आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल काफी दिनों से गायब चलने के बाद आज लोकसभा चुनाव 2019 के लिए आम आदमी पार्टी का घोषणापत्र रिलीज करते हुए नजर आए। अरविन्द केजरीवाल कुछ दिनों से गायब चल रहे थे, यहाँ तक कि वो अपने ही पार्टी के नेताओं के नामांकन के दौरान भी नदारद रहे।
2 दिन पहले ही सोशल मीडिया पर आम आदमी पार्टी के बागी विधायक द्वारा यह खबर भी वायरल की गई थी कि आम आदमी पार्टी के विधायकों ने अपनी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल का लप्पड़ और घूँसों से मार-मारकर मोर बना डाला।
हालाँकि, इस दावे की वास्तविकता की अभी तक पुष्टि नहीं हो पाई है, फिर भी ट्विटर यूज़र्स ने ये जिम्मेदारी अपने कन्धों पर लेते हुए खुद जानने की कोशिश की है कि अरविन्द केजरीवाल के चेहरे पर मार-पीट के निशान हैं या नहीं? सोशल मीडिया यूज़र्स ने लिखा है कि केजरीवाल की नाक पकौड़े जैसी फूली-फूली लग रही है और सूजी हुई नजर आ रही है, इसका मतलब है कि सच में उन्हें तबीयत से कूटा गया है।
केजरीवाल जी की नाक पकौड़े जैसी फूली फूली लग रही है, क्या ये पहले से है या मारपीट वाली खबर सच्ची थी? pic.twitter.com/nANXd4aryo
एक अन्य ट्विटर यूज़र ने केजरीवाल की ‘पहले और बाद’ (Before and After Images) की तस्वीरों के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया है कि जब अरविन्द केजरीवाल गायब हुए, उस दिन वो कैसे दिख रहे थे और वापस दोबारा नजर आने पर वो कैसे दिख रहे हैं।
ट्विटर यूज़र्स इतने पर ही नहीं रुके, एक कदम आगे जाते हुए उन्होंने आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल के चश्मे तक की समीक्षा कर डाली और बताया कि उनके चश्मे का फ्रेम बदला-बदला नजर आ रहा है। इसके साथ उन्होंने आशंका जताई कि शायद चेहरे पर मुक्का पड़ने के कारण उनका चश्मा टूटा हो, जैसा कि AAP विधायक कपिल शर्मा ने दावा किया था।
I can see a few scratches as well… Apparently, that’s where he was punched ?? pic.twitter.com/dDI3mnLvme
वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने अरविन्द केजरीवाल जी के वापस सकुशल नजर आने पर ख़ुशी प्रकट की है। अभी तक भी अरविन्द केजरीवाल के साथ हुई इस कथित मार-कुटाई की घोषणा नहीं हुई है लेकिन, मीडिया और चर्चा से अचानक से उनके गायब हो जाने की वजह से उनके समर्थकों को उनकी चिंता जरूर थी।
Kejriwal sir has finally stepped out from his house after days. Seems he has recovered after getting beaten black and blue by his own MLAs.
स्पष्टीकरण होना अभी बाकी है लेकिन, इस प्रकार की मारपीट की घटनाओं को मजाक के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। भले ही सच्चाई यह है कि सोशल मीडिया पर हर दूसरी खबर लोगों के बीच Fun और मनोरंजन का जरिया बन जाती है।
कई सालों से आर्मी अपना गोला-बारूद सुरक्षित रखने के लिए सुरंग बनाने की कोशिशों में जुटी हुई थी, जो कि अब जल्द ही बनने वाली है। आर्मी NHPC (नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन) की मदद से ये सुरंग बनाएगी। इस संबंध में गुरुवार (अप्रैल 25,2019) को आर्मी और एनएचपीसी ने एक एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए हैं।
बता दें कि सेना लंबे समय से पाक और चीन बॉर्डर के समीप गोला बारूद रखने के लिए सुरंग तैयार करने के लिए प्रयासरत थी, लेकिन सेना के पास इसे बनाने की विशेषज्ञता नहीं थी। जब टनल बनाने की कोशिशें शुरू हुईं तो कभी सीलन की दिक्कत आई तो कभी सीपेज की। इन परेशानियों को देखते हुए सेना ने तय किया कि वे टनल बनाने में एक्सपर्ट NHPC की योग्यता का इस्तेमाल करेगी।
गत वर्ष इसे लेकर बात शुरू हुई थी, जिसके बाद NHPC ने डिटेल प्रपोजल आर्मी को दिया था। इस प्रपोजल पर ही तय हुआ कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 4 टनल बनेंगी। इसके बाद बाकी टनल बनाने पर विचार होगा।
भारतीय सेना ने पाकिस्तानी और चीनी सीमाओं पर चार सुरंग बनाने का फैसला लिया है ताकि युद्ध के माहौल में गोला बारूद और हथियार ले जाने में आसानी हो।https://t.co/sL9TTZgKjX
इन सुरंगों का निर्माण भारतीय सेना के ऑपरेशन की तैयारियों के तहत किया जा रहा है जिससे सेना तक हथियार और गोला बारूद पहुँचाने में भी आसानी होगी।
NHPC और आर्मी के बीच जो एमओयू साइन किया गया है उसके अनुसार इन 4 सुरंगों को बनाने की लागत 15 करोड़ रुपए आएगी। नवभारत टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक एक सुरंग जम्मू-कश्मीर (भारत-पाकिस्तान बॉर्डर) पर और अन्य तीन सुरंगे नार्दन बॉर्डर( भारत-चीन बॉर्डर) पर बनाई जाएँगी। प्रत्येक सुरंग में करीब 200 मिट्रिक टन गोला बारूद रखा जाएगा। खबर के मुताबिक ये सुरंग दो साल में पूरी होंगी।
बता दें कि इन सुरंगों के बन जाने से आर्मी को अपना गोला-बारूद रखने की सुरक्षित जगह मिलेगी। साथ ही ये सुरंगे बारूद को दुश्मन की नज़रों से बचाएँगी। दुशमनों के सैटेलाइट भी इसे पकड़ने में अक्षम होंगे।
