Wednesday, October 2, 2024
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वो मुग़ल बादशाह, जो बेटे की याद में रोते-रोते मरा… जबकि बेटा था ‘इस्लाम का दूत’

सत्रहवीं शताब्दी के मध्य का समय था। 70 साल का एक बीमार और बूढ़ा आदमी रोज़ उठता, खिड़की से ताज़महल को निहारता और फिर अपने बिस्तर पर लेट जाता। यह क्रम रोज़ चलता। पास में क़ुरानशरीफ़ की एक पुस्तक रखी होती, जिसकी आयतें पढ़ते-पढ़ते उसके दिन गुजरते। कभी-कभार कुछ मौलवी भी आया करते थे, जो उसके लिए क़ुरानशरीफ़ का पाठ करते। देखभाल करने के लिए बूढ़े की बेटी उसके साथ रहती थी। बूढ़े को एक ऐसी बीमारी ने जकड़ रखा था जो काफ़ी दर्दनाक थी। उसका पेशाब बूँद-बूँद कर गिरता था और उसे काफ़ी दर्द सहना पड़ता था। अपने भाग्य को कोसते हुए बेचारा बूढ़ा किसी तरह अपनी ज़िंदगी गुज़र-बसर कर रहा था।

ऐसा नहीं था कि बूढ़े के बेटे नहीं थे। उसके चार बेटे थे, जिनमें से अब सिर्फ़ एक ही ज़िन्दा बचा था। जिस बेटे को वो सबसे ज़्यादा प्यार करता था, जिसे अपने वारिस के रूप में देखता था- उसका कटा हुआ सर एक दिन उसके पास पहुँचा था। अपने बेटे के कटे हुए सर को याद कर वो हर दिन रोया करता था। उसे अपने सबसे प्यारे बेटे के मारे जाने से भी ज्यादा दुःख इस बात का था कि उसे मारने वाला भी उसका ही बेटा था। वो लाचार और बीमार बूढ़ा व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि तीस साल दिल्ली की गद्दी पर राज करने वाला शहंशाह था। वही जिसने ताज़महल बनवाया। मुग़ल आक्रांताओं के वंश का एक बड़ा नाम- शाहजहाँ।

22 जनवरी, 1666- क़रीब साढ़े तीन सौ साल पहले वो आज का ही दिन था, जब शाहजहाँ ने अंतिम साँस ली थी। लेकिन उस से पहले जो भी हुआ वो इस्लामिक सत्ता संघर्ष का ख़ून से रंगा वो अध्याय है, जिस पर भारतीय इतिहास कभी गर्व नहीं करेगा। मरने से पहले 74 वर्षीय शाहजहाँ के दिमाग में वो बातें जरूर कौंधी होंगी, जो उसने ठीक 38 साल पहले किया था। उसके दिमाग में वो काण्ड याद आए होंगे, जिसे उसने ख़ुद सत्ता पाने के लिए अंजाम दिया था। आज वो सब लौट कर उसके पास वापस आ गया था। जो भी उसने किए, उसकी सज़ा उसे जीते-जी मिल गई थी। सारा हिसाब चुकता हो गया था।

जब इतिहास ने ख़ुद को दोहराया

इस्लामिक साम्राज्यवाद में सत्ता के हस्तांतरण के लिए कभी कोई नियम नहीं रहा। भारतीय राजतन्त्र में सबसे बड़े बेटे को सत्ता देने का चलन था, अगर वो अयोग्य हो तो दूसरे बेटे को सत्ता सौंप दी जाती थी। लेकिन दुनियाभर में जहाँ भी इस्लामिक सत्ता के हस्तांतरण की बात आती है- वहाँ खून से सनी एक ऐसी कहानी भी मिलती है, जो बाद में महान कहलाने वाले बादशाहों के चेलों को रास न आए। महान कहे जाने वाले अकबर ने दिल्ली के लोगों को मार-मार कर उनकी खोपड़ियों का पहाड़ बना डाला और उसी पर चढ़ कर सत्ता के क्षितिज पर पहुँचा। शाहजहाँ ने भी कुछ ऐसा ही किया था।

गद्दी पर बैठने के बाद सबसे पहला काम जो उसने किया था- वो था अपनी सौतेली माँ नूरजहाँ को कारावास में डालना। ये महज़ एक संयोग ही था कि 22 जनवरी 1666 को उसकी मृत्यु हुई और 23 जनवरी 1628 को उसने अपने भाई-भतीजे सहित कई रिश्तेदारों को मार कर सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत की थी। जिस तरह उसने अपने भाइयों को मारा था, ठीक उसी तरह आज उसके बेटे एक दूसरे के ख़ून के प्यासे बन बैठे थे, जिसका अंत उसके तीन बेटों की मौत के साथ हुआ।

अब इतिहास के ख़ुद को दोहराने की बारी थी। शाहजहाँ की मृत्यु से पहले क़रीब 15 सालों तक उसका बेटा औरंगज़ेब उस से मिलने तक नहीं आया। मिलना तो दूर, उसने अपने बीमार बाप की हाल-चाल की ख़बर लेने तक की भी ज़हमत नहीं उठाई। जो उसने अपनी माँ के साथ किया था, उसका बेटा आज वही अपने बाप के साथ कर रहा था। आठ सालों तक एक किले में बंद रहते-रहते उसे अपना इतिहास तो याद आता ही होगा।

धन के लालची औरंगज़ेब ने अपने पिता को कंगाल कर दिया था। सत्ता सँभालने के कुछ दिनों बाद ही उसने आगरा के धनालय को अपने कब्ज़े में लिया। उसने शाहजहाँ से उसकी हीरे की अँगूठी तक छीन ली। दिल्ली का नया बादशाह मानसिक तौर पर इतना दरिद्र था कि उसने अपने पिता के सारे जवाहरात जबरदस्ती ले लिए। उसने शाहजहाँ से उसकी मोतियों की माला भी माँगी लेकिन शाहजहाँ ने कहा कि वो इस से ख़ुदा को याद करता है। शाहजहाँ ने कहा कि वो इसे औरंगज़ेब को देने की बजाय मिटटी में फ़ेंक देना ज्यादा बेहतर समझेगा।

जिस ख़ुदा का वास्ता देकर शाहजहाँ ने औरंगज़ेब को अपनी 100 मोतियों से बनी माला देने से मना कर दिया, उसी ख़ुदा का बहाना बना कर औरंगज़ेब ने उसकी सारी दौलत छीन ली।

बेटे का पत्र, पिता के नाम

औरंगज़ेब के शासन को अपनी लेखनी में समेटने वाले खाफ़ी ख़ान ने लिखा था कि जब शाहजहाँ आगरा किले में रहता था तब उसके और औरंगज़ेब के बीच कई पत्रों के आदान-प्रदान हुए थे। उन पत्रों में औरंगज़ेब की उसके पिता के प्रति सोच पता चलती है। यहाँ हम औरंगज़ेब के पत्रों की भाषा और विचार का उल्लेख करेंगे ताकि पता चले कि जिस क़ुरानशरीफ़ को शाहजहाँ अपने ढलते दिनों में पढ़ रहा था, उसी क़ुरानशरीफ़ को अपने जवानी के दिनों में पढ़ कर औरंगज़ेब ने क्या सीखा था?

