कोर्ट से सिब्बल ने कहा कि महिला मोनोवरा बेवा को धुबरी पुलिस ने उठाया और जबरन बांग्लादेश भेज दिया। याचिका पर जस्टिस संजय करोल और सतीश चंद्र शर्मा सुनवाई कर रहे थे।
सिब्बल ने कोर्ट से सवाल किया कि धुबरी एसपी किस आधार पर किसी व्यक्ति को बांग्लादेशी नागरिक घोषित कर सकते हैं? क्या महिला को हिरासत में लेने के बाद किसी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया? क्या कोर्ट इस पर भरोसा कर सकती है?
सिब्बल यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा कि अनच को ये तक नहीं पता है कि उसकी माँ भारत में है भी या बांग्लादेश भेज दी गई। सरकार को अनच की माँ की मौजूदा स्थिति के बारे में बताना चाहिए। इसके बाद कोर्ट ने याचिका के तहत केंद्र सरकार को नोटिस जारी की।
अनच अली का ये भी कहना है कि ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ उसकी माँ की याचिका 2017 से अब तक सुप्रीम कोर्ट में अब तक लंबित है।
क्या था लंबित मामला
26 साल के अनच अली ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उसका दावा है कि उसकी माँ मोनोवरा बेवा को असम पुलिस ने अवैध रूप से हिरासत में रखा है। साथ ही देश से रातों रात लोगों को बांग्लादेश भेज दिया जा रहा है।
बता दें कि मोनोवरा बेवा को 17 मार्च 2016 को धुबरी फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया था। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 28 फरवरी 2017 के आदेश में भी ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखा। इसके बाद बेवा ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी। तब से अब तक ये मामला लंबित है।
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में ये आदेश दिया था कि विदेशी नागरिकों को हमेशा के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता। या तो उन्हें डिपोर्ट किया जाए या जमानत पर रिहा कर दिया जाए।
हालाँकि निर्वासन तभी संभव है जब वह देश अपने नागरिक को स्वीकार करे। इस फैसले के आधार पर मोनोवरा को दिसंबर 2019 में हिरासत से रिहा कर दिया गया।
फिर सामने आए कपिल सिब्बल
पहलगाम हमलों के बाद अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को वापस खदेड़ने के लिए अनौपचारिक रूप से शुरू किए गए ऑपरेशन पुश-बैक की प्रक्रिया तेज कर दी गई। इसके तहत 24 मई को मोनोवरा को फिर से हिरासत में लिया गया।
इसके बाद बेवा के बेटे अनच अली ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की कि मोनेवरा की हिरासत गैर कानूनी है।
सिब्बल ने ऑपरेशन पुशबैक पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के वापस भेजे जाने की ये प्रक्रिया कानूनी रूप से मान्य नहीं है। कानूनी तौर पर सिर्फ डिपोर्टेशन यानी निर्वासन ही सही मानी जा सकती है।
अनच का कहना है कि विदेशी नागरिकों को गिरफ्तार करके उन्हें बिना किसी सत्यापन और दूसरे देश की मंजूरी के प्रशासन द्वारा वहाँ छोड़ देना गैर कानूनी है। किसी भी तरह से मान्य नहीं है।
कपिल सिब्बल यूँ ही काला कोट नहीं पहनते बल्कि जहाँ राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को हवा मिल रही हो, वहाँ पहुँचते हैं। उनका नाम नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हुए 2020 दिल्ली दंगों के मामले में आरोपी उमर खालिद की पैरवी में भी खूब उछला।
इसके अलावा गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद के बेटे असद अहमद की पुलिस मुठभेड़ में मौत पर कपिल सिब्बल ने असद के पक्ष में सहानुभूति जताई। इसके कारण विवाद को भी हवा मिली।
कपिल सिब्बल, जो खुद को ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का पैरोकार बताते आए हैं लेकिन अलग-अलग मसलों पर दिए गए उनके बयान शांति व्यवस्था को चरमराने के लिए काफी होते हैं।