रोहित शेखर हत्याकांड में रोज़ नए ख़ुलासे हो रहे हैं। अब जब कातिल के ऊपर से पर्दा उठ ही गया है और तस्वीर साफ़ हो गई है कि उनकी पत्नी और सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अपूर्वा शुक्ला ने ही अपने पति का ख़ून कर दिया, हम आपको रोहित और अपूर्वा के ऐसे इतिहास से परिचय कराने जा रहे हैं, जिसके कारण आज रोहित शेखर तिवारी की जान ही चली गई। असल में उस रात जो कुछ भी हुआ, उसके बीज पूर्व में ही बोए जा चुके थे। जैसा कि हमने बताया था, रोहित ने अपनी एक रिश्तेदार महिला के साथ कार में शराब पी थी और इसी बात से अपूर्वा नाराज़ थी। अपूर्वा ने जब अपने पति रोहित शेखर को वीडियो कॉल किया तब उसे वह महिला कुमकुम गाड़ी में बैठी हुई दिखी और इसी बात को लेकर दोनों में झगड़ा हुआ। जब रोहित ने बताया कि वो और कुमकुम एक ही ग्लास से बारी-बारी शराब पी रहे थे, तो अपूर्वा ने उसका नाक, मुँह और गला दबा दिया।
रोहित और अपूर्वा के बीच झगड़ा हुआ और बाद में उसकी हत्या कर दी गई, ये सारे प्रकरण में सिर्फ़ 80 मिनट लगे। रोहित अक्सर देर तक सोता था और इसी का फायदा उठाते हुए उसके सोने की बात कह अपूर्वा ने किसी को शक नहीं होने दिया। रोहित और अपूर्वा एक मैट्रिमोनियल साइट के जरिए मिले थे। दोनों की पहली मुलाक़ात लखनऊ में हुई थी। अपूर्वा के दिमाग पर प्रॉपर्टी का भूत सवार था और वो रोहित से सिर्फ़ इसीलिए शादी करना चाहती थी क्योंकि उसे लगता था कि उसके बाद बहुत सारी प्रॉपर्टी होगी। रोहित के पिता एनडी तिवारी उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे और बाद में राज्यपाल भी बने। अपूर्वा ने शादी के तुरंत बाद ही नखरे शुरू कर दिए थे। वह अपने मायके वालों के लिए रोहित से एक अलग मकान बनवाने की माँग करने लगी थी।
शादी से लिव-इन रिलेशनशिप में भी रहे थे। शादी के तुरंत बाद रिश्तों में आई कड़वाहट अपूर्वा के लिए अवसाद का कारण बनती जा रही थी। जब अपूर्वा को पता चला कि रोहित के नाम पर ज्यादा प्रॉपर्टी नहीं है तो वो मायके चली गई थी, वो भी शादी शादी के सिर्फ़ 18 दिनों बाद। परिजनों के समझाने-बुझाने के बाद वो वापस आ गई। अपूर्वा की कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी थी। वो कॉन्ग्रेस में जगह बनाना चाहती थी और रोहित की पारिवारिक पृष्ठभूमि को सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल करना चाहती थी। रोहित और अपूर्वा अलग-अलग कमरों में सोते थे। रोहित का ख़ुद का राजनीतिक भविष्य नहीं बन पाया, इससे अपूर्वा और नाराज़ थी। नवभारत टाइम्स के सूत्रों के अनुसार, अपूर्वा को संतान की भी चाहत थी और रोहित इसके लिए तैयार नहीं थे।
उधर रोहित शेखर की माँ ने भी अपनी बहू अपूर्वा को क्रूर बताया है। उज्ज्वला ने कहा कि अपूर्वा शादी के बाद महोनों अपने पति को छोड़ मायके में रहती थी। उज्ज्वला ने कहा कि जिस महिला के पति की बाईपास सर्जरी हुई हो और वो बार बार चली जाए, इससे पता चलता है कि वो अच्छी नहीं थी। अपूर्वा ने रोहित को कॉन्ग्रेस नेताओं से कहकर विधानसभा टिकट दिलवाने की माँग भी की थी। उज्ज्वला ने कहा कि वो अपूर्वा को बार-बार समझाती थी कि नारायण दत्त तिवारी कोई अकूत संपत्ति छोड़कर नहीं गए हैं।
इससे पहले हमने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि किसी नौकर ने देखा कि रोहित की नाक से ख़ून निकल रहा था। इसकी जानकारी उनकी माँ और मैक्स अस्पताल को दी गई। पुलिस का सीधा सवाल है कि एक व्यक्ति 16 घंटे तक सोया रहता है और घर में कोई उसकी सुध भी नहीं लेता, क्यों? एक अन्य ख़बर में हमने जिक्र किया था कि कैसे सीसीटीवी फुटेज के अनुसार, रात 1:30 बजे अपूर्वा नीचे से पहली मंजिल पर स्थित रोहित के कमरे में जाते हुए दिखाई देती हैं। इसके ठीक एक घंटे बाद रात 2.30 बजे वह पहली मंजिल से भूतल पर आते दिख रही हैं। अपूर्वा बार-बार अपना बयान बदल रही थी और रोहित की माँ उज्ज्वला ने अपनी बहू पर कई आरोप लगाए थे, ये भी हमने एक अलगख़बर में बताया था।
अक्सर ये सवाल किया जाता है मोदी ने क्या बदल दिया? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के लिए क्या किया है, ये भी पूछा जाता है। लेकिन, ज़मीन पर जाकर कोई नहीं देखना चाहता, सिर्फ़ सोशल मीडिया खोलकर मोबाइल के कीपैड के पीछे बैठे लोग उँगलियाँ तो लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त से वो काफ़ी दूर होते हैं। सीएनएन न्यूज़ 18 के पत्रकार भूपेंद्र चौबे ने इस मामले में सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने ग्राउंड जीरो पर पहुँच कर पड़ताल की और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गोद लिए गए गाँव जयापुर में लोगों से बातचीत भी की। इस दौरान लोगों ने जो बताया और चौबे ने जो कवरेज की, उसे आप नीचे दी गई वीडियो में देख सकते हैं। इसमें देखा जा सकता है कैसे जयापुर गाँव में महिलाओं की स्थिति भी काफ़ी सुधर गई है।
#ABillionVotes – Right on the edge of Jayapur in Varanasi, is an experiment in Indian politics. You can compare this to the most high-profile constituencies in India to this area which is called ‘Modiji Ka Atal Nagar’.
