Tuesday, October 8, 2024
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फ़ेक न्यूज़ तलाशने के लिए एलियंस के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़े पतित सिन्हा, UNESCO ने दिया बेस्ट खोजी का अवार्ड

दुकान चलाने के लिए तरह-तरह के फ़ेक न्यूज़ वाले व्हाट्सएप्प ग्रुप से ‘प्लीज़ ऐड मी’ रिक्वेस्ट भेजकर सर्वाधिक व्हाट्सएप्प ग्रुप्स से जुड़ने का विश्व रिकॉर्ड बनाने के लिए कुख़्यात फ़ॉल्ट न्यूज़ के सहसंस्थापक पतित सिन्हा ने आज अपने ज़ज़्बे को एक नई ऊँचाई दे डाली। फ़ॉल्ट न्यूज़ के सूत्रों के अनुसार ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ ने पतित सिन्हा को इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए सभी व्हाट्सएप्प ग्रुप्स का मॉनिटर और WR (व्हाट्सएप्प रेप्रेज़ेंटेटिव) की उपाधि देने का ऐलान कर दिया है। इस बात पर नम आँखों से पतित सिन्हा ने कहा कि वो बचपन से ही WR बनना चाहते थे।

सिर्फ सूँघकर ही ख़बरों को झूठी बना देने का दावा करने वाले ‘फ़ेक न्यूज़ के चितेरे’ पतित सिन्हा ने उस वक़्त सबको चौंका दिया जब दुकान चलाने के लिए व्हाट्सएप्प ग्रुप्स से जुड़ने के उनके इस जज्बे ने उन्हें एलियन्स के रिश्तेदारों के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जोड़ दिया। इस पर उन्होंने कहा, “मैं अकेले ही चला था व्हाट्सएप्प-ए-यूनिवर्सिटी मगर, भगत साथ आते गए, मैं एलियन्स से जुड़ता रहा।”

इस घटना से जहाँ एक ओर चटपटी ख़बरों के शौक़ीन फ़ॉल्ट न्यूज़ की भगत मंडली में उत्साह की लहर है, वहीं UNESCO ने पतित सिन्हा को इस बड़ी क़ामयाबी के लिए ने उन्हें पृथ्वी ग्रह की ‘धरोहर’ घोषित कर दिया है। साथ ही नींद में भी ‘वायरल’ शब्द बड़बड़ाने पर UNESCO ने पतित सिन्हा को ‘वायरल’ शब्द को परिभाषित करने के लिए भी प्रेरित किया है।

जैसा कि पृथ्वी निवासी जानते हैं कि फ़ॉल्ट न्यूज़ वालों के लिए ‘वायरल’ शब्द की सही व्याख्या करना एक दुरूह कार्य रहा है। ज्ञात हो कि कभी-कभी पतित सिन्हा की टीम पर खुद ही केन्या के प्रॉक्सी सर्वर से फॉल्ट न्यूज़ के ऑफ़िस में ही फेक इमेज फोटोशॉप करने के बाद, 10-12 लोगों से जबरदस्ती शेयर कराकर उसे वायरल घोषित करने का आरोप लगता रहा है। यही नहीं इस कार्य में ज़ू के बीयर तक से पतित सिन्हा ने ‘विचारधारा के नाम पर’ टच स्क्रीन छुआ कर शेयर कराया है।

चूँकि ये सारी बातें अब वृहद् जनमानस की चर्चा का हिस्सा बन चुकी हैं तो UNESCO ने अवार्ड देते हुए पतित सिन्हा से गुज़ारिश की, “अब तो सच बोल दे… (ध्यान रहे UNESCO वैसी बात नहीं कहता जो आप पढ़ना चाह रहे हैं) …कि वायरल होना कितने लाइक और शेयर पर माना जाए।”

लेकिन यह पता चलने पर कि एलियंस के रिश्तेदारों वाले ग्रुप पर फ़ेक न्यूज़ की जगह सिर्फ़ ‘हेल्लो जी सुबह की नमस्ते’ जैसी तस्वीरें ही ‘वायरल’ हो रही हैं, पतित सिन्हा को गमगीन हालत में देखा गया।

अब ‘सुबह की नमस्ते’ वाली तस्वीरों का होगा भांडाफोड़, इस तस्वीर के फैक्ट चेक से करेंगे सिन्हा सुबह की शुरुआत

फिलहाल इस मोटिवेशनल लाइन को सुनने के बाद स्थिति नियंत्रण में है और पतित सिन्हा ने इसकी जानकारी अपने सहयोगी और भाड़े के पत्थरबाज़ ‘चिड़ियाघर के भालू’ को दे दी है। नाम न बताने की शर्त पर फ़ॉल्ट न्यूज़ के ही एक पत्रकार ने बताया कि पतित सिन्हा अभी एलियंस की कुछ ऐसी तश्वीरों के इन्तजार में हैं जिन्हें वो अपनी महिला मित्र से साझा कर के पता कर सकेंगे कि एलियंस की यह प्रजाति राष्ट्रवादी है या गैर-राष्ट्रवादी। फ़ॉल्ट न्यूज़ भगत मंडली से उन्होंने वादा किया है कि इस काम को अंजाम देने से पहले वो एलियंस के व्हाट्सएप्प ग्रुप को नहीं छोड़ेंगे। इस पर भगत मंडली ने कहा “एक ही तो दिल है सिन्हा जी, कितनी बार जीतोगे?”

‘लायर’ के श्रीयुत वेणु जी, जैसा कि माओवंशी कहा करते हैं, ‘थोड़ा पढ़िए मुद्दे पर’, घाघपना तो चलता रहेगा

श्रीयुत वेणु जी एक बहुत बड़े पत्रकार माने जाते हैं। उम्र ज़्यादा है, तो अनुभव भी उसी हिसाब से होगा, ऐसा माना जाता है। लेकिन अनुभव के साथ-साथ घाघपन भी उसी अनुपात में आ जाता है क्योंकि तब आप बहुत कुछ जानकर, उस स्थिति में आ जाते हैं कि अपनी बुद्धि का प्रयोग बातों को बताने, छुपाने और मरोड़ने में लगा देते हैं। 

श्रीयुत वेणु जी ने अपने लेटेस्ट आर्टिकल की हेडलाइन ही इतनी मारक दे दी है कि ‘द लायर’ जैसे स्थापित प्रोपेगेंडा पोर्टल पर लाखों में शेयरिंग हो जाती, लेकिन विष की मात्रा कम रहने से 882 तक ही पहुँच पाई। ख़ैर, नंबर से क्या लेना-देना, क्वालिटी और तर्क भी कुछ चीज होते हैं। तो, हेडलाइन है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में कश्मीर मुद्दा (पढ़ें पुलवामा आतंकी हमला) पूरी तरह से पोलिटिसाइज किया जाएगा। 

वेणु जी के हेडलाइन से आपको लगेगा कि आदमी जादूगर भी है जो भविष्य देख लेता है। न, न, आप इसे विश्लेषण मत कहिए, क्योंकि ये विश्लेषण नहीं विकृत मानसिकता और अंधविरोध में सना विषवमन मात्र है, जिसका एक मात्र उद्देश्य यह बताना है कि मोदी कितना गिरा हुआ आदमी है कि बलिदानों को चुनावों में भुनाएगा। 

श्रीयुत वेणु के दूसरे पैराग्राफ़ में घाघपने की बदबू आ जाती है जब वो लिखते हैं कि प्रधानमंत्री ने ‘संघ परिवार के संगठनों (बजरंग दल) द्वारा कश्मीरी छात्रों को को धमकाने पर चुप्पी साधी हुई है। आगे लिखते हैं कि वही प्रधानमंत्री तमाम रैलियों में बहुत ही ‘कोडेड भाषा’ में पाकिस्तान से बदला लेने की बात करते हैं। उसके बाद बेचारे लिबरल वेणु का अजेंडा छलक कर बाहर आ जाता है जब वो लिखते हैं कि मोदी के इस ‘बदले’ की बात बहुसंख्यक लोगों द्वारा अपने ही देश के लोगों (कश्मीरियों) की तरफ जा रहा है। 

ऐसा है वेणु जी कि, मैं आपकी बात मान लेता अगर आपने एक-दो हाइपरलिंक लगा रखे होते अपनी बात को कहने के लिए। आप सही मायनों में एक बहुत ही निम्न स्तर के ट्रोल हैं जो 240 कैरेक्टर के पोस्ट की जगह 1500 शब्दों का लेख लिखता है। कितने बेशर्म हैं आप कि जिस बहुसंख्यक जनता पर घृणा का आरोप लगा रहे हैं, उसके नाम आपके द्वारा कथित कश्मीरी छात्रों को मारने-पीटने-धमकाने की ख़बर नहीं। अगर है, तो पता कीजिए कि वो लोग आग ताप रहे थे और उन्हें घेरकर लोगों ने मारा या फिर वो पाकिस्तान ज़िंदाबाद और पुलवामा के वीरों की श्रद्धांजलि का अपने शैतानी अट्टहास और अश्लील कमेंट्स कर रहे थे तो पुलिस ने उन पर कार्रवाई की?

आपसे नहीं हो पाएगा, क्योंकि आपके वश की बात है नहीं। आप जैसे लम्पट बुद्धिजीवियों को ये घमंड है कि आप ज़हर का अजेंडा टेबल पर बैठकर लिख देंगे, और उसे सार्वभौमिक सत्य मान लिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है। अग़र ज्ञानेन्द्रियाँ काम नहीं कर रहीं, चीज़ों का संदर्भ पता नहीं चल रहा, तो काम छोड़ दीजिए, समाज को बाँटने का अजेंडा क्यों फैला रहे हैं? 