अपने पत्र में औरंगज़ेब ने शाहजहाँ को लिखा- “आपकी बीमारी के दौरान दारा शिक़ोह ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था। उसने इस्लाम को ख़त्म करने और हिंदुत्व को बढ़ावा देने की ठान ली थी।” औरंगज़ेब ने इन पत्रों में अपने आपको इस्लाम का दूत बताया था। उसने अपनी हिंसात्मक करतूतों की वज़ह ‘दिव्य आज्ञा’ बताया था। उसका दावा था कि ये दिव्या आज्ञा उसे सीधे अल्लाह द्वारा मिल रही थी। इसका कारण बताते हुए उसने शाहजहाँ को लिखा कि अगर अल्लाह ने उसके कार्यों को स्वीकृति नहीं दी होती तो उसे इतने सारे युद्धों में जीत कैसे मिलती?

औरंगज़ेब को इस्लामिक साहित्य का ज्ञाता माना जाता था। असल में आज भारत में जो इस्लामिक कट्टरवाद की आधुनिक धारा बह रही है, उसका काफ़ी श्रेय औरंगज़ेब को भी दिया जा सकता है। औरंगज़ेब का ‘इस्लाम’ ऐसा था, जिसने उसे अपने भाई की गर्दन काट कर पिता के पास भेजने को प्रेरित किया था। औरंगज़ेब का इस्लामिक ज्ञान इतना ‘अच्छा’ था कि उसने अपने बीमार बाप को मरने के लिए छोड़ दिया और नज़रबंद कर डाला। आज जिस ताज़महल की कीमत $100 करोड़ डॉलर से भी अधिक आँकी जाती है, उसका निर्माण कराने वाला बादशाह एक दशक से भी अधिक तक उपेक्षित जीवन जी कर मर गया।

औरंगज़ेब ने अपने पत्र में शाहजहाँ को इस बात की भी याद दिलाई कि कैसे उसने सत्ता पाने के लिए अपने भाई-भतीजों की हत्या की थी। औरंगज़ेब ने अपने पिता को उसके कुकर्मों की याद दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने अपने पिता को याद दिलाया कि उसने उन लोगों की हत्याएँ की, जिन्होंने उसे चोट तक नहीं पहुँचाई थी। इन पत्रों में लिखी बातें इस बात का गवाह है कि आपके कुकर्म आपका पीछा नहीं छोड़ते और कभी न कभी लौट कर वापस आते ही हैं। नज़रबंदी के दौरान हालत यह थी कि शाहजहाँ से कोई मिलने भी आता तो औरंगज़ेब की आज्ञा से।

एक उपेक्षित बादशाह की मौत

आख़िरकार कलमा पढ़ते-पढ़ते और मौलवियों के नमाज़ के बीच शाहजहाँ ने आज (जनवरी 22) के ही दिन सन 1666 में अंतिम साँस ली थी। हिन्दुस्तान पर तीस सालों तक राज करने वाले मुग़ल बादशाह को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार तक नसीब न हुआ। उसकी बेटी जहाँनारा बेगम, जिसने सालों तक उसकी देखभाल की थी, ने ही उसकी अंतिम क्रिया संपन्न की। औरंगज़ेब अपने बाप के मरने की ख़बर सुन कर भी वहाँ नहीं आया, उसने अपने बेटे को भेजा लेकिन वह भी समय पर न पहुँच सका।

1666 में वो आज की ही तारीख़ थी जब आगरा के किले में नज़रबंद एक बूढ़े मुग़ल बादशाह ने आख़िरी साँस ली। उसके सारे कुकर्म लौट कर वापस उसके ही पास आए और इतिहास ने अपने-आप को फिर से दोहराया।
शाहजहाँ की मौत को दर्शाती अवनींद्र नाथ टैगोर की पेंटिंग: मुग़ल बादशाह और उसकी बेटी जहाँनारा (फोटो साभार: विकीमीडिया)

1652 से शाहजहाँ के मरने तक- 14 सालों तक औरंगज़ेब अपने पिता से नहीं मिला। जिस ताज़महल को निहारते-निहारते शाहजहाँ ने जीवन के अंतिम कुछ वर्ष गुजारे थे, जिस ताज़महल की कब्र में उसकी बेग़म मुमताज़ दफ़न थीं- उसी ताज़महल में उसकी भी क़ब्र बनाई गई।

सोर्स 1: (‘Emperors of the Peacock Throne: The Saga of the Great Mughals’ By Abraham Eraly)

सोर्स 2: (‘Illustrated Dictionary of the Muslim World’ By Marshall Cavendish)

सोर्स 3: (‘Travels in the Mogul Empire’ By Francois Bernier)

6 दिन में 5 BJP नेता का मर्डर: मध्य प्रदेश में राजनैतिक हत्याओं का दौर जारी

मध्य प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार में राजनैतिक हत्याओं का दौर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। सोमवार (जनवरी 21, 2019) को ग्वालियर भाजपा के ग्रामीण जिला मंत्री नरेंद्र रावत के भाई छतरपाल सिंह रावत की लाश पार्वती नदी के पुल के पास मिली। प्रथम दृष्टया यह धारदार हथियार से गोदे जाने का मामला लगता है। छतर सिंह के शरीर पर ज़ख़्म के कई निशान भी मिले हैं।

मृतक छतरपाल सिंह रावत खुद भी भाजपा कार्यकर्ता थे। पुलिस ने फिलहाल इसे आपसी रंजिश बताया है और पंचनामे के बाद शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। ‘आपसी रंजिश’ शब्द को भी अगर अंतिम सत्य मान लिया जाए तो भी मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति पर खुद को पाक-साफ़ बताना बहुत मुश्किल होगा। चुनाव से पहले कमलनाथ ने ‘उन्हें देख लेंगे’ की धमकी भी दी थी।

मध्य प्रदेश में राजनैतिक हत्याओं की बात करें तो पिछले छह दिनों में अब तक पाँच भाजपा नेताओं/कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है:

  • 16 जनवरी (बुधवार) – इंदौर में कारोबारी और भाजपा नेता संदीप अग्रवाल को सरेआम गोलियों से भून दिया गया था।
  • 17 जनवरी (गुरुवार) – मंदसौर नगर पालिका के दो बार अध्यक्ष रहे भाजपा नेता प्रहलाद बंधवार की सरे बाजार गोली मारकर हत्या कर दी गई।
  • 20 जनवरी (रव‍िवार) – गुना में परमाल कुशवाह को गोली मारी गई। परमाल भारतीय जनता पार्टी के पालक संयोजक शिवराम कुशवाह के रिश्तेदार थे और खुद भी भाजपा के कार्यकर्ता थे।
  • 20 जनवरी (रव‍िवार) – बड़वानी में भाजपा के मंडल अध्यक्ष मनोज ठाकरे को पत्थरों से कुचलकर बेरहमी से मार डाला गया।
  • 21 जनवरी (सोमवार) – ग्वालियर भाजपा के ग्रामीण जिला मंत्री नरेंद्र रावत के भाई छतरपाल सिंह रावत की लाश मिली। छतरपाल सिंह रावत खुद भी भाजपा कार्यकर्ता थे।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कई भाजपा नेता ने मध्य प्रदेश में राजनैतिक हत्याओं पर चिन्ता जताते हुए ट्वीट भी किया।

आदर्श स्थिति में इंसानी जान की कीमत बराबर होनी चाहिए। हत्या पर समाज में रोष बराबर होना चाहिए। फिर चाहे उसका नाम गौरी लंकेश हो या छतरपाल सिंह रावत। लेकिन देश के लगभग सभी बड़े और स्थापित मीडिया हाउस ने जिस तरह से गौरी लंकेश (एक इंसान) की मौत पर कवरेज़ की थी, उन्हीं मीडिया मठाधीशों ने छह दिनों में पाँच हत्याओं पर सिंपल रिपोर्ट फाइल करने के अलावा न तो कवरेज़ किया, न रोष दिखाया!

कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल मुख्यमंत्री कमलनाथ पर तो दागा ही जाना चाहिए। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि मीडिया को भी उसके दायित्वों और सेलेक्टिव कवरेज़ के लिए घेरा जाए।

वाड्रा के चेक से ड्राइवर के नाम पर जमीन ख़रीद: कोर्ट का आदेश, माँ समेत ED के सामने पेश हों रॉबर्ट

बीकानेर जमीन घोटाले के मामले में सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। राजस्थान हाईकोर्ट ने उन्हें उनकी माँ समेत प्रवर्तन निदेशालय (ED) के सामने पेश होने का आदेश दिया है। बता दें कि वाड्रा पर बीकानेर के कोलायत क्षेत्र में अवैध तरीक़े से 275 बीघा जमीन ख़रीदने का मामला चल रहा है। वाड्रा और उनकी माँ के अलावा स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड (SHPL) के सभी साझीदारों को भी ED के सामने पेश होने का आदेश दिया गया है।

ED इस मामले में अशोक कुमार और जय प्रकाश बगरवा को पहले ही गिरफ़्तार कर चुकी है। दोनों महेश नागर के क़रीबी बताए जाते हैं। महेश नागर वाड्रा का ख़ास आदमी है और SHPL का अधिकृत प्रतिनिधि भी था। नागर ही वो बिचौलिया है, जिसने वाड्रा के दिए चेक से अपने ड्राइवर के नाम पर जमीद ख़रीद कर इस घोटाले को अंजाम दिया था। एजेंसी ने दावा किया है कि उसके पास वाड्रा के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं। एजेंसी कई दिनों से वाड्रा से पूछताछ के लिए प्रयास कर रही थी लेकिन उसे सफ़लता नहीं मिल पा रही थी।

इस पूरे घोटाले में वाड्रा की मुखौटा कम्पनी एलीजनी फिनलीज का नाम सामने आया है। इस सिलसिले में ED ने वाड्रा के दफ़्तर में छापा भी मारा था। एजेंसी ने नवंबर 2018 के आख़िरी हफ़्ते में उन्हें तीसरी बार सम्मन जारी किया था। ज्ञात हो कि उस से पहले वो दो बार ED के सम्मन को दरक़िनार कर चुके थे। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस पुष्पेंद्र भाटी की पीठ से केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) राजदीप रस्तोगी ने कहा कि जाँच को रोका नहीं जा सकता।

रॉबर्ट वाड्रा के वकील ने कोर्ट से कहा कि उनके क्लाइंट की बेटी की तबियत ख़राब है और उनकी लंदन में सर्जरी होनी है। इसके बाद अदालत ने दोनों वकीलों को पेशी की तारीख तय करने को कहा। बताया जाता है कि रॉबर्ट-प्रियंका की बेटी मिराया को खेल के दौरान घुटनों में चोट लग गई थी। ज्ञात हो कि सब जूनियर वर्ग में राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी मिराया बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं।

इसके अलावा ASG रस्तोगी ने कोर्ट से वाड्रा की गिरफ़्तारी पर लगी रोक हटाने की भी माँग की। इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर वो और उनके साझीदार दोषी पाए जाते हैं तो उनकी गिरफ़्तारी पर लगी रोक हटाने के लिए अलग से अर्ज़ी दाख़िल करनी पड़ेगी। ASG ने कोर्ट से कहा कि मनी लॉन्डरिंग के इस मामले में वाड्रा व अन्य साझीदारों से पूछताछ होनी बहुत जरूरी है क्योंकि बिना इसके जाँच आगे नहीं बढ़ पाएगी।

इस से पहले एक अलग मामले में रॉबर्ट वाड्रा के ख़िलाफ़ गैर ज़मानती वॉरंट भी जारी किया जा चुका है। अभी हाल ही में राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने रॉबर्ट वाड्रा को क्लीन चिट देते हुए कहा है कि उनके द्वारा जमीन खरीद में किसी भी तरह की अनियमितता नहीं की गई है।

मैं तो बस एक झूठ लेकर चला था, ‘वायर’ जुड़ते गए, और ‘कारवाँ’ बनता गया…

झूठ और प्रपंच फैलाने के कई तरीके होते हैं। कुछ पर तो बड़े-बड़े, घाघ, पत्रकारों ने सुव्यवस्थित तरीके से शोध कर रखा है, और उन तरीक़ों का इतनी चालाकी से इस्तेमाल करते हैं कि आप पहले तो ‘ऑ’ करते रह जाएँगे, और बाद में पता चलेगा कि वो जो तरीक़ा बता रहा था कि ऐसे झूठ बोला जाता है, खुद उसने वही तरीक़ा अपनाया।

ऐसे में आपको ‘द वायर’, रवीश के प्राइम टाइम और ‘कारवाँ’ नामक मैग्ज़ीन की याद खूब आएगी। नहीं भी आएगी तो हम दिलाएँगे। कारवाँ एक ऐसा मैग्ज़ीन है, जिसके बारे में आप तभी सुनते हैं जब रवीश कुमार फ़ेसबुक पर लेख लिखकर जताते हैं कि उस शाम के प्राइम टाइम में क्या कवर किया जाएगा। बहुत समय लेकर, घाघपने के साथ बताया जाता है कि पत्रकारिता के छात्रों को यह मैग्ज़ीन और ऐसी पत्रकारिता ज़रूर पढ़नी चाहिए। पढ़ने को लेकर मैं भी सहमत हूँ, लेकिन इसे ‘घटिया पत्रकारिता से कैसे बचें’ जैसे प्रश्नों के उत्तर के लिए पढ़ना चाहिए। 

अगर आपको गोएबल्स का कथन याद न आ रहा हो, तो मैं याद दिला देता हूँ। रवीश कुमार हिटलर के प्रोपेगेंडा मिनिस्टर को खूब याद करते हैं। ये बात और है कि एक धूर्त आदमी ‘सेव कैसे नहीं खाना चाहिए’ बताते हुए सेव खा लेता है। रवीश वही करता है, वो बताएगा कि गोएबल्स कैसे एक ही झूठ को बार-बार चलाता था, ताकि वो सच लगने लगे। ये बात उन्होंने जस्टिस लोया के केस में प्राइम टाइम और फ़ेसबुक पोस्टों की झड़ी लगाकर साबित की; उसके बाद अमित शाह के बेटे जय शाह पर लगे आरोपों पर करके की; और अब अजीत डोभाल को ‘डी कम्पनी’ कहते हुए लिखकर कर रहे हैं। राफ़ेल पर तो ख़ैर उन्होंने राहुल गाँधी से ज़्यादा ही ‘जाँच क्यों नहीं कराते’ कहकर लहरिया लूटा ही है। 

इनके मीडिया हिट जॉब को समझने के लिए ‘कारवाँ’ शब्द को समझना ज़रूरी है। ये कारवाँ एक गिरोह है, जिसके सदस्य वही पुराने चोर हैं जिनके लिए व्यक्ति विशेष से घृणा ही निष्पक्षता का एकमात्र मानदंड रह गया है। यही कारण है कि जब कॉन्ग्रेस राज की तरह के सुनियोजित घोटाले, भ्रष्टाचार की नई इबारतें, पॉलिसी पैरालिसिस वाली नाउम्मीदियाँ नहीं दिखीं तो ये लोग क्रिएटिव होने लगे। 

इसी क्रिएटिविटी के चक्कर में सारे लॉजिक को फ़्लश करके, इन्होंने जस्टिस लोया की मौत को ऐसे दिखाया जैसे कि आजतक कोई भी जज हार्ट अटैक से नहीं मरा हो। इस पर कारवाँ और द वायर से लेकर रवीश कुमार तक ने वो बवाल काटा, वो बवाल काटा कि अगर संभव होता तो जस्टिस लोया अपनी राख से खड़े होकर इनके कॉलर पकड़कर दो-चार थप्पड़ ज़रूर लगा देते। बेटे ने कह दिया कि उसे अकेला छोड़ दिया जाए, सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया कि इसमें कोई संदेहास्पद बात नहीं, फिर भी किसी की मौत से उठे सुसंयोग को कैसे छोड़ देते! 