इस वीडियो में देखा जा सकता है कि भूपेंद्र चौबे सबसे पहले एक सरकार नल के पास पहुँचते है। फिर वो चेक करते हैं कि क्या नल से पानी आ भी रहा है या फिर इसे यूँ ही लगाकर छोड़ दिया गया है। जब उन्होंने नल खोला तो उसमे से धाराप्रवाह पानी निकलने लगा। ये पानी इस तरह निकल रहा था जैसे किसी प्रकार का प्रेशर दिया जा रहा हो। पास खड़े ग्रामीण ने बताया कि 24 घंटे में जब भी नल खोलो, यूँ ही पानी निकलता है। उसने यह भी बताया कि गाँव में ऐसे कई नल लगे हुए हैं। चौबे ने उस पानी को पीकर देखा, उससे चेहरा साफ़ किया। जल निगम से डायरेक्ट आने वाला ये पानी इतना साफ़ था कि आश्चर्यचकित चौबे ने कहा कि ऐसा पानी तो दिल्ली में भी आता। उन्होंने कहा कि 5 वर्ष पहले शायद ही ये संभव था।
इसके बाद चौबे एक ऐसे घर के पास पहुँचते हैं, जिसे प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत 2016-17 में बनाया गया था। उस घर की दीवाल पर कुल ख़र्च का ब्यौरा लिखा हुआ था। उस आवास को बनाने में लगी कुल लागत 1,35,750 रुपए थी। इस घर को देखकर भूपेंद्र पूछ बैठे कि एक तरफ तो ‘न्याय’ है जहाँ 72,000 देने की बात की जा रही है और दूसरी तरफ साफ़-साफ़ सबूत हैं जो दिख रहे हैं। इस घर के ऊपर मोदी-योगी का एक पोस्टर लगा है जिसमे 2022 तक सबको आवास मुहैया कराने की बात की गई है।
इसके बाद भूपेंद्र एक फैक्ट्री में पहुँचते हैं जिसे मोदी के सत्ता संभालने के बाद बनाया गया है। इसमें काम कर रही महिला बताती हैं कि वे महीने में 3-4 हज़ार रुपए यहाँ काम कर के कमा लेती हैं और काम ज्यादा कठिन भी नहीं है। सब्बसे बड़ी बात, यहाँ भूपेंद्र एक लड़की से मिलते हैं जो 12वीं की छात्रा हैं और साथ-साथ महिलाओं को प्रशिक्षित भी करती हैं, उन्हें भी इसके लिए रुपए मिलते हैं। उस लड़की की माँ भी वहीं पर कार्य करती हैं। देखा जाए तो स्किल डेवलपमेंट के क्षेत्र में काम होने से ऐसे छोटे-छोटे न जाने कितने जॉब्स क्रिएट हुए हैं जिनसे महिलाओं व ग्रामीणों को रोज़गार मिला है। ऐसे कार्यों में मेहनत कम एवं स्किल, प्रशिक्षण और दक्षता की ज़रुरत ज्यादा होती है। और सरकार इन सब के लिए कार्य कर रही है, ऐसे इस ग्राउंड रिपोर्ट में दिखता है।
भूपेंद्र को मिली महिलाओं ने बताया कि वो चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी फिर से जीत कर प्रधानमंत्री के रूप में लौटें। इसके बाद भूपेंद्र एक आवासीय कॉलोनी ‘मोदीजी का अटल नगर’ में जाते हैं, जहाँ के रहनेवाले अधिकतर दलित हैं। यहाँ कई सारे प्राइवेट आवासीय परिसर हैं जिन्हे सरकारी मदद द्वारा बनाया गया है। इसमें दिख रही हरियाली व व्यवस्थित पेड़-पौधों को देखकर कोई भी कह दे कॉलोनियाँ तो सिर्फ़ महँगे शहरों में ही मिलती हैं। यहाँ अंदर सड़कें भी काफ़ी अच्छी है। सभी घरों को पहचान संख्याएँ दी गई है। यहाँ पार्क और गार्डन भी हैं। ये सभी अंतिम 4 वर्षों में बने हैं। ऐसा वहाँ के निवासियों ने भी बताया।
घर संख्या 1 के निवासी ने भूपेंद्र चौबे को बताया कि ये घर 5 वर्ष पहले (मोदी के आने के बाद) सरकारी रुपयों से बना। इसमें कमरा, बाथरूम, किचन वगैरह सबकुछ है। स्थानीय निवासियों ने कहा कि पक्का घर मिलने से झोंपड़ियों में रहा करते थे। वहाँ रह रहे ग्रामीणों ने साफ़ कर दिया कि दलितों का नेता कही जाने वाली मायावती ने भी उनलोगों के लिए कभी इस तरह का कुछ नहीं सोचा। उन्होंने बताया कि मोदीजी ने उसका सपना साकार किया। परिसर के अंदर डस्टबिन वगैरह की भी अच्छी व्यवस्था है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज (25 अप्रैल, 2019) आम आदमी पार्टी का घोषणा-पत्र (मैनिफिस्टो) जारी कर दिया है। अपने मेनिफैस्टो में उनका सबसे पहला एजेंडा है केंद्र में मोदी-शाह की जोड़ी को सरकार बनाने से रोकना।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को कहा, “अगर मोदी सरकार सत्ता में लौटती है, तो इसके लिए ‘सिर्फ़ राहुल गाँधी’ जिम्मेदार होंगे”। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि इसके पीछे सबसे बड़ी वजह कमज़ोर विपक्ष का होना है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि वो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए लड़ेंगे। केजरीवाल के मुताबिक़ कॉन्ग्रेस ने पिछले बुधवार को अपना फैसला सुनाया, जिसके अनुसार वो दिल्ली के अलावा किसी अन्य राज्य में AAP के साथ सीट शेयर करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते।
AAP पार्टी ने वर्तमान परिस्थितियों पर एक दो-पृष्ठ का नोट भी जारी किया और अंतिम घोषणा की कि किसी भी तरह का कोई गठबंधन नहीं होगा। AAP मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केजरीवाल ने बताया कि वर्तमान में जो परिस्थितियाँ है, उन पर लेख तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि अगर सत्ता में मोदी-शाह की वापसी होगी तो उसके लिए ‘केवल राहुल गाँधी’ ही ज़िम्मेदार होंगे। उन्होंने राहुल को यूपी, बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, गोवा में विपक्ष के कमजोर करने का दोषी भी ठहराया।
AAP सुप्रीमो ने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं की नाराज़गी के बावजूद लोकतंत्र को बचाने के लिए वो हर संभव प्रयास कर रहे हैं। AAP पार्टी अनिवार्य रूप से कॉन्ग्रेस के भ्रष्टाचार से लड़ते हुए शुरू हुई थी। हम एक समय में कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन का सपना भी नहीं देख सकते थे। लेकिन देश में मौजूदा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हमने एक तरह के टाई-अप के लिए कॉन्ग्रेस से संपर्क किया। केजरीवाल ने कहा कि हमने कॉन्ग्रेस को समझाया कि मोदी-शाह को हराना क्यों महत्वपूर्ण है। और हमने सभी प्रयास किए। लेकिन वे हमारी बातों पर कोई रुचि नहीं ले रहे हैं।
कॉन्ग्रेस पर पलटवार करने का आरोप लगाते हुए केजरीवाल ने कहा कि पिछले मंगलवार को कॉन्ग्रेस के गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी के फैसले से अवगत कराया कि वो दिल्ली और हरियाणा में गठबंधन के लिए तैयार हैं, लेकिन एक दिन के भीतर ही वो इससे मुकर गए। जानकारी के मुताबिक़, पिछले मंगलवार को लगभग 11 बजे, AAP राज्यसभा सांसद संजय सिंह को गुलाम नबी आज़ाद द्वारा उनके स्थान पर बुलाया गया था। उन्होंने कहा कि वो AAP के साथ दिल्ली, हरियाणा और चंडीगढ़ में गठबंधन करेंगे। संजय सिंह इस पर मान गए थे। इसके बाद यह निर्णय लिया गया कि अगले दिन एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इसकी घोषणा कर दी जाएगी।
केजरीवाल ने कहा, “अगले दिन, हम इंतज़ार करते रहे। उन्होंने कुछ शर्तों को बदलते हुए शाम को हमें फोन किया। हमने नई शर्तों को भी स्वीकार कर लिया। लेकिन वो अपनी बातों से मुकर गए।”
