Sunday, September 29, 2024
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जम्मू-कश्मीर: बड़गाम में हुई मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने किया 2 आतंकियों को ढेर, बरामद हुई अमेरीकी राइफल्स

जम्मू-कश्मीर के बड़गाम में आज (मार्च 29, 2019) सुबह से ही सुरक्षाबल और आतंकियों के बीच मुठभेड़ जारी है। इस मुठभेड़ में अब तक सुरक्षाबलों द्वारा 2 आतंकियों के मारे जाने की खबर है। यह मुठभेड़ सुत्सू गाँव में हुई है। इस मुठभेड़ में चार जवान भी घायल हुए हैं। और एक की हालत अभी बहुत गंभीर बताई जा रही है।

खबरों के मुताबिक खुफिया एजेंसियों से सुरक्षाबलों को कुछ आतंकियों के इलाके में छिपे होने की खबर मिली थी। जिसके बाद सुरक्षाबल ने इलाके को घेर लिया। खुद को चारों ओर से घिरा देखकर आतंकी घबरा गए और फायरिंग शुरू कर दी। सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में दो आतंकी मारे गए।

प्राप्त जानकारी के अनुसार अब भी इलाके में 2-3 आतंकियों के छिपे होने की संभावना है। इसलिए सुरक्षाबलों का ऑपरेशन अभी जारी है। मुठभेड़ के चलते पूरे इलाके में घेराबंदी कर दी गई है। साथ ही अफवाहों को रोकने के लिए इलाके की इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई है।

मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों को जैश-ए-मोहम्मद का बताया जा रहा है। इनके पासे से दो हथियार भी बरामद हुए हैं। इसमें एक एम-4 स्नाइपर राइफल भी है जो कि अमेरिकी सेना के पास है।

बता दें कि गुरुवार (मार्च 28, 2019) को सुरक्षाबलों द्वारा शोपियाँ और कुपवाड़ा में 4 आतंकियों को मारा गया था। इनमें शोपियाँ जिले से 3 आतंकियों के मरने की खबर थी जबकि कुपवाड़ा जिले में 1 आतंकवादी मारा गया।

BJP ने बिना चुनाव लड़े ही इस राज्य में जीत ली तीन सीटें, पार्टी का विजय अभियान शुरू

आगामी 11 अप्रैल से चुनाव शुरू होने वाला है और सभी राजनीतिक पार्टियाँ जोरों-शोरों से चुनाव जीतने की कोशिश में जुटी है। मगर भारतीय जनता पार्टी की विजय यात्रा मतदान से पहले ही शुरू हो चुकी है। बता दें कि भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में वोटिंग से पहले ही तीन विधानसभा सीटों पर निर्विरोध जीत दर्ज कर ली है। खास बात ये है कि पार्टी ने ये सभी सीटें बिना चुनाव लड़े जीती हैं। इनमें से दो सीटें तो 26 मार्च को ही पार्टी के खाते में आ गई थी, वहीं तीसरी सीट उसे गुरुवार (मार्च 28, 2019) को मिली। गुरुवार को चुनाव आयोग ने दिरांग विधानसभा सीट, यचूली सीट और आलो ईस्ट विधानसभा सीट के नतीजे घोषित कर दिए हैं।

अपर मुख्य चुनाव आयुक्त केंगी दरांग ने बताया कि आलो ईस्ट विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के केंटो जिनी ने निर्विरोध जीत दर्ज की है। उनके खिलाफ कॉन्ग्रेस पार्टी के मिनकिर लोलेन ने नामांकन दाखिल किया था, लेकिन मंगलवार (मार्च 26, 2019) को जाँच के बाद उनका नामांकन रद्द कर दिया गया। वहीं, दिरांग सीट से कॉन्ग्रेस  के प्रत्याशी शेरिंग ग्यूरमे और निर्दलीय प्रत्याशी गोम्बू शेरिंग के गुरुवार (मार्च 28, 2019) के नामांकन वापस लेने के बाद बीजेपी के फुरपा शेरिंग निर्विरोध विजयी घोषित कर दिए गए। इसके अलावा यचूली विधानसभा सीट से ताबा तेदिर ने निर्विरोध जीत दर्ज की है।

इस बारे में केंद्रीय मंत्री और अरुणाचल प्रदेश से भाजपा सांसद किरण रिजिजू ने एक ट्वीट करते हुए लिखा, ‘भाजपा के सभी कार्यकर्ताओं को बधाई। अरुणाचल प्रदेश की 4-दिरांग विधानसभा से भाजपा उम्मीदवार श्री फुरपा शेरिंग निर्विरोध निर्वाचित हो गए हैं। इनके साथ ही भाजपा के 3 विधानसभा उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो गए हैं।’

भाजपा को मिली इस जीत को लेकर भाजपा महासचिव राम माधव ने भी गुरुवार (मार्च 28, 2019) को ट्वीट करते हुए जानकारी दी। उन्होंने लिखा, ‘भारतीय जनता पार्टी ने अरुणाचल प्रदेश में तीसरी विधानसभा सीट जीत ली है। भाजपा उम्मीदवार फुरपा शेरिंग दिरांग सीट से बिना चुनाव लड़े जीत गए हैं। क्योंकि उनके खिलाफ खड़े हो रहे दो अन्य उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया है।’

दरअसल, अरुणाचल प्रदेश में 60 सदस्यीय विधानसभा और लोकसभा की एक सीट के लिए 11 अप्रैल को चुनाव होना था, लेकिन अब केवल 57 विधानसभा सीटों पर और लोकसभा सीट पर ही वोटिंग होगी।

भगोड़े घोटालेबाज नीरव मोदी व माल्या पर ब्रिटिश कोर्ट में आज बड़ा फैसला, ED और CBI की टीम लंदन पहुँची

नीरव मोदी और माल्या की मुसीबतें और बढ़ने वाली हैं। क्योंकि, ब्रिटिश कोर्ट में भारत ने प्रत्यर्पण संबंधी मामलों को लेकर कोशिशें तेज कर दी हैं। ब्रिटेन में दो हाई प्रोफाइल मामलों के लिए कोर्ट तैयार हो चुका है। जहाँ एक तरफ शराब कारोबारी विजय माल्या की हाईकोर्ट में अपील पर न्यायाधीश को फैसला लेना है वहीं दूसरी तरफ वेस्टमिंस्टर कोर्ट में हीरा व्यापारी नीरव मोदी की दूसरी जमानत अर्जी पर शुक्रवार (मार्च 29 , 2019 ) को सुनवाई होनी है।