क्योंकि जज की मौत को अगर हत्या बताकर लोगों के दिमाग में ये सेट कर दिया जाए कि सुप्रीम कोर्ट का जज भी अमित शाह और मोदी से सुरक्षित नहीं है, तो लोगों का विश्वास उस अंतिम संस्था पर से भी उठ जाएगा जो दही हांडी की ऊँचाई नापने से लेकर आतंकियों की फाँसी रोकने के लिए रात के दो बजे खुल जाती है! 

जब पारंपरिक तरीक़ों से घेरा न जा सके, जब कैग या सुप्रीम कोर्ट ही क्लीन चिट दे दे, तो एक ही रास्ता बचता है कि लगातार झूठ बोलते हुए, ऐसी स्थिति बना दी जाए कि असमंजस की स्थिति में बैठा व्यक्ति सोचने लगे कि आख़िर जाँच करवाने में क्या जाता है! ये बात और है कि क्या इन मामलों की वैसे जाँच हो सकती है जैसे रवीश या राहुल बोलते हैं? उस डिटेल में न तो आज तक राहुल गाँधी गए हैं न रवीश क्योंकि बाक़ी समय अपनी अलमारी के पीछे छुपाए नालसर के एक्सपर्ट को ये बुलाकर रख लेते हैं, लेकिन जहाँ सच में आम जनता को बताना पड़े कि क्या राफ़ेल पर ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी जाँच कर सकती है, तो उस एक्सपर्ट का इयरफोन खो जाता है! 

ऐसे में ही इसी गिरोह ने, वायर-रवीश-कारवाँ, अमित शाह के बेटे पर हमला बोला था और आँकड़ों को अपने हिसाब से पेश किया था। तीन साल तक की प्रॉफ़िट दिखाओ, चौथे साल टर्नओवर पर आ जाओ ताकि बताया जा सके कि देखो-देखो, कितना ज़्यादा टर्नओवर हो गया है! ये पूरा तथाकथित ‘रिसर्च’ इतना वाहियात था कि कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्ट्या इस पर कोई केस ही नहीं बनता। सौ करोड़ का मानहानि का दावा झेलते वायर और गिरोह ने हल्ला किया था कि आपातकाल आ गया है, प्रेस स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है। 

यहाँ पर एक बात सीधी है कि अगर आपने सही जाँच की है, या आपको लगता है कि आपके तथ्य सही हैं तो फिर इसमें प्रेस फ़्रीडम कहाँ से आ जाता है? या तो कहिए कि कोर्ट पर आपको विश्वास है, या फिर पत्रकारिता के नाम पर किसी का चरित्र हनन बंद कर दीजिए। आप लोगों का तो कोई चरित्र है नहीं, जिनका है वो तो दावा ठोकेंगे ही। न्यायालय पर विश्वास नहीं है तो उसी के जजमेंट पर एक समय पर ‘लोकतंत्र की जीत हुई है’ और दूसरे समय ‘लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है’ बोलना बंद कीजिए। 

आजकल विवेक डोभाल, अजीत डोभाल के सुपुत्र, पर कैमेन आइलैंड में एक कम्पनी बनाने को लेकर घेरा जा रहा है। इसे सिर्फ़ इस बात पर इशू बनाया जा रहा है कि कैमेन आइलैंड तो टैक्स हैवन है, तो जो भी होगा इल्लीगल ही होगा। ये तो वही बात हो गई कि एप्पल स्टोर में गए तो आइफोन ही लेने गए होंगे क्योंकि वही सबसे ज़्यादा बिकने वाला प्रोडक्ट है! 

ये कौन-सा लॉजिक है? क्या आपके पास कोई दस्तावेज है? या आप बस प्रतियोगी परीक्षाओं में पास न कर पाने के कारण विवेक के चाचा के फुआ के मामा के लड़के की मौसेरी बहन के पति और विवेक में संबंध दिखाकर कुछ ज़्यादा कहे बिना उसे ‘फ़ैक्ट’ की तरह ऐसे दिखाते हो कि क्योंकि ये जुड़े हुए हैं, तो कुछ इल्लीगल ही कर रहे होंगे! इस विषय पर जल्द ही आपको और भी पढ़ने को मिलेगा। 

फ़िलहाल, विवेक डोभाल ने आपराधिक मानहानि का दावा ठोका है मैग्ज़ीन, उसके संपादक और जयराम रमेश पर जिन्होंने अपने आका राहुल की तरह की ‘सौ करोड़, हज़ार करोड़’ की बेबुनियाद बातें बोलकर खुद को इसका हिस्सा बनाया है। देखना यह है कि ‘देश में आपातकाल आ गया’, ‘सरकार फासीवादी है’, ‘विरोध और असहमति को कुचला जा रहा है’ का कोरस कब से गाया जाएगा।

ये लोग बहुत ही सहजता से यह बात भूल जाते हैं कि विरोध और असहमति विचारों से होती है, तथ्यों से नहीं। विवेक डोभाल ने 2001 से लेकर आज तक के सारे काग़ज़ात कोर्ट के सामने बिना माँगे रख दिए हैं। अब ये देखना रोचक होगा कि गिरोह के गिरे हुए सत्यान्वेषी पत्रकार, संपादक और नेता जी कौन सा कुतर्क लेकर पेश होते हैं। 

1 फरवरी से सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% आरक्षण, जानिए किन्हें मिलेगा लाभ

1 फरवरी से सामान्य वर्ग के ग़रीबों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलने लगेगा। इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है। अब 1 फरवरी के बाद से सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए जो भी रिक्तियाँ निकाली जाएगी, उनमे सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने इस सम्बन्ध में आदेश जारी करते हुए कहा कि सालाना ₹8 लाख से कम आय वाले लोगों को ये सुविधा दी जाएगी। इस आदेश के क्रियान्वयन के लिए अलग से रोस्टर जारी किया जाएगा।

DoPT के संयुक्त सचिव ज्ञानेंद्र देव त्रिपाठी ने शनिवार (जनवरी 19, 2019) देर रात अधिसूचना जारी करते हुए कहा:

“संसद ने संविधान में संशोधन कर ग़रीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र के सभी पदों एवं सेवाओं के लिए 1 फरवरी 2019 से अधिसूचित होने वाली सभी प्रत्यक्ष भर्तियों पर इसे लागू किया जाता है।”

विधेयक पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 13 जनवरी को हस्ताक्षर कर दिए थे। इस से पहले विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया था। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया था। गुजरात इस क़ानून को लागू करने वाला पहला राज्य बना। इसके बाद गुजरात, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश ने अपने-अपने राज्यों में इसे लागू किया।

अभी देश में आरक्षण की सीमा 49.5 प्रतिशत है लेकिन नए विधेयक के लागू होने के बाद ये 59.5 प्रतिशत तक पहुँच गई है। इनमे अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है।

ताज़ा आरक्षण का लाभ लेने के लिए किसी व्यक्ति को इन चार मानकों पर खरा उतरना होगा:

  • उसके परिवार की सालाना आय ₹8 लाख से कम होनी चाहिए।
  • घर का क्षेत्रफल 1000 वर्ग फ़ीट से बड़ा नहीं होना चाहिए।
  • पाँच एकड़ से अधिक की कृषि भूमि नहीं होनी चाहिए।
  • गैर अधिसूचित स्थानीय निकायों में 200 गज से बड़ा घर नहीं होना चाहिए।
  • अधिसूचित नगर निगम में 100 गज से ज्यादा बड़ा प्लॉट नहीं होना चाहिए।

उपर्युक्त मानकों पर खरा उतरने के बाद ही किसी व्यक्ति को इस आरक्षण का लाभ मिलेगा। इसके लिए आय एवं संपत्ति से जुड़ा एक प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा जो तहसीलदार या उस से उच्च पदस्थ अधिकारियों द्वारा प्रमाणित होना चाहिए। आरक्षण का लाभ सभी केंद्रीय मंत्रालयों, लोकसेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, लोकसभा, राज्यसभा, रेलवे, बैंक, केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों और केंद्रीय सचिवालय की सेवाओं में मिलेगा।

अब विश्वविद्यालयों व अन्य शिक्षण संस्थानों में भी सामान्य वर्ग के ग़रीबों को आरक्षण दिया जाएगा। इसे इसी साल लागू किए जाने की उम्मीद है। इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय अलग से अधिसूचना जारी करेगा।

10 प्रतिशत आरक्षण वाले विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई है। एक NGO ने अदालत में इसके ख़िलाफ़ याचिका दायर कर इसे रद्द करने की माँग की है। याचिका में इस विधेयक को ग़ैरक़ानूनी बताया गया है और कहा गया है कि ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है।

नक़ाबपोश एक्सपर्ट के समर्थकों, तुम्हारे कपड़ों का ही नक़ाब उसने पहना है!

कल शाम एक भद्दा मजाक हुआ ‘ईवीएम हैकिंग’ के नाम पर। यूँ तो, ये वाक्यांश इतनी बेहूदगी से, इतनी बार दोहराया जा चुका है कि नक़ाबपोश एक्सपर्ट की पहचान के विशेषणों को सुनने के बाद ही किसी भी चैनल या मीडिया को इसे गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए था, लेकिन खलिहर मीडिया इसे लाइव और लाइव ब्लॉग बनाकर चलाती रही। मैंने भी अपनी वाल पर एक विडियो डाली उस कैरिकेचर के कैरिकेचर की, नक़ाब लगाकर। उस व्यक्ति और इस मुद्दे का हासिल अब इतना ही है कि लोगों को उसे सुनकर आगे बढ़ जाना चाहिए।

लेकिन कुछ लोग अटक जाते हैं, क्योंकि कुछ लोग अटकना चाहते हैं। इसी में से एक व्यक्ति है जो स्वयं को ही ‘निष्पक्ष पत्रकारिता’ का एकमेव मानदंड मानता है। उसने अपने प्राइम टाइम शो में इस पूरी नौटंकी का ज़िक्र करते हुए जो एक लाइन कही वह इस लिहाज़ से सोचने योग्य है कि आख़िर पत्रकारिता के नाम पर स्टूडियो से महागठबंधन की रैली कब तक चलती रहेगी? 

पत्रकार श्रेष्ठ ने बड़े ही क्यूट अंदाज में पूछा कि जब हैकर बता रहा है कि उसे बारह दलों ने हैकिंग के लिए सम्पर्क किया था, तो इस पर जाँच क्यों नहीं हो सकती? बहुत ही सहज भाव से, सीरियस चेहरा लेकर पत्रकार महोदय पूछ देते हैं कि कोई अगर सवाल उठा रहा है तो जाँच में क्या समस्या है? अब यही पत्रकार यह बात भूल जाता है कि चुनाव आयोग ने सारी पार्टियों को न्योता दिया था कि ईवीएम मशीन लो, और हैक करके दिखाओ। ये बात और है कि कुछ पार्टियाँ और पत्रकार उसे घर ले जाने की बात कर रहे थे। 

आख़िर सवाल यह है कि क्यों करा ली जाए जाँच? क्या लगातार हो रहे चुनावों में अलग-अलग पार्टियों की जीत इस सवाल का स्वतः जवाब नहीं दे देती? या फिर हमारे देश के नेता और पार्टियाँ सत्ता में होते हुए, दूसरी पार्टियों को ईवीएम हैक करने दे दे रहे हैं ताकि लोगों का लोकतंत्र में विश्वास बना रहे? 

आख़िर जाँच किस आधार पर हो? एक नक़ाबपोश के कहने पर कि कॉन्ग्रेस को तो 245 सीटें आने वाली थीं, उसे हैकिंग से 201 सीटों का नुकसान हो गया? एक ऐसे व्यक्ति के विडियो कॉन्फ़्रेंस के आधार पर जिसने उन्हीं लोगों का नाम लिया जो मर चुके हैं, क्योंकि वो उसकी बातों का खंडन करने नहीं आ सकते? 

गौरी लंकेश उस व्यक्ति की बातों को छापने वाली थी, और उसकी हत्या कर दी गई! गोपीनाथ मुंडे को पता था, तो उसकी हत्या हो गई! तंज़ील अहमद प्राथमिकी दर्ज़ करने वाले थे, और उनकी मृत्यु हो गई! ऐसी बातें करने वाले व्यक्ति के आरोप पर विश्वास कर लिया जाए जिसकी पहचान में ‘भारतीय मूल के अमेरिकी साइबर एक्सपर्ट ने लंदन में की विडियो चैट के ज़रिए प्रेस कॉन्फ़्रेंस’ लिखा आ रहा था?

मुझे ख़ुद पर ही आश्चर्य हो रहा है कि मैं ही इस इस व्यक्ति को इतना महत्व क्यों दे रहा हूँ? फिर लगता है कि ‘थूक कर भागने वालों का सक्रिय गिरोह’ जब नैरेटिव में दोबारा इस तरह की बातें ला सकता है, तो हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भी एक स्टैंड लें और सारी बातें क्लियर करें कि ईवीएम हैकिंग क्यों संभव नहीं है। 

आप चुनाव आयोग की वेबसाइट से इस पूरी प्रक्रिया को लेकर तय प्रोटोकॉल की हैंडबुक पढ़ सकते हैं। और, आप जान लीजिए कि केन्द्रीय चुनाव आयोग से लेकर, राज्यों को चुनाव आयोगों से होते हुए, ज़िला, प्रखंड, पंचायत और बूथ के स्तर तक, ईवीएम को लेकर बरते जाने वाले एहतियात इतने सारे हैं, और इतने रैंडम हैं, जहाँ हर पार्टी के प्रतिनिधियों/पोलिंग एजेंटों का होना ज़रूरी होता है, कि छेड़-छाड़ की गुंजाइश नगण्य है। 

इससे इनकार नहीं है कि कुछ मशीनें ख़राब होती हैं। चुनाव आयोग स्वयं इस बात को स्वीकारता है कि पाँच प्रतिशत मशीनें ‘तकनीकी कारणों’ से ख़राब हो सकती हैं। इसके लिए इंतज़ाम होते हैं। मध्यप्रदेश के चुनावों में कुल 65,000 बूथ थे, जिनमें 1500 वीवीपैट, 383 कंट्रोल यूनिट और 563 बैलट यूनिट ख़राब निकले। आप प्रतिशत निकाल लीजिए, अगर एक बूथ पर एक सेट ही इस्तेमाल हुआ हो फिर भी।  ऐसा कभी नहीं होता कि आपको ख़बर मिले कि फ़लाँ जगह मशीन में ख़राबी आ गई, तो वो मशीन बदली नहीं जाती। आप वो इसलिए नहीं सुनते क्योंकि मशीन का ख़राब होना, हर वोट किसी एक ही पार्टी को जाना आदि ख़बरें बिकने योग्य हैं, जबकि ‘ख़राब ईवीएम को आधे घंटे में चुनाव आयोग ने बदला’ एक बोरिंग और बेकार हेडलाइन है। 