दिल्ली के सीएम पर ‘यू-टर्न’ लेने का आरोप लगाने वाले राहुल गाँधी के ट्वीट का जिक्र करते हुए केजरीवाल ने कहा, “मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि दुनिया में ट्विटर पर कहाँ-कहाँ गठबंधन हुए हैं।”
केजरीवाल ने कॉन्ग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा, “मैं उन सभी लोगों से अपील करता हूँ जो मोदी को पराजित देखना चाहते हैं, वो मतों को विभाजित न होने दें। कॉन्ग्रेस को हिन्दू वोट नहीं मिल रहे हैं। मुस्लिमों में भ्रम की स्थिति है। कॉन्ग्रेस देश भर में भाजपा-विरोधी गठबंधन को नुकसान पहुँचा रही है।”
इसके अलावा सीएम केजरीवाल ने कहा कि अगर कॉन्ग्रेस जीतने की स्थिति में होती, तो मैं सभी सात सीटें कॉन्ग्रेस को दे देता। इसलिए दिल्ली-विशेष गठबंधन का कोई मतलब नहीं है क्योंकि आज हम सभी सात सीटों पर भाजपा को हराने की स्थिति में हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली लोकसभा के AAP पार्टी के सभी सात उम्मीदवार भी शामिल थे।
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, कॉन्ग्रेस नेताओं के बयानों का स्तर गिरता ही जा रहा है। पूर्व में विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण और गरिमामय पद संभाल चुके फर्रूखाबाद के लोकसभा प्रत्याशी सलमान खुर्शीद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने एफआईआर फाड़ देने की धमकी दी। अब राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के अध्यक्ष रहे सैम पित्रोदा ने सरकारी संस्थानों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे कर्मचारियों को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर कॉन्ग्रेस की सरकार बनी तो प्राथमिकता से पहला काम सरकारी संस्थाओं और संस्थानों को ‘संघ-मुक्त’ करने का किया जाएगा। इसके लिए संघ से जुड़ाव रखने वाले लोगों को पहले 100 दिन के भीतर निकाल बाहर किया जाएगा।
घोषणापत्र बाद में, संघी-निकालो अभियान पहले
कॉन्ग्रेस की घोषणापत्र समिति के सदस्य पित्रोदा के अनुसार ‘संघियों’ को निकाल बाहर करना इतना जरूरी है कि कॉन्ग्रेस का घोषणापत्र लागू करना भी उसके सामने गौण है। पहले संघियों की सफाई का काम शुरू करेगी कॉन्ग्रेस, उसके बाद अपना घोषणापत्र लागू करना शुरू करेगी। उन्होंने शिकागो के भारतीय महावाणिज्य दूतावास के बारे में आरोप लगाया कि वहाँ लोगों को दिक्कत इसलिए हो रही है क्योंकि संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति को वहाँ नियुक्त कर दिया गया था।
बाकी मुद्दों के लिए समय-सीमा,अफस्पा-राष्ट्रद्रोह पर ‘मैं विशेषज्ञ नहीं’
अपनी पार्टी के घोषणापत्र के बारे में उन्होंने दावा किया कि हर मुद्दे पर किए गए वादे को पूरा करने के लिए एक समय-सीमा निश्चित की जाएगी। कुछ मुद्दों के लिए तो यह 50, 100 और 150 दिनों तक भी हो सकती है। पर जब कॉन्ग्रेस से सबसे विवादास्पद मुद्दों अफस्पा हटाने और राष्ट्रद्रोह पर ‘पुनर्विचार’ करने के बारे में पूछा गया तो पित्रोदा ने अपने को इन मामलों का विशेषज्ञ न होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया।
उन्होंने यह भी दावा किया कि कॉन्ग्रेस सरकार बनाने में सफल होगी, पर सीटों की संख्या का अनुमान लगाने से इंकार कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि अंत में गठबंधन की जो भी तस्वीर उभरेगी, प्रधानमंत्री का निर्णय उसके भागीदार दल करेंगे।
पहले भी हो चुका है राज्य सरकारों में
पिछले साल तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान का विधानसभा चुनाव जीतने वाले कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री पहले भी ऐसा कर चुके हैं। शासन के महत्वपूर्ण पदों पर अपने करीबी अफसरों को बैठाने के लिए इन तीनों राज्यों की नवगठित कॉन्ग्रेस सरकारों ने बड़े पैमाने पर तबादले किए थे।
शशि थरूर ने भाजपा पर लगाया था नौकरशाही के राजनीतिकरण का आरोप
अपनी किताब ‘The Paradoxical Prime Minister’ में कॉन्ग्रेस के ही नेता शशि थरूर प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाते हैं कि मोदी ने गुजरात कैडर के कुछ अफसरों को केन्द्रीय काडर में बुलाकर नौकरशाही का राजनीतिकरण करने की कोशिश की है (तीसवाँ अध्याय, ‘सिविलाइज़िन्ग द सिविल सर्विसेज़?’)। यह सवाल ऐसे में लाजमी है कि अपनी पार्टी की उस नीति के बारे में शशि थरूर क्या कहना चाहेंगे जहाँ उनकी पार्टी एक सांस्कृतिक और गैर-राजनीतिक संगठन से अतीत में रहे जुड़ाव के आधार पर लोगों को हटाने की बात करती है।
बीते दिनों अपने ऊपर लगे यौन शोषण के आरोप को चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई ने कोर्ट के ख़िलाफ़ साजिश करार दिया था। जिसके मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए जाँच कमेटी का गठन कर दिया है। इस मामले पर जस्टिस पटनायक हलफनामे और सबूतों के आधार पर मामले की जाँच करेंगे। दिल्ली पुलिस, सीबीआई और आईबी को जस्टिस पटनायक को जाँच में सहयोग करने के लिए कहा गया है।
कोर्ट का कहना है कि प्रधान न्यायाधीश गोगोई पर लगाए गए आरोप इस जाँच से बाहर होंगे। ये कमेटी केवल साजिश की जाँच के लिए है। आजतक की ख़बर के अनुसार जस्टिस पटनायक सीलबंद लिफ़ाफे में जाँच की रिपोर्ट अदालत को सौंपेंगे।
उल्लेखनीय है कि आज गुरुवार (अप्रैल 25, 2019) की सुबह वकील उत्सव बैंस ने अतिरिक्त हलफनामा और सीलबंद सबूत अदालत को दिए। विशेष पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी। कोर्ट ने इस मामले में बड़ी साजिश का इशारा करते हुए कहा कि इसके पीछे बड़े और ताक़तवर लोग हो सकते हैं, लेकिन वे (साजिशकर्ता) जान लें कि वे आग से खेल रहे हैं।
इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि उनके पास दस्तावेजों का निरीक्षण करने का अधिकार है। साथ ही कोर्ट ने विशेषाधिकार वाले दस्तावेजों पर अटॉर्नी जनरल से अपना कानूनी तर्क देने को भी कहा है। जिस पर अटॉरनी जनरल ने कोर्ट स्टाफ की नियुक्ति और व्यवहार के नियम बताए।
केके वेणुगोपाल (अटॉर्नी जनरल) ने इस दौरान कोर्ट में कहा कि अदालत से निलंबित हुए कर्मचारियों ने वकील से संपर्क किया था और वो प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस करना चाहते थे। उन्होंने बताया कि उत्सव के हलफनामे के अनुसार अजय उनके पास आता था और कहता था कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए उसे 50 लाख रुपए देगा। उत्सव द्वारा दिए हलफनामे की मानें तो अजय क्लाइंट नहीं था, लेकिन कौन था ये भी नहीं पता चल पाया।
वहीं इंदिरा जयसिंह (वरिष्ठ वकील) ने कोर्ट को दी अपनी दलीलों में कहा कि यौन उत्पीड़न के आरोप को नकारा गया है। उसकी जाँच अभी होनी है। लेकिन इसके साथ ही साजिश का भी मुद्दा जुड़ा हुआ है, इसलिए दोनों मामलों की जाँच एकसाथ होनी चाहिए।
