कॉन्ग्रेस नेता अहमद पटेल ने लोकसभा चुनाव 2019 में कॉन्ग्रेस की जीत का भरोसा जताया है। अहमद पटेल ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा है कि उन्हें पूरा भरोसा है कि लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने गुजरात में भी अच्छे परिणाम मिलने की भी आशंका व्यक्त की है। पटेल ने कहा कि 23 मई को जब चुनाव परिणाम आएँगे, तब भाजपा सरकार में नहीं होगी।
Ahmed Patel, Congress: We are not only hopeful but also very confident that BJP will lose. We will get good results in Gujarat too, we will cross double digit. On 23rd May when the election results come, BJP will no longer be in the govt. pic.twitter.com/z0bSdQ59DV
कथित रूप से मालेगाँव बम विस्फोट की आरोपित और भोपाल लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के विवादित बयान से सियासी तूफान उठ खड़ा हुआ है। मामले को लेकर कॉन्ग्रेस नेता अहमद पटेल ने कहा, “यह किसी पार्टी का अधिकार है कि वह किसे उम्मीदवार बनाती है। मैं उस पर टिप्पणी नहीं करूँगा, लेकिन आतंकवाद से लड़ते हुए शहीद हुए अधिकारी के बारे में ऐसी बातें नहीं कही जानी चाहिए। मुझे पूरी उम्मीद है कि भाजपा इस बार का लोकसभा चुनाव हारेगी। हम गुजरात में भी अच्छा प्रदर्शन करेंगे। हम यहाँ डबल डिजीट को पार करेंगे, 23 मई को जब रिजल्ट आएगा तो मोदी सरकार नजर नहीं आएगी।”
भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की बैठक में साध्वी प्रज्ञा ने मुंबई हमले (26/11) में शहीद हुए पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे पर यातना देने का आरोप लगाया था। हालाँकि, साध्वी ने शुक्रवार की शाम माफी माँगते हुए बयान वापस ले लिया है। साध्वी की सहयोगी उपमा ने कहा, “संभव है भावुक क्षणों में वह कुछ ऐसा कह गयी हों, जिससे किसी को कष्ट पहुँचा हो। इसके लिए हम माफी माँगते हैं।”
आपने कितनी बार गाँव में, शहर में आम लोगों को कहते सुना है- हाय लगी है उसको। दैवीय न्याय असहाय के मन का झूठा सहारा है। यह कहने भर पर एक ऐसी महिला पर शिकारी झुण्ड का टूट पड़ना, जिसने लगभग एक दशक जेल में काटा हो, बौद्धिक आतंकवाद और वैचारिक अतिवाद नहीं है तो क्या है? वह कौन लोग हैं जो हमारे भगवान तय करते हैं नेहरू के समय से, और तालिबान की भाँति बँदूक और पत्थर लेकर हमारे घरों के बाहर खड़े हो जाते हैं, एक ज़िद और धमकी के साथ- बोल कि मेरा भगवान तेरा भी भगवान है! यह कैसी असहिष्णुता है जो पीड़ित को हाय भी न करने दे?
जो लोग यह कहते हैं कि एक शहीद के ऊपर कुछ कहा नहीं जाना चाहिए क्योंकि वह जीवित नहीं है, वही लोग राजनैतिक मंचों से सार्वजनिक रूप से सावरकर पर लगाए गए झूठे लांछन पर विद्रूप मुस्कुराहट परोसते हैं। क्यों नहीं राहुल गाँधी को राजनीति से त्यागपत्र देना चाहिए? मज़े की बात है कि जो उस कसाब को मुक्त कराने के लिए क्षमा पत्र लिख रहे थे, आज भी उस कसाब और उस अफ़ज़ल के लिए जुलूस निकालते हैं, जिनकी हिंसा के हेमन्त करकरे शिकार हुए, जो करकरे की शहीदी को साज़िश बता कर पुस्तक रिलीज़ करा रहे थे, आज शहीद के सम्मान को ले कर चिंतित हैं।
एक पीड़ित महिला के पीछे अभिजात्य समाज कलंक की स्याही लेकर पड़ जाता है, उसका तो अपना व्यक्तिगत दुख था। दिग्विजय सिंह का शहीद मोहन चंद शर्मा के मामले में कौन सा दुख था? बाटला का सत्य सामने आने पर भी उन्होंने प्रश्न वापस नहीं लिए। साध्वी घाघ नेता नहीं है, दिग्विजय हैं। एक घाघ नेता मोहनचंद शर्मा की शहीदी को झूठा बताता रहता है, एक महिला कुटिल कोलाहल से सहम उठती है, उस वक्तव्य को वापस लेती है। घाघ नेता से कोई प्रश्न नहीं पूछता, महिला को कोने मे खड़ा कर के दोहराने को कहा जाता है- बोलो, हमारे भगवान तुम्हारे भगवान हैं।
एम जे अकबर की भूमिका रही थी हज़ारों भारतीयों को यमन संघर्ष से बचाने में। किंतु हम यह नहीं कहते कि महिलाओं का उनपर आरोप लगाने का अधिकार नहीं है। हम उन महिलाओं के चेहरे पर कालिख नही फेंकते। साध्वी का दोष यही है कि उसके पिता प्रशासनिक अधिकारी नहीं थे, वह एलएसआर में नहीं पढ़ी?
मैं साध्वी की बात से सहमत नहीं हूँ। क्योंकि मुझे जेल में डाल कर प्रताड़ित नहीं किया गया, मैं पीड़ित नहीं हूँ और महिला भी नहीं हूँ। मैं सत्य नहीं जानता। मैं यह जानता हूँ जहाँ कान पकड़ने पर एक व्यक्ति पुलवामा में 45 लोगों की हत्या कर देता है, एक साधनहीन महिला सिर्फ़ एक श्राप दे कर ठहरती है। एक निरीह महिला बम बाँधकर सैनिकों को नहीं मारती क्योंकि उसके विचार इसका साथ नहीं देते। वह हाय करती है, श्राप देती है, और विधि के विधान को परमात्मा का न्याय मान कर संतोष धरती है। बौद्धिक समाज गोलबंद होकर कहता है- कुलटा, क्षमा माँग और सार्वजनिक जीवन से पीछे हो बौद्धिक कारागृह में बैठ!