बता दें कि नीरव मोदी 13 हजार करोड़ रुपए के पीएनबी घोटाले का मुख्य आरोपी है। उसे 20 मार्च को वेस्टमिंस्टर कोर्ट में पेश किया गया था। जहाँ जज ने उसकी पहली जमानत अर्जी को खारिज कर 29 मार्च तक हिरासत में भेज दिया था। नीरव को अभी साउथ वेस्ट लंदन की वेंड्सवर्थ जेल में रखा गया है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नीरव मोदी को दूसरी जमानत अर्जी पर सुनवाई के लिए शुक्रवार को वेस्टमिंस्टर जेल में पेश किया जाएगा। नीरव मोदी के पक्ष ने पिछली सुनवाई में 5 लाख पाउंड की जमानत पर उसे रिहा करने की अपील की थी। अब इस बार देखना है कि कोर्ट में नीरव की जमानत के लिए क्या पैंतरा अपनाया जाता है। यदि नीरव की जमानत अर्जी दूसरी बार खारिज होती है तो इस दिशा में आगे सुनवाई और पेपर वर्क का दौर चलेगा।

वेस्टमिंस्टर कोर्ट में नीरव की दूसरी जमानत अर्जी पर संभव है कि माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश देने वाले जज ही सुनवाई करें। नीरव के खिलाफ वारंट जारी होने के बाद स्कॉटलैंड यार्ड ने उसे 19 मार्च को गिरफ्तार किया था।

बता दें कि केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम इस मामले में सुनवाई से पहले लंदन पहुँच गई हैं। दोनों टीमें भारत का पक्ष रख रही ‘क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विसेज’ (सीपीएस) के साथ शुक्रवार की सुनवाई में शामिल होंगी।

इससे पहले सीपीएस ने पिछली सुनवाई में नीरव मोदी की पहली जमानत अर्जी का विरोध किया था। सीपीएस ने दलील दी थी कि नीरव के पास एक से अधिक पासपोर्ट दर्शाते हैं कि वह लगातार भारत से भागने की फिराक में है। यहाँ तक कि वह भारतीय कोर्ट के कई समन जारी होने के बाद भी पेश नहीं हुआ। उसने कई बार कानून का उल्लंघन किया है। इसके बाद वेस्टमिंस्टर कोर्ट ने उसकी अर्जी खारिज कर दी थी कि इस बार नीरव को रिहा किया तो वापस पकड़ में नहीं आएगा।

ब्रिटेन न्यायपालिका के प्रवक्ता ने माल्या के मामले में कहा कि सभी दस्तावेज तैयार हैं, अब एकल जज के आवंटन और इन कागजों पर संज्ञान लेने का इंतजार है। जज इन दस्तावेजों को देखकर फैसला सुनाएँगे कि क्या माल्या की अर्जी पर आगे सुनवाई की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मामले में निर्णय पर न्यायाधीश के लिए कोई तय समय सीमा नहीं है लेकिन आसार हैं कि अगले कुछ महीनों में इस पर फैसला आ जाएगा। माल्या के भारत को प्रत्यर्पण का हाईकोर्ट आदेश दे चुका है जिस पर सरकार में गृह सचिव साजिद जाविद ने भी पिछले महीने मुहर लगा दी है। माल्या ने इसके खिलाफ अपील की है।

बता दें कि किंगफिशर एयरलाइंस के पूर्व मालिक विजय माल्या भारतीय बैंको से धोखाधड़ी और करीब 9 हजार करोड़ रुपए के धनशोधन मामले में वांछित है। माल्या भारत से भागकर लंदन पहुँचा था जिसके बाद उसके प्रत्यर्पण के लिए भारत ने अर्जी दी थी।

इस मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एम्मा अर्बुथनॉट ने पिछले साल दिसंबर में अपने फैसले में कहा था कि साक्ष्य बताते हैं कि माल्या ने धोखाधड़ी की है। माल्या को भारतीय कोर्ट में इस धोखाधड़ी पर जवाब देना चाहिए। जज ने माल्या को भारत को प्रत्यर्पित करने का फैसला सुनाया था।

देश के पैसे लूटकर भागने वालों में एक सबसे बड़ा नाम विजय माल्या का है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने माल्या के ख़िलाफ़ बड़ी कार्रवाई करते हुए उसके यूनाइटेड ब्रुअरीज होल्डिंग्स लिमिटेड के 74 लाख शेयरों की बिक्री की। ईडी के मुताबिक इस बिक्री प्रक्रिया में 1,008 करोड़ की राशि प्राप्त हुई है।

ईडी की मानें तो विजय माल्या के ख़िलाफ़ चल रही मनी लॉन्ड्रिंग जाँच के चलते एजेंसियों ने उनके शेयरों को जब्त किया था। जो कि यस बैंक के पास पड़े थे। साथ ही कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हाल ही में बैंक को कर्ज वसूली के लिए डेट रिकवरी ट्रिब्यूल को देने का आदेश दिया था।

राजद को लगा डबल झटका; अन्नपूर्णा देवी के बाद गिरिनाथ सिंह हुए BJP में शामिल

लोकसभा चुनाव नजदीक है और इस दौरान दल-बदल का दौर जारी है। इसकी वजह से राजनीतिक गलियारे में उठा पटक का माहौल है। सभी पार्टियाँ पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरने की कवायद में जुटी है। इसी बीच लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्‍ट्रीय जनता दल को झारखंड में एक बार फिर से करारा झटका लगा है। राजद की प्रदेश अध्यक्ष और राजद सुप्रीमो की बेहद करीबी अन्नपूर्णा देवी के भाजपा ज्वॉइन करने के बाद अब राजद के पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष और वरिष्ठ नेता गिरिनाथ सिंह ने आरजेडी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है।

बता दें कि, गिरिनाथ सिंह गुरूवार को केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो गए। हालाँकि, भाजपा ने अभी तक राँची, चतरा और कोडरमा से उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। मगर ऐसा माना जा रहा है कि गिरिनाथ सिंह को भाजपा की तरफ से चतरा संसदीय क्षेत्र का टिकट मिल सकता है। वहीं अन्नपूर्णा देवी को कोडरमा से टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा है।

भाजपा में शामिल होने को राजद के पूर्व अध्यक्ष गिरिनाथ सिंह ने घर वापसी बताया है। गिरिनाथ सिंह ने कहा कि वो तीन चीजों से प्रभावित हो कर भाजपा में आए हैं। उन्होंने कहा कि देश को आज सुरक्षित रखने की जरूरत है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में देश सुरक्षित है। दूसरी बात है कि भाजपा विश्व की बड़ी पार्टी है। साथ ही उन्होंने कहा कि उन्हें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की नेतृत्व क्षमता पर विश्वास है। वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने स्थानीय नीति बना कर राज्य का भला किया। इन्हीं तीन चीजों से प्रभावित होकर वो भाजपा में शामिल हुए।

गौरतलब है कि भाजपा नेताओं से संपर्क रखने की मिल रही खबरों के बाद राजद ने उन्हें पार्टी से छ: साल के लिए निलंबित कर दिया था। हालाँकि, उनका निष्कासन फिर वापस ले लिया गया। मगर गिरिनाथ सिंह ने 25 मार्च को राजद से इस्तीफा दे दिया। वहीं राजद के प्रदेश अध्यक्ष गौतम सागर ने गिरिनाथ सिंह के संबंध में पूछे जाने पर किसी तरह की टिप्पणी करने से इंकार कर दिया।