अपनी पूरी बकवास के दौरान शूजा नाम के इस तथाकथित एक्सपर्ट ने ऐसी हास्यास्पद बातें बोली हैं जो कोई भी बोलने से पहले एक बार ज़रूर सोचेगा। इन सबमें सबसे लम्बी छलाँग कॉन्ग्रेस को 201 सीटों का घाटा थी। उसके बाद उसका यह कहना कि मशीन को लो-फ़्रीक्वेंसी सिग्नल से बाधित किया जा सकता है, टेक जार्गन फेंक कर लोगों को पागल बनाने के अलावा कुछ भी नहीं है। चुनाव आयोग ने दसियों बार इस बात को नकारा है, और लोगों को बुलाकर स्वयं को गलत साबित करने कहा है, कि मशीनों को किसी भी तरह के ब्लूटूथ, वाई-फ़ाई या वैसे ही तरंगों के ज़रिए हैक नहीं किया जा सकता क्योंकि उसमें वायरलेस नेटवर्किंग की कोई सुविधा है ही नहीं।

ईवीएम के दो हिस्से, बैलेट यूनिट और कंट्रोल यूनिट, आपस में तार से जुड़े होते हैं, और बैटरी से उनको ऊर्जा मिलती है। इसमें न तो कोई तार बाहर से जाता है जो कि पोलिंग अफ़सरों की नज़र से दूर हो, न ही बाहर से किसी भी तरह के सिग्नल से प्रभावित किया जा सकता है। इसमें या तो पूरा गाँव, शहर, या राज्य ही मिल जाए, और सारी पार्टियाँ साथ होकर किसी एक को जिताने का तय कर ले, तभी कुछ हो सकता है। उस स्थिति में भी जिसके नाम का बटन दबेगा, वोट उसी को जाएगा, न कि किसी और को। क्योंकि, अगर हर पार्टी के पोलिंग एजेंट नहीं मिले रहेंगे तो सुबह में हर बूथ पर हुई मॉक वोटिंग में ही, मशीनों के ख़राब होने पर पता चल जाएगा। 

शूजा बोलते-बोलते इतना बोल गया कि रिलायंस जियो ने भाजपा को ‘लो-फ़्रीक्वेंसी सिग्नल’ उपलब्ध कराए थे। बेहतरीन बात यह है कि जियो 2015 के दिसंबर में अनाउंस हुई, और अगले साल लॉन्च हुई।

शूजा के सारे दावे बिना किसी प्रूफ़ या एक्सप्लेनेशन के हैं। वो बस आरोप लगाता रहा, नाम गिनाता रहा, और टेक्निकल टर्म्स के नाम पर ‘सायबर एक्सपर्ट’ और ‘लो फ़्रीक्वेंसी’ के अलावा कुछ भी नहीं बोल पाया। ‘लो फ्रीक्वेंसी’ से क्या होता है, कैसे होता है, हैकिंग कैसे की जाती है, ऐसी बातों को बताने की ज़रूरत नहीं समझी गई। 

सत्ता से दूर एक पार्टी सत्ता को हथियाने के सारे हथकंडे इस्तेमाल करना चाहती है। वो पहले राफ़ेल का गीत गाती है, और संसद से लेकर सोशल मीडिया तक अपनी भद पिटवाती है। राज्यों में नई सरकारों के बावजूद वो जानती है कि उन्हीं राज्यों में लोकसभा चुनाव जीतना कितना कठिन होगा। इसलिए ईवीएम हैकिंग की हवा फिर से बाँधी जा रही है। 

लगातार चल रहे विकास कार्यों और राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी की बढ़ती स्वीकार्यता, जिसने ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, राजे तेरी ख़ैर नहीं’ जैसे नारों को जन्म दिया, बताता है कि भाजपा का रथ एक तय गति से आगे बढ़ रहा है, और उसे धक्का देने वाले वो करोड़ों लोग हैं जिन्हें लोकतंत्र के ज़रिए अपने जीवन में बेहतरी की संभावना फिर से दिखने लगी है। 

इसलिए, ये गिरोह सक्रिय होकर नई बातें कर रहा है। इसीलिए हर चुनाव से पहले भाजपा ही नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक पर भ्रष्टाचार के बेबुनियाद आरोप लगा रहा है। इसलिए लोगों को जागरुक होकर, झूठ के नैरेटिव को बेहतर तर्कों से काटना होगा। अभी ईवीएम का राग फिर से फूटा है, कुछ दिन में विवेक और शौर्य डोभाल पर काले धन और टैक्स चोरी के आरोप लगाने वालों से जब न्यायालय में जवाब माँगा जाएगा, तो आपातकाल भी आएगा, और प्रेस फ़्रीडम पर हमला भी होगा।

देखते रहिए, चिल मारिए और इस नंगी बेहयाई का आनंद लीजिए, क्योंकि इस एक्सपर्ट के नक़ाब बुनने के लिए इस गिरोह के लोगों ने पैंट उतारकर दान किया है। 

ISIS के 47 आतंकी पकड़कर लाए गए भारत

आतंकवाद के मुद्दे पर गंभीर मोदी सरकार के कार्यकाल में बीते चार साल में ISIS के 47 आतंकियों को पकड़कर वापस भारत लाया गया है। बता दें कि ये सभी ISIS समर्थक भारत से बाहर आतंकी संगठन में भर्ती हो गए थे। इनका काम मुस्लिम युवाओं को बहलाकर उन्हें ISIS में भर्ती करना था। एक मीडिया रिपोर्ट में इस बात का ख़ुलासा हुआ है। रिपोर्ट की मानें तो ऐसे ज्यादातर ISIS समर्थक मध्य-पूर्व के देशों में रह रहे थे।

ISIS में करते थे भारतीय युवाओं की भर्ती

ISIS के इन 47 समर्थकों में से अधिकतर भारत से बाहर रहकर भारतीय युवाओं के भर्ती एजेंट के रूप में काम करते थे। इनका काम भारतीय युवाओं को बहला-फुसलाकर उन्हें झाँसा देते हुए जिहादी विचारधारा का पाठ पढ़ाकर आतंकी बनाना था।

लंबे समय से भारतीय खुफिया एजेंसियों इनकी तलाश कर रही थी, जिसके बाद इनके ठिकाने का पता लगाकर इन्हें भारत लाया गया। जिन आतंकियों को पकड़कर भारत वापस लाया गया है, ये भारतीय गुमराह युवाओं के संपर्क में थे। सभी आतंकी गुमराह युवाओं को पैसे का लालच देकर उन्हें सीरिया बुलकर उनका ब्रेनवॉश करते थे।

NIA भी कर चुका है ISIS मॉड्यूल का खुलासा

बता दें कि 2014 के बाद से भारत लाए गए ज्यादातर आतंकी गिरफ़्तार हो चुके हैं और आतंक के मुक़दमे का सामना कर रहे हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं, जिन्होंने देश में ISIS के नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए काफी उपयोगी जानकारियाँ दी हैं। NIA ने भी बीते दिनों देश में ISIS के एक मॉड्यूल का खुलासा कर चुका है।