वामपंथी चोरकट बुद्धिजीवियों की, खासकर जो अंग्रेज़ी में लिखते हैं, आदत रही है कि पूरी दुनिया बदल जाए, ये लोग ‘जॉब क्रिएशन‘ नहीं हो रहा और ‘अग्रेरियन क्राइसिस’ पर अटके रहते हैं। जबकि सच्चाई इनके फ़ैंसी फ्रेजेज से बिलकुल अलग कुछ और ही है। नौकरियाँ लगातार बढ़ी हैं, और किसानों की हालत पहले से बेहतर है। ये बात और है कि वेणु जी वायर ही पढ़ते हैं, वायर पर ही लिखते है, वायर से ही बिजली पाते हैं, और वायर से ही इस तरह के फर्जी आर्टिकल से शॉर्ट सर्किट करके आग लगाते हैं। यही कारण है कि सत्य से बहुत दूर रहते हैं क्योंकि प्रोपेगेंडा पोर्टल पर तथ्य तो कोने में छुपा रहता है। 

ये एक प्रचलित तरीक़ा है माओ को जबरदस्ती अपना बाप बनाने वाले माओवंशी कामपंथियों का कि हर बात को वो ऐसे दिखाना चाहते हैं कि ‘ये बात करते हुए मोदी फलाने बातों से ध्यान भटकाना चाहता है’। अरे चचा, मत भटकाओ अपना ध्यान, वो तो तुम्हारे क़ब्ज़े में है ना? इनकी आदत है कि ये स्टूडियो और ऑफिस में बैठकर सरकार और कैबिनेट चुनना चाहते हैं, जबकि लोकतंत्र में असली हक़ जनता का है जिसे ये लोग मूर्ख मानकर चलते हैं। 

सच तो यह है कि यही पुलवामा हमला अगर सितम्बर में हुआ होता तो ‘चुनावों का माहौल’ वेणु के आर्टिकल के हिसाब से अभी वाला ‘दो महीना’ न होकर अक्टूबर से ही शुरु हो जाता। यही ताक़त है घाघ होने की। ‘जब जागो, तभी चुनाव’ टाइप का लॉजिक लेकर हर बात भविष्य में फेंकने वाले वेणु अभी आँख पर टिन का चश्मा और कान में ढक्कन लगाकर लिख रहे हैं क्योंकि मोदी हर दिन दो से तीन जगह जा रहा है, रैलियाँ हो रही हैं, और कहीं भी ऐसी बातें नहीं कर रहा है कि कहा जाए मोदी इसे भुना रहा है।

ये वही लोग हैं जो मोदी चुप रहता तो कहते कि कहाँ है छप्पन इंच का सीना, और बदले की बात कहते हुए मोदी देशवासियों की भावना को शब्द दे रहा है तो उसमें अजेंडा नज़र आ रहा है। वामपंथी चिरकुटों की ये पुरानी आदत रही है कि चित भी मेरी, पट भी मेरी (ये कई मायनों में इस्तेमाल होता है)। लेकिन जब जनता साथ हो तो इस तरह के अजेंडा को हवा देने वालों को वहीं तर्क से काटा जा सकता है। इसलिए वेणु जी, एनालिसिस कर रहे हैं, तो फ्यूचर टेन्स में मत घूमिए, तथ्यों पर रहिए। क्या मोदी ने किसी भी भाषण में इसको दो-चार वाक्यों से ज्यादा बोला है? पहले बयान के बाद बिलकुल नहीं। इसलिए आपकी ये घृणा फैलाने का अजेंडा वाली बात बेकार ही लगती है। 

इसके बाद श्रीयुत वेणु ने ‘गाय राग’ छेड़ दिया। आतंकी अहमद डार ने विडियो में अपनी घृणा हिन्दुओं को लेकर दिखाई तो उसका कारण भी अब हिन्दू ही हो गया है! मतलब, वेणु जी के हिसाब से, “अरे वो तो आतंकी है, उसका तो काम है बम फोड़ना, लेकिन देखो तो पहले वो आज़ादी के लिए बम फोड़ता था, अब हिन्दुओं को उड़ाने के लिए फोड़ता है। तो हिन्दू ही दोषी हुआ ना?” 

जी! और फिर वही पुरानी, घिसी-पिटी, कुतर्की बातें, जिसका कोई आधार नहीं कि समुदाय विशेष की लिंचिंग हो रही है तो अब कश्मीर के आतंकी आहत हो गए हैं, इसलिए उन्होंने आज़ादी छोड़कर मुस्लिमों के खिलाफ हो रहे हमलों का बदला लिया है! मतलब, मज़हब की हिंसक बातों में जन्नत खोजता आतंकी, चाहे वो आज़ादी की बात करे या गाय की, उसकी बातों में लॉजिक ढूँढकर पुलवामा हमले को जस्टिफाय करने के लिए अलग स्तर का विष चाहिए जो कि वेणु जी के रोम-रोम में है। 

हिन्दुओं की गाय चुराकर ले जाने वाले वही हैं, हिन्दुओं की गाय को बुलंदशहर में काटने वाले वही लोग, हिन्दुओं की गाय लेकर भागते हुए पुलिस वालों पर गाड़ी चढ़ा देने वाले वही कौम, हिन्दुओं को घेर मार देने वाले वही… ये लोग क्या जो भी करें, वो गिना नहीं जाएगा? सहिष्णुता की टोपी हिन्दुओं को क्यों पहनाते हैं? इस तरह की हत्या सामाजिक अपराध है और उसके लिए अगर पुलिस कार्रवाई न करे, तब आप स्टेट को ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं। समुदाय विशेष वाले गौ तस्कर गाय चुराना बंद कर दें, ऐसे अपराध स्वयं ही कम हो जाएँगे। क्या पता जैसा कुतर्क ऊपर किया है चचा ने, अब ये न कह दें कि हिन्दू गाय पालते ही क्यों हैं! 

आगे श्रीयुत वेणु पूछते हैं कि जिस कश्मीर में आज़ादी की बातें हुआ करती थीं, वो अब हिन्दुओं पर क्यों शिफ्ट हो रहा है! अब ऐसे ही मौक़ों के लिए हिन्दी में ‘क्यूटाचार’ शब्द का आविष्कार मैंने किया है। ऐसा है चचा, कश्मीर में आज़ादी की बातें तो होती थी, लेकिन उसकी जड़ में वही इस्लाम है, वही ख़िलाफ़त है, क्योंकि वो आज़ाद होकर समुदाय विशेष का कश्मीर होगा न कि धर्मनिरपेक्ष कश्मीर। इसलिए, हिन्दू-मुस्लिम ही तो है जड़ में, गाय-गोबर तो अब सामने आ रहा है क्योंकि आज़ादी में अब ISIS का झंडा भी आ गया है, और साल के 250 जहन्नुम पहुँच रहे हैं। कश्मीर का मसला ही इस्लाम का मसला है वरना कश्मीरी हिन्दू भी वहीं बसे होते। जैसा कि वामपंथी अक्सर डिबेट में ज्ञान देते हैं, मैं आपसे वही कहूँगा, “थोड़ा पढ़ा कीजिए, बहुत कुछ क्लियर हो जाएगा।” 

अंत में वेणु जी का पोलिटिकल एनालिसिस इतना ज़ोरदार है कि वो भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के महत्व के बारे में लिखते हुए ‘प्रोबेबली द मोस्ट क्रूसियल’ का इस्तेमाल करते हैं! ये पढ़कर मुझे लगा कि जो आदमी उत्तर प्रदेश के लिए ‘प्रोबेबली’ का इस्तेमाल करता है, उसका लेख मैंने पढ़ा ही क्यों। फिर याद आया कि हमरी पत्रकारिता का एक ही मक़सद है: माओवंशी वामपंथी अजेंडाबाज़ पत्रकारिता के समुदाय विशेष के लम्पटों को एक्सपोज करना। 

बाकी, श्रीयुत वेणु जी, गोली नहीं मारेंगे…

सिर्फ और सिर्फ जिहादी हिंसा का संरक्षक है आतंकवाद

14 फरवरी के दिन पुलवामा में हुई हिंसक आतकंवादी घटना में एक नौजवान सिर्फ इसलिए फिदायिनी हमले का रास्ता चुनता है, क्योंकि उसे गो-मूत्र पीने वालों से नफरत है? एक युवक जिसके सपनों में देश के संस्थानों का हिस्सा बनकर एक समुदाय विशेष के विरुद्ध बनी विचारधारा को झूठा साबित करने का होना चाहिए था, उसे इस हद तक ब्रेनवॉश किया जाता है कि वो कुछ देर में जन्नत में होने के ख्वाब देखता है? और इसका परिणाम क्या रहा?