सोनिया गाँधी जी आपका यह वीडियो किस सन्दर्भ में था? जस्ट किडिंग, हमें तो पता ही है!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मिशन शक्ति की सफलता पर समस्त देशवासियों को बधाई दी। मोदी सरकार के दौरान मिली इस बड़ी सफलता पर खुश होने के बजाए कुछ गिरोहों में दहशत का माहौल देखने को मिला। ‘खानदान विशेष’ के अनुयायियों ने येन केन प्रकारेण ISRO और DRDO की सफलता पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू को बधाई दे डाली और इस घटना को प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव प्रचार का हिस्सा बताने की पुरजोर कोशिश की।

कॉन्ग्रेस के कुछ परिवार-परस्त पदाधिकारियों ने चमचागिरी की अपनी पिछली हरकतों में नया इतिहास जोड़ते हुए बताया कि NASA में ‘N’ का मतलब नेहरू है। खैर, प्रियंका गाँधी की नजरों में आने के लिए उनकी रैली में आसमान से भीड़ उतार कर ले आने वाली प्रियंका चतुर्वेदी से इस से ज्यादा कोई उम्मीद करनी भी बेकार है।

ऐसे समय में, जब नरेंद्र मोदी के साँस लेने से, साँस छोड़ने तक को उनका चुनावी स्टंट घोषित कर लिया जा रहा है, ये बताना जरुरी हो जाता है कि राजनीति के ‘खानदान विशेष’ की फर्स्ट लेडी सोनिया गाँधी ने किस तरह से 2014 के लोकसभा चुनावों के बीच में ही (अप्रैल 14, 2014) देश की जनता और वोटर्स को प्रभावित करने के लिए टूटी-फूटी हिंदी में ही प्रसारण करवाया था।

खानदान विशेष के एहसानों और पुरस्कारों के बोझ तले दबा यह मीडिया गिरोह 2014 में सवाल नहीं पूछ पाया था, शायद तब तक कभी गाँधी परिवार ने इसे एहसास भी नहीं होने दिया था कि मीडिया का काम सवाल पूछना भी हो सकता है। सवाल पूछ सकने की यह वैचारिक क्रांति इस मीडिया गिरोह में 2014 के बाद ही देखने को मिली है, जिसमें कोई मनचला पत्रकार सुबह से शाम तक प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेने का सपना देखता रहता है ताकि उसके न्यूज़ चैनल को TRP मिल सके। इसके लिए उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रगुजार होना चाहिए, कि पत्रकारिता की हर जिम्मेदारी का स्मरण मीडिया गिरोह को इन्हीं कुछ सालों में हो पाया है। हमने देखा कि बजाए धन्यवाद देने के, यह परिवार परस्त गिरोह लोकतंत्र की हत्या चिल्लाता रहा।   

कुछ लोगों के लिए ये स्वीकार करना मुश्किल होगा, लेकिन ये भी जानना आवश्यक है कि रिमोट कण्ट्रोल के अँधेरे UPA-1 और UPA-2 शासन के दौरान कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष की हैसियत से ज्यादा सोनिया गाँधी अन्य किसी भी आधिकारिक और सरकारी पद पर कभी नहीं रही। लेकिन खुद को सत्ता में और सबसे ऊपर देखने का स्वप्न गाँधी परिवार को विरासत में मिला है और ये भ्रम उनका आज तक भी नहीं टूटा है।

यही वजह है कि गाँधी परिवार के सिपहसालार वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर भी बताते हैं कि ये एंटी सैटेलाइट मिसाइल भी वो तभी बना पाए जब नेहरू ने इसरो की स्थापना की थी। ये बात अलग है कि इसरो की स्थापना और पंडित नेहरू के परधाम गमन के बीच 5 साल का अंतर है।

कॉन्ग्रेसाधीन नेहरू-भक्तों को शायद ये बात स्वीकार करने में अभी बहुत वर्ष लगेंगे किये देश किसी खानदान विशेष की बपौती नहीं है और ना ही इसे आजाद कराने में किसी समाजवादी छवि वाले नेता का अकेला हाथ था। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी अगर आज जीवित होते तो शायद ये जरूर कहते कि जब तक इस देश में कॉन्ग्रेस रहेगी तब तक…

मल्लिका दुआ ने पिता पर मोलेस्टेशन का आरोप लगाने वाली महिला पर उठाए सवाल

विनोद दुआ की बेटी मल्लिका दुआ का विवादित चेहरा एक बार फिर सामने आया है। अपने पिता पर आरोप लगाने वाली महिला के ख़िलाफ़ एक बार फिर वो मुखर रूप से नज़र आई हैं। पिता पर लगे आरोपों को मनगढ़ंत बताने वाली मल्लिका दुआ ने पीड़िता को ही कटघरे में रखते हुए उसके ऊपर सवाल उठाए।

24 मार्च के एक ट्वीट में, मल्लिका ने गायिका सोना महापात्रा को ट्वीट किया। अपने ट्वीट में सोना महापात्रा से मल्लिका ने डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मकार अर्घ्य बसु की आत्महत्या पर उनकी चुप्पी पर सवाल खड़े किए। 2017 में, फिल्म निर्माता अर्घ्य बसु पर एक निष्ठा जैन द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था, जो उनकी पूर्व बैचमेट थी। जैन ने आरोप लगाया था कि जब वे दोनों अध्ययन कर रहे थे, तब बासु ने उनके साथ छेड़छाड़ की थी, लेकिन चूंकि बसु अब एक फैकल्टी बन गए थे, उन्होंने अपना नाम राया सरकार की ‘कॉशनरी लिस्ट‘ में डाल दिया था, जिसे प्रोफेसरों के बीच यौन अपराधी कहा जाता था।

आपको बता दें कि निष्ठा जैन वही महिला हैं जिन्होंने पिछले साल अक्टूबर में विनोद दुआ पर मारपीट और छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। इस ख़बर के सुर्खियों में आते ही मल्लिका दुआ तुरंत एक्शन में आ गई थीं। इसके लिए उन्होंने सोना महापात्रा को निशाना बनाया क्योंकि इससे पहले भी महापात्रा ने मल्लिका को उनके पिता का समर्थन करने और उन लोगों का ज़िक्र करने की बात कही थी, जिन्होंने अवसरवादी के रूप में विनोद दुआ पर उत्पीड़न का आरोप लगाया।

मल्लिका दुआ के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए महापात्रा ने स्पष्ट किया कि वह बसु को नहीं जानती थी लेकिन उन्हें बसु की शराब की लत के बारे में अपने कुछ दोस्तों से पता चला था।

