Monday, September 30, 2024
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डिप्रेशन में नहीं थे मेरे पति, उन्हें जल्द ढूँढ कर लाएँ: बंगाल से लापता चुनाव अधिकारी की पत्नी ने लगाई गुहार

पश्चिम बंगाल के नादिया ज़िले के रानाघाट से लापता चुनाव अधिकारी अर्नब रॉय की पत्नी अनिशा जैन ने कहा कि उनके पति अवसादग्रसित नहीं थे। सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया गया है, जिसमें उन्होंने इस बात को पूरी तरह से नकार दिया कि उनके पति डिप्रेशन में थे। उन्होंने अपने पति को ढूँढने और न्याय की अपील भी की।

ख़बर के अनुसार, नदिया के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि 30 वर्षीय अर्णब रॉय नामक अधिकारी चुनाव ड्यूटी के लिए अपने सरकारी आवास से बृहस्पतिवार (18 अप्रैल) की सुबह बिप्रदास चौधरी पॉलिटेक्निक कॉलेज के लिए निकले लेकिन दोपहर बाद से उन्हें नहीं देखा गया। अधिकारी ने बताया कि अर्णब का वाहन कॉलेज के बाहर पार्क किया हुआ पाया गया।

जिला पुलिस ने बताया कि उनके दोनों मोबाइल फोन बंद थे और उनकी अंतिम लोकेशन नदिया ज़िले में शांतिपुर के पास बताई गई। एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया कि शांतिपुर के बाद उनकी लोकेशन का पता नहीं चल पाया क्योंकि वहाँ से उनका फोन बंद आ रहा है।

जिला मजिस्ट्रेट के साथ भी हुआ था कुछ दिन पहले झगड़ा

प्रारंभिक जाँच में यह पता चला था कि रॉय का नदिया के ज़िला मजिस्ट्रेट सुमित गुप्ता के साथ कुछ दिनों पहले कथित रूप से झगड़ा हुआ था। गुप्ता और रॉय का झगड़ा निर्वाचन के सिलसिले में ड्यूटी को लेकर हुआ था। इस बीच आयोग ने रॉय की जगह नए अधिकारी को तैनात कर दिया। उल्लेखनीय है कि राणाघाट संसदीय क्षेत्र को तृणमूल कॉन्ग्रेस का गढ़ माना जाता है और वहाँ चौथे चरण में 29 अप्रैल को मतदान होगा।

गुप्ता ने झगड़े की बात से किया मना

गुप्ता से जब इस संबंध में संपर्क किया गया तो उन्होंने रॉय के साथ किसी प्रकार का झगड़ा होने से इनकार किया। गुप्ता ने पीटीआई को बताया था, “जिस किसी ने आपको यह सूचना दी है, उसने झूठी जानकारी दी है। हमारे बीच कुछ नहीं हुआ था। हमने उनकी तलाश के लिए पहल की है।” विफल खोज अभियान के बाद जिला प्रशासन द्वारा कृष्णानगर कोतवाली में उनके लापता होने की शिकायत दर्ज कराई गई थी।

पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा की कई ख़बरें

गुरुवार को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के शुरू होते ही, पश्चिम बंगाल से बड़े पैमाने पर लगातार राजनीतिक हिंसा और चुनावी हिंसा की ख़बरें सामने आईं। एक ख़बर यह भी आई थी कि राज्य के रायगंज निर्वाचन क्षेत्र में एक मुस्लिम बहुल गाँव के हिन्दू निवासियों को मतदान करने से रोक दिया गया था।

एक अन्य मामले में, दार्जिलिंग निर्वाचन क्षेत्र के चोपरा में व्यापक हिंसा देखी गई थी, जहाँ उपद्रवियों ने मतदाताओं को वोट डालने से रोकने की कोशिश की थी। एक अन्य घटना में, 22 वर्षीय भाजपा कार्यकर्ता शिशुपाल शाहिश की हत्या कर दी गई थी और उनके शव को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक पेड़ पर लटका दिया गया था।

अगर एक हत्या करने वाला गोडसे आतंकी है तो ‘अल्लाहु अकबर’ बोलकर लाशें बिछाने वाले कौन?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगस्त 2015 में दुबई के दौरे पर थे। जैसा कि वो अधिकतर विदेशी दौरों में करते हैं, इस समृद्ध राष्ट्र के दौरे पर भी प्रधानमंत्री ने वहाँ रह रहे भारतीय समुदाय को सम्बोधित किया। इस दौरान उन्होंने एक बहुत ही गंभीर मसला उठाया, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा शायद ही पहले उठाया गया हो। इस रैली में प्रधानमंत्री ने वैश्विक समुदाय द्वारा अभी तक आतंकवाद को परिभाषित नहीं किए जाने को लेकर नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र में लम्बे समय से ऐसा प्रस्ताव अटका पड़ा है लेकिन इसपर आम सहमति नहीं बन पा रही है। प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र को इसीलिए आड़े हाथों लिया था क्योंकि संयुक्त राष्ट्र अभी तक यह निर्णय नहीं कर पाया है कि आतंकवाद क्या है। इसके अलावा उन्होंने पूछा था कि आतंकवाद का समर्थक कौन सा देश है और किस देश को आतंकवाद से पीड़ित माना जाए?

