Thursday, May 2, 2024
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विवेकानन्द केंद्र की उपाध्यक्ष निवेदिता भिडे को झेलना पड़ा वामपंथियों और इस्लामवादियों के दुष्प्रचार का वार, विश्व धर्म संसद ने उनका भाषण रद्द किया

कहते हैं न कि कर्म लौटकर आता है और ऐसा ही शुक्रवार 18 अगस्त 2023 को हिंदू विरोधी नैरेटिव के लिए कुख्यात इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के के साथ हुआ। उन्हें शिकागो की विश्व धर्म संसद में अपने निर्धारित भाषण के दौरान अप्रत्याशित घटनाओं का सामना करना पड़ा।

कभी अमेरिका के शिकागो शहर के धर्म संसद में आज से 130 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म के झंडे गाड़े थे। अब वहीं आयोजित होने वाली विश्व धर्म संसद के आयोजकों ने वक्ता के तौर पर भारत की तरफ से वहाँ जाने वाली स्वामी विवेकानन्द केंद्र की उपाध्यक्ष निवेदिता रघुराम भिडे का पत्ता काट दिया।

दरअसल शिकागो, इलिनॉय में विश्व धर्म संसद के आयोजकों ने सोमवार (14 अगस्त 2023) को अचानक निवेदिता भिडे को एक सूचना दी। ये सूचना धर्म संसद में उनके भाषण से जुड़ी थी। दरअसल, भिडे को 16 अगस्त 2023 को इस धर्म संसद में पूरे एक सत्र के लिए बोलना था।

दरअसल, भिडे का भाषण यूँ ही रद्द नहीं हुआ, बल्कि धर्म संसद के इस बहिष्कार की वजह एक लक्षित अभियान रहा है। इसके पीछे वामपंथी मीडिया, शिक्षा जगत और इस्लामी समूहों का वो सहयोग रहा, जिसने इस आयोजन में हिंदू प्रतिनिधित्व को दबाने का काम किया। अब आपको भी जानने की उत्सुकता हो रही होगी कि आखिर ये निवेदिता भिडे कौन हैं, जो वामपंथी और इस्लामवादियों का निशाना बनीं।

कौन हैं निवेदिता भिडे?

निवेदिता भिडे को साल 2017 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वो कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द केंद्र की ‘जीवनव्रती’ हैं। ‘जीवनव्रती’ से मतलब संगठन के काम में आजीवन समर्पित कार्यकर्ता से है। इस संगठन के लिए वह 1977 से काम कर रही हैं। वर्तमान में वो इस केंद्र में उपाध्यक्ष हैं।

उनके नाम 15 से अधिक प्रकाशित पुस्तकों के साथ एक प्रभावशाली साहित्यिक रिकॉर्ड है। अपना ज्ञान दूसरे में बाँटने के लिए वो दुनिया भर में नियमित तौर पर दैनिक योग और आध्यात्मिक शिक्षा (Spiritual Retreat) देती हैं। इसके अलावा, उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में कई पेपर दिए हैं।

निवेदिता भिडे ने दुनिया भर के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में व्याख्यान दिए हैं। विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की स्थापना के बाद से उसके ट्रस्टी के तौर पर वो सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने में सक्रिय तौर से शामिल रही हैं। वो जुलाई 2020 से भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की सदस्य हैं।

विवेकानन्द केंद्र क्या है?

विवेकानन्द केंद्र कन्याकुमारी को अक्सर विवेकानन्द केन्द्र कहा जाता है। ये भारत का एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संगठन है। इसकी स्थापना 1972 में भारत के महान दार्शनिक और आध्यात्मिक नेता स्वामी विवेकानन्द के सम्मान में तमिलनाडु के कन्याकुमारी में की गई थी।

यह संगठन स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं से प्रेरणा लेता है। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक रूप से जागृत और सांस्कृतिक रूप से जीवंत भारत के उनके दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है। इस केंद्र की स्थापना एकनाथ रानाडे ने 1972 में की थी। एकनाथ रानाडे (1914-1982) स्कूल के दौरान ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए थे।

धीरे-धीरे वह संगठन के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजक और नेता बन गए। संगठन के कई रैंक पर काम करते हुए उन्होंने 1956-62 तक संगठन के महासचिव के तौर पर अपनी सेवाएँ दीं। एकनाथ रानाडे एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता, आध्यात्मिक नेता और स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं के अनुयायी थे।

उन्होंने विवेकानन्द केंद्र कन्याकुमारी की स्थापना और उसके फलने-फूलने में अहम भूमिका निभाई। उनकी दिखाई राह पर चलते हुए ये केंद्र आज भी स्वामी विवेकानन्द के आदर्शों और मूल्यों को बढ़ावा दे रहा है। संगठन ने 2014-2015 में उनका जन्म शताब्दी वर्ष मनाया गया था और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहे थे।

विवेकानंद केंद्र की मुख्य विशेषताओं और गतिविधियों में योग एवं ध्यान सहित कन्याकुमारी में विवेकानन्द रॉक मेमोरियल, देश के कई जगहों पर सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियाँ कराना, ग्रामीण विकास, युवा सशक्तिकरण, आध्यात्मिक पुनर्जागरण, विवेकानन्द केंद्र विद्यालयों का संचालन और स्वामी जी के जीवन, कामों और संगठन से जुड़े कई तरह के साहित्य का प्रकाशन करना शामिल हैं।

विश्व धर्म संसद क्या है?

