Thursday, May 23, 2024

विचार

शास्त्री जी के समय कॉन्ग्रेस नेताओं ने की थी 370 हटाने की वकालत, अपना ही इतिहास भूली पार्टी

'ज़मीन के भाव बढ़ जाएँगे तो स्थानीय लोगों को घाटा होगा'- नेहरू ने क्यों कहा था ऐसा? पढ़िए तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा का बयान। कौन थे अनुच्छेद 370 हटाने वाला बिल लेकर आने वाले प्रकाश शास्त्री जो बाद में एक ट्रेन दुर्घटना में मारे गए?

जब कश्मीरी बैंड की लड़कियों को रेप की धमकी मिलती रही, CM अब्दुल्ला पलट कर कठमुल्लों की गोद में बैठ गए

कश्मीर में जब तक 370 था तबतक लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु के बाद ही हो, ऐसा कोई कानून नहीं चलता था। बाल विवाह भी होता था इसलिए करीब दस साल पहले दसवीं में पढ़ने वाली ये बच्चियाँ आज कहाँ होंगी ये तो पता नहीं।

सबरीमाला मंदिर में चोरी-छिपे घुसने वाली महिला की बेटी का जबरन धर्म परिवर्तन, पति ने ही…

जबरन सबरीमाला मंदिर में घुसने की असफल कोशिश करने वाली बिन्दु थनकम कल्याणी ने आरोप लगाया कि उसके पति ने अपनी ही बेटी को अगवा करके उसका धर्म परिवर्तन करा डाला। इसके बाद बेटी का स्कूल भी बदलवा कर मुस्लिम स्कूल में भर्ती करवा दिया।

रवीश जी, पत्रकार तो आप घटिया बन गए हैं, इंसानियत तो बचा लीजिए!

अनुभवी आदमी शब्दों को अपने हिसाब से लिख सकता है कि वो एक स्तर पर श्रद्धांजलि लगे, एक स्तर पर राजनैतिक समझ की परिचायक, और गहरे जाने पर वैयक्तिक घृणा से सना हुआ दस्तावेज। रवीश अनुभवी हैं, इसमें दोराय नहीं।

कश्मीर पर भूलों का करना था पिंडदान, कॉन्ग्रेस ने खुद का कर लिया

आम धारणा यही है कि जम्मू-कश्मीर पूरी तरह भारत में घुलमिल नहीं पाया तो इसकी वजह नेहरू की नीतियॉं थी। मोदी सरकार ने कॉन्ग्रेस को इससे पीछा छुड़ाने का मौका दिया। पर अफसोस, कॉन्ग्रेस न विपक्ष का धर्म निबाह पाई न राष्ट्रधर्म। उलटे खुद के वजूद के लिए नया संकट खड़ा कर लिया।

भाजपा विधायक जी, शर्म नहीं आई ‘गोरी लड़कियों’ के बारे में बेहूदगी से बोलते हुए

हम आजम खान जैसे नेताओं के सेक्सिस्ट कमेंट पर हैरान नहीं होते क्योंकि जिस पार्टी के वो नेता हैं उसके संस्थापक ही रेप जैसी घटनाओं को जस्टिफाई करते हैं, लेकिन भाजपा से जुड़े लोग भी जब ऐसी ही भाषा में बात करने लगे और वह भी 370 के संदर्भ में तो यह केवल महिलाओं को लेकर उनकी ओछी सोच ही नहीं है, बल्कि उनको भी नीचा दिखाता है जिन्होंने एक विधान-एक निशान के लिए अपनी जिंदगी खपा दी।

वो दिग्विजय सिंह है, वो कुछ भी कह सकता है

कॉन्ग्रेस को भय है कि समर्थन करने में मुस्लिम वोट बैंक से हाथ धोना पड़ सकता है और विरोध करने में हाल ही में अपनाया गया ताजातरीन हिंदुत्व खतरे में पड़ सकता है इसलिए बेहतर है कि इस सब चर्चा से ऊपर उठकर नेहरू जी के नाम का कलमा पढ़ा जाए।

वामपंथी फट्टू तो होते थे, लेकिन JNU वालों ने कल रात नई मिसाल पेश की है

JNU में तो दो बार से सारे वामपंथियों के नितम्ब चिपक कर एक होने के बाद ही चुनाव जीते जा रहे हैं, इस साल कितने चिपकेंगे ये देखने की बात है। घर में कॉफी पीने वाला लेनिनवंशी पब्लिक में लाल चाय पीने लगता है और छत पर मार्लबोरो फूँकता माओनंदन कॉलेज के स्टाफ क्लब में बीड़ी पीता दिखता है।

रवीश जी, इतने दुबले क्यों हो रहे हैं कश्मीर को लेकर?

किताबें तो मैंने भी बहुत पढ़ी हैं, और पेज नंबर मुझे भी याद हैं, लेकिन मैं अभी तक इतना धूर्त नहीं बन पाया कि उस ज्ञान का इस्तेमाल अपनी फर्जी विचारधारा और मालिकों के प्रोपेगेंडा की रोटी सेंकने में कर सकूँ। वो तरीके रवीश को ही मुबारक हों।

इंदिरा के दुलारे जगमोहन कश्मीर के गुनहगार तो नेहरू-राजीव मसीहा कैसे?

जगमोहन को कसूरवार बताना कॉन्ग्रेस के लिए जरूरी भी है, क्योंकि इससे नेहरू से लेकर राजीव तक के बेतुके फैसलों पर पर्दा डल जाता है। इस कोशिश में बड़ी सफाई से यह बात छिपाई जाती है कि कुछ परिवारों की गलती से बदतर हुए हालात पर काबू पाने के लिए जगमोहन दूसरी बार श्रीनगर भेजे गए थे।

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