साथ ही महापात्रा इस बात से भी आश्चर्यचकित थी कि मल्लिका ने उन्हें ट्विटर पर अनब्लॉक कर दिया था, ताकि वो उन्हें और पीड़िता निष्ठा जैन को ताना दे सकें, जिन्होंने उनके पिता विनोद दुआ पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। इसके लिए मल्लिका ने महापात्रा पर एक एजेंडा होने का आरोप लगाकर इसे तुच्छ बताया।

मल्लिका ने यहाँ तक ​​कहा कि #MeToo आंदोलन पर उनके रुख़ के कारण सोना महापात्रा के पास काम की कमी है। जो, एक नारीवादी और महिलाओं के अधिकारों के चैंपियन के रूप में एक चौंकाने वाली बात है।

इस घटिया व्यवहार के बाद, मल्लिका ने सोना को फिर से ब्लॉक कर दिया और फिर से उन्हें धमकाने का आरोप लगाया।

इसके बाद मल्लिका, जिन्होंने सोना को ‘अनब्लॉक’ कर दिया था, ने उन्हें ट्विटर पर तमाम तरह के ट्वीट के ज़रिए टिप्पणी करना जारी रखा।

खादी बिक्री ₹3200 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर

खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार खादी की बिक्री ने चालू वित्त-वर्ष (2018-19) में ₹3200 करोड़ का आँकड़ा छू लिया है, और यह सर्वकालिक उच्चतम स्तर है। यह छलांग कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2013-14 में यही वार्षिक बिक्री केवल ₹1081 करोड़ की थी।

सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग मंत्रालय (MSME) के मुताबिक 2017-18 में ₹2510 करोड़ की बिक्री हुई थी।

मोदी सरकार के दौरान लगभग 5x से दौड़ा चरखा

मोदी सरकार के पहले चार वर्षों के दौरान खादी बिक्री में बढ़त की दर 30% के करीब रही, जो पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के दस सालों के 6.7 फीसदी से लगभग 5 गुना अधिक है। इसके पीछे मुख्य कारक सरकार और खुद मोदी द्वारा खादी का आक्रामक प्रचार-प्रसार कारण माना जा सकता है, जिसके तहत मोदी ने न खुद कई महत्वपूर्ण मौकों पर खादी के स्टाइलिश परिधान पहने बल्कि अपने समर्थकों से भी कई-कई बार खादी पहनने और खरीदने का आग्रह किया। यहाँ तक कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 2014 में भारत आगमन पर मोदी ने उन्हें भी खादी की जैकेट पहना दी

केवीआईसी चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष 201-18 में न केवल सरकारी कम्पनियों ने खादी की बम्पर खरीददारी की बल्कि केवीआईसी ने कई निजी कम्पनियों जैसे रेमण्ड, अरविन्द मिल्स, आदित्य बिरला फैशन आदि के साथ भी आपूर्ति अनुबंध किया। अकेले रेमण्ड ने पिछले वित्त वर्ष में 7.26 लाख मीटर सिलेटी खादी खरीदी। अरविन्द मिल्स ने खादी डेनिम के दस लाख वर्ग मीटर की खरीददारी की। यह कम्पनियाँ खादी को कच्चे मॉल के रूप में खरीद के इनसे बने परिधान अपने ब्राण्ड से बेचतीं हैं।

अगर सरकारी कम्पनियों द्वारा की जा रही खरीद की बात करें तो  वित्त वर्ष 2017-18 में ₹46 करोड़ के परिधानों का आर्डर ONGC से आया तो ₹43 करोड़ के आर्डर के साथ इंडियन ऑइल कारपोरेशन (IOC) भी ज्यादा पीछे नहीं रहा

इसके अतिरिक्त, सक्सेना के अनुसार, आयोग भारतीय डाक विभाग से भी अनुबंध को तेजी से अंतिम चरण में ले जाना चाहता है। इस अनुबंध के पश्चात 83,000 डाकियों का पहनावा भी खादी हो जाएगी।

खादी ग्रामोद्योग भवन में भी भारी बिक्री

दिल्ली के दिल कनाट प्लेस में स्थित खादी ग्रामोद्योग भवन ने भी जम कर खादी की बिक्री की है। केवल अक्टूबर-नवम्बर में ही 20,000 वर्ग फिट में फैला यह भवन 3 बार ₹1 करोड़  से ज़्यादा की बिक्री एक ही दिन में कर ले गया। इसके लिए डिस्काउंट स्कीम का सहारा लिया गया, जिसके नतीजे काफी उत्साहजनक रहे। 2017-18 में खाली इसी स्टोर से ₹103 करोड़ से अधिक की बिक्री हो चुकी है।

इंदिरा की नाक और राहुल का दिमाग वाली प्रियंका जी, भारत कॉन्ग्रेस की बपौती नहीं है

प्रियंका गाँधी को कौन नहीं जानता! गाँधी तो आप राहुल में भी लगा दोगे तो लोग उसे जानने लगते हैं, और इस क़दर जानने लगते हैं कि उसे जन्मजात प्रधानमंत्री समझने लगते हैं। प्रियंका गाँधी आजकल बोल रही हैं, जबकि आम तौर पर वो कहीं भी दिखती या बोलती नहीं। इस बार चुनाव नहीं लड़ रहीं क्योंकि ब्रिटेन के बैकऑप्स सर्विसेज़ और भारत की FTIL, Unitech जैसी संस्थाओं से उनके संबंधों को चुनावी हलफ़नामे में दिखाना पड़ेगा।

ये बात और है कि ‘गाँधी’ उपनाम को ढोने वाली प्रियंका इतनी ज्यादा विनम्र हो गई हैं कि उनके बयान को सुनकर आप भोक्कार पार कर (मतलब कलेजा फाड़ कर) रोने लगेंगे। इंदिरा की नाक के जस्ट नीचे वाले मुखारविंदों से वाड्रा जी की अर्धांगिनी ने कहा है कि अगर पार्टी चाहे तो वो चुनाव लड़ सकती हैं!

ग़ज़ब! मतलब… एकदम ग़ज़ब! प्रियंका गाँधी चुनाव लड़ेंगी या नहीं, ये पार्टी चाहेगी। इस पर विश्लेषण करके मैं अपना और अपने राष्ट्रवादी मित्रों का समय खराब नहीं करूँगा। हाँ, तीन सेकेंड चुप रहूँगा ताकि वो इस पर क़ायदे से हँस लें।

जब व्यक्ति चुप रहने का आदी हो, जितना कहा जाए, लिख कर दिया जाए उतनी ही पढ़ सकती हो, तो उससे जहाँ-तहाँ कुछ भी पूछ दीजिएगा तो अलबला जाएगी। ‘अलबलाना’ बिहार में प्रयुक्त होने वाला शब्द है जिसका मतलब वही है जो ऐसे सवाल पूछने पर प्रियंका गाँधी की प्रतिक्रिया होती है: समझ में नहीं आना कि क्या बोलें, और फिर कुछ भी बोल देना।