विश्व धर्म संसद एक अंतरराष्ट्रीय सभा है जो अंतरधार्मिक संवाद, सहयोग और समझ को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं के व्यक्तियों, संगठनों और नेताओं को एक साथ लाती है। ऐसा माना जाता है कि यह वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने, उन पर बात रखने, शांति और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के तौर पर काम करता है।

पहली बार विश्व धर्म संसद 1893 में संयुक्त राज्य अमेरिका के इलिनॉस राज्य के शिकागो शहर आयोजित की गई थी। इसे विश्व के कोलंबियाई प्रदर्शनी के तौर पर आयोजित किया गया था। इसे शिकागो विश्व मेले के तौर पर भी जाना जाता है। ये 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस के नई दुनिया अमेरिका में आगमन की 400वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित किया गया था।

1893 की इस संसद को एक ऐतिहासिक घटना माना जाता है, क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर अंतरधार्मिक संवाद की शुरुआती कोशिशों में से एक थी। इसमें ईसाई, हिंदू ,बौद्ध, इस्लाम सहित अन्य कई धार्मिक परंपराओं के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।

विश्व धर्म संसद में आम तौर पर गतिविधियों और कार्यक्रमों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल होती है। इनमें पूर्ण सत्र, कार्यशाला, पैनल चर्चा, अंतरधार्मिक संवाद, सांस्कृतिक आयोजन, प्रदर्शनी, युवा कार्यक्रम और सामुदायिक सेवाओं जैसी गतिविधियाँ और कार्यक्रम शामिल होते हैं।

विश्व धर्म संसद 2023

विश्व धर्म संसद अपनी स्थापना के बाद से अनियमित अंतरालों पर आयोजित की जाती रही है। इसके बाद दुनिया भर के विभिन्न शहरों में सभाएँ होती रही हैं। साल 2023 में ये 14 अगस्त से 18 अगस्त 2023 तक शिकागो में आयोजित की गई। इस वर्ष की सभा का विषय था ‘विवेक के लिए एक आह्वान: स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा’।

बदकिस्मती से इस साल सम्मेलन के आयोजकों ने वामपंथियों और इस्लामवादियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। आयोजकों ने पूर्ण सत्र में बोलने के लिए आमंत्रित लोगों में से एक की स्वतंत्रता और मानवाधिकार को नकार कर मंच पर बोलने से रोक दिया। आयोजकों ने 16 अगस्त 2023 को होने वाली निवेदिता भिडे की वार्ता रद्द कर दी।

वामपंथियों और इस्लामवादियों ने कैसे निवेदिता भिडे को शैतान बनाया?

बौद्धिक असहिष्णुता का बढ़ना संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों दोनों में गौर करने वाली प्रवृत्ति है। शैक्षणिक संस्थान, थिंक टैंक और यहाँ तक कि निगम भी असहमति की आवाजों और अलग तरह के नजरिए से निपटने के पसंदीदा साधनों के तौर पर कैंसिल कल्चर, सेंसरशिप, डी-प्लेटफॉर्मिंग, अनुशासनात्मक उपाय, वित्तीय दंड और कुछ मामलों में कानूनी कार्रवाईयों जैसी प्रथाओं को धड़ल्ले से अपना रहे हैं।

दरअसल शिकागो के लिए रवाना होने से पहले पहले भिडे को रटगर्स विश्वविद्यालय में वामपंथी-इस्लामवादी संकाय के सदस्य ऑड्रे ट्रुश्के की एक सोशल मीडिया पोस्ट मिली थी। इस ट्वीट में ट्रुश्के ने भिडे को ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ करार दिया।

ट्रुश्के ने अपनी ट्वीट में लिखा, “भिडे हाल के वर्षों में गलत सूचना फैलाने में व्यक्तिगत तौर पर लगी हुई हैं, जो भारतीय मुस्लिमों को शैतान के तौर पर पेश करती है। इस दौरान हिंदू राष्ट्रवादी नेतृत्व में भारत में मुस्लिम विरोधी हिंसा तेजी से बढ़ी है। भिडे के हिंदू राष्ट्रवाद का समर्थन करने वाले घोर दक्षिणपंथी राजनीतिक संगठनों के साथ गहरे रिश्ते हैं। ये एक गहरी इस्लामोफोबिक राजनीतिक विचारधारा है।”