अब फ़िल्म निर्देशक विशाल भारद्वाज ने आतंकवाद को लेकर नई परिभाषा गढ़ी है। उन्होंने आज़ाद भारत के पहले आतंकवादी के नाम की भी घोषण कर दी। इसमें कोई शक़ नहीं कि विशाल एक अच्छे फ़िल्म निर्माता एवं निर्देशक हैं और शेक्सपियर के नाटकों का फ़िल्मी चित्रण करने में उन्हें महारत हासिल है। लेकिन, इसका अर्थ ये कतई नहीं है कि आतंकवाद को लेकर वो ऐसी परिभाषा बना दें, जिससे हर अपराधी ‘आतंकी’ ही कहलाए। विशाल भारद्वाज ने अपनी ट्वीट में लिखा कि नाथूराम गोडसे आज़ाद भारत का प्रथम आतंकवादी था। इसके लिए स्पष्टीकरण देते हुए उन्होंने बहुत अजीब सा कारण दिया। भारद्वाज के अनुसार अगर वैचारिक मतभेदों के आधार पर कोई किसी की हत्या करता है तो वो उन सभी को आतंकित करता है जो उससे सहमत नहीं हैं।

विशाल भारद्वाज की ये परिभाषा उसी प्रोपेगंडा और वामपंथी मानसिकता का द्योतक है, जो उनकी फ़िल्म हैदर में देखने को मिला था। विशाल की परिभाषा के अनुसार, एक हत्या करने वाला नाथूराम गोडसे आतंकवादी था। भारत में अधिकतर हत्याएँ मतभेदों के कारण ही होती हैं। कभी ज़मीन को लेकर मतभेद तो कभी आपराधिक दुनिया में मतभेद, कभी राजनीतिक मतभेद तो कभी कोई अन्य विवाद। अगर आतंकी गतिविधियों को हटा भी दें तो हर साल विश्व में लाखों लोगों की हत्या हो जाती है। क्या आतंकवाद इतना नॉर्मल और सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग हर हत्या जैसे अपराध में किया जाना चाहिए? क्या इस्लामिक आतंकवाद, जो हर साल दुनिया में सबसे ज्यादा आतंकी वारदातों और मौतों की वजह बनता है, उसके खतरे को कमतर आंकते हुए विशाल भारद्वाज ऐसा कह रहे हैं?

भारत की सुप्रीम कोर्ट ने आतंकवाद की जिस परिभाषा को स्वीकार किया है, उसके हिसाब से गोडसे उसमें फिट नहीं बैठते। भारत में आतंकवाद की परिभाषा के अनुसार, बार-बार ऐसी सुनियोजित ढंग से की जाने वाली हिंसक कार्रवाई जिसमें किसी व्यक्ति, समुदाय या सत्ता को आतंकित करने का प्रयास किया जाता रहा हो, आतंकवाद के अंतर्गत आती है। इसमें यह भी कहा आगया है कि इस कृत्य में घातक हथियारों, डाइनामाइट, बम, रासायनिक गैस इत्यादि का इस्तेमाल किया गया हो। नाथूराम गोडसे इस परिभाषा में फिट नहीं बैठते। गोडसे को एक व्यक्ति विशेष से नाराज़गी थी और उन्होंने गाँधी की हत्या कर दी। अगर गोडसे ने गाँधीवादी विचारधारा के लोगों को बार-बार निशाना बनाया होता तो शायद उन्हें आतंकी कहा जा सकता था।

नाथूराम गोडसे के ख़िलाफ़ महात्मा गाँधी की हत्या का केस चला था। उनकी एफआईआर कॉपी में कहीं भी आतंकवाद का ज़िक्र नहीं था। कहा जाता है कि गोडसे के बयान इतने ज्यादा विश्वसनीय और असरदार होते थे कि भारत सरकार को इसपर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा। गोडसे गाँधी का हत्यारा था लेकिन आतंकी नहीं। अगर हत्या की सैंकड़ों वारदातों को आतंकवाद के चश्मे से देखा जाने लगे तो आतंकवाद और हत्या की वारदातों में कोई अंतर ही नहीं रह जाएगा। क्या विशाल भारद्वाज इस्लामिक मज़हबी उन्माद द्वारा प्रेरित आतंकवाद को ढँकने के लिए ऐसा कह रहे हैं? उनकी इस मानसिकता को हैदर फ़िल्म से समझा जा सकता है। भारद्वाज की परिभाषा को मानें तो पारिवारिक मतभेदों में भाई ही भाई की हत्या कर देता है तो वो भी आतंकवाद है।