ये लोग और कोई नहीं हैं, वही हैं जो मध्य युग में औरतों को डायन बता कर यूरोप में जला दिया करते थे। जो तय करते थे कि सार्वजनिक सोच की क्या दिशा होगी और अलग शब्द, अलग विचार की निर्ममता से हत्या करते थे। मैं साध्वी की बात से इसलिए भी सहमत नहीं हूँ क्योंकि मैं दैवीय न्याय के सिद्धांत पर विश्वास नहीं रखता। मैं मानता हूँ कि दैवीय न्याय असहाय को संतोष देने का साधन मात्र है। जो लोग श्राप देने को अपराध घोषित कर रहे हैं, मूर्खता कर रहे हैं और यूरोप के अँधकारयुग को भारत में लाना चाहते हैं।
सिद्धांततः हेमंत करकरे के साथ सबसे बड़ा अन्याय तो वह था जो उनके हत्यारों को बचाने के लिए 26/11 को भारतीय साज़िश बता कर एक राजनेता पुस्तक लॉन्च कर रहे थे। साध्वी की बात तो एक व्यक्तिगत प्रयास है एक दुःखद प्रसंग से स्वयं को बाहर लाने का, दैवीय न्याय मान कर एक अध्याय बंद करने का। नैतिकता और दर्शन की बातें उस महिला को बताना जो उस देश में दस साल क़ैद में, समाज और सोच से दूर गुमनामी और उपेक्षा में प्रताड़ित हुई जहाँ एक अभिजात्य पत्रकार को आया भद्दा ट्वीट राष्ट्रीय समस्या हो, अपने आपमें एक निर्मम कुटिलता है।
जो लोकतंत्र एक पीड़ित को स्वर का अधिकार न दे सके, वह निरर्थक है। लोकतंत्र में मेजर गोगोई नायक भी बनते हैं और उनका कोर्ट मार्शल भी होता है। अम्बेदकर अपने भाषण ‘ग्रामर ऑफ़ अनार्की’ में कहते हैं, “महान लोगों के प्रति आभारी होने में कोई समस्या नहीं है किंतु कृतज्ञता की सीमाएँ होनी चाहिए।” अम्बेदकर आयरिश क्रांतिकारी डैनियल ओ कोनेल का संदर्भ दे कर कहते हैं, “कोई पुरूष स्वाभिमान के मूल्य पर और कोई स्त्री सम्मान के मूल्य पर कृतज्ञ नहीं हो सकती है। साध्वी को हमें इसी मानक पर तौलना चाहिए और समाज के वैचारिक तालिबानीकरण से बचना चाहिए।
महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी के मामले में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने एक नज़ीर पेश करते हुए हार्दिक पांड्या और केएल राहुल पर कार्रवाई की है। बीसीसीआई ने दोनों पर अर्थ दंड के रूप में 20-20 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। इसके लिए दोनों क्रिकेटरों को 4 सप्ताह का समय दिया गया है।
बता दें कि बीसीसीआई की ओर से दोनों खिलाड़ियों पर लगाए गए 20 लाख रुपए के जुर्माने में से 1-1 लाख रुपए की रकम ड्यूटी के दौरान शहीद हुए सुरक्षा बलों के 10 कांस्टेबलों के परिवारों को देने को कहा गया है। बची हुई 10 लाख रुपए की धनराशि को दृष्टिबाधितों के लिए बनाए गए क्रिकेट एसोसिएशन के फंड में जमा कराने के निर्देश दिए गए हैं। इस रकम से दृष्टिबाधित लोगों के लिए खेल का प्रमोशन किया जाएगा।
बीसीसीआई ने कहा कि अर्थ-दंड की रकम चुकाने के लिए खिलाड़ियों को एक महीने का समय दिया गया है। बोर्ड का कहना है कि अगर तय समय में दोनों ने जुर्माना नहीं चुकाया तो यह रकम उनकी मैच फीस से काटी जाएगी।
पूरा मामला यह है कि दोनों ने बॉलीवुड डायरेक्टर करण जौहर के शो ‘कॉफी विद करण’ पर महिलाओं को लेकर आपत्तिजनक बातें कहीं जिसके बाद इन दोनों के खिलाफ जाँच के आदेश दिए गए थे और इन दोनों खिलाड़ियों पर अस्थायी प्रतिबंध भी लगाया गया था।
हालाँकि, बाद में पांड्या और राहुल ने इस विवाद के बाद माफी भी माँगी थी। जिसे नाकाफी मानते हुए महिलाओं के खिलाफ दिए गए विवादास्पद बयान को लेकर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के लोकपाल डीके जैन ने हार्दिक पांड्या और बल्लेबाज लोकेश राहुल को नोटिस थमा दिया था।
शुक्रवार (अप्रैल 19, 2019) को उच्चतम न्यायालय के 22 न्यायाधीशों को भेजे गए हलफनामे में कोर्ट की एक पूर्व जूनियर असिस्टेंट ने भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। स्क्रॉल में छपी इस खबर के अनुसार पीड़िता 35 वर्षीय महिला है जिसके अनुसार रंजन गोगोई ने पिछले साल 2018 में 10 और 11 अक्टूबर को अपने निवास स्थान पर उस महिला का यौन शोषण करने का प्रयास किया।
कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो महिला द्वारा दिए हलफनामे के अनुसार पहले तो रंजन गोगोई ने महिला को कमर से पकड़ा, फिर अपने हाथ से उनके पूरे शरीर को छुआ, इसके बाद अपने शरीर से महिला के शरीर पर दबाव बनाया। इस दौरान चीफ जस्टिस की हरकत से महिला स्तब्ध हो गई थी। पीड़ित महिला का कहना है कि रंजन गोगोई की पकड़ उसपर इतनी कसी हुई थी कि वो वहाँ से हिल भी नहीं पा रही थी।
इस हलफनामे में महिला ने अपने साथ हुई कुछ बातों का जिक्र किया है। जैसे कि इस घटना के दो महीने बाद महिला को बर्खास्त कर दिया गया, महिला के पति और पति के भाई को दिल्ली पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल की नौकरी से निलंबित किया गया और कुछ महीने बाद ही पति के दूसरे भाई को भी सुप्रीम कोर्ट की नौकरी से निलंबित कर दिया गया। महिला के अनुसार 10-11 अक्टूबर को हुई घटना के बाद महिला का कई तरीकों से शोषण किया जाता रहा। महिला ने यह भी बताया कि उसके ऊपर शोषण की घटना से पहले मार्च 2018 में रिश्वत लेने का एक केस रजिस्टर किया गया था जिसमें उसे पद से बर्खास्त करने के बाद गिरफ्तार किया गया।
चीफ़ जस्टिस गोगोई पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला फिलहाल जमानत पर बाहर है। महिला का दावा है कि रिश्वत का पूरा मामला मनगढ़ंत है। महिला पर लगे इस आरोप के केस को कुछ समय पहले क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया था जिसे अब पटियाला हाउस कोर्ट भेज दिया गया है। इस मामले में हैरान करने वाली बात ये है कि रिश्वत का आरोप उस महिला के पति के खिलाफ भी लगाया गया है, लेकिन रिश्वत देने वाले के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं।