कल मोदी जी एक घोषणा की कि भारत के वैज्ञानिकों ने स्वदेशी तकनीक से निर्मित एंटी सैटेलाइट मिसाइल से एक सक्रिय उपग्रह को मार गिराया। उन्होंने कहीं भी, एक भी बार पार्टी या सरकार को बधाई नहीं दी। बल्कि उन्होंने इसके लिए डीआरडीओ, इसरो और वैज्ञानिकों समेत समस्त देश को इस उपलब्धि के लिए शुभकामनाएँ दीं। 

चूँकि, कॉन्ग्रेस स्वयं ही राहुल और प्रियंका जैसे बड़े चैलेंजों से जूझ रहा है, तो उनके पास मुद्दे तो वैसे भी और कुछ बचे नहीं है, इसलिए वो देश की हर उपलब्धि में नेहरू जी को टैग कर देते हैं। कॉन्ग्रेस ने तुरंत ही बता दिया कि इसरो की स्थापना किस सरकार, माफ कीजिएगा, किस पार्टी के शासनकाल में हुई थी, और असली श्रेय किसको जाना चाहिए। 

यहाँ कॉन्ग्रेस कन्वीनिएंटली भूल गई कि कुछ ही दिन पहले तक, और फिर पूछेंगे तो फिर कह देगी, बालाकोट एयर स्ट्राइक के लिए वो सेना का अभिनंदन कर रही थी और यह कैटेगोरिकली कहा था कि इसमें सरकार का कोई हाथ नहीं क्योंकि जेट में सैनिक थे, मोदी नहीं। अब यही कॉन्ग्रेस यह भी बताए कि इसरो की ईंट सोनिया गाँधी ने सर पर ढोई थी, कि राहुल गाँधी पान खाकर डीआरडीओ में स्पैनडैक्स पहनकर जॉगिंग किया करते थे।

बात यहीं खत्म हो जाती तो मुझे यहाँ तक आने की ज़रूरत नहीं पड़ती लेकिन प्रियंका गाँधी ने हाल ही में जिन शब्दों का प्रयोग किया है, वो सुनकर किसी भी नागरिक के तलवे की लहर मगज तक पहुँच जाएगी। उनका कहना है कि भारत में माचिस की डिब्बी से लेकर, मिसाइल तक, जो भी है, वो कॉन्ग्रेस की देन है।

यह बात कई स्तर पर मूर्खतापूर्ण है, या यूँ कहें कि राहुलपूर्ण है, या अब प्रियंकापूर्ण भी कह सकते हैं। पहली बात तो यह है कि कॉन्ग्रेस ने भले ही भारत को अपनी बपौती समझ रखी हो, लेकिन सत्तारूढ़ होने भर से एक पार्टी भारत सरकार नहीं हो जाती। प्रियंका ने यह भी कहा होता कि पहले की सरकारों की देन है, तो भी थोड़ी देर चर्चा हो सकती थी। लेकिन, इसे कॉन्ग्रेस की देन कहना एक एलिटिस्ट, एनटायटल्ड, स्पॉइल्ट ब्रैट टाइप का बयान है जो ये सोच कर चलता है कि जो है, उसी का है।

कॉन्ग्रेस ने पार्टी फ़ंड से इसरो नहीं बनवाया था, न ही डीआरडीओ के कर्मचारियों और वैज्ञानिकों को सोनिया गाँधी के हस्ताक्षर वाले चेक जारी हुआ करते थे। कॉन्ग्रेस के नाम ये संस्थान महज़ संयोग के कारण हैं क्योंकि सबसे पहले सत्ता में वही आई। और सत्ता में वह पहले इसीलिए आई क्योंकि विकल्प नहीं थे।

इसलिए, यह कह देना कि भारत के स्कूल और दुकान सब कॉन्ग्रेस की ही देन हैं, निहायत ही बेवक़ूफ़ी भरी बात है। जो पहली सरकार होगी वो हर बुनियादी व्यवस्था को बनाने का कार्य करेगी। नेहरू ने वही किया। वहाँ उस समय राहुल गाँधी भी संयोगवश होते तो उनके नाम भी भारत को आईआईटी देने की बात लिखी होती। आपकी ही सरकार है, ग़ुलामी से अभी आज़ाद हुई है, और आपको ही सारे पहले कार्य करने हैं, तो क्या वहाँ पर अमित शाह जाकर इसरो की स्थापना करेगा?

इसमें कौन सा विजन है कि आईआईटी खोले, स्पेस प्रोग्राम की शुरूआत की, सड़के बनवाईं, कानून बनाए, विज्ञान पर जोर दिया? ये विजन नहीं, ज़रूरत थी। ये न्यूनतम कार्य हैं जो कोई भी सरकार आज़ादी मिलते ही सबसे पहले करेगी। और, दुनिया में अगर आप उस वक्त थे, और आपको विज्ञान या तकनीक को लेकर सरकारी संरक्षण में कुछ संस्थाएँ खोलने का विचार नहीं आ रहा था, तो आप गुफ़ाओं में रहने वाले कहे जाएँगे।

इसलिए, प्रियंका गाँधी जी, नाक का तो इस्तेमाल आपकी पार्टी वोट जुटाने में कर ही रही है, दिमाग का आप स्वयं कर लीजिए, क्योंकि कुछ चीज़ों का इस्तेमाल पार्टी नहीं करती। कॉन्ग्रेस एक पार्टी है। एक बार फिर से बता रहा हूँ कि कॉन्ग्रेस एक पार्टी है। ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ से बाहर आइए, भारत एक रजवाड़ा नहीं है, न ही कॉन्ग्रेस ने अपने पैसों से कोई कार्य किया है। 

भले ही आपके और आपके भाई के नाम से छात्रावासों के नाम हों, और आपके पिता, दादी, परनाना के नाम पर भारत की नालियों से लेकर पुलों, और स्कूलों, कॉलेजों, खेल के मैदानों, हवाई अड्डों और सड़कें हों, लेकिन वो आपको ये कहने का हक़ नहीं देती की सब आपके पारिवारिक उद्यम कॉन्ग्रेस पार्टी प्राइवेट लिमिटेड की निजी संपत्ति है। उस पर ये नाम इसलिए हैं क्योंकि इस पार्टी ने और आपके घरवालों ने इसे अपनी बपौती जागीर समझ रखी थी।

जिस पार्टी के भविष्य के सबसे बड़े गुण दो डिम्पल और ‘साड़ी में बिलकुल इंदिरा गाँधी लगती है’ हो, उसे कोई गगनयान ऊपर नहीं ले जा सकता। कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए मुझे निजी तौर पर दुःख होता है कि पहले उन्हें राहुल गाँधी की नादानियों और मूर्खताओं को डिफ़ेंड करना होता था, अब प्रियंका भी आ गईं। 