इंदिरा की दलील पर अदालत ने कहा कि दोनों मामलों की जाँच हो रही है। इंदिरा जय सिंह ने पूछा कि बिना स्टिकर की गाड़ी सुप्रीम कोर्ट पार्किंग में कैसे आई? इसकी जाँच कराई जाए। साथ ही उत्सव की विश्वसनीयता की भी पड़ताल हो। गौरतलब है कि इंदिरा जयसिंह ने यह भी कहा है कि सरकार संस्थानों को कंट्रोल कर रही है। जैसे ही किसी बड़े विवाद का मामला हमारे पास आता है किताबें छपने लगती हैं। रिपोर्ट बनने लगती हैं।
Will the Supreme Court please invistigste the credential of Utsav Bains , along with his affidavit ? Will he file a sworn affidavit stating he had no connection with any of the persons involved in this controversy and subject himself to cross examination ?@ScbaIndia@LiveLawIndia
बता दें कि इस मामले की सुनवाई न्यायाधीश अरुण मिश्रा, न्यायाधीश आर एफ नरिमन और न्यायाधीश दीपक गुप्ता की पीठ कर रही थी। एनडीटीवी इंडिया में छपी खबर के अनुसार अरूण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की इस विशेष पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय की पीठ में ‘फिक्सिंग’ के बारे में अधिवक्ता उत्सव सिंह बैंस द्वारा दाखिल हलफनामे में लगाए गए आरोप और कुछ नामों का खुलासा बहुत ही गंभीर पहलू है।
पीठ ने कहा, “यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि अदालत को पाक-साफ रखा जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि इस तरह के आरोपों से इस संस्था की छवि धूमिल ना हो…”
मामले में जाँच का आश्वासन देते हुए पीठ ने कहा, “हम जाँच करेंगे और फिक्सरों के सक्रिय होने और न्यायपालिका के साथ हेराफेरी करने के कथित दावों की तह तक जाएँगे। यदि वे अपना काम करते रहे तो हममें से कोई भी नहीं बचेगा। इस व्यवस्था में ‘फिक्सिंग’ की कोई भूमिका नहीं है। हम इसकी जाँच करेंगे और इसे अंतिम निष्कर्ष तक ले जाएँगे।”
मम्मी कसम खाकर मारक मजा देने की गेरेंटी देने वाला कथित समाचार पोर्टल ‘दी लल्लनटॉप’ हर आए दिन पत्रकारिता में नए कीर्तिमान रचते हुए नजर आता है। हिटलर के लिंग की नाप-छाप का ब्यौरा 21वीं सदी में देने वाला यह खोजी पत्रकारों का गिरोह आज तब चर्चा में आ गया जब इसने ‘Faking news’ नामक प्रैंक वेबसाइट की एक खबर का फैक्ट चेक कर डाला। जब सम्पादकीय नीतियों में खुला ध्येय वाक्य ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’ जैसी टैगलाइन हो, तो इस तरह के प्रोपेगैंडा बनाकर बेचना सामान्य-सी बात नजर आती है।
सामान्य से भी निम्न श्रेणी मानसिक क्षमता का व्यक्ति भी शायद ही कोई ऐसा होगा जो Faking News की वेबसाइट पर खुद जाकर, उस पर प्रकाशित खबर को खुद ही फेक (फर्जी) घोषित कर के, खुद ही उसका फैक्ट चेक कर लोगों के बीच लाकर उसे सनसनी बना सके। लेकिन सम्पादक के अंतिम निर्णय को भी इस मामले में नजरअंदाज करना मुश्किल है।
हेडलाइन में ‘यादव’ होना तो नहीं है वजह?
दी लल्लनटॉप ने Faking News की खबर को फैक्ट चेक यानी, उसकी सच्चाई लोगों के सामने लाने का ‘प्रयास’ किया है। इसमें लिखा गया है, “मोदीजी के इशारे पर हो रही है IPL में यादव बॉलरों की पिटाई!” – अखिलेश यादव।”
सामान्य-सी बात है कि सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस खबर को हास्य के लिए व्हाट्सएप्प, फेसबुक से लेकर ग्रुप और आपस में शेयर किया। लेकिन दी लल्लनटॉप ने इसमें जातिगत नजरिया तलाश कर फ़ौरन लपक लिया और इसके सम्पादक ने आम चुनावों के बीच में इस खबर को प्रकाशित करने का निर्णय लिया। इंडिया टुडे समूह के इस समाचार वेबसाइट ने अपने पाठकों को मारक मजा देने की मम्मी कसम खाई है। हो सकता है, इसी कारण अपने दैनिक ‘कट्टर पाठकों’ की सोचने की क्षमता को भाँपते हुए ही उन्होंने इस रिपोर्ट समझाने का एक प्रयास किया हो।
ये भी याद दिला दें कि इसी मीडिया गिरोह ने विगत वर्ष होली के त्यौहार पर लड़कों द्वारा कंडोम में वीर्य भरकर लड़कियों पर मारने की झूठी घटना को हवा देने का काम किया था। यहाँ तक कि इस खबर की गलत होने पुष्टि हो जाने के बाद भी दी लल्लनटॉप ने इस वर्ष भी होली के दिन ही इस खबर को दोबारा प्रकाशित किया था ताकि हिन्दुओं की आस्था पर प्रहार करने का इनका एजेंडा साँस लेता रहे। आज जब ऐसे मीडिया गिरोह ‘फैक्ट चेक’ जैसे ट्रेंड्स को भुनाने के लिए फर्जी ख़बरों को बेनकाब करने का दावा करते हैं तो ये अपने आप में एक व्यंग्य हो जाता है।
सबसे ज्यादा हास्यास्पद बात यह है कि इस खबर के नीचे दी लल्लनटॉप के पाठकों ने ही सम्पादक को ये बताने की कोशिश की है कि ये Faking News है और कम से कम उन्हें, यानी पाठकों को, यह बात अच्छे से पता है।
सामाजिक चिंतन के नाम पर ‘गंदी बात’ जैसे कॉलम के माध्यम से अपने पुराने और बेहद अप्रासंगिक लेखों को अपने कट्टर पाठकों को मजा देने के लिए बार-बार पढ़ाने में इस मीडिया गिरोह के सम्पादक शायद इतने व्यस्त रहे हैं कि उन्हें यह तक जानने की फुरसत नहीं हो पाती है कि वो Faking News के तात्पर्य को जान सकें।
दी लल्लनटॉप को उनके पाठकों ने ही ‘मारक राय’ देकर ले लिए मारक मजे
लल्लनटॉप नामक इस मीडिया गिरोह के पाठकों में ये खबर देखकर उल्टे मजे लेते हुए प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है, “लल्लनटॉप को बस अपनी दुकान चलाने से मतलब है, इसके लिए चाहे फेक न्यूज़ का ही फैक्ट चेक क्यों ना करना पड़े।”
वहीं लल्लनटॉप द्वारा अपने पाठकों को हल्के में लेने से नाराज कुछ पाठकों ने अपना रोष प्रकट करते हुए लिखा है, “हमने लल्लनटॉप पर विश्वास किया, लेकिन तूने हमें बेवकूफ समझ रखा है क्या एडमिन? हमको पता है कि यह झूठी न्यूज़ है, तुमको नहीं मालूम खाली।”
MEME और Faking News का फैक्ट चेक करना AltNews से सीख रहे हैं मीडिया गिरोह
‘वायरल’ और व्हाट्सएप्प पर घूमने वाली फर्जी ख़बरों की प्रमाणिकता का दावा कर चर्चा में आई Pro Congress प्रोपेगैंडा वेबसाइट Altnews ने पत्रकारिता में यह नई कला विकसित की है। ट्रैफिक, TRP और चर्चा के लिए जूझते हुए ये समाचार पोर्टल्स सस्ती लोकप्रियता के लिए इस प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं। लेकिन, पाठक होने के नाते यह हमें जानना चाहिए कि यह समाचार और पत्रकारिता के मानकों की खुली हत्या है।
हो सकता है कि अपने ‘कट्टर पाठकों’ को बेवकूफ समझने का इन मीडिया गिरोहों का ये नया तरीका फिलहाल इन्हें खूब लोकप्रियता दे भी रहा हो, लेकिन हमें समझना आना चाहिए कि ऐसा ये सिर्फ अपने पाठक वर्ग की क्षमताओं को ही कमतर आँकते हुए कर रहे हैं।
हमारी राय
मारक मजा देने का कच्चा सामान यदि दी लल्लनटॉप नहीं जुटा पा रहा है तो उसे Faking News की ही कुछ अन्य ख़बरों का फैक्ट चेक कर लेना चाहिए। जैसे कि सनी पाजी का हाथ ढाई किलो का वाकई में है या नहीं?