दिलचस्प बात ये है कि ऑड्रे ट्रुश्के स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व आइडियोलॉजी (SAHI) की सलाहकार बोर्ड में भी हैं। यह संस्था संयुक्त राज्य अमेरिका की दक्षिणपंथी विचारधारा विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गहरे रिश्ते रखती है। ये संस्था 2020 में हिंदूफोबिक ‘होली अगेंस्ट हिंदुत्व’ अभियान चलाने के लिए कुख्यात है। तब इसे केवल ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट हिंदुत्व’ कहा जाता था।

SAHI के सलाहकार बोर्ड के एक सदस्य अजीत साही हैं, जो भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद के एडवोकेसी निदेशक हैं। अजीत साही बदनाम तहलका पत्रिका के पूर्व कार्यकारी निदेशक हैं। वह कई मौकों पर अमेरिका के प्रमुख मंचों से भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करते नजर आ चुके हैं।

कार्यक्रम के स्पॉन्सर्स में से एक भारतीय अमेरिकी मुस्लिम संगठन (आईएएमसी) ने भी भिडे को विश्व धर्म संसद के मंच से हटाने के लिए सक्रिय कदम उठाए। उसने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की आलोचना की आड़ में प्रचार वाले पर्चे बाँटे।

इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल एक कट्टरपंथी इस्लामी समूह है। इसका स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध रहे हैं और भारत के खिलाफ लॉबी करने का उसका एक लंबा इतिहास रहा है।

आईएएमसी के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने कहा था, “विश्व धर्म संसद में प्रतिभागियों को ‘विवेक का आह्वान: स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा’ सम्मेलन में हिंदू राष्ट्रवादी निवेदिता भिडे को शामिल करने का मुखर विरोध करना चाहिए।”

रशीद ने आगे कहा था, ” भिडे विवेकानंद केंद्र की नेता है और यह संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एक सहयोगी संगठन है। भिडे भारत की मौलिक रूप से बहिष्कारवादी नजरिए को आगे बढ़ाने में मदद कर रही हैं ये ‘स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा’ के बिल्कुल उलट है।”

यहाँ ये बात गौर करने वाली है कि आईएएमसी जमात-ए-इस्लामी समर्थित एक लॉबिस्ट संगठन है, जो खुद को अधिकारों की वकालत करने वाली संस्था होने का दावा करता है। अतीत में इसने भारत को अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर बने संयुक्त राज्य आयोग (यूएससीआईआरएफ) की ब्लैक लिस्ट में डालने के लिए अमेरिका में कई समूहों के साथ सहयोग किया था। यहाँ तक कि उन्हें पैसे भी दिए थे।

डिसइन्फो लैब की एक विस्तृत रिपोर्ट में आतंकी संगठन जमात-ए-इस्लामी के साथ आईएएमसी के रिश्तों का खुलासा हुआ है। वहीं, मिडिल ईस्ट आई ने 7 अगस्त 2023 को एक लेख प्रकाशित किया था। इसका शीर्षक ‘कार्यकर्ताओं ने विश्व धर्म संसद में हिंदू राष्ट्रवादी मौजूदगी पर फिक्र जताई’ था। यह लेख इस्लामवादी प्रचारक आज़ाद एस्सा (Azad Essa) ने लिखा था।

उन्होंने लिखा, “निवेदिता भिडे ने नियमित तौर पर दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादियों की बयानबाजी को साझा किया है, जो अहम भारतीय एक्टिविस्ट को बदनाम करते हैं और उन्हें शैतान बताते हैं। इन लोगों ने शोधकर्ता और एक्टिविस्ट आफरीन फातिमा, वाशिंगटन पोस्ट के कॉलमनिस्ट राना अय्यूब, दिवंगत ईसाई फादर स्टेन स्वामी को अपना निशाना बनाया है।”

आजाद एस्सा खुद को पत्रकार बताकर निवेदिता भिडे के खिलाफ अभियान का नेतृत्व करते हैं। इस्लामोफोबिया की आड़ में वो मुस्लिमों को पीड़ित और अन्य को हमलावर के तौर पर दिखाने के लिए अपने लेखन का इस्तेमाल करते हैं। ऑड्रे ट्रुश्के उनके इस नजरिए को बढ़ावा देने वाली एक कड़ी हैं।

आजाद एस्सा ने अपने तर्क को मजबूत करने के लिए निवेदिता भिडे के बारे में उनकी टिप्पणियों को जिक्र किया है। जिन अन्य दोषियों का पत्रकार आजाद एस्सा ने अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल किया वे IAMC के रशीद अहमद जैसे शख्स हैं। उन्हें एस्सा से समर्थन मिला था। रशीद अहमद भी एक विवादास्पद पृष्ठभूमि वाला स्वयंभू पत्रकार है, जो पहले मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े नेटवर्क अल जज़ीरा इंग्लिश से जुड़ा था।