विशाल भारद्वाज पहले भी कह चुके हैं कि अगर वो वामपंथी नहीं हैं तो वो कलाकार भी नहीं हो सकते। हैदर में भारतीय सेना द्वारा कश्मीरी जनता पर किए जा रहे कथित ‘अत्याचार’ को दिखाने की कोशिश की गई थी। अरुंधति रॉय के मानवाधिकार को लेकर की जाने वाली टिप्पणियों से प्रेरित नज़र आने वाली फ़िल्म हैदर में दिखाया गया था कि कैसे भारतीय सेना निर्दोष कश्मीरियों को पकड़ कर ले जाती है और उन्हें टॉर्चर करती है। विशाल भारद्वाज को ख़ूब पता है कि भारत इस्लामिक और वामपंथी आतंक से ग्रसित है और उनके द्वारा गोडसे को आतंकी साबित करने का प्रयास करना पिछली कॉन्ग्रेस सरकार के ‘हिन्दू आतंकवाद’ वाले नैरेटिव का ही एक छोटा सा हिस्सा है।

गोडसे ने ‘जय श्री राम’ बोलकर गाँधी की हत्या नहीं की। लेकिन, आज विश्व भर में ‘अल्लाहु अकबर’ चिलाते हुए आतंकी वारदातों को अंजाम दिया जाता है। अगर गाय से घृणा करनेवाला एक मुस्लिम युवक पुलवामा में हमारे 40 जवानों की जान ले लेता है तो क्यों न इसे मज़हबी आतंकवाद माना जाए? अगर हाफिज सईद अल्लाह की मर्ज़ी और हुक्म बताकर कश्मीर में आतंक फैलाता है तो क्यों न इसे इस्लामिक आतंकवाद माना जाए? असल में इस्लामिक आतंकवाद और आतंकवाद अब पर्यायवाची हो गए हैं, जिस कारण अलग-अलग नैरेटिव बनाकर इसे ढँकने की कोशिश की जा रही है। इस कोशिश में वामपंथी शामिल हैं क्योंकि छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड और महाराष्ट्र साहित्त अन्य राज्यों में दशकों तक चले नक्सली आतंकवाद को ढँका जा सके।

इस कोशिश में कॉन्ग्रेस शामिल है क्योंकि उसे जबरन हिन्दुओं को आतंकवादी बताकर यह दिखाना है कि केवल मुस्लिम ही आतंकी नहीं होते। इस कोशिश में पाकिस्तान भी शामिल है जहाँ के नेता कश्मीर में चल रही ज़ंग को क्रांतिकारी बनाम सत्ता के रूप में देखते हैं। वो तो अच्छा हुआ कि विशाल भारद्वाज ने आज़ादी के पहले की बात नहीं की वरना कहीं वो भगत सिंह का भी नाम ले सकते थे। आज दुनिया जब मज़हबी उन्माद और मज़हब के नाम पर लोकतान्त्रिक सत्ताओं के ख़िलाफ़ आतंकी वारदातों को झेल रही है, ऐसे में हत्या जैसे अपराधों को आतंकवाद की श्रेणी में रखकर हिन्दुओं को आतंकी साबित करने का यह प्रयास किया जा रहा है।

आतंकवाद को सामान्य बनाने की कोशिश हो रही है। कल यही लोग अपहरण, चोरी-चकारी और डकैती जैसी वारदातों को भी आतंकवाद कहने लगेंगे सिर्फ इसीलिए ताकि ‘इंशाअल्लाह’ बोलकर धमकाने और बम विस्फोट करनेवालों का ज़िक्र कम हो। लोगों का ध्यान उनसे भटक जाए। विशाल भारद्वाज को अकादमिक व प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा समय-समय पर स्पष्ट की गई आतंकवाद की परिभाषाओं को पढ़ना चाहिए। अगर उन्होंने गोडसे को आतंकी कहा ही है कि उन्हें इस बात को साबित करने के लिए स्पष्ट तर्क देने चाहिए। उन्हें शायद आतंकित करना और आतंकवादी घटना के बीच का फ़र्क़ समझ नहीं आ रहा। जब एक पति अपनी पत्नी को रोज़ पीटता है और उसे आतंकित करता है तो इसका अर्थ वो आतंकवादी नहीं हो जाता। वह अपराधी है, आतंकी नहीं।

भारद्वाज के अनुसार, मतभेदों के आधार पर एक व्यक्ति की हत्या से विपरीत विचारधारा वाले सभी लोग आतंकित होते हैं और अतः ये आतंकी वारदात है। लेकिन, गोडसे ने भी ट्रायल के दौरान कहा था कि ये कोई षड्यंत्र नहीं था। आतंकी वारदातें सुनियोजित ढंग से अंजाम दी जाती है, क्षणिक मज़हबी आवेश में अंजाम दी जा सकती है, इस्लामिक ब्रेनवाश से अंजाम दी जा सकती है, लोकतान्त्रिक सत्ता के ख़िलाफ़ लगातार हिंसक गतिविधियाँ इसका रूप हो सकती है। आजकल दुनियाभर में हो रही आतंकवादी वारदातों को देखते हुए इतना तो कहा ही जा सकता है कि गोडसे द्वारा एक व्यक्ति विशेष की हत्या और जैश, लश्कर, आईएस, जमात द्वारा लगातार सैनिकों, नागरिकों की हत्या और सत्ता प्रतिष्ठानों पर हमले में कितना अंतर है।