40 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए, खुद वो नवयुवक आज 72 हूरों को पाने तथाकथित जन्नत पहुँच चुका है और अपने पीछे लाखों लोगों के लिए एक अन्धकार छोड़कर अपना रास्ता चुन चुका है। क्या उसे अब फ़र्क़ पड़ता है कि पूरे होशोहवास में लिए गए उसके एक फैसले की वजह से अपने ही धर्म विशेष के लोगों को कितनी समस्या छोड़कर वो शख्स चला गया है? स्पष्ट है कि इस फिदायिनी को जश्न मनाने तक का मौका नहीं मिला, जबकि उसे इस आत्मघाती काम के लिए उकसाने वाले भारतीय सैनिकों की इस क्रूर हत्या पर जश्न मना रहे हैं। लेकिन फिर भी हालात ये हैं कि बुराई को स्वीकार करने के बजाय उसे तुरंत नकार दिया जाता है।

एक घटना मात्र इस देश की सभ्यता और संस्कृति के समीकरण को उधेड़कर रख देती है। डिप्लोमेटिक होकर कहने वाले कुछ भी कहें लेकिन हक़ीक़त ये है कि हर व्यक्ति अपने साथ वाले समुदाय विशेष के मित्र, कर्मचारी, सहयोगी को शंका की नजर से देखना शुरू कर देगा। आतंकवाद को आतंकवाद न कह पाने की हमारी झिझक का ही परिणाम है कि आज निर्दोष कश्मीरी विद्यार्थी भी पत्थरबाज़ों की श्रेणी में गिने जाने लगे हैं।

आप बात समझिए, ये आतंकवाद के पोषक किसी दबे, कुचले, शोषित और वंचित की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। ये लड़ाई वही है जो आगाज के समय थी। तब शायद आक्रामकता और रक्तपात अलोकतांत्रिक और गैर संवेदनशील न माने जाते रहे हों। हालाँकि, किसी भी प्रकार का रक्तपात और बर्बरता किसी भी दौर में न्यायपूर्ण बताना मूर्खता से अधिक कुछ नहीं।

भारत देश में अंग्रेजों की गुलामी के अन्धकार के युग के दौरान तरह-तरह के समाज सुधार और धार्मिक सुधार आंदोलनों ने जन्म लिया। इस पुनर्जागरण से तत्कालीन युवा चिंतनशील और तत्पर हो उठा। तरुण और वृद्ध, सभी इस मसले पर सोचने के लिए मजबूर हुए। लगभग सभी लोगों ने धर्म, परंपराओं और रीति-रिवाजों को तर्क की कसौटी पर कसना आरम्भ किया। उस दौरान प्रचलित वाक्य थे कि ‘पुनर्जागरण के बिना कोई भी धर्म सम्भव नहीं हो पाएगा’।

ऐसे में हिन्दूओं के आर्य समाज, ब्रह्म समाज ने तत्परतापूर्वक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाए और धर्म में आवश्यक परिवर्तन कर, समाज के एक हिस्से को मजबूत नींव प्रदान की। वहीं हिंदुओं के धार्मिक सुधार और मुस्लिमों के अहमदिया और अलीगढ़ जैसे आंदोलन को आकार लेने में अन्य समुदायों की तुलना में अधिक समय लगा, जिसे एक बड़ी वजह माना जाता है कि मुस्लिम समुदाय शिक्षा और अन्य सामाजिक स्तरों पर पिछड़ गए और यही अंतराल आज तक चला आ रहा है। लेकिन वर्तमान में यदि इस प्रकार के उदाहरण देकर स्वयं को संतुष्ट करने का प्रयास कोई करता है, तो वह स्वयं से किया गया एक छलावा मात्र है।

यह युग विज्ञान और तकनीक का है, और ऐसे में हर हाल में धार्मिक शिक्षा का एक तार्किक युवा के निर्माण में बहुत कम प्रतिशत योगदान होगा। वर्तमान समय के साथ कदम मिलाने के लिए यह धर्म विशेष खुद कितना तैयार है इस पर आत्मविश्लेषण किया जाना चाहिए। लेकिन शायद ‘मालिक’ के स्मरण में ही रोजाना लोग इतना वक़्त बिता देते हैं कि आत्मविश्लेषण का समय नहीं मिल पाता है।

इस्लाम, धर्म और राजनीति का एक बेहतरीन केंद्र ऐसे समय में बनकर उभरा था, जब राजनीति और धर्म को एक ही परिधि में बिठाने की जद्दोजहद में समाज आडम्बर और द्वेष में जी रहा था। यह धर्म प्राकृतिक रूप से एक अच्छा विकल्प बनकर उभरा था, लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमजोरी इसकी समय के साथ कदम ना मिलाने की कट्टरता है।

21वीं सदी में समाज दौड़ रहा है, परिस्थितियाँ तेजी से बदल रही हैं। हम संस्कृति और सभ्यता के उसूलों पर गर्व कर सकते हैं, लेकिन इसके आधार पर अपनी शिक्षा व्यवस्था से लेकर रहन-सहन में बदलाव को नकार दें, तो यह बात अतार्किक नजर आती है।

आप सोचिए, खुद को सुरक्षित और श्रेष्ठ साबित करने की इस लड़ाई के लिए आतंकवाद, बर्बरता और भय पैदा करने की ये नीति आखिरकार किन लोगों के लिए घातक साबित होती है?
स्पष्ट है, ये आतंकवाद सिर्फ वंचितों को ही प्रभावित करता है और हर कायरतापूर्ण घटना के बाद समाज में उनकी स्थिति को और कमजोर कर देता है ना कि आतंकवाद के प्रायोजकों को।

4 दोस्तों के समूह में 1 के समुदाय विशेष से होने से तब तक फ़र्क़ नहीं पड़ता है, जब तक धर्म के नाम पर की गई ऐसी कोई कोई ऐसी कायराना हरकत सामने नहीं आती है। नतीजा यह होता है कि अगले दिन हमारे मजहबी भाई वर्कप्लेस पर आने में संकोच महसूस करते हैं, दोस्तों के फ़ोन रिसीव करने में खुद को लज्जित महसूस करते हैं। सिर्फ उसी एक धर्म से जुड़े होने के कारण सोशल मीडिया पर लोगों को आतंकवादियों के कृत्य के लिए स्पष्टीकरण देते हुए देखना सबसे ज्यादा दुखद रहा है, जबकि हर कोई जानता है कि बारूद का ट्रक लेकर हिन्दुओं को सबक सीखने के मकसद से जिहाद करने वो लोग नहीं गए थे।

लेकिन शहीदों के शव देखने से ज्यादा दुखद घटना यह भी थी कि कुछ समुदाय विशेष के लोग ही सोशल मीडिया से लेकर तमाम जगहों पर जश्न मनाते देखे गए। हैरानी की बात यह थी कि ये लोग कोई विदेशी नहीं बल्कि इसी देश की सीमाओं के भीतर रहने वाले लोग हैं। ये इसी देश के संसाधनों का उपयोग करते हैं, यहीं के विद्यालयों में पढ़ते हैं, सरकार इन्हें अस्पताल से लेकर घर तक की सुविधाएँ देने के लिए लगातार प्रयासरत है, फिर भी 40 सैनिकों की निर्मम हत्या पर धार्मिक कारणों से संवेदनशीलता को नजरअंदाज करने से नहीं रुकते। विचार कीजिए कि क्या आपको ऐसे अवसरों पर स्वयं आगे आकर धर्म के नाम पर हो रहे इन कुकर्मों के ख़िलाफ़ आवाज नहीं उठानी चाहिए?

समुदाय विशेष से कुछ गिने-चुने ही ऐसे थे, जो सोशल मीडिया पर कुरीतियों और बुराइयों को स्वीकार कर उनका विरोध करते थे। लेकिन हालात ये हैं कि उनके एकाउंट को रिपोर्ट कर डिलीट करवा दिया गया। उनकी अभिव्यक्ति की आजादी ही छीन ली गई, सिर्फ इसलिए कि वो सुधार की बात करते हैं?

हिंसा और आतंकवाद, सहिष्णुता और साम्प्रदायिकता की खाई को बढ़ावा ही देता है। किसी भी उद्देश्य के लिए की गई क्रूरता किसी भी समय में निंदनीय है। हमें विचारधारा की लड़ाई के लिए पोषित किए जाने वाली इस संस्कृति के खिलाफ आवाज उठानी तो होगी। ठीक उसी तरह, जैसे एक महिला की समस्याओं और उनके अधिकारों के लिए एक महिला द्वारा चलाया गया अभियान अधिक प्रभावशाली होता है और आज नहीं तो कल वह अभियान सफल हो जाता है। ठीक उसी प्रकार धर्म के नाम पर उपज रही इस भय और आतंकवाद की क्रूरता के विरोध में उन्ही लोगों को आगे आना होगा, जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले हैं और होते आए हैं।

पढ़ाई के उद्देश्य से घर से बाहर निकले निर्दोष कश्मीरी युवाओं को कश्मीर घाटी जाकर आतंकवाद के लिए उकसाने वाले गुटों को स्पष्ट सन्देश देना चाहिए कि वो बन्दूक और पत्थर नहीं बल्कि किताबें उठाना चाहते हैं। उन्हें बताना होगा कि ज़न्नत से पहले उन्हें इस धरती पर मानवता के लिए किए जाने वाले कार्यों से जुड़कर और समाज की मुख्यधारा में आकर अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुन्दर भविष्य तैयार करना उनकी ज़िम्मेदारी है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से लोग उम्मीदें लगाए बैठे थे कि आतंकवाद जैसी मुद्दों पर शायद उनका बर्ताव कुछ और हो, लेकिन उनके द्वारा ज़ारी बयानों से स्पष्ट है कि ‘नकारने की प्रथा’ को ही वो आगे बढ़ाते नज़र आ रहे हैं। पाकिस्तान की हक़ीक़त ये हो चुकी है कि उनके राष्ट्र के नाम दिए जाने वाले सन्देश आतंकवादियों द्वारा भेजे गए ‘प्रेम पत्र’ से ज्यादा कुछ नहीं होते। यदि हम बदलाव चाहते हैं तो सबसे पहले हमें बुराई को स्वीकारना होगा। ठीक इसी तरह भारत देश का वर्तमान मीडिया गिरोह यह कभी स्वीकार नहीं करना चाहेगा कि वह वाकई में राजनीतिक पूर्वग्रहों के कारण इतना दूर निकल चुका है कि उसे सेना के त्याग को भी अवसरवाद में बदलते देर नहीं लगती।