आजाद एस्सा मिडिल ईस्ट आई (एमईई) के लिए काम करते हैं। इसके मालिक जमाल अवन जमाल बेसासो हैं, जो पहले कतर में अल जज़ीरा और लेबनान में हमास से जुड़े अल-कुद्स टीवी के पूर्व अधिकारी रहे हैं। हमास फिलिस्तीनी इस्लामी आतंकवादी संगठन है।

हमास का मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक लंबा इतिहास रहा है। हमास को यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इज़राइल, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम सहित कई देशों ने एक आतंकवादी संगठन के तौर पर नामित किया है।

जमाल बेसासो मिडिल ईस्ट आई को एमईई लिमिटेड के जरिए चलाता है। अतीत में वो अल जज़ीरा के लिए योजना और मानव संसाधन के निदेशक और लेबनान में समालिंक टेलीविजन प्रोडक्शन कंपनी के लिए मानव संसाधन के निदेशक के तौर पर काम कर चुका है।

समालिंक टेलीविजन प्रोडक्शन कंपनी अल कुद्स (Al Quds) टीवी की वेबसाइट के लिए पंजीकृत एजेंट के तौर पर काम करती है। इससे साबित होता है कि ये एमईई और अन्य वामपंथी और इस्लामवादी ही थे, जिन्होंने निवेदिता भिडे को निशाना बनाया। इसी वजह से विश्व धर्म संसद के पूर्ण सत्र में उनका भाषण रद्द कर दिया गया।

कर्म लौटकर आता है

कहते हैं न कि कर्म लौटकर आता है और ऐसा ही शुक्रवार 18 अगस्त 2023 को हिंदू विरोधी नैरेटिव के लिए कुख्यात इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के के साथ हुआ। उन्हें शिकागो की विश्व धर्म संसद में अपने निर्धारित भाषण के दौरान अप्रत्याशित घटनाओं का सामना करना पड़ा।

उन्हें वहाँ भारत विरोधी समर्थकों सुनीता विश्वनाथ और रशीद अहमद के साथ ‘सेंसरशिप,’ ‘स्वतंत्र भाषण,’ ‘दुष्प्रचार’ और कथित ‘दक्षिणपंथी समूहों से खतरे और उत्पीड़न’ जैसे विषयों पर चर्चा करने के लिए बुलाया गया था। ‘मानव अधिकारों की रक्षा के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्व’ शीर्षक वाले कार्यक्रम के दौरान ट्रुश्के ने खुद को खाली कुर्सियों और खाली हॉल को संबोधित करते हुए पाया।

धार्मिक सम्मेलन से निवेदिता भिडे को बाहर करने की वकालत करने इन लोगों को इनके कर्म का फल मिला और विश्व धर्म संसद में इन्हें सुनने के लिए लोग ही नहीं पहुँचे। इस सत्र को वर्चुअली आयोजित कर दिया गया था। इस तरह हिंदू धर्मग्रंथों में कर्म के सिद्धांत की व्याख्याएँ फिर से सही साबित हुईं।

इस सिद्धांत का सार यह है कि व्यक्ति आखिरकार अपने कर्मों का फल भोगता है। ऑड्रे ट्रुश्के का उद्देश्य निवेदिता भिडे को उनके विचारों को दबाने के लिए सम्मेलन में संबोधित करने से रोकना था, लेकिन विडंबना यह है कि उन्होंने खुद को उसी कार्यक्रम में अपनी बारी के दौरान बिना दर्शकों को संबोधित करते हुए पाया।

विश्व धर्म संसद और स्वामी विवेकानन्द

उल्लेखनीय है कि 1893 में शिकागो में आयोजित पहले विश्व धर्म संसद को हिंदू संन्यासी स्वामी विवेकानन्द की खास मौजूदगी और भाषण के लिए याद किया जाता है। कन्याकुमारी में विवेकानन्द केंद्र को प्रेरित करने वाले एक धार्मिक व्यक्तित्व भी वहीं हैं।

स्वामी विवेकानन्द ने 1893 में विश्व धर्म संसद की सभा में अपना शानदार भाषण दिया था। इसमें उन्होंने संप्रदायवाद, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों पर बात की थी, जिन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया, सभ्यताओं को नष्ट कर दिया और पूरे राष्ट्र को निराशा में डाल दिया।

उन्होंने हिंदू धर्म पर भी प्रकाश डाला, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाई है, लेकिन इसी स्वामी विवेकानन्द की समर्पित अनुयायी निवेदिता भिडे को 130 साल बाद विश्व धर्म संसद में बोलने के अवसर से वंचित कर दिया गया।

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