NIA  के आईजी और प्रवक्ता आलोक मित्तल ने बताया था, “पकड़े गए कथित ISIS आतंकी फिदायीन हमले की तैयारी करना चाहते थे। सभी आरोपी 20 से 30 साल की उम्र के थे।” बता दें कि NIA बीते दिनों दिल्ली समेत यूपी में 17 ठिकानों पर छापेमारी की थी, जिसमें पाँच लोग दिल्ली और पाँच लोग यूपी से गिरफ़्तार हुए हैं।

12 पार्टियों ने किया था EVM से छेड़छाड़ के लिए सम्पर्क: नक़ाबपोश ‘टेक एक्सपर्ट’ का दावा

अमरीका के एक स्वघोषित साइबर विशेषज्ञ, सैयद शूजा, जिन्होंने भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को डिज़ाइन करने वाली टीम का हिस्सा होने का दावा किया है, ने लंदन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर दावा किया है कि वह दिखा सकते हैं कि EVM मशीनों को ‘हैक’ किया जा सकता है।

लंदन के इस टेक एक्सपर्ट का दावा है कि EVM मशीनों को हैक किया जा सकता है, यानि EVM से छेड़छाड़ की जा सकती है और 2014 के लोकसभा चुनावों में EVM मशीनों से गड़बड़ी की गई थी। सैयद शूजा का कहना है कि चुनाव आयोग के दावों के बावज़ूद वो EVM मशीनों को हैक कर के दिखा सकता है।

अपने एक लाइव प्रसारण में सैयद शूजा नाम का यह व्यक्ति बता रहा है कि उन्होंने 2009 से लेकर 2014 तक ECIL के लिए काम किया था और उस पर 4 दिन पहले हमला किया गया था। भारतीय मूल के अमरीका टेक एक्सपर्ट सैयद शूजा ईवीएम हैकिंग पर डेमो देने की बात कह रहे हैं। इस व्यक्ति  का कहना है कि इस डेमो के लिए चुनाव आयोग को भी न्यौता दिया गया था, लेकिन उनकी तरफ से कोई भी यहाँ नहीं पहुँचा है। इसके अलावा राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को भी बुलाया गया था, जिनमें से केवल कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल यहाँ पहुँचे हैं।

सैयद शूजा ने दावा किया है कि वह उस टीम का हिस्सा थे, जिसने ईवीएम डिज़ाइन की थी। उनकी डिज़ाइन की गई ईवीएम 2014 के लोकसभा चुनावों में इस्तेमाल हुई थी। सैयद शूजा कौन हैं और उनके दावों में कितनी सच्चाई है इसके बारे में फ़िलहाल कुछ साफ नहीं है, जबकि वो दावा कर रहे हैं कि वो इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ECIL) के पूर्व कर्मचारी भी रह चुके हैं।

उसने कहा कि इस दौरान उसे लगा था कि ईवीएम मशीन के साथ कुछ गड़बड़ हुई है। इस टेक एक्सपर्ट ने अपने बयान में एक बड़ा खुलासा किया है। एक्सपर्ट का कहना है कि जब वो और उनकी टीम बीजेपी के नेताओं से मिलने के लिए हैदराबाद गई तो उनकी टीम पर गोलियाँ चलाई गई, जिसमें शूजा बच गए। शूजा का कहना है कि उन्होंने भाजपा नेताओं के साथ यह सोचकर एक बैठक की कोशिश की थी, कि वे भाजपा को ब्लैकमेल कर सकते हैं।

शूजा ने दावा किया है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में गड़बड़ हुई थी। उन्होंने कहा, यूपी, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ सभी जगह धोखाधड़ी हुई। ईवीएम को कम फ़्रीक्वेंसी सिग्नल से बाधित किया जा सकता है। शूजा ने कहा कि उन्हें और उनकी टीम को ECIL की तरफ से निर्देश दिए गए थे कि पता कीजिए EVM हैक हो सकती है या नहीं और यह पता करने के लिए कहा गया था कि ऐसा कैसे होता है। साथ ही उसने कहा कि बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे 2014 में EVM से छेड़छाड़ के बारे में जानते थे, इसीलिए इसके बाद उन्हें मार दिया गया। साथ ही, उन्होंने बताया कि तंज़ील अहमद नमक NIA अधिकारी इस सन्दर्भ में FIR फ़ाइल करने वाला था और उसकी भी मौत हो गई।

सैयद शूजा का कहना है कि वो एक बड़े नामी पत्रकार से मिला था और उसे इस बारे में पूरी कहानी बताई थी। शूजा ने कहा कि टीवी डिबेट में वो पत्रकार हर रात बहुत चिल्लाता है। शूजा ने दावा किया है कि उसे 12 राजनीतिक पार्टियों की तरफ से ईवीएम हैक करने के बारे में पूछा गया। उसने कहा बीजेपी, कांग्रेस, आप, एसपी और बीएसपी समेत राजनीतिक पार्टियां भी  छेड़छाड़ में शामिल थी।

सैयद शूजा ने दावा किया है कि सीनियर जर्नलिस्ट गौरी लंकेश ने उनकी स्टोरी चलाने के लिए हामी भरी थी, लेकिन उनकी हत्या कर दी गई।

खुद को टेक एक्सपर्ट बता रहे शूजा ने दावा किया है कि साल 2014 के चुनाव में कॉन्ग्रेस ने ईवीएम हैकिंग के चलते 201 सीटें गँवाई थी। सैयद शूजा का कहना है कि भाजपा, सपा, बसपा और AAP के अलावा अन्य लोगों ने भी उनसे यह जानने के लिए संपर्क किया कि क्या ईवीएम को हैक किया जा सकता है?

सैयद शूजा के अनुसार, “एसपी, बीएसपी ने पूछा कि क्या वे ईवीएम से कुछ भी कर सकते हैं? हमने कॉन्ग्रेस से संपर्क किया, हमने सोचा कि हम उनकी मदद कर सकते हैं। AAP दुनिया को यह दिखाना चाहती थी कि EVM हैक की जा सकती है”। उन्होंने कहा कि उन्होंने अमेरिकी में राजनीतिक शरण ली है, और उन्होंने इसके लिए अमरीका को दस्तावेज़ दिए हैं।

ईवीएम एक्सपर्ट होने का दावा करने वाले इस व्यक्ति का कहना है कि अगर बीजेपी के लोगों पर नज़र नहीं रखी जाती तो बीजेपी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी ईवीएम हैक करने की कोशिश में थी, जिसके बाद ये लोग इन राज्यों में भी सरकार बना लेते। शूजा का दावा है कि टेलीकॉम कम्पनी रिलायंस जियो ने EVM हैक करने के लिए बीजेपी को कम फ्रीक्वेंसी के सिग्नल उपलब्ध कराए थे।

इसके बाद चुनाव आयोग ने कहा है कि ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता है। ईवीएम से दूर बैठे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है, क्योंकि इसमें ऐसा कोई भी नेटवर्किंग उपकरण मौजूद नहीं हैं, जिसे ब्लूटूथ या वाई-फाई के ज़रिए एक्सेस किया जा सके। इसलिए ईवीएम से छेड़छाड़ करने के लिए मशीन को खोलने की ज़रूरत पड़ेगी, जिसे चुनाव आयोग की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता। साथ ही, चुनाव आयोग ने इस पर क़ानूनी कार्रवाई करने की बात है।