इस मामले पर तीन जजों की पीठ ने आज सुबह 10:30 बजे एक विशेष बैठक की। इस दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार के साथ सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और सदस्य भी कोर्ट में मौजूद रहे। मुख्य न्यायधीश ने सुनवाई शुरु होने के साथ ही कुछ बातों पर विचार विमर्श करने को कहा।
A three Judge Bench to have a special siting Today at 10.30am to deal with a matter of ‘great public importance touching upon the independence of judiciary’. pic.twitter.com/yqYFsoWcxn
मुख्य न्यायधीश ने सुनवाई के दौरान कहा, “मैं बस इतना ही कहना चाहूँगा कि निस्संदेह हर कर्मचारी के साथ उचित और शालीनता से व्यवहार किया जाता है। वह कर्मचारी डेढ़ महीने से नियुक्त थी।” गोगोई ने कहा, “जब ये आरोप लगाए गए तो उन्होंने उनका जवाब देना उचित नहीं समझा।”
रंजन गोगोई का मामले पर कहना है कि न्यायपालिका खतरे में है। गोगोई के अनुसार अगले महीने कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई होनी है, इसलिए उनपर इस तरह के आरोप लगाए गए हैं। मुख्य न्यायाधीश ने यौन शोषण के आरोप का जवाब देते हुए कहा कि जज रहते 20 सालों के कार्यकाल का उन्हें यह ईनाम मिला है? 20 सालों की सेवा के बाद उनके खाते में सिर्फ 6,80,000 रुपए हैं। कोई भी उनका खाता चेक कर सकता है। यहाँ तक कि उनके चपरासी के पास भी उनसे ज्यादा पैसे हैं।
All I would like to say is this, undoubtedly every employees are treated fairly and decently. This employee was there for a month and half. Allegations came and I didn’t deem it appropriate to reply to the allegations:CJI
महिला के आरोपों को खारिज करते हुए सीजीआई ने कहा कि लोग उनपर पैसों के मामले में उँगली नहीं उठा सकते हैं इसलिए इस तरह का आरोप लगाया गया है। रंजन गोगोई ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जिस महिला ने उनपर आरोप लगाया है वो कुछ समय पहले तक जेल में थी और अब वे बाहर है, इसके पीछे कोई एक शख्स नहीं, बल्कि कई लोगों का हाथ है।
This is the reward CJI gets after 20 years , a bank balance of 680,000. This I thought should be told from highest seat of judiciary
इस मामले पर फिलहाल कोई आदेश पारित नहीं किया है। जस्टिस अरुण मिश्रा ने इस मामले पर कहा है कि हम कोई ज्यूडियशियल ऑर्डर नहीं पास नहीं कर रहे हैं, ये उन मीडिया संस्थानों के विवेक पर निर्भर करता है कि वो इसे छापें या नहीं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई समेत जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे।
As my lord CJI is sitting we are not passing any judicial order at the moment. It is the wisdom of the media to publish it or not. – Arun Mishra dictating order
साध्वी प्रज्ञा के भाजपा से चुनाव लड़ने को लेकर हो रहे विरोध का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुँहतोड़ जवाब दिया है। प्रधानमंत्री ने भोपाल से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को प्रत्याशी बनाए जाने पर कहा कि साध्वी की उम्मीदवारी कॉन्ग्रेस को महँगी पड़ने वाली है। उन्होंने राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को निशाने पर लेते हुए कहा कि अमेठी और रायबरेली से कॉन्ग्रेस उम्मीदवार भी जमानत पर रिहा है। इस पर कोई सवाल नहीं करता, लेकिन भोपाल की उम्मीदवार (प्रज्ञा ठाकुर) जमानत पर है, तो ये बहुत बड़ा सवाल बन गया है। उन्होंने कहा कि उन सबको जवाब देने के लिए साध्वी प्रज्ञा एक प्रतीक है और यह कॉन्ग्रेस को महँगा पड़ने वाला है।
टाइम्स नाउ को दिए एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब 1984 में इंदिरा गाँधी की मृत्यु हुई, तब उनके बेटे ने कहा था कि जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो पृथ्वी हिलती है। इसके बाद, हजारों सिखों का नरसंहार हुआ। क्या यह कुछ लोगों द्वारा फैलाया गया आतंक नहीं था? इसके बावजूद राजीव गाँधी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। उस समय मीडिया ने कभी ऐसा सवाल नहीं पूछा, जैसा वह अब सवाल पूछ रहे हैं। सिख दंगों के आरोपितों को कॉन्ग्रेस ने बड़ा मंत्री बनाया। उनमें से एक आज मप्र का मुख्यमंत्री है। पीएम मोदी ने कहा कि एक महिला वह भी साध्वी (प्रज्ञा) को जब प्रताड़ित किया गया, तब किसी ने उँगली नहीं उठाई।
उन्होंने कहा कि वो गुजरात में रहे हैं, और वहाँ कॉन्ग्रेस के तौर-तरीकों से अच्छी तरह परिचित हैं। मोदी ने कहा कि कॉन्ग्रेस फिल्म की स्क्रिप्ट की तरह एक कहानी गढ़ने का काम करती है। पहले वो कुछ उठाते हैं, फिर उसमें कुछ जोड़ते हैं, उसके बाद अपनी कहानी के लिए एक खलनायक जोड़ते हैं, ताकि कहानी का झूठा प्रचार किया जा सके। यह कॉन्ग्रेस का ‘modus operandi’ अर्थात काम कारण एक तरीका है।
मोदी ने समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के बारे में कहा कि उस केस में जाँच हुई लेकिन कुछ नहीं निकला। जज लोया जिनकी मृत्यु प्राकृतिक थी उसे भी कॉन्ग्रेस ने इतना लंबा खींचा और हत्या बताने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि दुनिया में 5,000 साल तक जिस महान संस्कृति और परंपरा ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का संदेश दिया, ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया’ का संदेश दिया, जिस संस्कृति ने ‘एकम् सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति’ का संदेश दिया, ऐसी संस्कृति को कॉन्ग्रेस ने आतंकवादी कह दिया। उन सबको जवाब देने के लिए साध्वी प्रज्ञा एक प्रतीक है और ये कॉन्ग्रेस को बहुत महँगा पड़ने वाला है।