याद रखिए कि मर गए लोग परिणाम की चिंता नहीं करते। ना ही किसी व्यक्ति की मृत्यु को समस्त संसार की वाह-वाही सही साबित कर सकती है। जीवन ऐसे उसूलों के लिए जिया जाए जो मानवता का कल्याण करें और अगर इसके आड़े धर्म आ जाए तो उसकी बाधाओं को त्याग दिया जाना चाहिए।

मसूद अज़हर पर गूँगी-बहरी हैं अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ, क्योंकि वो खुलेआम Pak से दे रहा है धमकी

पाकिस्तान और आतंकवाद एक दूसरे के पर्याय हैं। अनगिनत बार इस बात के प्रमाण मिल चुके हैं, फिर भी यूनाइटेड नेशन से लेकर अन्य तमाम मानवाधिकारवादी राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय संस्थाएँ इस पर ख़ामोश हैं। क्यों? ये सवाल कौन उठाएगा? किससे उम्मीद की जाए? इन सभी संस्थाओं को इन आतंकियों के मानवाधिकार दिखते हैं लेकिन जो अनगिनत लोग इनके आतंक का शिकार हो रहे हैं, उस पर अज़ीब सा सन्नाटा है। क्यों? ये वही जानें कि आतंक और आतंकवाद पर इस सभी संस्थाओं का दोहरा रवैया क्यों है? बार-बार अनेक प्रमाण मिलने पर भी ये मौन चुभता है, उन सभी को जिनके अंदर थोड़ी सी भी मानवता और संवेदनशीलता बची हुई है।

हालिया मामला पुलवामा का है, जिसमें 44 CRPF के जवान एक आत्मघाती हमले में आतंक का शिकार हो गए। इस घटना की खुलेआम ज़िम्मेदारी ‘जैश-ए-मुहम्मद’ के लेने के बाद भी उसका सरगना मसूद अज़हर न सिर्फ़ पाकिस्तान में घूम रहा है बल्कि ख़ुद ये स्वीकार भी रहा है कि उसे पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने सुरक्षा मुहैया कराया है। कल ही इमरान खान पुलवामा आत्मघाती हमले में पाकिस्तान के शामिल होने का सबूत माँग रहे थे, जबकि पहले भी भारतीय एजेंसियों ने बहुत ज़्यादा सबूत मुहैया कराए हैं। पाकिस्तानी आतंक से तबाह अन्य पड़ोसी देशों ने भी इतना सबूत अभी तक पाकिस्तान को दे दिया है कि अगर पाकिस्तान उसे कबाड़ के भाव भी बेचे तो कुछ दिन उसका ख़र्चा चल जाएगा।

पुलवामा अटैक से पहले एक वीडिओ में जैश-ए-मुहम्मद सरग़ना मौलाना मसूद अज़हर कुछ आतंकियों के सामने तक़रीर देते हुए कह रहा है:

“मैं देख रहा हूँ ख़ुदा की क़सम मेरी आँखों में आँसू आ गए। मैं रब्बे क़ाबा की ताक़त पर क़ुर्बान हो गया। हमारे वर्दी वाले भाई (पाकिस्तानी सेना) इसी झंडे (जैश-ए-मुहम्मद का) की दिलेरी में हमारे साथ-साथ चल रहे हैं। अल्लाह के सिवा कोई ग़ालिब नहीं हो सकता। अल्लाह की ताक़त ही सब पर ग़ालिब है। ख़ुदा की क़सम अपनी खुली आँखों से देख सकते हो। पुलवामा की किसी बच्ची का नाम गूगल पर लिखकर सर्च करो। तुम्हे कश्मीर के गाँव नज़र आएँगे। घरों पर जैश-ए-मुहम्मद के झंडे और दरवाजों पर अमीरे जैश की तस्वीर (मसूद अज़हर की), अमीरे जैश के लिखे मज़ामीन (जो कुछ लिखा है) को हिन्दुस्तान नहीं उतार सकता। अल्लाह ने हमारे फिदाईन के ख़ून के टुकड़ों की बरक़त से हमें यहाँ तक पहुँचाया है। लेकिन अभी काम ख़त्म नहीं हुआ है।”

ये कौन सा काम है, जो अभी बाकी है? कब इस आतंकी सरगना के मंसूबों पर लग़ाम लगाई जाएगी? इस तक़रीर में वह खुलेआम पुलवामा का नाम ले रहा है। वह पाकिस्तानी सैनिकों को धन्यवाद दे रहा है। वह फिदाइनों की तारीफ़ कर अन्य को फिदाईन बनने के लिए उकसा रहा है। यह सब पाकिस्तान की सरजमीं पर वहाँ के आर्मी की सरपरस्ती में हो रहा है। क्या इससे बड़ा सबूत भी चाहिए?

एक और बात मुझे चुभती है। इस्लाम तो शांति का धर्म है। वामपंथी बुद्धिजीवियों ने हमेशा इस बात का समर्थन भी किया है, तर्क भी दिए हैं। लेकिन शांतिपूर्ण इस्लाम इतना असहिष्णु क्यों है? क्यों पैगम्बर मुहम्मद के कार्टून बना देने भर से शार्ली ऐब्दो पर इस्लामी आतंकियों का क़हर टूट पड़ता है? क्यों शिया-सुन्नी के नाम पर ये पूरी क़ौम क़त्लेआम पर उतारू हो जाती है।

जैश-ए-मुहम्मद नामक आतंकी आत्मघाती संगठन बनाकर बेगुनाहों को मारने से क्या पैग़म्बर साहब खुश होते होंगे? क्या आज तक किसी मानवाधिकारवादी, अंतरराष्ट्रीय या किसी फ़तवावीर ने कोई आदेश या फ़तवा जारी किया कि ऐसे आतंकी दस्ते न बनाए जाएँ। बावजूद इसके कि सारी दुनिया आज ऐसे संगठनों के नाम पर थूक रही है, ऐसा कोई फ़तवा या आदेश सुनने में नहीं आया है।

वैसे पुलवामा हमले के बाद जिस तरह से देश भर में छिपे ‘शांति दूत’ सामने आए खुशियाँ मनाते हुए, उससे उनकी छिपी सड़ी हुई मानसिकता एक बार फिर उजागर हुई। पता नहीं कब तक यूँ ही ये आतंकी संगठन पकिस्तान की कोख़ में अंतरराष्ट्रीय संगठनों की नज़रों के सामने खुलेआम पलते रहेंगे और पूरी विश्व बिरादरी इस पर आँख मूँदे फिर से किसी नए आतंकी हमले तक गूँगी-बहरी बनी रहेगी?

इन सब विडम्बनाओं के बावजूद एक बार फिर भारत आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित करने की दिशा में कूटनीतिक पहल कर रहा है। इस पहल में फ्रांस ने कहा है कि वह अगले कुछ दिनों में आतंकी मसूद अज़हर पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाएगा। हालाँकि जैश-ए-मोहम्मद को पहले ही संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंधित कर रखा है। फिर भी अज़ीब बात ये है कि यह आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है। भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए एक बार फिर कूटनीतिक अभियान चला रहा है। पर अंज़ाम क्या होगा? क्या कोई देश फिर वीटो पावर के नाम पर अड़ंगा लगाएगा या इस आतंकी को उसके अंजाम तक पहुँचाया जाएगा, इस पर सभी की निगाहे हैं।

हम्पी के विष्णु मंदिर को तोड़ने वालों पर कोर्ट ने लगाया ₹70,000 का जुर्माना

कर्नाटक स्थित हम्पी नगर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। अभी हाल ही में यहाँ पर हुड़दंगियों द्वारा मचाये गए उत्पात का एक वीडियो वायरल हुआ था। इस वीडियो में 14वीं शताब्दी के विष्णु मंदिर के खंभे को तोड़ते हुए 4 लोगों को देखा गया था। और तो और, खंभों के टूट जाने के बाद उपद्रवियों द्वारा उसका प्रचार भी किया गया था।

आज कर्नाटक के हम्पी स्थित विष्णु मंदिर के खंभे गिराने के चार आरोपितों को हाईकोर्ट ने एक अनोखी सज़ा सुनाई। हाईकोर्ट ने चारों पर ₹70,000 का जुर्माना तो लगाया ही, साथ में उन खंभों को फिर से खड़ा करने का भी निर्देश दिया।

बता दें कि सज़ा सुनाने के बाद चारो आरोपितों को उसी जगह ले जाया गया जहाँ हम्पी में विष्णु मंदिर है। उस जगह ले जाकर आरोपितों से खंभों को खड़ा करवाया गया और वहाँ उनसे सफ़ाई भी करवाई गई। इस दौरान वहाँ आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के अधिकारी और स्थानीय पुलिस भी मौजूद थी।

खंभे गिराने के आरोप में जिन चार आरोपियों को पकड़ा गया था, उनमें – आयुष (मध्य प्रदेश) और बिहार के राजा बाबू चौधरी, राज आर्यन और राजेश कुमार चौधरी शामिल हैं। पुलिस के अनुसार इन सभी को आठ फ़रवरी को खंभे गिराने के आरोप में पकड़ा गया था। जानकारी के मुताबिक सभी आरोपियों ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए जुर्माना भर दिया। इसके बाद उन्हें छोड़ दिया गया।