हालाँकि, इस लाइव प्रसारण के बाद निर्वाचन आयोग के शीर्ष तकनीकी विशेषज्ञ डॉ. रजत मूना ने सैयद शूजा के दावे को खारिज़ कर दिया है। आईआईटी भिलाई के डायरेक्टर और चुनाव आयोग की टेक्निकल एक्सपर्ट कमेटी के मेंबर डॉ. रजत मूना ने हैकर के दावे को बेबुनियाद बताया है। उन्होंने कहा है कि ईवीएम मशीनों से किसी भी तरह से छेड़छाड़ नहीं हो सकती है और ये मशीनें टेंपर-प्रूफ हैं। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनें ऐसी मशीनें हैं, जिनमें किसी भी प्रकार के वायरलेस संचार के माध्यम से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।

यह प्रसारण यूरोप में इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन (IJA) की तरफ से आयोजित किया गया था, जिसमें एक भारतीय मूल के अमरीकी साइबर एक्सपर्ट सैयद शूजा को बुलाया गया था। उन्होंने ईवीएम हैकिंग को लेकर कई बड़े दावे किए हैं। सैयद शूजा कौन हैं और उनके दावों में कितनी सच्चाई है इसके बारे में फ़िलहाल कुछ साफ नहीं है।

केजरीवाल का नया धमाका: BJP ने 30 लाख वोटरों के नाम कटवाए

केजरीवाल की राजनीतिक शुरुआत ही आरोपों और सनसनी फैलाने से हुई थी। उनके पास हमेशा दूसरी पार्टियों के ख़िलाफ़ कई बोरे सबूत हुआ करते थे। कुछ सबूत तो वो हमेशा हाथ में लेकर ही चलते थे। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव क़रीब आता जा रहा है। एक बार फिर से आरोप लगाने का दौर शुरू हो गया है।

ताज़ा मामला यह है कि पिछले दिनों केजरीवाल ने एक और दावा किया कि ‘बीजेपी ने दिल्ली में 30 लाख वोटर्स का नाम वोटर लिस्ट से कटवा दिया।’ इसके लिए उन्होंने कई ट्वीट किए।

ये ट्वीट 4 दिसंबर 2018 का है जिसे अरविंद केजरीवाल की तरफ़ से किया गया है। इस ट्वीट में अरविंद केजरीवाल ने लिखा था कि अग्रवाल समाज के 8 लाख वोटर्स हैं जिसमें बीजेपी ने 4 लाख वोटर्स के नाम कटवा दिए।

केजरीवाल के अनुसार – “अग्रवाल समाज के दिल्ली में टोटल 8 लाख वोट हैं। उनमें से लगभग 4 लाख वोट कटवा दिए? यानि 50% । आज तक ये समाज भाजपा का कट्टर वोटर था। इस बार नोटबंदी और GST की वजह से ये नाराज़ हैं तो भाजपा ने इनके वोट ही कटवा दिए? बेहद शर्मनाक।”

एक दूसरे ट्वीट में अरविंद केजरीवाल ने ये भी दावा किया है कि दिल्ली में 30 लाख वोटर्स का नाम बीजेपी ने कटवा दिया जिसमें पूर्वांचल के 15 लाख वोटर्स, 8 लाख मुस्लिम और 3 लाख दूसरे वोटर्स हैं।

बीजेपी ने आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल और AAP की  सोशल मीडिया टीम प्रेस के माध्यम से बीजेपी पर यह आरोप लगा रही है कि बीजेपी ने 30 लाख वोटर्स का नाम कटवाया है। आम आदमी पार्टी ये साबित करना चाहती है कि बीजेपी ही दिल्ली में वोटर्स के नाम जुड़वाती और कटवाती है।

बीजेपी ने कहा कि ये दावा सीधे-सीधे चुनाव आयोग की स्वायत्तता को चुनौती है क्योंकि वोटर्स का नाम जोड़ने और काटने का काम चुनाव आयोग का है न कि बीजेपी का।

बीजेपी नेता राजीव बब्बर ने पटियाला हाउस कोर्ट में मानहानि का मुक़दमा दायर किया है। इधर भारतीय जनता पार्टी की लीगल टीम के अलावा दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी और बीजेपी विधायक विजेंद्र गुप्ता ने मुख्य चुनाव आयोग से मुलाकात कर, उनसे इस मामले को लेकर आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ शिकायत की।

बता दें कि आम आदमी पार्टी बार-बार वोटर लिस्ट से नाम कटवाने को लेकर बीजेपी को घसीट रही है। बीजेपी नेताओं ने चुनाव आयोग को दी गई शिकायत के साथ अरविंद केजरीवाल के इस मामले में किये गए ट्वीट भी सौंपे हैं।

आज सोमवार (जनवरी 21, 2019) को बीजेपी ने इसी सिलसिले में पटियाला हाउस कोर्ट में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दायर कर दिया है।

आजतक की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा, “आखिर ये आँकड़ा केजरीवाल लाए कहाँ से? जबकि चुनाव आयोग के मुताबिक डेढ़ लाख वोटर्स के नाम लिस्ट में और जोड़े गए हैं, 90 हजार वोटर्स के नाम कटे हैं, जिसमें से किसी की मृत्यु हो गई है या फिर कुछ लोगों ने अपना निवास स्थान बदल लिया है।”

रिपोर्ट के अनुसार, मनोज तिवारी ने यह भी आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी की तरफ से दिल्ली के लोगों को फ़ोन कर ये भ्रम फ़ैलाया जा रहा है कि आपका नाम बीजेपी ने वोटर्स लिस्ट से कटवा दिया था, जिसे अरविंद केजरीवाल ने फिर से जुड़वा दिया है।

बसपा नेता ने खोया आपा, बोले – ‘साधना सिंह का सिर काटने वाले को देंगे ₹50 लाख इनाम’

लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (BSP) के नेता विजय यादव लगातार ऊल-जुलूल बोलते हुए सारी मर्यादाओं को लाँघ रहे हैं। बीते दिनों मायावती के जन्म दिन पर भाजपाइयों को दौड़ा-दौड़ा कर मारने वाले बयान देने वाले पूर्व बसपा विधायक विजय यादव ने इस बार कहा कि बीजेपी विधायक साधना सिंह ने मायावती को अपशब्द कहा था, जो भी साधना का सिर लेकर आएगा उसे ₹50 लाख का इनाम दिया जाएगा।

बता दें कि बीजेपी विधायक साधना सिंह ने बसपा प्रमुख मायावती पर की गई टिप्पणी के बाद माफ़ी माँगी थी, और कहा था कि उनका किसी का अनादर करने का कोई इरादा नहीं था। अगर उनकी बातों से दुख पहुँचा है तो वो खेद व्यक्त करती हैं।

पहले भी उगल चुके हैं बीजेपी के खिलाफ ज़हर

उत्तर प्रदेश में बसपा की अध्यक्ष मायावती के जन्मदिन पर उनकी पार्टी के नेता विजय यादव ने एक बेहद विवादित बयान दिया था। मायावती के जन्म दिन पर जनसभा को संबोधित करते हुए विजय यादव ने कहा था, “घबराने की जरूरत नहीं है, दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगे बीजेपी को, मरी हुई नानी याद दिला देंगे।”

सपा-बसपा के गठबंधन के बाद दोनों पार्टियों के नेताओं में और उनके समर्थकों में एक अलग ही ‘स्तर’ का आत्मविश्वास देखने को मिल रहा है। लगातार हर तरफ ऐसे बयान सुनने में आ रहे हैं कि इस गठबंधन ने बीजेपी पार्टी से जुड़े लोगों की नींदें उड़ा दी हैं।