कुणाल कामरा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के BSE भवन के चित्र के साथ छेड़खानी करते पकड़े गए हैं। कॉमेडियन कुणाल कामरा को उनके कृत्य के लिए BSE ने कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही सोशल मीडिया कुणाल द्वारा शेयर की गई फ़र्ज़ी तस्वीरों के लिए उनकी कड़ी निंदा भी की।
A fake morphed photo against a political party using BSE building has been shared by @kunalkamra88.BSE is extremely disappointed at unfortunate,unauthorized & illegal use of BSE buildg fr nefarious activities.BSE reserves right to take appropriate legal action agnst @kunalkamra88
BSE ने एक ऐसी इमेज का ज़िक्र किया जिसे कामरा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से शेयर की थी। उस इमेज में BSE की इमारत और उसके नीचे एक और चित्र था जिसमें ‘मोदी को वोट न देने’ की बात लिखी थी।
कामरा के सेंस ऑफ़ ह्यूमर से स्टॉक एक्सचेंज (Bourse) के लोग बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने इस पर अपनी निराशा व्यक्त की। BSE ने यहाँ तक ट्वीट किया कि उनके पास कामरा के ख़िलाफ़ उचित क़ानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है। कामरा, अपने प्रचार में, एक अभियान चलाकर अपने साथियों से मोदी को वोट न देने की अपील कर रहे हैं। मोदी विरोधी प्रचार चलाने के लिए अपनी बोली में, कामरा ने शेयर बाज़ार की बिल्डिंग की तस्वीर का इस्तेमाल किया, जिससे शेयर बाज़ार में खलबली का माहौल बन सकता है।
अपनी ग़लती मानने के बजाय कि कुणाल ने हद पार कर दी। फेक इमेज का इस्तेमाल कर अपने मंतव्यों को हँसी-ठिठोली का नाम दिया। कामरा के लिए स्टॉक एक्सचेंज का मजाक उड़ाना किसी मनोरंजन से कम नहीं है।
आख़िर कौन है ये कुणाल कामरा
कुणाल कामरा एक भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडियन हैं जो सोशल मीडिया में अपनी कॉमेडी के लिए जाने जाते हैं। वह आज भारत में देशभक्ति और सरकार पर अपने व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के लिए चर्चा में बने रहते हैं। इसके अलावा कामरा यूट्यूब पर ‘Shut Up Ya Kunal’ पॉडकास्ट होस्ट करते हैं।
यूपी और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत में कल (अप्रैल 19, 2019) एक नया खुलासा हुआ। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मालूम चला कि उनकी मौत हॉर्ट अटैक से नहीं, बल्कि गला, मुँह और नाक दबने के कारण हुई है। जिसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि रोहित को पहले नशीला पदार्थ दिया गया, उनके बेसुध होने पर उनकी हत्या कर दी गई।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से खुलासा, मुंह दबाकर की गई रोहित शेखर की हत्या! नारायण दत्त तिवारी के बेटे रोहित शेखर तिवारी की संदिग्ध मौत का मामला उलझता ही जा रहा है. 40 साल के रोहित अपने घर में मृत पाए गए थे. उनकी नाक से खून बह रहा था.#RohitShekharTiwari
गुरुवार (अप्रैल 18, 2019) को पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया। क्राइम ब्राँच ने आईपीसी धारा 302 के तहत इस मामले को हत्या का केस दर्ज किया। इसके बाद पुलिस रोहित के घर मामले की जाँच करने पहुँची। यहाँ क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने रोहित के सौतेले भाई और नौकरों से पूछताछ की।
दिवंगत कांग्रेसी नेता एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर की मौत के बाद हुए पोस्टमॉर्टम के बाद मामले की जांच दिल्ली क्राइम ब्रांच को सौंपी गई। रोहित की संदिग्ध मौत के मामले में अज्ञात के खिलाफ हत्या की धारा में केस दर्ज किया गया है। जबकि उनकी मां उज्वला कह रही हैं कि मौत समान्य थी. pic.twitter.com/ZAs7N2VG2F
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि रोहित की मौत 16 अप्रैल की देर रात 2 (अस्पताल लाने से 14 घंटे पहले) बजे हुई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रोहित की गर्दन की दो हड्डियाँ टूटी हैं। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एम्स के फॉरेंसिक विभाग के हेड सुधीर गुप्ता ने बताया कि रोहित की मौत प्राकृतिक नहीं है। इस जाँच में मेडिकल इंस्टीट्यूट के 5 वरिष्ठ डॉक्टर शामिल थे जिन्होंने इस पूरी जाँच का वीडियो भी बनाया है। जाँच के बाद पाँचों डॉक्टरों का यही कहना है कि रोहित की मौत गला दबाने से हुई है।
गौरतलब है कि शेखर को दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में मृत घोषित किया गया, लेकिन अस्पताल ने अपने कागज़ों में उनकी मौत के कारण का खुलासा नहीं किया था। बता दें कि दिल्ली पुलिस के संयुक्त कमिश्नर देवेश श्रीवास्तव के मुताबिक मंगलवार को दिन में रोहित की नाक से अचानक खून बहने लगा था। उनकी माँ उज्ज्वला पहले ही अपनी मेडिकल जाँच के लिए किसी अस्पताल में भर्ती थीं और रोहित घर पर अकेले थे। उन्हें एम्बुलेंस से आनन-फानन में मैक्स अस्पताल पहुँचाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