हम्पी जैसे ऐतिहासिक स्थल पर ऐसी बर्बरता ने स्थानीय लोगों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी काफी ध्यान आकर्षित किया था। इस तरह के कृत्य पर लोगों ने काफी नाराज़गी भी जताई। आपको बता दें कि हम्पी के प्राचीन शहर की विरासत लगभग 42 वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। इसमें 1,600 से अधिक स्मारक शामिल हैं। इन अवशेषों में मंदिर, महल, बाज़ार और सार्वजनिक स्नानघर भी शामिल हैं। अधिकांश संरचनाएँ 14वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी के बीच निर्मित की गई थीं।

मोदी उनकी ज़ेब में, फिर भी अनिल अम्बानी को जेल या ₹453 करोड़ चुकाने की सज़ा

सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस कम्युनिकेशन्स (RCOM) के चेयरमैन अनिल अम्बानी सहित 2 अन्य अधिकारियों को अवमानना का दोषी करार दिया है। उनके ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने अम्बानी व उनकी कम्पनी को 4 सप्ताह के भीतर एरिक्सन के बकाया ₹453 करोड़ भुगतान करने को कहा है। इतना ही नहीं, अगर उन्होंने तय समय-सीमा के भीतर ये रक़म नहीं चुकाई तो उन्हें 3 महीने की जेल होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी दोषियों को ज़ुर्माने के तौर पर अदालत में एक-एक करोड़ रुपए जमा करने के भी निर्देश दिए। इसके लिए 4 महीने की समय-सीमा तय की गई है। अगर वो ज़ुर्माने की रक़म भरने में असमर्थ साबित होते हैं तो उन्हें 1 महीने जेल में गुज़ारने पड़ेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषियों ने जान-बूझ कर सुप्रीम कोर्ट में दी गई अंडरटेकिंग का उल्लंघन किया। कोर्ट ने इस 13 फरवरी को ही फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।

हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि कैसे कपिल सिब्बल एक ही दिन में दो बार रूप बदलते हुए सार्वजनिक तौर पर रिलायंस के ख़िलाफ़ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं तो दूसरी तरफ अदालत के भीतर रिलायंस की पैरवी करते हैं। अव्वल तो यह कि यही नेतागण मोदी पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि उन्होंने फ्रांस सरकार और दसॉ पर दबाव बना कर अनिल अम्बानी की कम्पनी ‘रिलायंस डिफेंस’ को ऑफसेट पार्टनर चुनने को मजबूर किया।

कॉन्ग्रेस नेताओं का हाल यह है कि दसॉ द्वारा बार-बार सारी चीजें साफ़ करने के बावजूद वो एक ही रट लगाए बैठे हैं। दसॉ बार-बार दुहरा चुकी है कि उसने रिलायंस ग्रुप को अपनी मर्जी से ऑफसेट पार्टनर चुना था। कम्पनी यह भी बता चुकी है कि उसने भारतीय नियमों (डिफेंस प्रॉक्यूरमेंट प्रोसीजर) और ऐसे सौदों की परंपरा के अनुसार यह निर्णय लिया था। लेकिन, तब भी यह प्रचारित किया जाता रहा कि पीएम मोदी अनिल अम्बानी की ज़ेब में हैं।

इस मामले में एरिक्सन की तरफ से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे पेश हुए जबकि अनिल अम्बानी की तरफ से मुकूल रोहतगी व कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने ज़िरह किया। कोर्ट ने 13 फरवरी को ही फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। लाइव लॉ की वेबसाइट पर प्रकाशित ख़बर के अनुसार, सुनवाई के दौरान दवे ने कोर्ट को बताया:

“कंपनी अपनी परिसंपत्तियों को बेचने के बाद 5,000 करोड़ प्राप्त करने के बावजूद शीर्ष अदालत के समक्ष की गई प्रतिबद्धता का सम्मान करने में विफल रही। यह ट्रिब्यूनल के समक्ष इनसॉल्वेंसी की कार्यवाही का हवाला देते हुए आरकॉम द्वारा की गई प्रतिबद्धता को खत्म करने का प्रयास है। अनिल अंबानी के माध्यम से आरकॉम ने शीर्ष अदालत के 3 अगस्त, 2018 के आदेश का “जानबूझकर और सचेत रूप से” उल्लंघन किया है।”

अब हो सकता है कि अनिल अम्बानी का चरित्र-हनन शुरू हो जाए। ऐसे लोग यह जानने की कोशिश तक नहीं करेंगे कि उन्हें किस मामले में दोषी ठहराया गया है और इसके पीछे क्या कारण हैं। हो सकता है उन्हें माल्या, चौकसी और नीरव जैसे आर्थिक भगोड़ों की श्रेणी में रख कर ‘राफेल कनेक्शन’ की रट लगाई जाए। उन्हें सबसे पहले तो यह पता होना चाहिए कि मामला ‘रिलायंस कम्युनिकेशन्स’ का है, ‘रिलायंस डिफेंस’ का नहीं।

बिना सोचे-समझे चरित्र-हनन पर उतर आने वाले मीडिया के गिरोह विशेष को यह भी समझना पड़ेगा कि इस केस में सरकार कोई पक्ष नहीं है। यह एक कम्पनी द्वारा दूसरी कम्पनी पर बकाए के भुगतान के लिए दर्ज किया गया केस था। इस केस से आम जनता व सरकार के हितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह दो बड़े कंपनियों के बीच का मामला था। लेकिन अफ़सोस, नरेंद्र मोदी तो अम्बानी की ज़ेब में हैं, फिर भी अम्बानी को ज़ुर्माना और जेल की सज़ा सुनाई जा रही है।

Fact Check: NDTV वालो, और केतना बेज्जती करवाओगे शोना?

NDTV मीडिया गिरोह आए दिन बेबुनियादी मुद्दों को भुनाने में व्यस्त रहता है, जिससे वो देश की जनता को भ्रमित कर सके, उन्हें बरगला सके, उन्हें ग़लत दिशा में ले जा सके और उनके विचारों को अपने मनमाने ढंग के स्वरूप में बदल सके। और अपने इस मंतव्य को सिद्ध करने के लिए वो किसी भी हद तक गुज़रने से कोई परहेज़ नहीं करता।

ऐसी ही एक नाकाम कोशिश में NDTV ने एक बार फिर से प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लिया और उनके एक बयान को ग़लत साबित कर दिया।

विवादस्पद NDTV की पहचान अब अक्सर फ़ेक न्यूज़ को प्रचारित करने की बन चुकी है। NDTV ने अपनी वेबसाइट में एक ऐसी भ्रामक हेडलाइन को प्रमुखता से जगह दी, जिसमें यह दर्शाया गया कि पीएम मोदी ने वंदे भारत ट्रेन-18 का मजाक उड़ाने वाले लोगों के ख़िलाफ़ सज़ा की बात की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करके NDTV ने लिखी भ्रामक हेडलाइन

विवादों की खान में तब्दील NDTV गिरोह की प्रधानमंत्री के संदर्भ में छापी यह ख़बर पूरी तरह से बेबुनियाद है, जिसका असलियत से कोई लेना-देना नहीं है। चलिए अब आपको इस ख़बर की असलियत से अवगत करा दें। दरअसल, मंगलवार (19 फ़रवरी 2019) को पीएम मोदी ने वाराणसी में 3,382 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास किया था।

इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश जाला। इसी बीच उन्होंने कहा, “मैं इंजीनियरों को सलाम करता हूँ, जो भविष्य में भारत में बुलेट ट्रेन बनाएँगे और इसे चलाएँगे। मुझे ऐसे लोगों का पत्र मिल रहा है जो आहत हैं।” पीएम ने जनता से पूछा, “क्या इंजीनियरों और टेकनिशिअंस का अपमान करना सही है? उनका मजाक उड़ाया जा रहा है। क्या उन्हें माफ़ किया जा सकता है? क्या उन्हें सही समय पर सही सज़ा नहीं दी जानी चाहिए?”

रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जो बातें कहीं, उनमें भारत के मेहनती इंजीनियरों और तकनीशियनों का मजाक उड़ाने वालों को सज़ा देना शामिल था, न कि वंदे भारत ट्रेन-18 का मजाक उड़ाने से। साथ ही, NDTV ने अपने हेडलाइन में ‘आम जनता’ (people) को सज़ा देने की बात की है, जबकि किसी भी समझदार व्यक्ति को पता चल जाएगा की मोदी का इशारा अगले चुनावों में देश की इस उपलब्धि का मजाक उड़ाने वाले नेताओं को जनता द्वारा वोट न देकर सज़ा देने से था। लेकिन आँख पर मोदी-घृणा की पट्टी हो तो सही में ‘ये अँधेरा ही हमारे समय की तस्वीर’ बन जाती है।

बता दें कि पीएम मोदी के बयान को तोड़-मरोड़कर लोगों के सामने रखने की NDTV का यह अथक प्रयास पूरी तरह से बेकार हो गया, जब सोशल मीडिया पर NDTV को लोगों ने अपने-अपने शब्दों में सबक सिखाया और सही जानकारी से अवगत कराया।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कई अन्य लोगों ने एनडीए सरकार पर निशाना साधने के लिए ट्रेन-18 के तकनीकी ख़राबी का इस्तेमाल किया था। विपक्ष के नेताओं ने ‘मेक इन इंडिया’ को भी असफल करार दिया और भारत की सबसे तेज़ ट्रेन, ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ के ब्रेकडाउन की रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मजाक भी उड़ाया।