श्रीलंका में 8वाँ धमाका: 187+ मौतें, 500 से ज्यादा जख्मी – हाशीम, मोहम्मद थे आत्मघाती हमलावरों में शामिल

ईस्टर संडे की सुबह ने श्रीलंका को हिला कर रख दिया। 21 अप्रैल 2019 को श्रीलंका में इस्लामी आतंक का कहर बरपा है। नज़ारा बेहद वीभत्स और दिल दहला देने वाला है। अब तक लगातार आठ बम धमाके हो चुके हैं। और कितने बाकी हैं, पता नहीं। साल के अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले में मौतों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। अभी तक की जानकारी के अनुसार जाहरान हाशीम और अबु मोहम्मद नामक आत्मघाती हमलावरों की पुष्टि हो चुकी है। पुलिस का कहना है कि ताजा धमाके में दो लोग मारे गए हैं। अब तक इन धमाकों में 187 से ज्यादा मौतें हुई हैं। और करीब 500 ज्यादा लोग बुरी तरह जख्मी हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ये हमले श्रीलंका के 3 अलग-अलग चर्च और 4 होटल में हुए हैं। इस बीच हमले को लेकर एक हैरान कर देने वाली जानकारी सामने आ रही है। धमाके से 10 दिन पहले यानी 11 अप्रैल को श्रीलंका के पुलिस प्रमुख पुजुथ जयसुंदर ने देश के प्रमुख चर्चों पर हमले को लेकर एक अलर्ट जारी किया था। अलर्ट में कहा गया था कि आत्मघाती हमलावरों द्वारा प्रमुख चर्चों पर हमला करने की साजिश रची गई है। पुलिस प्रमुख ने ये अलर्ट शीर्ष अधिकारियों को भेजा था।

बता दें कि जिस NTJ का नाम पुलिस प्रमुख ने अपने अलर्ट में लिया है वो एक वह कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन है। पिछले साल भी यह संगठन सुर्खियों में तब आया था जब वहाँ के कुछ बौद्ध धर्मस्थलों पर आतंकी हमला किया गया था।

अलर्ट में कहा गया था कि एक विदेशी खुफिया एजेंसी ने रिपोर्ट दी है कि NTJ (नेशनल तौहीत जमात) आत्मघाती हमलों को अंजाम दे सकता है। इस आतंकी संगठन के निशाने पर प्रमुख चर्चों के साथ-साथ कोलंबो में भारतीय उच्चायोग भी है।

श्रीलंका पुलिस के मुताबिक कोलंबो में सेंट एंथनी चर्च, नौगोंबो में सेंट सेबेस्टियन चर्च और बट्टिकलोबा में एक चर्च को निशाना बनाया गया। इसके अलावा होटल शांग्री-ला, सिनामोन ग्रैंड, किंग्सबरी समेत एक और होटल में भी धमाका हुआ है। सीरियल धमाके से श्रीलंका में हड़कंप मच गया है। पूरे देश में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। एयरपोर्ट पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। शाम 6 बजे के बाद से कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया जा चुका है। सोशल मीडिया पर फिलहाल पाबंदी लगा दी गई है। लिट्टे संकट से उबरने के बाद श्रीलंका में पहली बार इतने बड़े आतंकी हमले हुए हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने धमाकों पर शोक जताते हुए लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है।

पीएम मोदी और विदेश मंत्री ने की आतंकी हमले की निंदा

श्रीलंका में चर्च और होटल पर हुए हमले की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निंदा की है। पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा कि श्रीलंका में हुए भयानक विस्फोटों की कड़ी निंदा करते हैं। हमारे क्षेत्र में इस तरह के बर्बरता के लिए कोई जगह नहीं है। भारत श्रीलंका के लोगों के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है।

श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में हुए सीरियल ब्लास्ट पर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट किया, “मैं कोलंबो में भारतीय उच्चायुक्त के लगातार संपर्क में हूँ, हम स्थिति पर पूरी नज़र बनाए हुए हैं।”

कुछ भी हो, पुलिस प्रमुख के अलर्ट के बाद अगर इस तरह का हमला हुआ है तो ये श्रीलंकाई प्रशासन के लिए चिंता का विषय है। अगर समय रहते पुलिस प्रमुख के अलर्ट पर कार्रवाई होती तो आज 187 से अधिक लोगों की जान नहीं जाती और श्रीलंका धूमधाम से ईस्टर मना रहा होता। आज पूरा विश्व श्रीलंका के साथ खड़ा है। आखिर कब तक इस्लामी आतंक का यह नासूर फलता-फूलता रहेगा और कब तक मानवता को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी।