शुक्रवार (अप्रैल 20, 2019) की देर रात हावड़ा से नई दिल्ली आते हुए पूर्वा एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या: 12303) एक दुर्घटना की शिकार हो गई। खबरों की मानें तो ट्रेन दो हिस्सों में बँटने के कारण देर रात बेपटरी हो गई थी। जिसके कारण ट्रेन के 12 डिब्बे पलट गए। इस घटना में कुछ यात्रियों के घायल होने की भी खबर है।
रेलवे की मानें तो इस घटना में एक आदमी को छोड़कर किसी यात्री को गंभीर चोट नहीं आई है। रेलवे ने पूछताछ और सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर (033) 26402241, 26402242, 26402243, 26413660 जारी किए हैं।
Latest spot visuals: Total 12 coaches affected due to Poorva Express derailment near Rooma village in Kanpur at around 1 am today. 4 out of 12 coaches had capsized. No casualties reported. pic.twitter.com/u5QsG5Crp2
गौरतलब है कि यह ट्रेन कानपुर से 15 किलोमीटर दूर रूमा कस्बे के पास दुर्घटनाग्रस्त हुई। रात के 2:30 बजे जिलाधिकारी, 30 एंबुलेंस, एसएसपी, फायर ब्रिगेड और पुलिस मौके पर पहुँची और राहत बचाव कार्य शुरू हुआ।
घायलों को वहाँ के करीबी काँशीराम ट्रॉमा सेंटर और हैलट अस्पताल में इलाज के लिए भेजा गया। इस हादसे के कारण 11 अन्य ट्रेनों को रद्द किया गया है और कई ट्रेनों को डायवर्ट किया गया है। घटना में 14 लोगों के घायल होने की खबर सामने आ रही है।
Spot Visuals: Five coaches of Poorva Express, plying from Howrah to New Delhi, derailed near Rooma village in Kanpur at around 1 am today. pic.twitter.com/BX8CUPg2sk
बताया जा रहा है कि रात के 1:00 बजे ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर आ रही थे, तभी कानपुर से करीब 15 किलोमीटर पहले ही ट्रेन रूमा इंडस्ट्रियल एस्टेट के पास अचानक से दो हिस्सों में बँट गई। जिसके कारण जोरदार आवाज आई और ट्रेन के यात्रियों में हड़कंप मच गया।
Ministry of Railways on Poorva Express derailment: Relief train, with 900 passengers on board, has left Kanpur. Three injuries have been reported – 2 people with minor injuries and 1 with serious injuries. pic.twitter.com/ev4C46mEzV
रेलवे का कहना है कि जाँच के बाद हादसे की वजह पता चलेगी। फिलहाल कानपुर सेंट्रल से एक स्पेशल ट्रेन के जरिए करीब 900 यात्रियों को नई दिल्ली के लिए भेजा गया है।
Poorva Express derailment in Kanpur: Indian Railways has issued helpline numbers at Howrah- (033) 26402241, 26402242, 26402243, 26413660. pic.twitter.com/J8fMlqIgnb
कई बार हमने हॉलीवुड और बॉलीवुड की फ़िल्मों में देखा है कि पूरे डिपार्टमेंट की इज़्ज़त बचाने के लिए एक गंदे अफसर को डिपार्टमेंट स्वयं ही मार देती है, और उसे शहीद का दर्जा दे दिया जाता है। इससे दोनों समस्याएँ सुलझ जाती हैं कि पब्लिक में पुलिस या सेना जैसी संस्था पर विश्वास बना रहता है, और डिपार्टमेंट से एक भ्रष्ट या सड़ा सेव बाहर कर दिया जाता है।
साध्वी प्रज्ञा की बहन और कर्नल पुरोहित की पत्नी का इंटरव्यू पढ़िएगा या देखिएगा कहीं से खोज कर। सेना के एक डेकोरेटेड अफसर पर हिन्दू टेरर का टर्म पोलिटिकल मास्टर्स को खुश करने के लिए ही गढ़ा गया था। उसका और कोई औचित्य नहीं था। इसके लिए सबूत चाहिए थे, धाराओं को संतुष्ट करने के लिए घटनाएँ चाहिए थीं, और उसके लिए लोग चाहिए थे।
आरवीएस मणि जो उस समय सरकारी अफसर थे, उन्होंने बताया है कि हेमंत करकरे की इसमें कितनी इन्वॉल्वमेंट थी और वो दिग्विजय सिंह के साथ गृहमंत्री पाटिल के साथ क्या करते थे। करकरे को सरकार और डिपार्टमेंट ने सम्मान दिया क्योंकि करकरे की असामयिक मृत्यु हो गई। अगर करकरे ज़िंदा होते तो शायद उन पर हिन्दू टेरर गढ़ने और झूठे केस बनाने के आरोप पर मामले चल रहे होते। या, करकरे कॉन्ग्रेस की योजना को सफल करके इस्लामी आतंक में मज़हब के न होने और चार लोगों के ब्लास्ट में संलिप्त होने की कहानी के आधार पर पूरा हिन्दू समाज भगवा आतंक का धब्बा लिए जी रहा होता।
मैं इस बात से इनकार नहीं कर रहा कि समुदाय विशेष को भी गलत आरोप और अपराध के नाम फँसाया गया है लेकिन न्याय का एक सीधा दर्शन है कि हजार गुनहगार छूट जाएँ लेकिन किसी भी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए। आप जब उन यातनाओं के बारे में सुनिएगा तो शायद समझ में आएगा कि आज अगर साध्वी प्रज्ञा ने हेमंत करकरे को शाप देने की बात कही, तो वो किसी भी रूप में ज़्यादती नहीं।
ज़्यादती इसलिए नहीं कि इसी देश के वही बुद्धिजीवी सेना द्वारा मारे आतंकियों के भाई द्वारा हथियार उठा लेने को जस्टिफाय करते हैं, सेना के अफसर द्वारा डाँटे जाने के बाद पुलवामा जैसी घटना करने वाले को जस्टिफाय करते हैं, आतंकी के बाप का हेडमास्टर होना और आतंकी के बेटे का दसवीं एग्ज़ाम पास करना ऐसे शेयर करते हैं जैसे उनका आतंकी होना मामूली बात थी, और आतंकी भाई या आतंकी बाप के मारे जाने के बाद, बदले की भावना में कोई बेटा या भाई आतंकी बन जाए तो उसके पास पर्याप्त कारण हैं, ऐसा मानते हैं, उनके लिए यह सोचना दुखप्रद है कि एक आम नागरिक को लगभग दस सालों तक यातनाएँ दी गईं, और वो उन लोगों के खिलाफ कुछ कहे!
साध्वी प्रज्ञा पर जो बीती है, वो हम या आप महसूस भी नहीं कर सकते। हेमंत करकरे एक भ्रष्ट अफसर थे या नहीं, यह तो बाद की बात है, लेकिन क्या किसी की रीढ़ की हड्डी तोड़ देना, उसे अश्लील फ़िल्में दिखाना, लगातार पीटना, गोमांस खिलाना, यह जान कर कि वो एक धार्मिक महिला है, उस यातना को झेलने वाली स्त्री को वैसे अफसर के खिलाफ बोलने का भी हक़ नहीं?
