर्ज की जा सकती है, लेकिन जजों पर बिना न्यायपालिका के अनुमोदन के नहीं। ये छूट क्यों? जगदीप धनखड़ का सिर्फ़ इतना पूछना था कि किसी सामान्य व्यक्ति के घर में ऐसा हुआ होता तो?

तो कार्रवाई की प्रक्रिया रॉकेट की गाड़ी से उड़ती, लेकिन अब ये बैलगाड़ी से भी सुस्त चल रही है। उनका एक और तर्क है – जाँच का अधिकार कार्यपालिका का है, फिर जाँच न्यायिक तंत्र ही क्यों कर रहा है? न्यायिक समितियाँ तो सिफ़ारिश ही करती रही हैं न, फिर इसे जाँच क्यों समझा जाए? उन्होंने एक हालिया सर्वेक्षण की भी बात की, जिसमें पाया गया कि न्यायपालिका के लिए जनता में विश्वास कम हो रहा है। आख़िर है तो ये ‘लोकतंत्र’ ही न, जनता क्या सोचती है – यानी ‘लोक’ की राय मायने रखनी चाहिए लोकतंत्र में।

उन्होंने बाबासाहब डॉ भीमराव आंबेडकर को उद्धृत करते हुए कहा कि वो मुख्य न्यायाधीश को जजों की नियुक्ति के संबंध में वीटो देने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘परामर्श’ शब्द को ‘सहमति’ पढ़ने का आदेश दिया जिस कारण CJI की सहमति ज़रूरी हो गई जजों की नियुक्ति के मामले में। ये मामला अनुच्छेद-124 से जुड़ा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था की गई है। उन्होंने नसीहत दी कि संसद क़ानून बनाए और न्यायपालिका फ़ैसले सुनाए, एक-दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण न हो।

इस दौरान उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 1973 के केशवानंद भारती केस के फ़ैसले की बात की, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ‘बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन’ तय करके संविधान के मूलभूत प्रावधानों में संशोधन से संसद को रोक दिया था, लेकिन इसके 2 साल बाद ही एक प्रधानमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश में आपातकाल लगा देती है। उन्होंने हाल ही में एक जज द्वारा ‘बेसिक स्ट्रक्चर’ नामक पुस्तक के लॉन्च का जिक्र करते हुए ये इतिहास याद किया और बताया कि कैसे आपातकाल के दौरान लाखों लोगों को जेल में ठूँस दिया गया था।

उनका कहना था कि उक्त जज से सवाल पूछा जाना चाहिए था कि 1975 में उस बुनियादी ढाँचे का क्या हुआ था, जब 1984 में सिख नरसंहार हुआ तब उस बुनियादी ढाँचे का क्या हुआ था। उनका इशारा रिटायर्ड जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की तरफ था। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए बिलों पर साइन करने हेतु डेडलाइन तय कर दी, इसे भी उप-राष्ट्रपति ने विधायिका के कार्य में हस्तक्षेप बताया। कारण – संसद का अर्थ सिर्फ़ लोकसभा और राज्यसभा नहीं है, बल्कि राष्ट्रपति ही इसका पहला हिस्सा हैं।

उन्होंने इस दौरान अनुच्छेद-142 पर भी हमला बोला, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट को अपने यहाँ लंबित किसी भी मामले में ‘पूर्ण आदेश’ सुनाने का अधिकार है। लेकिन, जगदीप धनखड़ का मानना है कि ये लोकतंत्र पर हमले का एक परमाणु मिसाइल बना दिया गया है। जगदीप धनखड़ ये भी बताना नहीं भूले कि उन्होंने अपने 4 दशक न्यायपालिका को दिए हैं, इनमें से तीन दशक वो वरिष्ठ अधिवक्ता रहे हैं। वो न्यायपालिका के ही सिपाही हैं। बड़ी बात ये है कि जहाँ उनके विचारों पर मंथन होना चाहिए था, वहाँ उन्हें निशाना बनाया जाने लगा।

TOI के लिए उप-राष्ट्रपति पद की कोई महत्ता नहीं, बयान ध्यान देने योग्य नहीं

देश के सबसे पुराने अख़बारों में से एक ‘टाइम ऑफ इंडिया’ (TOI) ने जगदीप धनखड़ के बयान की आलोचना करते हुए एक संपादकीय छापा। इसमें इस बयान को रेखा लाँघने के समान बताया गया। साथ ही ‘ज्ञान’ दिया गया कि औपचारिक पदों पर बैठे व्यक्तियों से जिस शिष्टाचार की अपेक्षा की जाती है, ये बयान उससे बहुत आगे निकल गया। इसे बेहद की खेदजनक करार दिया गया। इसमें उप-राष्ट्रपति पद की महत्ता को कम करते हुए बताया गया कि नीति-निर्माण में उनकी कोई भूमिका नहीं होती। साथ ही पाठकों को कहा गया कि उप-राष्ट्रपति के बयानों से कोई असर नहीं पड़ने वाला है, इन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सकता है।