Vistara एयरलाइन्स ने भूतपूर्व मेजर जनरल का किया सम्मान, ‘लिबरल’ ट्रॉल्स को लगी मिर्ची

एयर विस्तारा ने 19 अप्रैल को ट्विटर पर एक फोटो शेयर किया जिसमें रिटायर्ड सेनानी मेजर जनरल जीडी बख्शी के साथ उनके क्रू के दो लोग मुस्कुरा रहे थे। विस्तारा ने यह भी लिखा कि एक कंपनी के तौर पर वह मेजर जनरल बख्शी को यात्रा सेवा प्रदान करने में गर्वित महसूस करती है और उनकी देश सेवा के लिए उनका धन्यवाद करती है।

‘लिबरल’ ट्रोलों ने दी बहिष्कार की धमकी, पत्रकारिता के समुदाय विशेष का भी साथ

इतनी सी बात पर खुद को ‘लिबरल’ यानि ‘उदारवादी’ कहने वाले सोशल मीडिया ट्रोलों ने मेजर जनरल बख्शी के साथ-साथ विस्तारा पर भी हमला बोल दिया। कोई विस्तारा में आगे से हवाई यात्रा न करने की धमकी देने लगा, तो किसी ने मेजर जनरल बख्शी को ही बदमाश करार दे दिया।

इसके बाद पत्रकारिता का समुदाय विशेष भी अपने ही देश की एक कंपनी और देश के ही सैनिक की मॉब-लिंचिंग में शामिल होने कूद पड़ा।

बहुत लम्बी है मेजर जनरल बख्शी के शौर्य की गाथा

गौरतलब है कि मेजर जनरल बख्शी कारगिल के युद्ध के नायक होने के साथ-साथ अपने राष्ट्रवाद को लेकर काफ़ी मुखर भी हैं। और इसीलिए ‘लिबरल’ गैंग उनसे खार खाता रहा है। उन्हें कारगिल युद्ध में अहम बटालियन का नेतृत्व कर भारत की जीत में उनके योगदान के लिए विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया था। वह उन कैप्टन रमन बख्शी के अनुज हैं, जो 1965 के भारत-पाक युद्ध में भारत के पहले वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिक थे, वह भी महज 23 वर्ष की उम्र में। मेजर जनरल जीडी बख्शी ने उनके वीरगति को प्राप्त होने के 1.5 वर्ष के अन्दर भारतीय सैन्य अकादमी में प्रवेश ले लिया था। 1971 की बांग्लादेश निर्माण के वक्त की लड़ाई में उन्होंने भाग लिया था। 1999 में कारगिल के समय ऑपरेशन विजय को सफल बनाने के लिए सैन्य संचालन निदेशालय में उन्हें फिर से बुलाया गया था।

वह पाकिस्तान और इस्लामी आतंकवादियों के प्रति अपने कठोर रुख के लिए राष्ट्रवादियों में सम्मानित भी हैं, और इसीलिए वाम-चरमपंथी ‘लिबरल’ धड़े में उन्हें नापसंद भी किया जाता है।

योगी राज में माफिया डॉन बना रहें हैं चुनावों से दूरी

कभी उत्तर-प्रदेश में माफिया और गुंडों को एक तरह से खुली छूट थी। लेकिन अब हालात बदले हुए नज़र आ रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा माफिया और आपराधिक नेटवर्क को ध्वस्त करने के कारण, कई दशकों में पहली बार, कई कुख्यात गैंगस्टर उत्तर प्रदेश में चल रहे लोकसभा चुनाव में भाग लेने से कतरा रहे हैं।

योगी सरकार द्वारा अपराधियों को पकड़ने में कठोरता के अलावा, बागपत जेल में पिछले साल साथी कैदियों द्वारा माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। आज यूपी के कई राजनीतिक दलों ने आपराधिक नेटवर्क से पूरी तरह से दूर रहने का मन बना लिया है, वे उनसे सुरक्षित दूरी बनाए हुए हैं।

माफिया डॉन मुख्तार अंसारी, जो यूपी राज्य विधानसभा में विधायक भी हैं, चुनाव से दूर रहे हैं, हालाँकि, उनके भाई बसपा के टिकट पर गाजीपुर से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। अंसारी भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में 2005 से जेल में हैं। इसी तरह की स्थिति डॉन हरि शंकर तिवारी के साथ भी है। तिवारी ने भी अपनी चुनावी महत्वाकांक्षाओं को छोड़ दिया है, जबकि उनके बेटे बसपा के साथ सक्रिय हैं।

निषाद पार्टी से टिकट माँगने वाले एक और माफिया डॉन धनंजय सिंह को मंजूरी का इंतजार है। एक अन्य डॉन बृजेश सिंह जो अब वाराणसी जेल में है, अपने रिश्तेदारों को भी राजनीति में लाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं। एक और माफ़िया डॉन अतीक अहमद के खिलाफ 42 आपराधिक मामले चल रहे हैं, वह अब जेल में हैं।

पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह के अनुसार, जिन्होंने 1998 में उत्तर प्रदेश में स्पेशल टास्क फोर्स के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, युवा मतदाताओं की बढ़ती संख्या और सोशल मीडिया की बढ़ती पहुँच ने राज्य में राजनीति के अपराधीकरण की रोकथाम में काफी सहायक रहा है। उन्होंने यह भी कहा, “उम्मीदवारों को अब अपने चुनावी हलफ़नामे में आपराधिक मामलों की घोषणा करने की आवश्यकता है और यह सूचना कुछ ही समय में नेट पर वायरल हो जाती है। यह भी एक निवारक के रूप में काम कर रहा है।”

‘मैंने ढाँचा तोड़ा था, हम वहाँ जाएँगे और मंदिर बनाएँगे’: साध्वी प्रज्ञा ठाकुर

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने एक बार फिर से अपने निर्भीक अंदाज़ से देश की जनता को परिचित कराया। उन्होंने कहा कि वह राम मंदिर के निर्माण में मदद करेंगी और हमें ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता। साध्वी ने कहा, “राम राष्ट्र हैं, राष्ट्र राम हैं।”

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के अनुसार उन्होंने अयोध्या में ढाँचे को ध्वस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और स्वीकार किया कि अब वह विवादित जगह पर राम मंदिर बनाने में मदद करेंगी। इंडिया टुडे को दिए एक विशेष साक्षात्कार में साध्वी प्रज्ञा ने कहा, “हम बाबरी ढाँचे के विध्वंस पर क्यों पछताएँगे? वास्तव में हमें इस पर गर्व है। राम मंदिर पर कुछ बेकार का कचरा था जिसे हमने साफ़ कर दिया। इससे हमारे देश का स्वाभिमान जागृत हुआ है और हम एक भव्य राम मंदिर का निर्माण करेंगे।”

भोपाल में चुनाव प्रचार के दौरान, उन्होंने दावा किया था कि वह विवादित ढाँचे के ऊपर चढ़ गई थी और उसे ध्वस्त करने में मदद की। उन्होंने कहा, “मैंने ढाँचे पर चढ़कर तोड़ा था। मुझे गर्व है कि ईश्वर ने मुझे अवसर दिया और शक्ति दी और मैंने यह काम कर दिया। अब वहीं राम मंदिर बनाएँगे।”

साध्वी प्रज्ञा द्वारा भाजपा से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा किए जाने के बाद यह उनका दूसरा विवादास्पद बयान है। इस बीच, 1992 के बाबरी ढाँचे विध्वंस पर उनकी टिप्पणी के लिए चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस दिया था। इससे पहले दिन में उन्हें मुंबई एटीएस के पूर्व प्रमुख हेमंत करकरे पर उनकी टिप्पणी के लिए चुनाव आयोग द्वारा एक और नोटिस मिला था।

2008 के मालेगाँव ब्लास्ट मामले में शामिल होने के आरोपों के लिए उन्हें अकल्पनीय यातनाओं से गुजरना पड़ा, इस बारे में अपना पक्ष साझा करते हुए, उन्होंने कहा कि हेमंत करकरे आतंकवादियों के हाथों मारे गए क्योंकि उन्होंने एक साध्वी को प्रताड़ित किया था। स्वर्गीय हेमंत करकरे के बारे में उनकी टिप्पणी के लिए इंदौर में एक कॉन्ग्रेस नेता देवेंद्र सिंह द्वारा साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की गई थी। साध्वी ने बाद में अपना बयान वापस ले लिया था और हेमंत करकरे के बारे में अपनी टिप्पणी के लिए माफ़ी माँगते हुए कहा था कि वो अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा कर रही थीं।

साध्वी प्रज्ञा को अप्रैल 2017 में मालेगाँव ब्लास्ट मामले में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) द्वारा उनके ख़िलाफ़ कोई भी निर्णायक सबूत देने में विफल रहने के बाद अप्रैल 2017 में जमानत दी गई थी। वह काँग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं।

विंग कमांडर अभिनन्दन को मिल सकता है वीर चक्र, IAF ने प्रस्तावित किया नाम

भारतीय वायुसेना ने विंग कमांडर अभिनन्दन को वीर चक्र से सम्मानित करने का प्रस्ताव दिया है। पाकिस्तानी एफ-16 को मार गिराने और पाकिस्तान की सीमा के अंदर में भी अपने निडर रवैये के कारण भारतीय जनमानस के दिल में बस जाने वाले विंग कमांडर अभिनन्दन को यह पदक उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए दिया जा सकता है। हालाँकि इस पर अंतिम निर्णय भारत सरकार को लेना होगा।