क्यों? क्योंकि वो चुनाव लड़ रही है? उसके तो चुनाव लड़ने पर भी आपको आपत्ति है कि चूँकि उस पर आरोप है, तो वो आतंकी हो गई। इस हिसाब से तो आधे नेता चोर, बलात्कारी, या हत्यारे हैं क्योंकि सब पर केस तो हैं ही। फिर आप किस पार्टी या नेता को समर्थन दे रहे हैं? आपको कोई हक़ ही नहीं है साध्वी प्रज्ञा के निजी अनुभवों के आधार पर यातना देने वाले अधिकारी को शापित करने पर उन्हें कोसने का।
आपकी समस्या है कि आपको आपके विरोधी में आदर्शवाद देखना है। आपको सेना के जवानों से सबूत माँगते वक्त लज्जा नहीं आई, आपको एयर स्ट्राइक पर यह कहते शर्म नहीं आई कि वहाँ हमारी वायु सेना ने पेड़ के पत्ते और टहनियाँ तोड़ीं, आपको बटला हाउस एनकाउंटर वाले अफसर पर कीचड़ उछालते हुए हया नहीं आई, लेकिन किसी पीड़िता के निजी अनुभव सुनकर आपको मिर्ची लगी कि ये जो बोल रही है, वो तो पूरी पुलिस की वर्दी पर सवाल कर रही है।
इस देश का संविधान और कानून साध्वी प्रज्ञा को चुनाव लड़ने की भी आज़ादी देता है, और उसे अपनी अभिव्यक्ति का भी मौलिक अधिकार है। बात यह नहीं है कि कल को वो अपराधी साबित हो गई तो? बात यह है कि अभी वो अपराधी नहीं है, और हेमंत करकरे भले ही अपना पक्ष रखने के लिए ज़िंदा न हों, पर इतने सालों की यातना झेलने के बाद, एनआईए द्वारा चार्ज हटा लिए जाने और राहत पाकर बाहर आई इस महिला को कड़वे वचन कहने का हक़ है।
डिपार्टमेंट हेमंत करकरे को सम्मानित मानता रहे, देश भी माने लेकिन खोजी प्रवृत्ति के पत्रकार इस विषय पर शोध करना मुनासिब नहीं समझते क्योंकि ये उनकी विचारधारा को सूट नहीं करता। मेरा तो बस यही कहना है, जैसे कि बड़े पत्रकार अकसर हर बात पर कह देते हैं, कि जाँच करवाने में क्या है। करवा लीजिए जाँच करकरे की भी और साध्वी प्रज्ञा की भी। करवाते रहिए जाँच कि किसने आरडीएक्स रखवाए थे और क्यों।
मृतक का सम्मान करना ठीक है, समझदारी भी इसी में है कि अगर पुलिस नामक संस्था की इज़्ज़त बचाने के लिए किसी घटिया पुलिसकर्मी को मेडल भी देना पड़े तो दे दिया जाना चाहिए, लेकिन किसी के जीवन के दस-दस साल बर्बाद करने, उन्हें लगातार टॉर्चर करने वालों के खिलाफ पीड़िता अपना दुःख भी न बाँटे?
और हाँ, जैसा कि ऊपर लिखा, राजनीति है यह। राजनीति में शब्दों से सत्ता पलटी जा सकती है। हिन्दू टेरर भी शब्द ही थे। यहाँ आदर्शवाद को बाहर रखिए। यहाँ हर शब्द तौल कर बोले जाएँगे और हर तरफ से बोले जाएँगे। आपको किसी पीड़िता के द्वारा किसी आततायी को शाप देने पर आपत्ति है कि वो लोकसभा चुनाव लड़ रही है, फिर ‘ज़हर की खेती’, ‘मौत का सौदागर’, ‘भड़वा’, ‘दल्ला’, ‘दरिंदा’, ‘आतंकवादी’ पर आपको आपत्ति क्यों नहीं होती?
या तो आपने हर सच को परख लिया है, आपने हर बयान का सच जान लिया है, या फिर आप अपनी विचारधारा से संबंध रखने वालों के लिए सहानुभूति रखते हैं, और विरोधी विचारों के लिए आप असहिष्णुता दिखाते हैं। साध्वी प्रज्ञा ने भले ही अपने बयान पर खेद व्यक्त किया हो, लेकिन वो एक राजनैतिक निर्णय है, निजी नहीं। इतने समझदार तो आप भी हैं।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को ‘भगवा आतंक’ के एक भयावह सिद्धांत को मूर्त रूप देने के लिए कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा मकोका के तहत जेल में बंद, प्रताड़ित और भयंकर रूप से तोड़ देने के लिए निर्ममता की सारी हदें पार करते हुए टॉर्चर किया गया था। उनके ऊपर की गई बर्बरता की कहानी वह कई बार सुना चुकी हैं। फिलहाल, वह औपचारिक रूप से बीजेपी में शामिल होकर दिग्विजय सिंह के खिलाफ मध्य प्रदेश के भोपाल से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। दिग्विजय सिंह, वह शख़्स हैं जो ‘भगवा आतंक’ सिद्धांत के प्रमुख प्रस्तावक हैं। जबकि ऐसा उन्होंने बिना किसी अधिकृत पोस्ट पर रहते हुए किया था। इससे पता चलता है कि कॉन्ग्रेस का हाथ विनाश और देश की मूल आत्मा को खोखला करने की हर लीला के पीछे कितनी गहराई से शामिल रहा है। इतिहास को जितना कुरेदा जाएगा कॉन्ग्रेस का उतना ही वीभत्स चेहरा सामने आएगा।
अब जबकि साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी और राजनीति में उनके कदमों ने कॉन्ग्रेस ही नहीं बल्कि दिग्विजय सिंह की भी नीदें उड़ा चुकी है। इस बात को और बल तब मिला जब भोपाल में बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “हम भोपाल से यह चुनाव हिन्दू धर्म को आतंकवाद से जोड़कर उसे अपमानित करने की कॉन्ग्रेसी साजिश के खिलाफ लड़ रहे हैं और दिग्विजय सिंह इस साजिश का चेहरा हैं।”
साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी की घोषणा के साथ ही कुछ मीडिया गिरोह के ‘तटस्थ’ टिप्पणीकार उन पर नफरत की बारिश करने के लिए लकड़बग्घे के रूप में बाहर आ चुके हैं, जिन्हे सिर्फ आतंकियों, समुदाय विशेष के मानवाधिकार दिखते हैं, हिन्दुओं के नहीं। इन्हें बर्बर आतंकियों में स्कूल मास्टर का मासूम बेटा नज़र आ जाएगा लेकिन एक साध्वी महिला में इस गिरोह को बिना एक भी सबूत के दुर्दांत आतंकी दिखने लगता है और उसके नाम की आड़ में ये पूरे हिन्दू और सन्यासी समाज को ही ‘भगवा आतंक’ का नाम दे देंगे लेकिन आज तक ये ‘मुस्लिम आतंक/आतंकी’ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं। वहाँ इन्हें भटके हुए नौजवान दिखते हैं जिनका कोई मज़हब नहीं है।