TOI ने कई राज्यपालों पर नेताओं की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए जगदीप धनखड़ को उनके पश्चिम बंगाल के कार्यकाल की याद दिलाई। पहली बात, अगर उप-राष्ट्रपति का पद केवल ‘Ceremonial’ है, तो भी क्या सार्वजनिक विमर्श में उनके योगदान को महत्ता नहीं दी जानी चाहिए? राज्यसभा के सभापति के रूप में वो प्रतिदिन नीति-निर्माण व इसके लिए होने वाले बहसों का हिस्सा बनते हैं, बहस को पूर्ण कराने की ज़िम्मेदारी ही उनकी होती है – ऐसे में उनके किरदार को कैसे नकारा जा सकता है, उनकी राय को खारिज कैसे किया जा सकता है?

राज्यसभा में संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन कराना उनका कर्तव्य है, इसीलिए संवैधानिक मुद्दों पर संतुलन की बात करना उनका अधिकार है। इसीलिए, वो ‘सीमा से बाहर’ नहीं जा रहे। TOI इस दौरान उनके द्वारा उठाई गई चिंताओं को पूरी तरह नकार गया। न्यायपालिका की पारदर्शिता ज़रूरी है, जनता का विश्वास न्यायपालिका में बने रहना ज़रूरी है। हर व्यवस्था सुधार के दौर से गुजरती है समय के साथ, फिर न्यायपालिका को विशेष छूट क्यों? जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया और आपराधिक मामलों में स्वतंत्र जाँच की प्रक्रिया तय क़ानून के तहत होनी चाहिए।

ये भी देखिए कि उप-राष्ट्रपति ने ये बयान कहाँ दिया, युवाओं के बीच, छात्र-छात्राओं के बीच। शैक्षणिक हिसाब से भी देखें तो युवाओं को संवैधानिक संतुलन के बारे में बताना आवश्यक है, अगर किसी संस्था में समस्याएँ नज़र आ रही हैं तो चिंतन, अध्ययन व विमर्श के लिए उन्हें सूचनाओं से अवगत कराया जाना चाहिए, क्योंकि बाद में यही युवा देश के नीति-निर्माता बनेंगे। उप-राष्ट्रपति के बयान को इस संदर्भ में लीजिए कि संसद और पुलिस की तरह न्यायपालिका भी अंततः जनता के प्रति ही जिम्मेदार है। एक नागरिक के रूप में और उप-राष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति के रूप में भी, जगदीप धनखड़ को समस्याओं और समाधान की बात करने का पूरा अधिकार है। उनके क़ानूनी अनुभव को देखते हुए भी उन्हें सुना जाना चाहिए।

The Wire ने उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को कहा ‘कुत्ता’

अमेरिकी नागरिक सिद्धार्थ वरदराजन द्वारा संचालित ‘The Wire’ ने उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के लिए ‘कुत्ता’ शब्द तक का इस्तेमाल कर दिया। ‘लोकतंत्र को लहूलुहान करने वाला हमलावर कुत्ता’ – संवैधानिक पद पर बैठे एक व्यक्ति के लिए इस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल किया गया। जब 2018 में सुप्रीम कोर्ट के 4 बड़े जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार पर खुलेआम हमला बोला था, उस समय क्या ‘द वायर’ ने उनके लिए इस तरह की शब्दावली का इस्तेमाल किया? ‘द वायर’ का कहना है कि अनुच्छेद-142 सेफ्टी वॉल्व है। जो बातें उप-राष्ट्रपति ने कही, उन चिंताओं को तो कई पूर्व जज भी उठा चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रुमा लाल ने कई बार न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की वकालत की है। उनका कहना है कि ऊपरी न्यायालयों में कॉलेजियम व्यवस्था पारदर्शिता का उल्लंघन है। 2011 में एक लेक्चर में उन्होंने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार, जवाबदेही से छूट जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े किए थे। इसी तरह पूर्व मुख्य न्यायाधीश JS वर्मा ने न्यायपालिका को RTI (सूचना का अधिकार) क़ानून के तहत लेन की वकालत की थी। उनका तो ये तक मानना था की न्यायिक नियुक्तियों को भी सार्वजनिक स्क्रूटनी के लिए खुले में आना चाहिए

इसी तरह भारत के राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी, जो संविधान के भी जानकार थे – उनका भी मानना था कि ‘न्यायिक एक्टिविज्म’ पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने चेताया था कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएँ लाँघकर कार्यपालिका और विधायिका का काम नहीं करना चाहिए। उन्होंने नसीहत दी थी कि PIL याचिकाओं को संसद के अधिकारों एवं शक्तियों को अपने हाथ में लेने का जरिया नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका को आत्म-संयम और आत्म-अनुशासन की सलाह देते हुए कहा था कि उसे ख़ुद की ही शक्तियों की सीमाओं की जाँच करती रहनी चाहिए। अब बताइए, क्या जीवन भर कॉन्ग्रेस में रहे प्रणब मुखर्जी को भी The Wire गाली देगा?