भले ही लम्पट पत्रकार गिरोह प्रियंका के जीन्स और टॉप पर आर्टिकल लिखकर उसे कपड़ों के आधार पर ही कुशल प्रशासक बताता रहे, लेकिन सत्य यही है कि कई बार मुँह खोलकर आदमी एक्सपोज हो जाता है। कई बार सिर्फ ग़रीबों के साथ फोटो खिंचाने, अमेठी की झुग्गी से पिता के निकलने की तस्वीर और तीस साल बाद बेटे के निकलने की तस्वीर, कइयों को भावविह्वल कर देती है। कई बार आप साड़ी पहनकर आत्मविश्वास के साथ, सीरियस चेहरा बनाए दादी के दिए ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के शिकार हुए ग़रीबों को गौर से सुनती दिखाई देती थी, तो लगता था कि गम्भीर नेत्री है।

लेकिन आपने जब से मुँह खोलना शुरु किया है, सारे लोग कन्फर्म होते जा रहे हैं कि एलिटिज्म, एनटायटलमेंट, और परिवार से होने का घमंड आपमें इतना ज़्यादा है कि भारतीय नागरिक एक बार फिर से आपकी पार्टी को अफोर्ड नहीं कर पाएगी। मोदी ने बार-बार कहा है कि कॉन्ग्रेस को भी कॉन्ग्रेस वाली मानसिकता से मुक्त हो जाना चाहिए। आपको उनकी बात पर ध्यान देना चाहिए।

आपको देखकर बहुतों की उम्मीद जगी थी कि एक सशक्त महिला राजनीति में आ रही है। मैंने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि समाज के हर तबके का प्रतिनिधित्व होता रहे। आप महिलाओं की प्रतिनिधि तो बिलकुल नहीं, बल्कि एक परिवार की अभिजात्य और नकारात्मक मानसिकता का प्रतिनिधित्व ज़रूर कर रही हैं जो बाप-दादी-परनाना की लगाई ईंटों पर तो अपना अधिकार जताता है लेकिन वैसी ही ईंटों पर सैकड़ों दंगों के लगे ख़ून, वैसी ही ईंटों को सोना बनाकर लाखों करोड़ों लूटने की बात, वैसी ही ईंटों पर लिखे घोटालों के नाम, और वैसी ही ईंटों के खोखलेपन से खोखले हुए देश की ज़िम्मेदारी नहीं ले पाता।

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कोलकाता में लोगों को धमका कर TMC लगा रही है अपनी पार्टी के झंडे

‘बंगाल का मतलब बिज़नेस’ के होर्डिंग्स से कोलकाता की लगभग हर गली, मोहल्ला और सड़क छप गई है। लेकिन, ये किसके बिज़नेस की बात हो रही है, ये शायद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से जरूर पूछा जाना चाहिए क्योंकि TMC कार्यकर्ता जिस तरह से वहाँ पर रहने वाले लोगों को चुनाव के दौरान डराते और धमकाते हुए नजर आ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि ये बिज़नेस सिर्फ ममता बनर्जी की तानाशाही का है।

कोलकाता के कस्बा में एक पॉश एरिया में The Belgian Waffle Co. Kasba नाम से रेस्टोरेंट चलाने वाली रिद्धिमा खन्ना वासा ने TMC की गुंडागिर्दी पर ऑपइंडिया को बताया कि TMC चुनाव से पहले कस्बा के पूरे बाजार की हर दुकान पर अपनी पार्टी के झंडे लगाने के लिए लोगों को मजबूर कर रही है और विरोध करने पर उन्हें डराया, धमकाया जा रहा है। रिद्धिमा ने बताया कि पुलिस और प्रशासन से शिकायत करने के बावजूद भी कोई एक्शन नहीं लिया गया है और उन्हें चुप रहने की सलाह दी जा रही है।

रिद्धिमा का कहना है कि वो एक निजी बिज़नेस चलाती है और किसी भी राजनीतिक दल से अपने बिज़नेस को नहीं जोड़ना चाहती है। साथ ही, उन्होंने कहा कि कोलकाता में इस प्रकार की गुंडागिर्दी के कारण ही लोग वहाँ पर बिज़नेस नहीं करना चाहते हैं। लेकिन चुनाव से पहले TMC हमेशा की तरह अपनी तानाशाही का परिचय देते हुए हर दुकान और स्टोर के बाहर अपनी पार्टी के झंडे लगा रही है।

रिद्धिमा खन्ना ने अपनी बात सुने न जाने से निराश होकर फेसबुक पर लिखा है, “कस्बा में मेरे स्टोर को चुनावों से पहले TMC के झंडे लगाने के लिए कहा गया है। हमने स्थानीय पार्टी के प्रतिनिधि को बताया कि यह एक निजी व्यवसाय है, इसलिए हम किसी भी राजनीतिक दल के साथ खुद को नहीं जोड़ना चाहते हैं, तो हमें इसका अंजाम भुगतने की धमकी दी गई। यहाँ चुनाव एक आम आदमी के दिल में डर पैदा कर देता है, और कई अन्य परेशानियों से हमें जूझना होता है। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग अब इस शहर में नहीं रहना चाहते हैं। इस तरह से कोलकाता में कोई व्यवसाय किस तरह से बढ़ेगा? फिर कोई बड़ी फ्रेंचाइजी कोलकाता क्यों आएगी? बंगाल का अर्थ व्यापार नहीं, बल्कि बंगाल का अर्थ है बिज़नेस का दमन है।”

इसके साथ ही रिद्धिमा खन्ना को यह भी डर है कि उन्हें TMC की गुंडागिर्दी के खिलाफ आवाज उठाने के कारण अब परेशान भी किया जाएगा। केंद्र सरकार पर हर दूसरे दिन लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को शायद स्वयं लोकतंत्र की परिभाषा पढ़नी चाहिए। रिद्धिमा के पोस्ट को सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है लेकिन स्थानीय पुलिस और पार्टी ने भी TMC की इस मनमानी पर अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है।

वामपंथियों के बेचे हुए सपने खरीदने वाले भारतीय अब ‘अंतरिक्ष के सेनानी’ बन चुके हैं

सन 1998 में जब भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर स्वयं को ‘न्यूक्लियर पॉवर स्टेट’ घोषित कर दिया था तब अमेरिका आदि देशों के अतिरिक्त भारत के कुछ बुद्धिजीवियों ने भी इस निर्णय की निंदा की थी। उन बुद्धिजीवियों की कुंठा इतनी अधिक थी कि पाँच वर्ष सरकार की आलोचना करने के पश्चात भी उन्हें यही लगता रहा कि कोई उनकी बात सुन नहीं रहा। तब ओरिएंट लॉन्गमैन प्रकाशक ने उन बुद्धिजीवियों को बुलाकर “Prisoners of the Nuclear Dream” नामक पुस्तक लिखवाई जो सन 2003 में प्रकाशित हुई थी।