इससे पहले, भारत की सबसे तेज़ ट्रेन ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ की सफलता को ग़लत साबित करने के लिए, कॉन्ग्रेस समर्थित वामपंथी चैनल NDTV ने जानबूझकर मवेशी से टकराने के तथ्य को नज़रअंदाज़ किया और अपनी रिपोर्ट पेश की कि ट्रेन-18 तकनीकी ख़राबी की वजह से रुक गई। अपनी इस रिपोर्ट में वो न सिर्फ़ ट्रेन-18 को असफल घोषित करने पर तुले नज़र आए बल्कि एनडीए सरकार को बदनाम करने का भरसक प्रयास करते भी दिखे।

वंदे भारत एक्सप्रेस ने बिना किसी बाधा के अगले ही दिन अपना पहला कमर्शियल रन सफलतापूर्वक पूरा किया था। हालाँकि, जो लोग इतने मुखर रूप से विफलता का मजाक उड़ा रहे थे, वे भारत की सबसे तेज ट्रेन के सफलता की सराहना करते दूर-दूर तक नहीं दिख रहे थे।

अभिनेता से नेता बने दिव्या स्पंदना ने NDTV की इस फ़र्ज़ी रिपोर्ट को रीट्वीट किया, बता दें कि दिव्या स्पंदना कॉन्ग्रेस आईटी सेल की प्रमुख भी हैं। इसके अलावा इन्होंने फ़र्ज़ी ख़बर के माध्यम से पुलवामा आतंकी हमले के संबंध में कुछ असंवेदनशील बयानों को भी पोस्ट किया था।

आतंकवाद के विरुद्ध भारत के साथ खुफिया जानकारी साझा करेगा सऊदी अरब: मोहम्‍मद बिन सलमान

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बुधवार को (फरवरी 20, 2019) प्रतिनिधिमंडल स्तर की बैठक हुई। बैठक के बाद साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के युवराज ने आपसी संबंधों पर जोर देते हुए आतंकवाद जैसी चुनौती से मिलकर मुकाबला करने की बात रखी। प्रेस वार्ता के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा, “हमारे संबंधों में और भी प्रगाढ़ता आई है। सऊदी अरब भारत का सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी और एक तरह से हमारा पड़ोसी भी है। सऊदी अरब भारत का एक करीबी दोस्त है और ऊर्जा सुरक्षा का महत्वपूर्ण स्रोत भी।”

सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के साथ बैठक में दोंनो देशों के बीच कई समझौतों पर सहमति बनी। इसके बाद भारत और सऊदी अरब के बीच अहम समझौतों के आदान-प्रदान के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी के संबोधन की प्रमुख बातें:

  • आज हमने द्विपक्षीय संबंधों के सभी विषयों ​​पर व्यापक और सार्थक चर्चा की है। हमने अपने आर्थिक सहयोग को नई ऊँचाइयों पर ले जाने का निश्चय किया है।
  • हमारे ऊर्जा संबंधों को स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप में तब्दील करने का समय आ गया है। दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनरी और स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व में सऊदी अरब की भागीदारी, हमारे ऊर्जा संबंधों को बायर-सेलर रिलेशन से बहुत आगे ले जाती है।
  • पुलवामा अटैक मानवता पर बहुत बड़ा हमला है, आतंकवाद के खिलाफ सब एकजुट हों,
    सऊदी अरब और भारत, आतंकवादी कट्टरवाद पर एक जैसा विचार रखते हैं।
  • अतिवाद के विरुद्ध सहयोग और इसके लिए एक मज़बूत कार्ययोजना की भी जरूरत है, ताकि हिंसा और आतंक की ताकतें हमारे युवाओं को गुमराह न कर सकें। मुझे खुशी है कि सऊदी अरब और भारत इस बारे में साझा विचार रखते हैं।
  • हम इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि काउंटर टेररिज्म, समुद्री सुरक्षा और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में और मजबूत द्विपक्षीय सहयोग दोनों देशों के लिए लाभप्रद रहेंगे।

नरेंद्र मोदी के सम्बोधन के बाद सऊदी अरब के युवराज मुहम्मद बिन सलमान ने कहा, “बहुत सारे सेक्टर में दोनों देशों की सरकारें साथ मिलकर काम कर रही है और आतंकवाद के खिलाफ हम भारत के साथ पूरी तरह से काम करेंगे।”

आतंकवाद पर चिंता व्यक्त करते हुए सलमान ने कहा, “आतंकवाद और कट्टरवाद पर हमारी साझा चिंताएँ हैं। हम अपने दोस्त भारत को बताना चाहते हैं कि हर मोर्चे पर हम सहयोग करेंगे। सबके साथ मिलकर हम आने वाली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के लिए काम करेंगे।”

इससे पहले राष्ट्रपति भवन में सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के सम्‍मान में भव्‍य स्वागत समारोह हुआ। पीएम मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इसमें मौजूद रहे। सऊदी प्रिंस ने इस दौरान कहा, “आज हमें यह पक्का करना है कि दोनों देशों के बीच रिश्ते बने रहें और पहले से बेहतर हों। पीएम और राष्ट्रपति के नेतृत्व में मुझे उम्मीद है कि हम लोग दोनों देशों के लिए कुछ अच्छा कर पाएँगे।” सऊदी प्रिंस मंगलवार को देर रात नई दिल्ली पहुँचे और पीएम नरेंद्र मोदी ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया।

ऑपइंडिया EXCLUSIVE इंटरव्यू: मध्यम वर्ग को ₹90,000 करोड़ का सीधा लाभ; UP में 72 लेंगे – गोयल

(मंत्री पीयूष गोयल के साथ यह साक्षात्कार पुलवामा आतंकी हमले से पहले लिया गया था। उस हमले में वीरगति को प्राप्त हुए हमारे देश के जवानों के सम्मानस्वरूप हमने इस साक्षात्कार को देर से प्रकाशित किया।)

लोकसभा चुनाव आने वाले हैं और इसके साथ ही देश में राजनीतिक सरगर्मी भी परवान चढ़ रही है। हाल ही में पेश हुए अंतरिम बजट में सरकार द्वारा कई बड़ी घोषणाएँ की गई, ख़ासकर मध्यम वर्ग के लिए। चूँकि उस दौरान अरुण जेटली अस्वस्थ थे, पीयूष गोयल ने ही बजट पेश किया। हमने गोयल से मुलाकात कर आगामी चुनाव में भाजपा की रणनीति से लेकर देश की अर्थव्यवस्था और रेलवे सेक्टर के बारे में चर्चा किया। नीचे पढ़िए हमारे सवाल और उनके जवाब।

अंतरिम बजट में सरकार का ध्यान मध्यम वर्ग पर केंद्रित था। क्या यह शुरुआत से ही योजनाबद्ध था या फिर पार्टी ने मध्यम वर्ग के बीच पल रहे असंतोष को भाँपने के बाद यह निर्णय लिया था?

(गोयल ने इस बात को नकार दिया कि अंतरिम बजट में मध्यम वर्ग और आयकरदाताओं को दिए गए बड़े लाभ के पीछे वो मीडिया रिपोर्ट्स थे जिनमे कहा गया था कि मध्यम वर्ग भाजपा से असंतुष्ट है।) उन्होंने कहा:

”हमने पिछले 4 वर्षों में इस पर काफ़ी कार्य किया था। मैंने सरकार द्वारा पिछले बजटों में उठाए गए क़दमों को सूचीबद्ध किया है, यह इस श्रृंखला में सिर्फ़ एक अगला क़दम है। सामूहिक रूप से, हमने पहले ही पिछले 4 वर्षों में मध्यम वर्ग को ₹80-90 हजार करोड़ का लाभ दिया है और इस वर्ष ₹25 हजार करोड़ का, इसलिए हमने बस एक निरंतरता बनाए रखी है।”

“अगर इन सभी चीजों को एक साथ रखा जाए तो पता चलता है कि आयकर सम्बन्धी लाभ 6, 7, 8 लाख रुपए तक की आय वाले लोगों की मदद करते हैं और कभी-कभी 9 लाख रुपए की सालाना आमदनी वाले लोग भी लगभग कर मुक्त हो जाते हैं।”

(गोयल ने नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान मुद्रास्फीति की कम दरों पर भी टिप्पणी की जो मध्यम वर्ग को सबसे अधिक लाभ पहुँचाती है) उन्होंने कहा:

“यह अभी 2% है। इससे पहले कभी भी मुद्रास्फीति 5 साल लगातार निचले स्तर पर नहीं रही है। आप भारत के इतिहास में किसी भी 5 साल में देखें, हमारे पास कभी भी ऐसा समय नहीं था जहाँ हमने 5 साल लगातार कम मुद्रास्फीति देखी हो। हमें यह 9-10% पर विरासत में मिला। यूपीए शासन के दौरान तो एक समय पर यह 12% से भी अधिक हो गया था। हम इसे 2% तक ले कर आए हैं। मुझे लगता है कि यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।”

मध्यम वर्ग को मुद्रास्फीति, कर और भ्रष्टाचार की चिंता है। राहुल गाँधी भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाने की कोशिश कर रहे हैं। क्या आपको लगता है कि उनके आरोपों में दम है?