आज न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बातें की जा रही हैं, लेकिन तब कहाँ था The Wire जब जस्टिस दीपक मिश्रा के ख़िलाफ़ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था? तब एक उप-राष्ट्रपति के पद पर बैठे व्यक्ति वेंकैया नायडू ने ही इसे ख़ारिज किया था। तब यही कपिल सिब्बल मोशन लाने वालों में शामिल थे, जो आज सुप्रीम कोर्ट की शुचिता की क़समें खा रहे हैं। तब यही कपिल सिब्बल न्यायपालिका को जनता का विश्वास न खोने की सलाह दे रहे थे। राम मंदिर पर निर्णय के बाद असदुद्दीन ओवैसी समेत तमाम इस्लामी शख्शियतों ने सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाया, तब The Wire भी उसमें शामिल था।

हामिद अंसारी का नाम आते पवित्र हो जाता है उप-राष्ट्रपति का पद

और हाँ, 10 वर्षों तक भारत के उप-राष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी की जब बात होती है तब गिरोह विशेष के लिए ये पद अचानक से इतना पवित्र हो जाता है कि पूछिए मत। हामिद अंसारी पर पद के दुरुपयोग के एक नहीं बल्कि कई आरोप लग चुके हैं। ISRO के वैज्ञानिक नंबी नारायणन का करियर बर्बाद किए जाने की साज़िश में भी उनका नाम जुड़ा था। विधायक सुशील सिंह ने आरोप लगाया था कि मुख़्तार अंसारी के कहने पर हामिद अंसारी ने तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार से उनके पूरे परिवार पर मकोका लगवा दिया था। हामिद अंसारी पर मुख़्तार को संरक्षण देने के आरोप लगे।

पाकिस्तान के पत्रकार नुसरत मिर्जा ने खुद एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि 2005 से 2011 के बीच हामिद अंसारी ने उसे निमंत्रण देकर भारत बुलाया और कई सारी खुफिया जानकारियाँ उसके साथ साझा की। तब वो जामा मस्जिद के इमाम से भी मिला था। कभी तिरंगे को सलामी नहीं दी, कभी पहले ‘योग दिवस’ कार्यक्रम से नदारद रहे तो कभी रॉ के नेटवर्क को उजागर करने के आरोप लगे – लेकिन, गैंग के पत्रकारों ने हमेशा हामिद अंसारी का बचाव किया। प्रधानमंत्री के विशेष सलाकार दीपक वोहरा ही उन्हें ‘विश्वासघाती’ कह चुके हैं।

ये वही हामिद अंसारी हैं जिन्होंने 10 वर्ष तक इतने बड़े पद पर रहने के बाद अचानक से लगने लगा था कि भारत में मुस्लिम सुरक्षित नहीं हैं। पत्रकार अमन चोपड़ा ने कठिन सवाल पूछे तो वो इंटरव्यू से भाग खड़े हुए। इतने आरोपों के बावजूद अरफ़ा खानम शेरवानी के लिए हामिद अंसारी ‘संविधान के रक्षक’ हैं, वो अचानक से उनके 50 वर्षों के करियर और उनके पूर्वजों की महानता के बारे में बात करने लगती हैं। अब क्या हो गया? जगदीप धनखड़ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के सदस्य रहे हैं, उनके करियर पर बात नहीं करेंगे ये लोग? ‘किसान पुत्र’ से ये कैसी एलर्जी?

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

8 धमाके, 279 मौतें, 500+ घायल और 2 हजार मुस्लिम गिरफ्तार: ISIS ने जब ईस्टर का दिन चुनकर दहलाया पूरा श्रीलंका, बुर्के तक पर...

इस हमले को लेकर भारत ने पहले ही श्रीलंकाई खुफिया एजेंसियों को चेतावनियाँ दी थी, लेकिन उनके ध्यान ना देने के चलते 200+ जानें गईं।

ब्राह्मणों पर मू#ने की बात करने वाले अनुराग कश्यप को आ गई अक़्ल? अब माँग रहे ‘दिल से माफ़ी’, कहा – गुस्से में भूल...

अनुराग कश्यप ने ब्राह्मणों पर आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए अपने गुस्से को जिम्मेदार ठहराया है और इसपर काम करने की बात कही है। साथ ही माँगी माफ़ी।
- विज्ञापन -