विंग कमांडर अभिनंदन के अलावा वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट स्थित आतंकी कैम्पों पर एयर स्ट्राइक करने वाले मिराज-2000 लड़ाकू विमानों के 12 पायलटों के लिए भी वायुसेना पदक (Vayusena Medal) प्रदान करने का प्रस्ताव दिया है। बता दें कि वो 27 फरवरी का दिन था जब अभिनन्दन ने पाकिस्तानी विमान को मार गिराया था। विंग कमांडर अभिनन्दन को श्रीनगर से किसी अन्य एयरबेस पर ट्रांसफर भी कर दिया गया है। कश्मीर घाटी में उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया। ख़बरों के मुताबिक़, उन्हें वेस्टर्न सेक्टर में एक महत्वपूर्ण एयरबेस पर नियुक्त किया गया है।

ज्ञात हो कि 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान स्थित आतंकी कैम्पों पर एयर स्ट्राइक की थी। इसमें सैकड़ों आतंकी मारे गए थे। पुलवामा में हुए हमले में जैश-ए-मोहम्मद का हाथ सामने आने के बाद ये भारत की तरफ़ से बड़ी कार्रवाई की गई थी। आतंकी ठिकानों पर भारतीय कार्रवाई से बौखलाए पाकिस्तान ने एक दिन बाद भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की हिमाकत की थी जिसमें वे सफल नहीं हो पाए थे। इसी दौरान अभिनन्दन ने पाकिस्तानी विमान का पीछा कर उसे मार गिराया। इस क्रम में उनके मिग बाइसन लड़ाकू विमान में आग भी लग गई थी और वो दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। विमान से इजेक्ट करने में सफल रहे अभिनन्दन पैराशूट से पाकिस्तान की धरती पर लैंड कर गए थे।

पाकिस्तानी सेना ने उन्हें अपने कब्ज़े में ले लिया था। अभिनन्दन के कई वीडियो वायरल हुए थे जिसमें वो पाकिस्तानी सेना के सवालों का निडरतापूर्वक जवाब देते हुए देखा जा सकता है। भारत एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव के कारण पाकिस्तान अभिनन्दन को रिहा करने को मज़बूर हो गया था। उनकी रिहाई के दिन पूरे देश में ख़ुशी का माहौल था और उनकी एक झलक पाने को लोग लगातार टीवी से चिपके हुए थे। पाकिस्तान में अभिनन्दन की चाय पीते हुए वीडियो भी वायरल हुई थी। उनकी सकुशल भारत वापसी के बाद उन्हें कुछ दिनों की छुट्टी पर भेज दिया गया था। सुरक्षा कारणों से उनके ट्रांसफर स्थल का खुलासा नहीं किया गया है। अगर वह फ्लाइंग के लिए क्लियर पाए जाते हैं तो उन्हें इसकी भी अनुमति दी जाएगी।

द वायर, कारवाँ, स्क्रॉल में छपी यौन उत्पीड़न वाली ख़बर: रंजन गोगोई ने बताया इसके पीछे बड़ी ताकतें

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अपने खिलाफ यौन उत्पीड़न का दावा करते हुए दाखिल किए गए शपथपत्र को हास्यास्पद करार दिया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि कुछ बड़ी ताकतें अगले हफ्ते सुनवाई होने वाले महत्वपूर्ण मुकदमों से पहले उन्हें असहज करके न्यायपालिका को अस्थिर बनाना चाहती हैं।

अवमानना, मोदी बायोपिक, चुनाव स्थगन हैं महत्वपूर्ण मुक़दमे   

न्यायमूर्ति गोगोई के समक्ष जो मुकदमे अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचित हैं उनमें सबसे बड़े हैं राहुल गाँधी के खिलाफ अदालत की अवमानना (राफेल मुद्दे पर, भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी द्वारा दायर), प्रधानमंत्री मोदी की बायोपिक की चुनावों के दौरान रिलीज पर रोक (फिल्म निर्माताओं द्वारा निर्वाचन आयोग के आदेश के विरुद्ध दायर) और तमिलनाडु में भारी तादाद में मतदाताओं को रिश्वत दिए जाने का स्वतः संज्ञान ले वहाँ चुनाव स्थगित किए जाने की याचिका। इन सब पर सुनवाई से पहले ही इस मामले (यौन उत्पीड़न) पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश गोगोई की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ एकत्र हुई थी। अपनी याचिका में तुषार मेहता ने 4 ऑनलाइन पोर्टलों द वायर, कारवाँ, स्क्रॉल और लीफलेट में छपी हुई ख़बरों का हवाला देते हुए मामले को सार्वजनिक महत्त्व का बताते हुए संज्ञान लेने की प्रार्थना की थी।

आर्थिक दाग लगा नहीं सकते थे, इसलिए चरित्र-हनन  

गोगोई ने यह भी कहा कि उनका आर्थिक पक्ष पूर्णतः स्वच्छ है और उन पर आर्थिक भ्रष्टाचार का मुकदमा कभी नहीं टिकता। इसलिए इस आरोप के जरिए उनकी छवि बिगाड़ने और न्यायपालिका को अस्थिर करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि उपरोक्त पोर्टलों द्वारा उन्हें भेजे गए सवालों में समानता से उनके तार आपस में जुड़े नजर आते हैं।