साध्वी प्रज्ञा ने अपने एक बयान में उस पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे को दोषी ठहराया, जो ‘भगवा आतंकी’ कथा को गढ़ने और आगे बढ़ाने और उन पर झूठे आरोप मढ़कर अवैध रूप से कैद में रखने की साजिश का सूत्रधार था। जो 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले के दौरान मारा गया था। उन्होंने कहा कि जब करकरे को जाँच एजेंसी में किसी ने कहा था कि साध्वी को बिना सबूत के नहीं रखा जाना चाहिए और इस प्रकार उनको टॉर्चर करना और उनकी नजरबंदी गैरकानूनी है, तो करकरे ने कहा कि उसे कहीं से भी सबूत जुगाड़ना पड़े या भले ही उसे गढ़ना पड़े, साध्वी प्रज्ञा को जेल में रखने के लिए, वो किसी भी हद तक जाएगा। अपने इसी बयान में साध्वी प्रज्ञा ने यह भी कहा कि करकरे को मार दिया गया क्योंकि उन्होंने उसे शाप दिया था।
#WATCH Pragya Singh Thakur:Maine kaha tera (Mumbai ATS chief late Hemant Karkare) sarvanash hoga.Theek sava mahine mein sutak lagta hai. Jis din main gayi thi us din iske sutak lag gaya tha.Aur theek sava mahine mein jis din atankwadiyon ne isko maara, us din uska anth hua (18.4) pic.twitter.com/COqhEW2Bnc
शाप देने की बात पर मीडिया के तमाम गिरोहों ने साध्वी प्रज्ञा के बयान पर नाराजगी जाहिर की है। क्योंकि अब उन्हें हेमंत में सिर्फ एक कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी नज़र आ रहा है। उसकी तमाम कारस्तानियाँ भुला दी गई हैं।
Will @BJP4India drop Pragya Thakur as its candidate from Bhopal after her disgraceful insult of Hemant Karkare, the man who died during the night of 26-11?She cursed him. Her family. And BJP leaders next to her clapped.
Hemant Karkare gave this interview to me a day before he was martyred in 2008. He was being hounded by right wing outfits for his arrest of Pragya Thakur and Col.Purohit and other seers, a breakthrough expose of right wing terror in Indiahttps://t.co/J2rznoaI9z
हालाँकि, बीजेपी ने भी प्रज्ञा ठाकुर के हेमंत करकरे की मृत्यु वाले बयान से दूरी बना ली है। बीजेपी ने उसे उनकी निजी राय कहा है। बीजेपी ने कहा है कि वह हेमंत करकरे को हुतात्मा मानती है। दूसरी तरफ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने भी अपना बयान वापस ले लिया है और इसके लिए माफी माँगते हुए कहा है कि यह उनका व्यक्तिगत दर्द है।
Pragya Singh Thakur, BJP LS candidate from Bhopal, on her statement on Mumbai ATS Chief late Hemant Karkare: I felt that the enemies of the country were being benefited from it, therefore I take back my statement and apologize for it, it was my personal pain. pic.twitter.com/j7pzrKf6G5
अब जब इतना कुछ सामने है तो इन मीडिया गिरोहों के छद्म आक्रोश से परे, किसी को यह मूल्यांकन करने की आवश्यकता है कि करकरे के खिलाफ जो आरोप लगाया गया है। उसमें कितनी सच्चाई है। उसके लिए, हम एक अंदरूनी सूत्र पर भरोसा कर सकते हैं। आरवीएस मणि एक पूर्व नौकरशाह हैं जिन्होंने कॉन्ग्रेस के दौर में गृह मंत्रालय में एक अंडर-सेक्रेटरी के रूप में काम किया था। अपनी पुस्तक ‘हिंदू टेरर’ में, मणि ने संपूर्ण मिलीभगत का वर्णन किया है और बताया है कि किन-किन खिलाड़ियों ने ‘भगवा आतंक’ की कहानी गढ़ने के लिए मिलीभगत की और कैसे, कई वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी नेता से लेकर कई अन्य लोग इस साजिश में शामिल थे।
हेमंत करकरे के संदर्भ में भी, आरवीएस मणि ने अपनी पुस्तक में कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। आरवीएस मणि ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू टेरर’ में हेमंत करकरे के साथ अपनी पहली मुठभेड़ का भी वर्णन किया है।
आरवीएस मणि नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में 2006 बम विस्फोट के बाद हेमंत करकरे के साथ अपनी बैठक के बारे में बात करते हैं। उन्होंने कहा कि वह उस समय आंतरिक सुरक्षा में काम कर रहे थे और उन्हें गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने बुलाया था। जब उन्हें अंदर ले जाया गया, तो उन्होंने शिवराज पाटिल के कक्ष में दिग्विजय सिंह और हेमंत करकरे को देखा। वह लिखते हैं कि हेमंत करकरे और दिग्विजय सिंह उनसे पूछताछ कर रहे थे, जबकि शिवराज पाटिल थोड़े असंबद्ध दिख रहे थे। उन्होंने उनसे विस्फोट के बारे में कई सवाल पूछे। आरवीएस मणि लिखते हैं कि हेमंत करकरे और दिग्विजय सिंह आरवीएस मणि की जानकारी से बहुत खुश नहीं थे कि एक विशेष मज़हबी समूह अधिकांश आतंकवादी हमलों में शामिल था।