इस पुस्तक का शीर्षक एक पाकिस्तानी न्यूक्लियर पॉलिसी एक्सपर्ट ज़िया मियाँ ने सुझाया था, संभवतः इसीलिए मुझमें इसे पढ़ने की उत्सुकता जगी थी। इस पुस्तक में यह स्थापित किया गया था कि भारत को परमाणु परीक्षण करने की कोई आवश्यकता नहीं थी और ऐसा कर के भारत ने दक्षिण एशिया की स्थिरता और सुरक्षा के वातावरण को दूषित कर दिया था। कई वामपंथी विद्वानों ने विविध प्रकार के विचार विभिन्न दृष्टिकोण से प्रस्तुत किए थे जिनका एकमात्र उद्देश्य यही बताना था कि भारत को परमाणु परीक्षण क्यों नहीं करने चाहिए थे।

लेखक एक प्रकार से भारत के नागरिकों को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनने के दिवास्वप्न की बेड़ियों से बंधा हुआ बंदी मानते थे जो नींद से जागकर और मुक्त होकर सत्य नहीं देख पा रहे थे। वस्तुतः दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन पर चिंतन करने वाले उन बुद्धिजीवियों के अनुसार इस क्षेत्र में शांति की एकमात्र गारंटी पाकिस्तान का तुष्टिकरण ही थी। अर्थात भारत को कभी भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए था जिससे पाकिस्तान (या चीन) भड़क जाए अथवा नाराज़ हो जाए।  

आज इक्कीस वर्ष पश्चात भारत के उन्हीं नागरिकों ने बुद्धिजीवियों के उस मिथक को तोड़ दिया है जिसके अनुसार भारत को एक दब्बू राष्ट्र की भाँति सब कुछ सहते हुए निरस्त्रीकरण की निद्रा में सोते हुए शांति के स्वप्न देखने चाहिए थे। आज भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र ही नहीं वरन अंतरिक्ष शक्ति संपन्न राष्ट्र भी बन गया है। दिनांक 27 मार्च 2019 को भारत के रक्षा वैज्ञानिकों ने मिशन शक्ति के अंतर्गत ‘एंटी सैटलाईट’ मिसाईल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। भारत यह उपलब्धि अर्जित करने वाला विश्व का चौथा राष्ट्र बन गया है।

बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम से एंटी सैटलाइट वेपन बनने की कहानी

पूर्व डीआरडीओ अध्यक्ष वी के सारस्वत ने 2010 में ही कहा था कि अग्नि शृंखला की मिसाइलें भविष्य में एंटी सैटलाइट हथियार के रूप में भी विकसित की जा रही हैं। एंटी सैटलाइट वेपन क्या है? नाम से ही स्पष्ट है कि किसी सैटलाइट को मार गिराने की क्षमता वाले अस्त्र को एंटी सैटलाइट वेपन कहा जाता है। एंटी सैटलाइट वेपन का विकास बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम के विकास के साथ ही हुआ था। बैलिस्टिक मिसाइल वह मिसाइल होती है जो एक बार फायर करने के बाद वायुमंडल में बहुत ऊपर तक जाती है फिर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही नीचे निर्धारित लक्ष्य पर गिरती है।

उदाहरण के लिए एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप पर मार करने वाली इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें जिन्हें ICBM भी कहा जाता है। भारत की अग्नि-5 मिसाइल ICBM की श्रेणी में आती है। यह परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम है और वैश्विक शक्ति बनने के लिए भारत के पास ऐसी मिसाइल होना अनिवार्य भी है। बहरहाल, रूस और अमेरिका ने एक दूसरे की बैलिस्टिक मिसाइलों के हमले से बचने के लिए बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) सिस्टम विकसित किए थे।

शीतयुद्ध के दौरान पचास और साठ के दशक में अमेरिका और रूस ने सोचा कि ऐसे BMD विकसित किए जाएँ जिनके ऊपर न्यूक्लियर बम लगा हो जो शत्रु की बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट कर सके। लेकिन इस विचार को त्याग दिया गया क्योंकि ऐसे किसी भी जवाबी हमले में दोनों तरफ की क्षति होने का खतरा था और वायुमंडल में न्यूक्लियर रेडिएशन फैलने का भी अंदेशा था। अमेरिका ने स्ट्रेटेजिक डिफेंस इनिशिएटिव (SDI) के अंतर्गत ऐसे BMD विकसित करने का विचार अपनाया था लेकिन बाद में इसे रद कर दिया गया और बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस ऑर्गेनाइज़ेशन (BMDO) की स्थापना की गई।

इस परियोजना के अंतर्गत ऐसे BMD विकसित किए गए जो शत्रु की बैलिस्टिक मिसाइल को हवा में एक निश्चित ऊँचाई पर मार गिराने में सक्षम हों। आज ऐसे BMD विकसित हो चुके हैं जो शत्रु की बैलिस्टिक मिसाइल को बीच रास्ते में, यहाँ तक की लॉन्च होने से पहले ही नष्ट कर सकें। एक्स रे लेज़र, पार्टिकल बीम जैसी किरणों की तकनीक भी विकसित की जा रही है जो बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट कर सके। यह बिलकुल वैसा ही होगा जैसा जेम्स बॉन्ड की एक फिल्म में ‘इकेरस’ डिवाइस करती है।

भारत के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम की बात करें तो हमारे पास तीन सिस्टम हैं: एडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD), जो 30 किमी ऊँचाई से आ रही मिसाइल को मार गिराने में सक्षम है; पृथ्वी एयर डिफेंस (PAD) जो 80 किमी ऊँचाई पर बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट कर सकता है और पृथ्वी डिफेंस वेहिकल (PDV) जो 150 किमी की ऊँचाई पर बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट कर सकने में सक्षम है।

बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम के विकास क्रम में यह विचार उत्पन्न हुआ कि यदि हमला करने वाली वस्तु कोई बैलिस्टिक मिसाइल न होकर शत्रु देश की सैटलाइट हुई तो उसे कैसे नष्ट किया जाएगा। इसी विचार से एंटी सैटलाइट अस्त्र की परिकल्पना साकार हुई। एक सैटलाइट को नष्ट करने के लिए न्यूक्लियर वारहेड या किसी अन्य विस्फोटक की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए ‘काईनेटिक किल’ (Kinetic Kill) तकनीक विकसित की गई। इस तकनीक में मिसाइल के ऊपर धातु का एक टुकड़ा लगा दिया जाता है जिसे सैटलाइट को लक्षित कर दागा जाता है। पृथ्वी का चक्कर काट रही सैटलाइट की गति ही इतनी अधिक होती है कि वह धातु से टकरा कर टुकड़े-टुकड़े हो जाती है। भारत ने भी मिशन शक्ति के अंतर्गत इसी तकनीक से उपग्रह को मार गिराया।

क्या अंतरिक्ष का सैन्यीकरण अवश्यंभावी है?