मैं और PMO पूर्णतः स्वतंत्र, करता रहूँगा न्याय कार्यकाल के अंत तक

गोगोई ने साथ में यह भी जोड़ा कि उनका कार्यालय देश के दो सबसे स्वतंत्र कार्यालयों में से एक है (दूसरा उन्होंने प्रधनमंत्री कार्यालय को बताया) और आगामी चुनावी महीने में महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई के पहले यह उन्हें अस्थिर करने का प्रयास है।

उन्होंने न्यायिक स्वतंत्रता के भी गंभीर खतरे में होने के प्रति आगाह कराया। उन्होंने कहा, “अगर जजों को इस तरह खलनायक बना कर दिखाया जाएगा तो कौन भला इन्सान जज बनना चाहेगा? कौन जज बनकर महज ₹6.8 लाख के बैंक बैलेंस के साथ रिटायर होना चाहेगा?” गोगोई ने अपने दृढ़ निर्णय को भी दोहराया, “चाहे जो कुछ हो जाए, मैं अपने बचे हुए कार्यकाल के अगले सात महीनों तक मुकदमों का निपटारा करता रहूँगा। कोई मुझे रोक नहीं सकता।”

न्यायमूर्ति गोगोई से जुड़े इस मामले में हमारी पिछली कवरेज आप यहाँ पढ़ सकते हैं

बटला हाउस के हीरो एम सी शर्मा को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने सम्मानित किया

बटला हाउस मुठभेड़ के दौरान सबसे आगे रहने वाले बलिदानी मोहन चंद शर्मा को दिल्ली पुलिस ने सम्मानित किया है। शर्मा की फोटो को अब दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के प्रवेश द्वार पर लगाया गया है।

13 सितंबर 2008 को महेश चंद्र शर्मा उस समय आतंकवादियों की गोली से बुरी तरह से घायल हो गए थे जब वो दिल्ली में हुए विस्फोटों से जुड़े आतंकवादियों से मुठभेड़ कर रहे थे। उन्हें सभी आतंकवादियों के जामिया नगर में छिपे होने की सूचना मिली थी। दुर्भाग्य से घटना के दौरान उन्होंने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहनी हुई थी। बाद में उनकी मृत्यु हो गई थी।

ख़बर के अनुसार, शर्मा ने फरवरी 2007 में डीडीयू मार्ग पर एक मुठभेड़ के दौरान जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकवादियों को गिरफ़्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2006 में, शर्मा जे एन स्टेडियम के पास एक मोस्ट वांटेड आतंकवादी अबु हमजा के साथ हुई मुठभेड़ में भी शामिल थे।

दिल्ली पुलिस के पूर्व इंस्पेक्टर शर्मा को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। मोहन चंद्र शर्मा 1989 में दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के रूप में भर्ती हुए थे। वे उत्तराखंड के अल्मोड़ा के चौखुटिया मौसी क्षेत्र के मूल निवासी थे। अपनी 19 वर्षों की सेवा देते हुए 19 सितंबर 2008 को वे वीरगति को प्राप्त हो गए।

‘मेरी दादी फुटबॉल में इटली टीम की प्रशंसक थीं’: प्रियंका गाँधी

केरल के एरिकोड में कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने एक रैली को संबोधित करते हुए बताया कि उनकी दादी इंदिरा गाँधी फुटबॉल देखती थीं और 1982 विश्व कप फाइनल में उन्होंने इटली टीम के जीतने की दुआ की थी।

प्रियंका ने यह भी दावा किया कि वो ख़ुद भी फुटबॉल प्रशंसक हैं। प्रियंका इतने पर भी नहीं रुकीं उन्होंने आगे कहा कि उनका पूरा परिवार 1982 का विश्व कप फाइनल देख रहा था, तब उन्होंने अपनी दादी से पूछा कि वह किस टीम का समर्थन कर रही हैं, तब इंदिरा गाँधी ने कहा था कि वो इटली का समर्थन करेंगी। ख़बर के अनुसार, उस समय भारत नहीं खेल रहा था। संयोग से इटली ने पश्चिम जर्मनी को 3-1 से हराकर खेल जीत लिया था।

प्रियंका के भाषण का एक वीडियो सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। इसमें उन्होंने बार-बार फुटबॉल का ज़िक्र करते हुए ‘सॉकर’ शब्द का इस्तेमाल किया जो फुटबॉल प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है।

इस वीडियो में वो बताती हैं कि उनका बेटा और उनका भाई राहुल गाँधी भी फुटबॉल के प्रशंसक हैं। अपने संबोधन में थोड़ा मज़ाकिया होते हुए महिलाओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि वो समझ सकती हैं कि जब एक तरफ फुटबॉल मैच चल रहा हो तो महिलाएँ कैसा अनुभव कर रही होती हैं। इस भाषण को कॉन्ग्रेस का चुनावी हथकंडा कहा जा सकता है जिससे मतदाताओं को लुभाया जा सके क्योंकि केरल में बड़ी संख्या में फुटबॉल प्रशंसक हैं।