हास्य-व्यंग्य और ‘गड़बड़ समाचार’ बनाने के लिए फेमस है Faking News
फ़ेकिंग न्यूज़ एक हास्य-व्यंग्य लिखने वाली वेबसाइट है, जिसका उद्देश्य मात्र समसामयिक घटनाओं के आधार बनाकर व्यंग्य करना है। ऐसा पहली बार नहीं है, जब मेनस्ट्रीम मीडिया ने Faking News की ख़बरों को सच मानकर अपनी वेबसाइट पर प्रकशित किया हो।
उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य रहा है, जहाँ मुख़्तार अंसारी, राजा भैया, अमरमणि त्रिपाठी जैसे कई ऐसे ‘गुंडे’ हुए हैं जिन्हें बाहुबली का नाम देकर न सिर्फ़ मीडिया बल्कि राजनीति के एक धड़े ने भी इनका महिमामंडन किया। ऐसा ही एक नाम है अतीक अहमद का। अतीक अहमद मुलायम सिंह यादव के ज़माने में उनके ख़ास रहे थे। जब यूपी में मुलायम-माया मुख्यमंत्री बना करते थे, तो उसके पीछे ऐसे कई आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले नेताओं का हाथ होता था। इन्हें पार्टी में न सिर्फ़ रखा जाता था बल्कि प्रशासन को भी इन पर कार्रवाई करने से रोक दिया जाता था। ये अपराधी बनते, उसके बाद नेता बनते और फिर सरकार में भी शामिल होते। योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद यूपी के अपराधियों में जो ख़ौफ़ है, ऐसा वहाँ पहली बार हो रहा है। सपा-बसपा द्वारा लगातार गुंडों को संरक्षण दिए जाने के कारण तंग जनता ने योगी सरकार के आने के बाद हुए चुनाव में अतीक अहमद को ऐसा मज़ा चखाया कि उसके सारे स्वप्न टूट गए।
अतीक अहमद देखने से ही खूँखार लगता है। जिस भी जेल में जाता है, वो जेल उसे रखना नहीं चाहता। वो जेल से ही आपराधिक धंधे शुरू कर देता है। उसके गुर्गे कभी भी, कहीं भी कोहराम मचाने के लिए तैयार रहते हैं। वो जेल में हो या बाहर, उसका सन्देश उसके गुर्गों तक पहुँच ही जाता है। उस पर नज़र रखने वाले पुलिसकर्मी कहते हैं कि उसका भयावह चेहरा, क़द-काठी और अंदाज़ ऐसा है कि किसी को भी असहज महसूस होने लगे। उसकी आँखें ऐसी हैं कि शायद ही कोई उससे नज़रें मिला कर बात करता हो। वह ख़ुद को मुस्लिमों का रहनुमा मानता है। देवरिया जेल में जब उसे संभालना मुश्किल हो गया तब उसे बरेली स्थित जेल में भेज दिया गया। वहाँ इसके पहुँचते ही अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था की गई और पुलिसकर्मियों की संख्या भी बढ़ा दी गई। लेकिन सब बेकार। अब आपको बताते हैं कि उसके बरेली जेल में शिफ्ट होने से पहले क्या हुआ था?
बरेली के व्यापारी मोहित जायसवाल ने कृष्णा नगर पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज कराई। इसमें उन्होंने अपने साथ हुए अन्याय का ज़िक्र किया। मोहित ने बताया कि उन्हें अतीक अहमद के गुर्गे टांग कर ले गए और पिटाई की। अतीक अहमद और उसके बेटे उमर अहमद के सामने उन्हें मारा-पीटा गया। ये सब और कहीं नहीं बल्कि देवरिया जेल के भीतर हुआ। अहमद ने मोहित के पाँच व्यापार जबरन अपने नाम करा लिए। इसकी क़ीमत 45 करोड़ रुपए आँकी गई है। अगर जेल में रहने वाले अतीक से जब एक करोड़पति व्यापारी सुरक्षित नहीं है सोचिए उसके चरम दिनों में आम जनता की क्या हालत होती होगी? इतना ही नहीं, मोहित के फॉर्च्यूनर कार को भी लूट लिया गया। अतीक ने मोहित से 2 वर्ष पहले भी कई लाख रुपए जबरन वसूले थे। वो पिछले 4 महीनों से उनसे और रुपयों की माँग कर रहा था। उसने जेल में ही क़ानून को धता बताते हुए मोहित के दाहिने हाथ की दो उँगलियाँ तुड़वा डाली थीं।
मोहित के अलावा एक अन्य व्यापारी ने भी उस पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। प्रयागराज के व्यापारी मोहम्मद ज़ाएद ख़ालिद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रशासन को पत्र लिखकर बताया कि उसे अतीक अहमद के दर्जन भर गुंडे जबरन टांग कर देवरिया जेल ले गए। वहाँ अतीक ने उससे गाली-गलौज किया और विष्णुपुर में उसके किसी ज़मीन को अपने आदमी के नाम ट्रांसफर करने को कहा। जब ये सब किया जा रहा था तब जाएद की मदद के लिए जेल का कोई भी अधिकारी या पुलिसकर्मी नहीं आया। अब आप ज़रूर सोच रहे होंगे कि देवरिया जेल सचमुच में जेल है या फिर कोई कबाड़खाना जहाँ अतीक जब जिसे मन करे, किसी को भी उठवा कर मँगा लेता है। ऐसा आपने फ़िल्मों में देखा होगा जहाँ अपराधी-राजनीति का नेक्सस जो चाहे वो कर सकता है। अतीक अहमद का भी कुछ ऐसा ही मामला है। राजनीतिक गलियारों में उसकी पहुँच यूँ ही नहीं है। आइए उसके आपराधिक इतिहास से पहले उसके राजनीतिक इतिहास की बात करते हैं क्योंकि ऐसे लोगों को कौन संरक्षण देते हैं, ये जानना ज्यादा ज़रूरी है।
अतीक अहमद पहली बार इलाहाबाद पश्चिम से 1989 में जीत कर विधानसभा पहुँचा। उसे 25,000 (33%) से अधिक वोट मिले थे। 1991 में इलाहाबाद पश्चिम से अतीक अहमद ने अपना दूसरा चुनाव लड़ा। 51% मत पाकर उसने भारी जीत दर्ज की। उसे इस चुनाव में 36,000 से अधिक वोट मिले थे। 1993 के विधानसभा चुनाव में उसे 56,000 मत मिले और उसे मिला मत प्रतिशत 49% रहा। 1996 में न सिर्फ़ उसे मिलने वाले मतों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ बल्कि मत प्रतिशत भी बढ़ गया। उसे कुल मतों का 53% यानी 73,000 के क़रीब वोट मिले। 2002 में उसे मिलने वाले मत और मत प्रतिशत में भारी कमी दर्ज की गई और ये उसके दूसरे चुनाव में मिले मतों के आसपास ही रहा लेकिन फिर भी वो जीत दर्ज करने में कामयाब रहा। इस तरह उसने इलाहबाद पश्चिम को पाँच बार जीता।
