उत्तर प्रदेश के कासगंज में हिंदू कार्यकर्ता चंदन गुप्ता की हत्या में शामिल मुस्लिम कट्टरपंथियों को बचाने के लिए महंगे वकील किए गए थे और इसका पैसा विदेशों से आता था। यह आरोप चंदन के पिता सुशील गुप्ता ने लगाया है। बता दें कि 26 जनवरी, 2018 को चंदन की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हत्या में शामिल 28 आरोपितो को NIA की स्पेशल कोर्ट ने उम्रकैद की सजा दी है।
चंदन की हत्या के आरोपितों को बचाने के लिए भारत ही नहीं, अमेरिका और ब्रिटेन से भी पैसे आ रहे थे। ऐसा संकेत बचाव पक्ष के वकील की दलीलों और जज द्वारा एनजीओ की फंडिंग की जाँच के निर्देश में मिलते हैं। जज ने कहा था कि कासगंज में दोषियों को बचाने के लिए इन एनजीओ के क्या हित हो सकते हैं, यह विचार किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि एनजीओ की सामूहिक उद्देश्य क्या हैं और उनकी फंडिंग कहाँ से हो रही है, सरकार को इसके बारे में पता करना चाहिए। इन संगठनों को विदेशी फंडिंग कहाँ से मिल रही है, इसकी जाँच होनी चाहिए। अदालत ने केंद्र सरकार से इसकी जाँच की सिफारिश की थी। जटमेंट की कॉपी केंद्रीय गृहमंत्रालय और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भेजने के लिए कहा था।
रिपोर्ट के मुताबिक, मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है। ऐसे में केंद्र सरकार 10 दिन के भीतर एक्शन ले सकती है। दरअसल, सुनवाई के दौरान आरोपितों की ओर से पेश बचाव पक्ष के वकील ने जियाउल जिलानी ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठन (NGO) की इस पर कथित रिपोर्ट का भी हवाला दिया था। इन एनजीओ की कथित रिपोर्ट में हिंदुओं को बचाने और मुस्लिमों को फँसाने की बात कही गई।
जिलानी ने अपने तर्क में अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित अलाएंस फॉर जस्टिस एवं अकाउंटिबिलिटी, वॉशिंगटन डीसी स्थित इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, लंदन स्थित साउथ एशिया सॉलिडरिटी ग्रुप, नई दिल्ली स्थित पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, नई दिल्ली स्थित यूनाइटेड अगेंस्ट हेट, मुंबई स्थित सिटिजन्स फॉर पीस एंड जस्टिस और लखनऊ स्थित रिहाई मंच की कथित रिपोर्ट का हवाला दिया था।
अदालती फैसले के अनुसार, जिलानी ने कहा था कि इन NGO की स्वतंत्र जाँच रिपोर्ट ‘कासगंज का सच- फर्जी पुलिस जाँच ने हिंदुओं को बचाया, मुस्लिमों को फँसाया’ का हवाला दिया। हालाँकि, जिलानी ने इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि इन NGO में किसी ने भी घटना की सत्यतता का पता लगाने और जाँच के उद्देश्य से घटनास्थल या इलाके का दौरान नहीं किया था।
इस पर सरकार की ओर से पेश लोक अभियोजकगण ने दलील दी थी कि सिर्फ मुस्लिमों हितों के पैरोकार इन NGO के द्वारा यदि कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाती है तो यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। अभियोजकगण ने दलील दी कि इससे अपराधी तत्वों का मनोबल बढ़ता है। उन्होंने जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के लीगल सेल इंस्टीट्यूट का डेटा भी अदालत के सामने रखा।
दैनिक भास्कर ने NIA के सूत्र को हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया कि चंदन गुप्ता मर्डर केस में जिन संगठनों ने आरोपितों की मदद के लिए पैसा भेजवाए, वे आतंकी संगठन नहीं हैं। ये संस्थाएँ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ती हैं। ये एक बड़ा मुद्दा है कि कमजोर लोगों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाली NGO दंगे भड़काने वाले लोगों को बचाने के लिए केस लड़े।
आरोपियों को फंडिंग करने वाला इंडियन-अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल पहले भी विवादों में रहा है। साल 2021 में इस पर UAPA भी लगाया गया था। अगस्त 2024 में इस संस्था ने अमेरिका में होने वाली इंडिया-डे परेड पर न्यूयॉर्क की गवर्नर कैथी होचुल को चिट्ठी लिखी। चिट्ठी में उसने राम मंदिर की झाँकी का विरोध किया था। इस प्रमुख राशिद अहमद है।
साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप (SASG) की फाउंडर अमृत विल्सन भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रही हैं। विल्सन ने नए संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाने को लेकर प्रोपगेंडा फैलाया था। इसके साथ ही हल्द्वानी में मुस्लिम बस्तियों पर बुलडोजर कार्रवाई पर सरकार की निंदा की थी। इसके बाद सरकार ने विल्सन की OCI यानी भारत के प्रवासी नागरिक का दर्जा रद्द कर दिया था।
साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप की एक सदस्य निर्मला राजसिंघम श्रीलंका के आतंकी संगठन LTTE (लिट्टे) की सदस्य रह चुकी हैं। निर्मला राजसिंघम को साल 1982 में श्रीलंका के आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत हिरासत में लिया गया था। वह हिरासत में ली जाने वाली लिट्टे की पहली महिला सदस्य थीं। रिहाई मंच एवं अन्य NGO का इतिहास भी दागदार है।
बता दें कि चंदन गुप्ता हत्याकांड में कोर्ट ने आसिफ कुरैशी उर्फ हिटलर, असलम, असीम, शबाब, साकिब, मुनाजिर रफी, आमिर रफी, सलीम, वसीम, नसीम, बबलू, अकरम, तौफीक, मोहसिन, राहत, सलमान, आसिफ जिम वाला, निशु, वासिफ, इमरान , शमशाद, जफर, शाकिर, खालिद परवेज, फैजान, इमरान, शाकिर, जाहिद उर्फ जग्गा को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा दी है। वहीं, सबूतों के अभाव में नसरुद्दीन और आरोपी असीम कुरैशी को बरी कर दिया।