वह लिखते हैं कि कमरे में बातचीत से, वे खुश नहीं थे कि खुफिया सूचनाओं के अनुसार, कट्टरपंथी आतंकवादियों का समर्थन कर रहे थे। उनका कहना है कि उनकी बातचीत में नांदेड़, बजरंग दल आदि के बार-बार संदर्भ थे।
वह नांदेड़ विस्फोट के बारे में आगे बात करते हैं और कहते हैं कि यह पहला मामला था जिसमें ’हिंदू आतंक’ शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया गया था।
आरवीएस मणि कई सवाल उठाते हैं कि दिग्विजय सिंह और हेमंत करकरे इतने करीब क्यों थे? जैसा कि दिग्विजय सिंह ने खुद भी दावा किया था। इनकी करीबी खुद ही कई सवाल खड़े करती है।
आरवीएस मणि लिखते हैं, “यह याद रखना दिलचस्प हो सकता है कि दिग्विजय सिंह ने एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया था कि वह उस समय के एक पुलिस अधिकारी के साथ व्यक्तिगत संपर्क में थे, जो उनके साथ केंद्रीय गृह मंत्री के कमरे में थे और जिन्हे नांदेड़ हमले की जानकारी थी। जिससे दिग्विजय सिंह ने कुछ विशेष सूचनाएँ हासिल करने का दावा भी किया था। सिंह ने मीडिया में इस पुलिस अधिकारी का निजी मोबाइल नंबर भी जारी कर दिया था। यह उस समय के मीडिया रिपोर्टों से सत्यापित किया जा सकता है।”
वे आगे लिखते हैं, “जो पेचीदा था, जिसे मीडिया में से किसी ने भी उस समय या फिर बाद में नहीं पूछा था कि एक राजनीतिक नेता और पड़ोसी राज्य कैडर के आईपीएस अधिकारी के बीच क्या संबंध था? दरअसल, एक राज्य का मुख्यमंत्री रहने के बाद, सिंह को अपने राज्य के कई पुलिस अधिकारी जानते होंगे। लेकिन पड़ोसी राज्य के एक सेवारत IPS अधिकारी के साथ इतना दोस्ताना व्यवहार?, एक ऐसी बात है जिसका जवाब दिया जाना चाहिए। बिना किसी विशेष मकसद के एक आईपीएस अधिकारी एक पड़ोसी राज्य के राजनेता के साथ क्या कर रहा था?
ऑल इंडिया सर्विसेज (एआईएस) आचरण नियम स्पष्ट रूप से अधिकारियों के कार्यों के निर्वहन को छोड़कर अन्य किसी साजिश या विशेष मक़सद के तहत राजनीतिक नेताओं के साथ अखिल भारतीय सेवा कर्मियों का इस तरह का व्यवहार नियमों का उल्लंघन हैं।
आरवीएस मणि अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि इसके तुरंत बाद का घटनाक्रम यह था कि “हिंदू आतंक” रिकॉर्ड में आ गया था, जहाँ यह दावा किया गया था कि नांदेड़ के समीर कुलकर्णी कथित रूप से अपनी कार्यशाला में विस्फोटक का भंडारण कर रहे थे, जिसमें 20.4.2006 को विस्फोट हो गया।
पुस्तक के एक अन्य भाग में, आरवीएस मणि कहते हैं कि जब हेमंत करकरे एटीएस प्रमुख थे, तो अहले-ए-हदीथ/हदीस जो मालेगाँव विस्फोट में शामिल थे, इसका सबूत होने के बाद भी उसे एक साइड कर दिया गया था और इस नैरेटिव को पूरी तरह से बदल दिया गया था। मणि कहते हैं कि यह पहली बार था कि हिंदू संगठनों की भागीदारी की रिपोर्ट मुंबई एटीएस से गृह मंत्रालय को भेजी गई थी और साध्वी प्रज्ञा को मुख्य आरोपी बनाया गया था। वह कहते हैं कि उन्हें पता नहीं है कि मोटरसाइकिल, जो एटीएस के अनुसार प्रमुख साक्ष्य था (जिसकी बाद में व्याख्या हुई कि साध्वी प्रज्ञा द्वारा बेच दी गई थी) को प्लांट किया गया था या नहीं, लेकिन एटीएस द्वारा लगाए गए समय ने कई सवाल खड़े कर दिए थे। उनका कहना है कि मुंबई धमाकों के दौरान एटीएस को गिरफ्तारी करने में 5 महीने से अधिक का समय लगा जबकि मालेगाँव मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी में केवल 35 दिन लगे।
आपको बता दें, हालाँकि बाद में मीडिया द्वारा यह रिपोर्ट भी किया गया था कि एनआईए इस नतीजे पर पहुँची थी कि कर्नल पुरोहित को फँसाने के लिए महाराष्ट्र एटीएस द्वारा आरडीएक्स लगाया गया था।
यह वास्तव में एक तथ्य है कि हेमंत करकरे मुंबई हमलों के दौरान अनुकरणीय साहस दिखाते हुए बलिदान हो गए। यह भी उतना ही सच है कि कई सवाल न केवल अंदरूनी सूत्र आरवीएस मणि और पीड़िता साध्वी प्रज्ञा द्वारा उठाए गए, बल्कि कई अन्य लोगों ने भी आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे के आचरण और उनकी कॉन्ग्रेसी नेताओं से मिलीभगत के बारे में और खासतौर से ‘भगवा आतंक’ का झूठ गढ़ने के लिए उठाए हैं।
सच्चाई शायद बीच में कहीं है। जो भी हो एक दिन ज़रूर सामने आएगा। साध्वी प्रज्ञा को मकोका के तहत आरोपों से बरी कर दिया गया है। कुछ और आरोपों में भी बरी हो चुकीं हैं। फ़र्ज़ी सबूतों के आधार पर आखिर किसी को कब तक फँसाया जा सकता है। एक न एक दिन न्याय की विजय होगी। लेकिन आज भी अधिकांश मामलों में बरी होने के बाद भी मीडिया गिरोहों के स्वघोषित जज उन्हें आरोपित और अपराधी साबित करने में दिन-रात एक किए हुए हैं आखिर इन्हे नमक का क़र्ज़ जो अदा करना है। खैर, साध्वी प्रज्ञा की आवाज़ को चुप कराने की कोशिश करने वाले, इन तमाम मीडिया गिरोहों से कोई भी उम्मीद करना भी बेमानी है। ये खुद ही वकील हैं और जज भी, फैसला अगर इनके अजेंडे के हिसाब का न हो तो ये स्वायत्त संवैधानिक संस्थाओं को भी बदनाम करने से पीछे नहीं हटते।