पहले तीन चुनाव उसने निर्दलीय लड़ा। 1996 में मुलायम सिंह यादव के क़रीब आने के बाद उसने सपा के टिकट पर चुनाव जीता था। इसी तरह 2002 में उसने अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल का विश्वस्त बन कर इसके टिकट पर चुनाव जीता। वो अपना दल का अध्यक्ष भी रहा। अब आपको राजू पाल के बारे में जानना ज़रूरी है। 2004 में अतीक अहमद के फूलपुर से सपा के टिकट पर सांसद बन जाने के बाद इलाहाबाद पश्चिम में हुए उपचुनाव में उन्होंने अतीक के भाई अशरफ को हरा दिया था।गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने जाते समय उनकी दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई। हत्या का आरोप अतीक अहमद पर लगा। बाद में जब जब अतीक को सपा से निकाला गया तब बसपा ने उसे टिकट नहीं दिया क्योंकि मायावती अपने विधायक की हत्या वाली बात भूली नहीं थी। राजू पाल की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में अतीक के भाई ने फिर से चुनाव लड़ा। 2004 में उसने समाजवादी पार्टी के टिकट पर ही फूलपुर से लोकसभा चुनाव जीता था।
अब बात करते हैं अतीक के आपराधिक इतिहास की। जब किसी पर कोई केस दर्ज होता है और उसे अदालतों, थानों व जेल के चक्कर लगाने पड़ते हैं तो यह उसके लिए परेशानी वाली बात होती है लेकिन अतीक अहमद के मामले में ऐसा नहीं है। उसे अपने ऊपर चल रहे मामलों पर गर्व है। वह इसके बारे में छाती चौड़ी कर ढोल पीटता है। 2014 में सपा उम्मीदवार के रूप में उसने दावा किया था कि उसके ऊपर 188 मामले चल रहे हैं और उसने अपनी आधी ज़िंदगी जेल में व्यतीत की है, जिस पर उसे गर्व है। सीना तान कर उसने कहा था कि वह अपने समर्थकों के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, चाहे उसके जो भी परिणाम हों। ये सोचा जा सकता है कि जिस प्रदेश में नेताओं को अपने आपराधिक पृष्ठभूमि पर गर्व हो और 188 मामलों का आरोपित (उसी के शब्दों में) खुले साँढ़ की तरह घूमे, वहाँ क़ानून व्यवस्था की क्या हालत होगी? ये सपा-बसपा का उत्तर प्रदेश था।
अतीक अहमद पर तभी हत्या का आरोप लग गया था, जब वो सिर्फ़ 17 वर्षों का था। इसके बाद उसने अपराध की दुनिया में ऐसा नाम बनाया कि मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन भी उसके सामने फीके पड़ जाएँ! 2016 में कृषि विश्वविद्यालय (SHUATS) के कर्मचारियों की उसने बुरी तरह पिटाई की थी। इस घटना के बाद अखिलेश सरकार की ख़ूब भद्द पिटी थी। कर्मचारियों को पीटते हुए उसका वीडियो भी वायरल हो गया था। अभी आपने देखा कि कैसे यूपी के जेल और अधिकारी उससे डरते हैं। जब किसी को न्याय चाहिए होता है तो अदालत उसके लिए आख़िरी दरवाजा होता है लेकिन ऐसे व्यक्ति का क्या किया जाए जिसका केस सुनने से अदालत भी इनकार कर देती है। जब उसने ज़मानत के लिए आवेदन दिया था तब एक-एक कर 10 जजों ने उसका केस सुनने से मना कर दिया था। 11वें जज ने आख़िर में उसका केस उठाया और उसे ज़मानत मिली।
जिसे अपने ऊपर चले रहे मामलों पर गर्व हो, जिस व्यक्ति का केस हाईकोर्ट के जज भी सुनने से इनकार कर देते हों, जिसे सपा जैसी राजनीतिक पार्टी का संरक्षण प्राप्त हो (पूर्व में), जिस पर नज़र रखने वाले पुलिसकर्मी भी डर जाएँ और जिसे कोई जेल अपने परिसर में नहीं रखना चाहता हो, ऐसे व्यक्ति के लिए कौन सा विशेषण प्रयोग किया जा सकता है? जिस इलाहबाद कोर्ट ने कभी इंदिरा गाँधी तक की चुनावी जीत को रद्द कर दिया था, वही कोर्ट अतीक अहमद के मामले में नहीं पड़ना चाहता। इससे समझा जा सकता है कि अतीक का क्या प्रभाव है! आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाया है। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने न सिर्फ़ उसे गुजरात के जेल में हस्तांतरित करने को कहा है बल्कि सीबीआई से जाँच कराने का भी निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद उसे गुजरात ले जाया जाएगा।
ये सोचने वाली बात है कि कारोबारियों को जेल बुला-बुला कर पीटा जाए, जेल में उसके बैरक में उसके गुर्गों सहित सगे-सम्बन्धी मौजूद हों और उसके मामलों में कोई अधिकारी दखल देने की भी हिम्मत न करे! इसमें जेल अधिकारियों की भी अच्छी-ख़ासी संलिप्तता सामने आई है और उन पर विभागीय कार्रवाई की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को उस पर चल रहे 26 मामलों के अलावा 80 अन्य मामलों में भी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश किया। अदालत में इस बात का भी ज़िक्र किया गया कि उस पर 102 मामले अब तक दर्ज किए जा चुके हैं। अतीक अहमद के भाइयों पर भी कई मामले दर्ज हैं और उसके परिवार, गुर्गों व सगे-सम्बन्धियों पर चल रहे आपराधिक मामलों को मिला दें तो संभव है कि आपराधिक मामलों की संख्या उस आँकड़े को भी पार कर जाए, जैसा उसने दावा किया था।
Businessman Mohit Jaiswal has alleged that gangster Atiq Ahmed’s henchmen took him to the Deoria jail on December 26 in his own SUV and assaulted him inside the barrack where the gangster is lodged and forced him to sign away property worth Rs 40 crore.https://t.co/P6OJuBk7mM