“भारत के लोग जानते हैं कि उनके लिए क्या अच्छा है।” उन्हें नरेंद्र मोदी पर भरोसा है। अब, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ, कैग रिपोर्ट सामने आई है, फ्रांसीसी सरकार और भारत सरकार ने मामले पर स्पष्टीकरण जारी किया है। मुझे लगता है कि मुद्दा सुलझा लिया गया है और किसी भी तरह की छेड़छाड़ का कोई असर नहीं पड़ेगा।

भारत के लोग जानते हैं कि उनके लिए क्या अच्छा है। उन्हें नरेंद्र मोदी पर भरोसा है। अब, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के साथ, कैग रिपोर्ट सामने आई है। फ्रांसीसी सरकार और भारत सरकार ने मामले पर स्पष्टीकरण जारी किया है। मुझे लगता है कि मुद्दा सुलझा लिया गया है और इस से किसी भी तरह की छेड़छाड़ का कोई असर नहीं पड़ेगा।”

भाजपा के सत्ता में आने के बाद से बाजार में नौकरियों की कमी के बारे में बहुत सारी बातें हुई हैं। आपके अनुसार जॉब क्रिएशन असली मुद्दा है या इस मामले में डेटा की कमी असली मुद्दा है?

हमें नौकरियों पर डेटा एकत्र करने के लिए बेहतर उपायों की आवश्यकता है। पूरी दुनिया में नौकरियों की प्रकृति बदल रही है। ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ नौकरियों की गिनती नहीं की जा रही है क्योंकि हमारे डेटा संग्रह का तरीका अभी भी पुराने समय पर आधारित है।

जॉब क्रिएशन (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) पर एक समेकित डेटाबेस क्यों नहीं जारी किया जा रहा है?

अब नौकरियों की प्रकृति बदल रही हैं और इसी आधार पर समेकित सूची को संकलित किया जा रहा है। जल्द ही आधिकारिक डेटा जारी किया जाएगा।

भाजपा सरकार पर पर आरोप लगाए गए हैं पहले 4 वर्षों के दौरान भ्रष्टाचार के मामलों पर कार्रवाई करने में सरकार धीमी थी और पिछले कुछ महीनों में ही इसमें गति आई है (क्रिस्चियन मिशेल के प्रत्यर्पण और अन्य भ्रष्टाचार आरोपितों पर कार्रवाई के साथ)?

ऐसे लोगों को प्रत्यर्पित करने के हमारे प्रयास सबसे सुसंगत रहे हैं। हमने कभी भी गति को धीमा नहीं किया है। ये सभी कार्य एक तय प्रक्रिया के बाद ही पूरे होते हैं। आप इसे रात भर नहीं कर सकते। ऐसी प्रक्रियाएँ अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर आधारित होतीं हैं और मुझे इस बात की खुशी है कि हमारी सरकार एक ऐसी सरकार रही है जो इस तरह के भगोड़ों पर कार्रवाई करने और उन्हें वापस लाने के लिए सतत प्रयासरत रही है।

मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा के अंतिम सत्र के दौरान प्रधान मंत्री मोदी का समर्थन किया। आपको क्या लगता है कि कौन-सी चीजें बदल गईं? क्या आपको लगता है कि उनका बयान ज़मीनी हक़ीक़त या हृदय परिवर्तन पर आधारित है?

मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश के लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में अपना मन बना लिया है। वर्षों से उन्होंने एक निर्णायक सरकार को इस तरह से कानून व्यवस्था स्थापित करते हुए नहीं देखा। उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से को वर्षों से सुविधाओं की कमी के कारण नुक़सान उठाना पड़ा है। हमने उन्हें वो सुविधाएँ प्रदान करने का कार्य किया है। कई पीढ़ियों से उत्तर प्रदेश में लोग जिस तरह की परिस्थिति में जीने को विवश थे, वो अब बदल गई है।

मेरा मानना ​​है कि कैराना चुनाव के नतीजों से बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता है। वो भी तब, जबकि वह राष्ट्रीय चुनाव भी नहीं था। पूरा विपक्ष एकजुट था। कैराना भाजपा का पारम्परिक गढ़ भी नहीं रहा है। इन सबके बावजूद हमने 46% से अधिक वोट हासिल किए। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। मुझे लगता है कि भाजपा के पक्ष में पूरी लहर है। हमारी कोशिश है कि हम 2014 में 1 सीट अधिक जीतें, कम नहीं।

क्या सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की टिप्पणी (जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा व्यक्त की) उनका व्यक्तिगत विचार था? या फिर वह ज़मीनी हक़ीक़त का संकेत था?

मेरी राय में ये दोनों ही बातें सही है। यह जमीनी हक़ीक़त तो है ही और साथ ही यह एक अच्छी सरकार है जिसने ग़रीबों के कल्याण के लिए काम किया है। इसके अलावा, उनकी पारंपरिक सोच रही है कि हमें देश में एक अच्छी सरकार की जरूरत है।

तमिलनाडु के लिए क्या योजनाएँ हैं? आपको पार्टी ने वहाँ लोकसभा चुनाव प्रभारी बना कर भेजा है?

भाजपा विभिन्न दलों के साथ बातचीत कर रही है। दलों ने कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन किया है, उनका पूरी तरह से सफ़ाया हो गया है। अभिनेता रजनीकांत एक “अच्छे दोस्त” हैं और हम उनसे भी मिलने की कोशिश करेंगे।

मोदी सरकार को विरासत में एक जर्जर रेल व्यवस्था मिली। आपने रेलवे सेक्टर को कैसे चमकाया?

अतीत में झाँकने पर आपको पता चलेगा कि मोदी सरकार के सत्ता संभालने के वक़्त फण्ड की कमी थी। किसी भी कार्यक्रम के बारे में सोचने या उसकी रूप-रेखा तैयार करने से पहले हमें सबसे जिस के बारे में सोचना था, वह थी- धन की कमी। मानसिकता कुछ इस प्रकार की बन गई थी- ‘हमारे पास फण्ड नहीं है। इसीलिए, हम अधिक कुछ नहीं कर सकते।’

लेकिन, आज मानसिकता बदल गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने सुनिश्चित किया है कि रेलवे को पर्याप्त धनराशि मिले। हम आधुनिक तकनीकों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हमने स्वच्छता के स्तर में क्रांति ला दी है। रेलवे स्टेशन पहले से ज्यादा साफ-सुथरे हैं। अब, हम पूरे यात्री अनुभव को और अधिक सुखद बनाने के लिए ट्रेनों के नवीनीकरण की कोशिश कर रहे हैं।

पहले, समय-पालन (Punctuality) के आँकड़े सटीक नहीं थे। काग़ज़ों पर समय-निष्ठा हमेशा से अच्छी थी। लेकिन, लोगों ने हमेशा रेलवे की समय-निष्ठा के बारे में शिकायत की है। जब इस से जुड़े एक मूल कारण का विश्लेषण किया गया था, तो महसूस किया गया कि समय-निष्ठा (Punctuality) स्टेशन मास्टर्स के रिपोर्टों पर आधारित थी, जो ग़लत थे। अब, देश भर की सभी इंटर-जंक्शंस पर डेटा लॉगर्स को रखा गया है। जिस दिन नई प्रणाली चालू की गई, समय-निष्ठा (Punctuality) 20% तक गिर गई। इसलिए, जब तक डेटा अधिक मजबूत नहीं होता है और वास्तविक स्थिति का बयान नहीं करता है, तब तक समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता है।

एंजेल टैक्स को लेकर काफ़ी विवाद रहा है। जबकि सरकार ने जोर देकर कहा है कि कोई जबरदस्त कार्रवाई नहीं होगी, मोदी सरकार के ‘स्टैंड अप, स्टार्टअप’ पर विचार करते हुए इस प्रावधान को पूरी तरह से वापस लेने की माँग की गई है। इसके बारे में आपका क्या कहना है?

सबसे पहले आपको बता दें कि एंजेल टैक्स जैसी कोई चीज है ही नहीं। यह समस्या इसलिए शुरू हुई क्योंकि पहले कई लोगों के पास शेल कम्पनियाँ हुआ करती थीं। ये शेल कम्पनियाँ एक बड़े प्रीमियम पर शेयर जारी करती थीं और उस पद्धति का उपयोग करके धन को लूटती थीं। इसलिए, प्रतिबंध लाना पड़ा। जैसा कि आप जानते हैं, हमने लगभग 300,000 कंपनियों को हटा दिया है और इस तरह की हेराफेरी में लिप्त लोगों पर कार्रवाई भी की गई है।

अब, जब तक कि किसी कंपनी के पास कुछ अस्पष्ट मूल्यांकन या मूल्य नहीं है और शेयर अत्यधिक प्रीमियम पर जारी किए जाते हैं, यह इसके पीछे की मंशा पर संदेह पैदा करता है। अब अगर किसी कम्पनी द्वारा शेयर अत्यधिक प्रीमियम पर जारी किए जाते हैं, तो वह संदेह के घेरे में आ जाती है। अब, ईमानदार करदाताओं और वास्तविक उद्यम पूंजीपतियों को अलग करने ज़रूरत है।

वर्तमान में जो टैक्स लगाया जा रहा है, वह उन ऑपरेशन्स पर है, जहाँ भारी प्रीमियम पर शेयर जारी करके मनी लॉन्ड्रिंग की जा रही है। हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि इसके परिणामस्वरूप ईमानदार स्टार्ट-अप और पूँजीपति पीड़ित न हों। मुझे पूरा विश्वास है कि हम जल्द ही इस मुद्दे को हल कर पाएँगे और कोई भी ईमानदार व्यक्ति पीड़ित नहीं होगा। यदि आवश्यक हो, तो 2019 में जीत कर आने के बाद हम उन उपायों को लागू करेंगे जो इस मुद्दे को हल करने के लिए आवश्यक हैं।

