Sunday, September 29, 2024
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‘जिताऊ’ प्रत्याशी की तलाश में कॉन्ग्रेस ने की बड़ी गलती, सोशल मीडिया पर उड़ा जमकर मजाक

एक तरफ जहाँ चुनाव जीतने के लिए कॉन्ग्रेस हर मामले में उत्सुकता दिखा रही है। जगह-जगह जाकर अपनी जीत की पहले ही घोषणा कर रही है। वहीं कॉन्ग्रेस द्वारा टिकट बँटवारे में बहुत बड़ी गलती सामने आई है। जिसके कारण कॉन्ग्रेस की उत्सुकता का लोगों के बीच मजाक बन रहा है। इसे पार्टी के नेताओं की अपरिपक्वता भी कहा जा सकता है।

दरअसल, जिताऊ प्रत्याशी की तलाश में कॉन्ग्रेस ने यह गलतियाँ की है। गुरुवार (मार्च 28, 2019) को पार्टी ने यूपी की महराजगंज सीट से पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की बेटी तनुश्री त्रिपाठी को बिना यह जाने प्रत्याशी घोषित कर दिया कि उन्हें पहले से ही दूसरी पार्टी अपना उम्मीदवार बनाकर उतार चुकी है।

जी हाँ। जिन तनुश्री में कॉन्ग्रेस अपना जिताऊ प्रत्याशी तलाश रही थी, उन्हें शिवपाल सिंह यादव के नेतृत्व वाली प्रसपा ने महराजगंज से अपना प्रत्याशी बनाया हुआ है।

विधानसभा चुनाव में अमरमणि के बेटे अमनमणि ने भी कॉन्ग्रेस से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन कॉन्ग्रेस ने उन्हें मना कर दिया। इसके बाद अमन ने निर्दलीय चुनाव लड़के जीत हासिल की। जिसके चलते कॉन्ग्रेस को उनकी बहन तनुश्री में जिताऊ प्रत्याशी का चेहरा दिखने लगा।

कॉन्ग्रेस का चुनावों को लेकर ऐसा गैर-जिम्मेदाराना बर्ताव देखकर, सोशल मीडिया ने कॉन्ग्रेस की जमकर चुटकी ली। जिसके कारण शुक्रवार (मार्च 29, 2019) की सुबह अपनी गलती मानते हुए वहाँ से पूर्व सांसद हर्षवर्धन सिंह की बेटी सुप्रिया श्रीनेट को टिकट दे दिया

यहाँ बता दें कि जिन तनुश्री को टिकट देने के लिए कॉन्ग्रेस ने इतनी आतुरता दिखाई है, उनके माता-पिता (अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि) कवियत्री मधुमिता हत्याकांड में जेल में हैं।

23 मई की जगह 28 मई को आएँगे लोकसभा चुनाव के नतीजे, ये है वजह…

लोकसभा चुनावों की तारीखों के ऐलान के बाद एक बार फिर से ईवीएम और वीवीपैट मशीनों को लेकर बहसबाजी शुरु हो गई है। विपक्षी दलों की तरफ से चुनाव आयोग पर सवाल उठाए जा रहे हैं। विपक्षी दलों द्वारा ईवीएम और वीवीपैट पर्चियों का मिलान 50 फीसदी तक बढ़ाने की माँग अगर मान ली गई तो चुनाव नतीजे आने में तकरीबन 5 दिन ज्यादा लग सकते हैं।

चुनाव आयोग ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी है। चुनाव आयोग ने और भी कई चुनौतियों की बात कही है। आयोग के मुताबिक, गिनती के लिए बड़े पैमाने पर सक्षम स्टाफ की जरूरत होगी। इतना ही नहीं, ऐसे गिनती करने के लिए बड़े काउंटिंग हॉल्स की भी जरूरत होगी।