हमने यूपी-बिहार व अन्य राज्यों का ट्रेंड देखा है कि कैसे आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग राजनीति में आने के बाद सार्वजनिक जीवन में स्वच्छ दिखने के लिए अपराध से दूरी बना लेते हैं। ऐसे कई राजनेता हुए हैं जिन पर कई मामले दर्ज थे लेकिन बाद में उन्होंने अपराध से किनारा कर लिया और नेतागिरी एवं उद्योगपति के रूप में उन्होंने कार्य करना शुरू कर दिया। अतीक अहमद के मामले में ऐसा नहीं है। उसने 6 बार चुनाव जीतने के बावजूद आपराधिक जगत में व्यक्तिगत रूप से दबदबा जारी रखा। वो चुनाव लड़ता गया, समय बदलता गया लेकिन उस पर दर्ज होनेवाले आपराधिक मामलों में कोई कमी नहीं आई। इसे लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाना ही कहेंगे जहाँ एक व्यक्ति राजनीति में धमक रखता है, न्यायपालिका को मज़बूर कर देता है, अपराध की दुनिया में बादशाहत हासिल करता है, पुलिस प्रशासन उसे संभाल नहीं पाती और मीडिया उसके संरक्षकों से सवाल नहीं पूछती।
भारत में ऐसे लोग चुनाव भी काफ़ी आसानी से जीत जाते हैं और न सिर्फ़ जीतते हैं बल्कि वे अच्छे से जीतते हैं। एक अच्छी बात यह है कि 2004 में सांसद बनने के बाद उसने जो भी चुनाव लड़ा, उन सब में उसे हार मिली। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भी उसे हार मिली। जनता को भी इस बारे में सोचने की ज़रूरत है क्योंकि जनता के लिए स्थापित सारी संवैधानिक संस्थाएँ जनता के वोटों से ही जीतने वाले व्यक्तियों के समाने असहज और निःसहाय महसूस करती हैं। जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में इस व्यक्ति का प्रभाव इतना है, तो जरा सोचिए कि उस दौरान क्या होता होगा, जब न सिर्फ़ यह सांसद था बल्कि जिस पार्टी का सांसद था, उसके लिए मुस्लिम वोट जुटाने का कार्य भी करता था। अब लगातार चुनावों में हुई उसकी हार के बाद साफ़ हो गया है कि लोग डर के मारे ही उसे वोट किया करते थे। तभी तो मुख़्तार अंसारी हो या अतीक अहमद, 2014 के बाद से इनका राजनीतिक करियर ढलान पर है।
बोर्ड की परीक्षा छात्र जीवन में सबसे महत्वपूर्ण परीक्षाओं में से एक होती है। हर बच्चा चाहता है कि वह अपनी बोर्ड परीक्षा में अच्छे से अच्छे अंक प्राप्त करे और सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर हो। लेकिन क्या हो अगर बच्चों को उनकी कड़ी मेहनत का परिणाम फेल होकर मिले? तेलंगाना में कुछ ऐसा ही हुआ है। जहाँ बोर्ड की परीक्षा में बैठे 9.74 लाख बच्चों में से 3.28 लाख छात्रों को फेल कर दिया गया।
18 अप्रैल को तेलंगाना बोर्ड ऑफ इंटरमीडिएट एजुकेशन (टीएसबीआईई) ने 11वीं और 12वीं के परीक्षा परिणामों की घोषणा की थी। जिसके बाद से अब तक फेल हुए 18 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। छात्र समूहों और अभिभावकों के विरोध-प्रदर्शन के बाद बुधवार (अप्रैल 24, 2019) को राज्य सरकार ने उन 3.28 लाख बच्चों की उत्तर-पुस्तिकाएँ दोबारा से जाँचने का आदेश दिया।
जानकारी के अनुसार, तेलंगाना की सरकार ने परीक्षा नामांकन और परिणामों की प्रक्रिया का कॉन्ट्रैक्ट एक प्राइवेट कंपनी (Globarena Technologie) को दिया था। जिसकी तकनीकी गलतियों के कारण छात्रों को फेल कर दिया गया या फिर उन्हें परीक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी अनुपस्थित दिखाया गया।
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, जिन छात्रों ने फेल होने के बाद खुदकुशी की है, उनमें से एक नाम जी नागेंन्द्र का भी है। नागेंद्र ने परीक्षा परिणाम देखने के बाद अपने घर में फाँसी लगा ली। नागेंन्द्र गणित में फेल हो गया था, जबकि गणित उसका पसंदीदा विषय था। दूसरी ओर वेनेल्ला नामक छात्र ने 18 अप्रैल को कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे दो विषयों में फेल कर दिया गया था।
तेलंगाना पेरेंट्स असोसिएशन के अध्यक्ष एन नारायण का कहना है कि उत्तर-पुस्तिका की मूल्याँकन प्रणाली में तकनीकी गड़बड़ी होने के कारण मेधावी छात्रों को कुछ विषयों में 5 से 10 अंक भी मिले हैं और परीक्षा में सैकड़ों छात्रों के उपस्थित होने के बावजूद उन्हें अनुपस्थित दिखाया गया।
शर्मनाक बात यह है कि जब परीक्षा के परिणाम घोषित हुए तो निजी कंपनी ने तकनीकी गड़बड़ी वाली बात को स्वीकार किया था, लेकिन बाद में कहा गया कि गड़बड़ी में सुधार कर लिया गया। पर अब ऐसा लगता है जैसे पूरी मूल्याँकन प्रक्रिया में ही गड़बड़ी हुई है। इसके कारण सुनहरे भविष्य की कल्पना करने वाले छात्रों ने खुद को अंधकार के हवाले कर दिया।
निजी कंपनी की हुई इस गलती पर विशुवर्धन नामक अभिभावक ने कहा, “जो छात्र ग्याहरवीं कक्षा में 95 प्रतिशत अंक लाए, वो बाहरवीं कक्षा में फेल कर दिए गए। अगर यह बच्चे पिछले साल कम अंक लाए होते तो बात समझ में आती है, लेकिन इन मेधावी छात्रों के एक से अधिक विषयों में फेल हो जाने की स्थिति कई सवाल खड़े करती है।”
बता दें कि बुधवार को अभिभावकों और छात्रों के विरोध प्रदर्शन ने उस समय ज़ोर पकड़ा जब जी नव्या (G Navya) नाम की एक छात्रा को तेलगू विषय में शून्य अंक प्राप्त हुए, लेकिन जब दोबारा मूल्याँकन किया गया तो उस छात्रा ने 99 अंक प्राप्त किए।
इस तरह की तकनीकी गलतियों के शिकार जब नव्या जैसे प्रतिभाशाली छात्र होते हैं तो इसे उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ न कहा जाए तो और क्या कहा जाए। वो 18 छात्र जिन्होंने ख़ुदकुशी जैसा क़दम उठाया उनकी मानसिक स्थिति का तो अंदाज़ा लगाना भी असंभव है। इसलिए प्रशासन को इस तरह की तकनीकी गड़बड़ियों को समय रहते देख लेना चाहिए जिससे छात्रों के भविष्य को संवारने के मायने सही अर्थों में सार्थक हो सकें।