(ये साक्षात्कार नुपुर शर्मा और राहुल रौशन के द्वारा किया गया।)

फ़ैक्ट चेक के नाम पर Alt-News के कट्टर भक्त zoo_bear ने फ़ेक वीडियो के ज़रिए फैलाया झूठ का रायता

स्व-घोषित फै़क्ट-चेकिंग पोर्टल Alt-News के सह-संस्थापक हैं प्रतीक सिन्हा और उनके इस झूठ के कारोबार को बढ़ावा देने में उनके सहयोगी हैं ज़ुबैर, जो ट्विटर पर @zoo_bear नाम से एकाउंट चला कर प्रतीक सिन्हा की झूठ की खेती को सींचने में सहयोग करते हैं। यह अक्सर इस्लामी कट्टरपंथियों की मदद से सोशल मीडिया पर मौजूद राष्ट्रवादी यूज़र्स के ख़िलाफ़ हमलावर रहते हैं। एक बार फिर उन्होंने साम्प्रदायिक हिंसा को उकसाने के लिए फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाईं

इस बार @zoo_bear ने एक ‘क्रॉप्ड वीडियो’ शेयर किया। जिसमें उसने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में गोंडा के विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कुछ सदस्यों ने पुलवामा आतंकी हमले के ख़िलाफ़ विरोध रैली में देश विरोधी नारे लगाए। ज़ुबैर (@zoo_bear) ने अपने फॉलोअर्स से उसी ‘क्रॉप्ड वीडियो’ को री-ट्वीट करने का आग्रह किया, ताकि सांप्रदायिक द्वेष को भड़काया जा सके और इस फ़र्ज़ी ख़बर को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके।

हालाँकि, गोंडा पुलिस ने जल्द ही ज़ुबैर के दावों को ख़ारिज करते हुए एक बयान जारी किया। पुलिस ने स्पष्ट किया कि इस तरह के ‘भारत-विरोधी नारे’ नहीं लगाए गए। गोंडा पुलिस ने अपने बयानों में कहा कि VHP के विरोध प्रदर्शन से जुड़े वीडियो का इस्तेमाल ‘भ्रष्ट’ उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है और कहा कि इस तरह के नारे आयोजन के दौरान नहीं लगाए गए थे।

गोंडा पुलिस ने इस फ़र्ज़ी ख़बर के दावों को ग़लत साबित करने के लिए घटना के वीडियो को भी पोस्ट किया। वीडियो में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि ज़ुबैर के दावों के उलट, VHP सदस्यों ने पाकिस्तान को आतंकवाद का गढ़ मानते हुए उसके ख़िलाफ़ नारे लगाए गए थे न कि भारत के विरोध में।

गोंडा पुलिस द्वारा जारी स्पष्टीकरण के बावजूद, स्व-घोषित फै़क्ट चेकर Alt-News के सहयोगी एकाउंट (@zoo_bear) ने अपने फैलाए गए झूठे ट्वीट को न तो डिलीट किया और न ही अपने इस कृत्य के लिए कोई माफ़ी ही माँगी।

यह पहली बार नहीं है जब Alt-News के गिरोह ने ऐसा अपराध किया हो। हाल ही में, एक यूज़र ‘स्क्विंट नियॉन’ (जिसका ट्विटर हैंडल @squintneon है) को लगातार ऑनलाइन जिहादियों से धमकियाँ दी जा रही थी कि अब वो उसे पहचान सकते हैं और वो उसे छोड़ेंगे नहीं। स्क्विंट नियॉन ने लगातार ऐसे इस्लामी ज़िहादियों को एक्सपोज़ किया था, जिसके कारण, अब उसकी पहचान सार्वजनिक होने पर उसे ये आंतकी विचारों वाले लोग ढूँढ रहे हैं। मुहम्मद ज़ुबैर नाम के सहयोगी के साथ प्रतीक सिन्हा ने डॉक्सिंग करते हुए जानबूझकर स्क्विंट नियॉन को इन ऑनलाइन जिहादियों के समक्ष ला दिया। Alt-News ने न केवल सोशल मीडिया पर नियॉन के विवरणों की जानकारी दी, बल्कि उसके जीवन को दाँव पर लगाने का भी काम किया।

Alt-News के संस्थापक प्रतीक सिन्हा सोशल मीडिया पर राष्ट्रवादी यूज़र्स की निजी सूचनाओं को कॉन्ग्रेस और इस्लामी कट्टरपंथियों तक पहुँचाने का काम करते हैं। इससे पहले, एक ट्विटर उपयोगकर्ता ने गोपनीयता भंग करने के लिए सिन्हा के ख़िलाफ़ मुक़दमा भी दर्ज़ कराया था और व्यक्तिगत छवि को नुक़सान पहुँचाने के एवज़ में 5 करोड़ रुपए का दावा भी ठोका था।

इससे पहले प्रतीक सिन्हा ने अपनी स्टॉकर टेन्डेन्सी का परिचय देते हुए (जिस पर अगर सिन्हा ने लग़ाम नहीं लगाई तो यह ख़तरनाक आपराधिक जुर्म में भी तब्दील हो सकती है) राहुल रौशन (Rahul Roushan) से जुड़ी निजी जानकारियों को पब्लिक कर दिया था। टार्गेटिंग और स्टॉकिंग की सीमा लाँघते हुए प्रतीक सिन्हा ने उनकी पत्नी के साथ-साथ मात्र दो-माह छोटी बच्ची से जुड़ी निजी जानकारियाँ भी पब्लिक कर दी थीं।

ज़ुबैर नाम का यह शख्स और प्रतीक सिन्हा इस घृणित कार्य में अब ‘अकेले’ ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जिन्होंने ऐसी आपराधिक प्रवृत्ति प्रदर्शित की है। ट्रोल स्वाति चतुर्वेदी ने एक पुस्तक लिखी है, जिसमें कई व्यक्तियों की निजी जानकारी को शामिल किया गया है। इस पुस्तक में उन सबको ‘ट्रोल्स’ के रूप में लेबल किया गया है, जो प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करते हैं।

स्वाति चतुर्वेदी, OpIndia (English) की सह-संस्थापक को डॉक्स करते हुए, उनकी व्यक्तिगत जीवन के पीछे पड़ गईं थीं।

बज़फीड (BuzzFeed) के एक अन्य तथाकथित पत्रकार, प्रणव दीक्षित ने भी एक महिला को ऑनलाइन स्टॉक किया था। चूँकि वो उनसे असहमत थीं, इसलिए प्रणव दीक्षित ने उसका लिंक्डइन प्रोफ़ाइल ढूँढा और एक ईमेल लिखकर उसके नियोक्ताओं से पूछा कि क्या वे जानते हैं कि उनका एक कर्मचारी उनसे असहमत है। फिर भी कमाल की बात ये है कि ये सभी धुरंधर गोपनीयता के चैंपियन हैं।

अभी तक कुछ तथाकथित पत्रकार ही उन लोगों को परेशान करते थे, जो उनसे असहमत होते। लेकिन शायद इतना ही काफ़ी नहीं था! तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन (Derek O’Brien) भी अपने संसदीय विशेषाधिकार का फ़ायदा उठाते हुए, उन ट्विटर यूज़र्स को ज़लील करने लगे जो उनसे असहमत थे।

फ़ेक-न्यूज़ फैलाने के लिए स्व-घोषित फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट Alt-News अरुंधति रॉय द्वारा वित्त पोषित है। उन्हें अक्सर झूठ बोलते हुए पकड़ा भी गया है, जिसके लिए शायद ही वो कभी ख़ुद को सही साबित कर पाई हों।

हाल ही में, उन्होंने पत्रकार बरखा दत्त के फ़ैक्ट-चेक के क्लिप्ड वीडियो की माँग की। लेकिन दिलचस्प रूप से, उन बिंदुओं को छोड़ दिया, जहाँ वास्तव में घाटी में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का संदर्भ था। Alt-News ने आर्मी से सेवानिवृत्त प्रमुख का भी फैक्ट चेक किया, लेकिन बिना सोचे-समझे आर्मी चीफ़ के पक्ष को नज़रअंदाज़ कर दिया। इसके बाद Alt-News ने एक फ़ेक इमेज का फैक्ट चेक करके उसे प्रसारित किया, वो भी बिना सही जानकारी दिए। Alt-news के सह-संस्थापक बड़ी आसानी से झूठ फैला कर अपना मंतव्य सिद्ध कर लेते हैं। ऐसा ही उन्होंने कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा की एक फ़ेक इमेज साझा करके की थी।

कई युवाओं द्वारा भारत-विरोधी नारे लगाने की ख़बरों को ख़ारिज करने के लिए वेबसाइट ने कुछ अजीबो-गरीब मंबो-जंबो सा विश्लेषण किया। जबकि बिहार के डीजीपी ने Alt-News के दावों को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया। हैरान कर देने वाली बात यह है कि Alt-News के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा के चेहरे पर एक शिकन भी देखने को नहीं मिलती जब वो अपने फै़क्ट-चेक के फ़र्ज़ी होने के तथ्य से अवगत हो जाते हैं।

Alt-News और इसके सहयोगियों ने अतीत में भी बिना किसी सबूत के एक प्रत्यक्षदर्शी की बातों को ख़ारिज़ कर दिया क्योंकि यह उनके कथन के अनुकूल था। उनके द्वारा खुदरा FDI पर बीजेपी के रुख़ के बारे में और ख़ुद OpIndia.com के बारे में भी झूठ फैलाया गया।