राजनैतिक मुद्दे
हर सियासी मुद्दे का वह पहलू जिस पर ख़बरों से आगे चर्चा है ज़रूरी
अनशन, आंदोलन, सत्याग्रह के ख़िलाफ़ गाँधी जी का मौन व्रत!
गर आज गाँधी जी ज़िन्दा होते तो एक अनशन और करते... कि देश में कोई और अनशन न करे।
Hello… चंद्रबाबू नायडू, मोदी की बजाय स्वयं से पूछें- Who Are You?
अगर बीवी-बच्चों का नाम लेकर ही किसी की पहचान साबित होती है तो 10 बच्चे और 5 बीवियों वाले पकिस्तान के मौलवी साहब भी नायडू से पूछ सकते हैं- 'Who Are You?
प्रियंका गाँधी रोड-शो के राजनीतिक मायने: राहुल के लिए ख़तरा, सिंधिया बनेंगे बलि का बकरा
कार्यकर्ताओं ने प्रियंका के जयकारे लगाने से लेकर उन्हें 'बदलाव की आँधी' तक करार दिया लेकिन राहुल गाँधी को लेकर ऐसे कोई ख़ास नारे नहीं लगे। पोस्टरों में भी प्रियंका गाँधी को राहुल से ज्यादा तवज्जोह दी गई।
प्रियंका गाँधी के आने से सोनिया को हुआ ‘जबरदस्त’ घाटा: पोस्टर-गणित से समझें राजनीति का खेल
कॉन्ग्रेस पोस्टर से सोनिया की तस्वीर का अचानक छोटा और फिर गुम हो जाना एक बड़े राजनीतिक बदलाव का संकेत देता है। संकेत यह कि सोनिया का राजनीतिक कद पार्टी में और आम लोगों के बीच कम होता जा रहा है।
‘परिवारवाद’ की छवि को मिटाने की जुगत में कॉन्ग्रेस
प्रियंका गाँधी की सीट का आवंटन इस ओर भी इशारा करता है कि कहीं न कहीं कॉन्ग्रेस को यह एहसास है कि वो वंशवादी परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए है, जिसे दुनिया की नज़र से धूमिल करना होगा।
राहुल गाँधी के नित्य उड़ते ‘राफ़ेल’ और देश की धूमिल होती छवि
स्पष्ट है कि राहुल गाँधी को देश की सामरिक ताक़त बढ़ने से कोई मतलब नहीं है। वो केवल ढेला फेंक कर भागने वाली टुच्ची राजनीति करने में मशगूल हैं। और इस कृत्य में उन्होंने एन राम जैसे खलिहर पत्रकारों को भी मिला लिया है।
दलाल, हरामज़ादा, पूतना, दरिंदा, चोर, भड़वा आदि आराम से क्यों बोलने लगे हैं हमारे नेता?
एक ख़बर आई कि गिरिराज सिंह ने ममता बनर्जी को 'पूतना' और 'किम जोंग उन' कहा है। भाजपा समर्थकों और ममता विरोधियों को ऐसे बयान सुनकर बहुत आनंद मिलने लगता है, लेकिन ऐसे बयानों को बढ़ावा देने से बचना चाहिए।
अगर मोदी लोकतंत्र को बर्बाद कर रहा है, तो हमें बर्बाद लोकतंत्र ही चाहिए
दामाद जी को प्रवर्तन निदेशालय के दफ़्तर में हाज़िरी लगानी पड़ रही है। चिटफंड घोटालों की आँच ममता तक जा पहुँची है। फ़र्जी कंपनियों की पोल खुल रही है। इसीलिए, लोकतंत्र ख़तरे में है।
बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया… और IAF है दुधारू गैया
कहानी इसलिए क्योंकि कभी स्क्वाड्रन लीडर समीर अबरोल मर जाता है, तो कभी स्क्वाड्रन लीडर सिद्धार्थ नेगी को भुला दिया जाएगा। उदाहरण इसलिए क्योंकि आपको मतलब हो या न हो, पार्टी आलाकमानों के बड्डे याद कराना नहीं भूलते नेता'जी' लोग।
CBI की गिरती साख: कब तक होती रहेगी केंद्रीय एजेंसियों की फ़ज़ीहत
आज आवश्यकता है एक ऐसी एजेंसी की जो आंतरिक सुरक्षा, भ्रष्टाचार की जाँच, इंटेलिजेंस एकत्र करना और आतंकवाद इन सभी ज़िम्मेदारियों को पूर्ण स्वायत्ता के साथ संभाल सके।