किसी महान विचारक ने कहा था कि हम युद्ध को नहीं चुनते, युद्ध हमें चुनता है। अमेरिका ने रूस के साथ होड़ करने के चक्कर में सन 1985 में पहली बार किसी सैटलाइट को मार गिराया था। दक्षिण एशिया में अपनी दादागिरी दिखाने को आतुर चीन ने सन 2007 से 2014 के बीच एक दो नहीं बल्कि सात ऐसे कारनामे किए जिन्हें एंटी सैटलाइट वेपन के परीक्षण के रूप में देखा जा सकता है। चीन के परीक्षणों से ढेर सारा मलबा अंतरिक्ष में इकठ्ठा हो चुका है और यह मलबा दूसरे देशों की सैटलाइट के लिए संकट बन चुका है। मलबे का एक छोटा सा टुकड़ा भी तीव्र गति से पृथ्वी का चक्कर लगाती किसी सैटलाइट से टकरा कर उसे नष्ट करने की क्षमता रखता है।

धरती के ऊपर सैटलाइट प्रायः तीन कक्षाओं में प्रक्षेपित की जाती हैं: लो अर्थ ऑर्बिट (LEO; 2000 KM above earth’s surface), मीडियम अर्थ ऑर्बिट (MEO; 2000-35,786 KM above earth’s surface) तथा हाई अर्थ ऑर्बिट (above 35,786 KM). चीन की गतिविधियाँ लो अर्थ ऑर्बिट से लेकर हाई अर्थ ऑर्बिट में परिक्रमा कर रहे उपग्रहों को नष्ट करने की तकनीक विकसित करने का संदेह उत्पन्न होने के पर्याप्त कारण गिनाती हैं। ध्यातव्य है कि हम जिसे अंतरिक्ष कहते हैं वह धरातल से 100 किमी ऊपर का आकाश है।

वायुमंडल से अंतरिक्ष को अलग करने वाली रेखा कारमन लाइन कहलाती है। इसके ऊपर जो कुछ भी है वह लीगल शब्दावली में ‘आउटर स्पेस’ कहलाता है। सन 1967 में संयुक्त राष्ट्र ने सभी सदस्य देशों से एक आउटर स्पेस संधि पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया था। सौ से अधिक देशों के साथ भारत ने भी इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। किंतु आउटर स्पेस ट्रीटी के बावन वर्ष बीत जाने के बाद भी विश्व में एंटी सैटलाइट अस्त्र विकसित होने बंद नहीं हुए हैं क्योंकि ऐसे किसी भी अस्त्र के प्रयोग पर यह संधि मौन है। आउटर स्पेस संधि मूल रूप से यही कहती है कि कोई देश चंद्रमा या किसी ऐसी खगोलीय वस्तु पर अपना अधिकार नहीं कर सकता और अंतरिक्ष का उपयोग वैज्ञानिक शोध के लिए किया जाना चाहिए इत्यादि।

अंतरिक्ष विधि विशेषज्ञ आउटर स्पेस में निरस्त्रीकरण के लिए मुख्य रूप से दो शब्दों का प्रयोग करते हैं: Militarization of Space और Weaponization of Space. इन दोनों के भिन्न अर्थ हैं। अंतरिक्ष के सैन्यीकरण का अर्थ हुआ कि हम अंतरिक्ष के संसाधनों का उपयोग सैन्य आवश्यकताओं के लिए करें, जैसे कि नेविगेशन, संचार या खोजी उपग्रह इत्यादि। जबकि अंतरिक्ष के ‘वेपनाईज़ेशन’ का अर्थ हुआ किसी दूसरे देश के संसाधनों को अंतरिक्ष से धरती पर अथवा धरती से अंतरिक्ष में नष्ट करना।

कोई भी संधि अंतरिक्ष के सैन्य उपयोग से मना नहीं करती इसीलिए विश्व के कुछ सक्षम देशों के साथ भारत ने भी IRNSS उपग्रह समूह द्वारा स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली NAVIC विकसित की है। दूसरी तरफ अमेरिका चीन और रूस के कारण हुए अंतरिक्ष के वेपनाईज़ेशन से जो संकट उत्पन्न हुआ है उसके प्रति निरोधक (deterrence) क्षमता होना अत्यंत आवश्यक था इसलिए भारत को एंटी सैटलाइट वेपन विकसित करना पड़ा।

इतिहास देखें तो भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम सदैव शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही समर्पित रहा है। हमने संचार (टीवी, रेडियो) उपग्रह प्रक्षेपित किए, शिक्षा के लिए EDUSAT छोड़ा गया। धीरे-धीरे भारत ने रिमोट सेंसिंग तकनीक विकसित की, कुछ वर्ष पहले ही खगोलीय विश्लेषण के लिए ASTROSAT छोड़ा गया था। मंगलयान की कीर्ति इतनी फैली कि विदेशी अख़बारों ने कटाक्ष तक किया। चंद्रयान द्वितीय चरण शीघ्र ही मूर्तरूप लेगा और तब तक शायद हम मानव को भी अंतरिक्ष में भेजने की योजना भी पूर्ण कर लेंगे। इंटेलिजेंस जुटाने वाली सैटलाइट EMISAT 1 अप्रैल 2019 को अंतरिक्ष में भेजी जाएगी।

भारत सरकार ने एक संयुक्त सैन्य स्पेस एजेंसी के गठन को स्वीकृति पहले ही प्रदान कर दी है। इन सब उपलब्धियों के आलोक में राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से ‘ASAT-मिशन शक्ति’ निश्चित ही एक मील का पत्थर सिद्ध होगा। एंटी सैटलाइट वेपन से लैस होने पर कोई अन्य देश हमारे सैटलाइट को नष्ट करने की हिमाकत नहीं करेगा। चूँकि आज बैंक के वित्तीय लेनदेन से लेकर जीपीएस तक और गहरे समुद्र में तैरते जहाज से लेकर सियाचिन ग्लेशियर तक सब जगह की संचार और नेविगेशन व्यवस्था सैटलाइट पर ही निर्भर है इसलिए हमारे पास शत्रु के उपग्रह को मार गिराने वाली प्रतिरक्षात्मक प्रणाली होना गर्व की बात है।

इस प्रकार उन बुद्धिजीवियों के मुँह पर भी तमाचा पड़ा है जिन्हें मई 1998 में किए गए ऑपरेशन शक्ति पर आपत्ति थी। भारत तकनीकी विकास में कभी पीछे नहीं रहा। हमने अपने बलपर वह प्रत्येक तकनीक विकसित की है जो विश्व हमें नहीं देना चाहता था चाहे वह सुपर कंप्यूटर हो या परमाणु अस्त्र की सामग्री। एंटी सैटलाइट वेपन बनाकर हम कुंठा की बेड़ियों से आज़ाद हुए हैं। हम वामपंथी बुद्धिजीवियों की उस स्वप्न नगरी से मुक्त हुए हैं जहाँ केवल यही सिखाया जाता रहा कि शांतिप्रिय देश होने का अर्थ कम्युनिस्ट चीन और जेहादी पाकिस्तान का तुष्टिकरण होता है। न्यूक्लियर सुपर पॉवर बनने का स्वप्न देखने वाले भारतीय आज अंतरिक्ष के योद्धा भी बन चुके हैं।