Friday, April 19, 2024
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निर्मला सीतारमण को अमेरिका में बैन कराने के लिए विज्ञापन: कॉन्ग्रेसी सरकार की डील और भारत को ₹9900 करोड़ के नुकसान में भगोड़ा कनेक्शन

इसमें दावा किया गया है कि मोदी सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं को हथियार बना कर कानून के राज को बर्बाद किया है और राजनीतिक व औद्योगिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ इसका इस्तेमाल कर के भारत को निवेशकों के लिए असुरक्षित बनाया है।

भारतीय मूल का अमेरिकी नागरिक रामचंद्रन विश्वनाथन भारत सरकार से इतना नाराज़ है कि उसने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को अमेरिका में बैन कराने की माँग करते हुए एक पूरे पन्ने का विज्ञापन वहाँ की अख़बार में छपवा दिया। साथ ही उसने 10 अन्य को भी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन प्रशासन से बैन करवाने की सिफारिश की है। ED (प्रवर्तन निदेशालय) रामचंद्रन विश्वनाथन को पहले ही आर्थिक अपराधी और भगोड़ा घोषित कर चुका है।

उसने इस विज्ञापन में जिन लोगों को बैन कराने की माँग की है, उनमें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एन वेंकटरमन, सुप्रीम कोर्ट के जज हेमंत गुप्ता व वी रामसुब्रमन्यन के अलावा ED के डायरेक्टर, अस्सिस्टेंट डायरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर भी शामिल हैं। अब इस आर्थिक अपराधी ने2016 के ‘Global Magnitsky Human Rights Accountability’ कानून को आधार बनाते हुए ये माँग की है।

इस कानून के तहत अमेरिका की सरकार को अधिकार है कि वो किसी विदेशी अधिकारी या नेता की संपत्ति को जब्त कर सके, उस पर प्रतिबंध लगा सके और यहाँ तक कि देश में उसके घुसने पर भी रोक लगा सके। मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाते हुए ऐसा किया जा सकता है। इसी साल अगस्त में ‘Frontiers of Freedom’ नामक संस्था ने रामचंद्रन विश्वनाथन की तरफ से याचिका दायर कर के ऐसी माँग की थी और एक अख़बार में फुल पेज एड भी चलाया।

निर्मला सीतारमण व इन 10 लोगों को संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘Magnitsky 11’ करार दिया था। इसमें दावा किया गया है कि मोदी सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं को हथियार बना कर कानून के राज को बर्बाद किया है और राजनीतिक व औद्योगिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ इसका इस्तेमाल कर के भारत को निवेशकों के लिए असुरक्षित बनाया है। इसमें डराया गया है कि भारत निवेशकों के लिए खतरनाक हो चुका है और अगर आप अगले निवेशक हैं तो अगला नंबर आपका भी हो सकता है।

अमेरिका के अख़बार में छपवाया गया विज्ञापन

इन सबके बीच में UPA काल के एक करार की चर्चा करनी ज़रूरी है। वो 2004 का समय था, जब रामचंद्रन विश्वनाथन ने सैटेलाइट मल्टीमीडिया सेवाएँ देने के लिए बेंगलुरु में ‘Devas Multimedia Private Limited’ नामक एक कंपनी की स्थापना की। इसके बाप इस कंपनी ने ISRO के कमर्शियल और मार्केटिंग विभाग ‘Antrix Corporation’ के साथ एक करार पर हस्ताक्षर किए। Antrix को इसके तहत 2 सैटेलाइट बनाने थे।

जहाँ Antrix को GSAT 6 and 6A सैटेलाइट्स बनाने थे, वहीं Devas को इन कम्युनिकेशन सैटेलाइट्स के S-band ट्रांसपोंडर बनवाने थे। इससे भारतीय मोबाइल सब्सक्राइबर्स को मल्टीमीडिया सेवाएँ मिलतीं। इस डील को जर्मनी की ‘Deutsche Telekom’ के अलावा मारीशस की 3 अन्य कंपनियों ने भी समर्थन दिया था। Antrix-Devas की इस डील में भ्रष्टाचार और अनियमितताएँ सामने आई थीं। Devas पर इनसाइडर सूचनाओं को बेचने के आरोप लगे और 2G घोटाले ने आग में घी का काम किया।

2011 में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने इस करार को रद्द कर दिया। जुलाई 2010 में ही ये निर्णय लिया जा चुका था, लेकिन अगले साल फरवरी में इसकी घोषणा हुई। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मारीशस और जर्मनी की कंपनियों ने भारत के खिलाफ शिकायत की। ये ‘Bilateral Investment Treaty (BIT)’ के तहत किया गया, जिसके अंतर्गत निवेशकों के हितों को सुरक्षित रखा जाता है। संस्था ने भारत के खिलाफ फैसला दिया।

2020 में भारत को जर्मन निवेशकों को 16 करोड़ डॉलर (1318.69 करोड़ रुपए) और मारीशस के निवेशकों को 13.2 करोड़ डॉलर (1087.92 करोड़ रुपए) देने के आदेश दिए गए। इसके अलावा ‘International Chamber of Commerce (ICC)’ ने Antrix को कहा कि वो Devas के 562.5 मिलियन डॉलर (4636.03 करोड़ रुपए) के नुकसान की भरपाई करे। यानी, भारत को कुल 1.2 बिलियन डॉलर (9890.20 करोड़ रुपए) का घाटा लगा।

इसके बाद भले ही भारत में यूपीए सरकार का दौर ख़त्म हो गया हो, लेकिन रामचंद्रन विश्वनाथन द्वारा सह-स्थापित ‘Devas Multimedia Private Limited’ ने बदला लेने के इरादे से भारत विरोधी रवैया जारी रखा। कनाडा, फ़्रांस और अमेरिका में Antrix और भारत सरकार की संपत्तियों को जब्त कराने के लिए प्रयास किए जाने लगे। कई देशों में संपत्ति जब्त भी की गई। रामचंद्रन की कंपनी को कंगाल घोषित करते हुए भंग कर दिया गया, जिससे वो और बहदाक उठा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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