गौरतलब है कि, 21 विपक्षी दलों के नेताओं ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर माँग की थी कि एक निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम 50 प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों की मिलान किया जाए, ताकि चुनावी प्रक्रिया की शुद्धता पर आँच न आए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से विचार करने को कहा था। इसके जवाब में चुनाव आयोग ने कहा, “अगर हर संसदीय या विधानसभा क्षेत्र की 50 प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाएगा, तो इससे गिनती करने का वक्त बढ़ेगा। इसमें करीब 5 दिन तक ज्यादा लग सकते हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों की घोषणा 23 मई की जगह 28 मई को हो पाएगी।”

इसके साथ ही चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि फिलहाल ऑटोमैटिक रूप से पर्चियों के मिलान का तरीका उपलब्ध नहीं है। आयोग ने कहा कि अभी फिलहाल कोई मकेनिकल सिस्टम नहीं है, क्योंकि वीवीपैट से निकल रही स्लिप पर कोई बारकोड नहीं लगा है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के नतीजे 28 तो वहीं विधानसभा चुनाव के नतीजे 30 या 31 से पहले नहीं आ पाएँगे।

बता दें कि, वर्तमान में चुनाव आयोग प्रत्येक क्षेत्र से कोई भी एक ईवीएम का चुनाव करता है और उसकी पर्चियों का मिलान करने का काम करता है। फिलहाल देश में कुल 10.35 लाख पोलिंग स्टेशन हैं और अगर औसत की बात करें, तो एक असेंबली सीट में 250 पोलिंग स्टेशन है। आयोग की मानें तो, एक पोलिंग स्टेशन पर वीवीपैट काउंटिंग में फिलहाल एक घंटे का समय लगता है। लेकिन यदि इसे 50 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया, तो इसमें औसतन 5.2 दिन का वक्त लग जाएगा।

कश्मीर में सुरक्षाबलों ने तीन महीने में मार गिराए 48 आतंकी, अलगाववाद से लेकर आतंकवाद पर पैनी नज़र

लोकसभा चुनाव की घड़ियाँ नजदीक हैं। सरकार के पास इस समय कई चुनौतियाँ हैं। खासतौर से जम्मू-कश्मीर में जहाँ अभी भी कई आतंकी रह-रह कर सक्रीय भूमिका में आ रहे हैं। अलगाववादियों पर कार्रवाई के बाद से वो भी चुनाव में माहौल बिगाड़ने के लिए सक्रीय हैं। इस समय कश्मीर में सुरक्षा बल अपना दोहरा दायित्व निभा रहे हैं। एक तरफ घाटी में लोक सभा चुनाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए खतरा माने जा रहे आतंकियों को ढेर करने का सिलसिला जारी है। अब तक हुए सर्च अभियान और मुठभेड़ में तीन महीने में 48 आतंकियों को सुरक्षा बल मौत के घाट उतार चुके हैं।

दूसरी तरफ आम कश्मीरियों को सुरक्षाबल समझा और यकीन दिला रहे हैं कि उनके विकास और बेहतरी के लिए चुनाव प्रक्रिया में भाग लेना जरूरी है। किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है। सुरक्षा बल से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि आम लोग चुनावों में दिलचस्पी ले रहे हैं लेकिन भय और दहशत का माहौल खत्म करना सुरक्षा बलों की पहली जिम्मेदारी है और हम इस अभियान में जुटे हैं।

घाटी में आतंकी गुटों का साथ देने वालों को भी स्पष्ट रूप से आगाह किया जा रहा है कि अगर वे मुख्यधारा से अलग सोच के साथ खड़े होंगे तो उन्हें दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सीआरपीएफ के हवाले से कहा गया कि तीन महीने में सुरक्षा बल उच्च स्तर से मिले संदेश के मुताबिक आतंकियों को ठिकाने लगाने में जुटे हैं। करीब 90 दिन के भीतर जिन 48 आतंकियों को मार गिराने में सफलता मिली है, उनमें जैश के अलावा स्थानीय आतंकी भी शामिल हैं।

सुरक्षा एजेंसियों को सूचना मिली है कि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी व जेकेएलएफ के सदस्यों ने नाम बदलकर गुपचुप तरीके से अपनी गतिविधि शुरू की है। वे स्थानीय लोगों को चुनाव से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी जा रही है।

रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षा बलों से जुड़े सूत्रों ने कहा कि चुनाव के दौरान आतंकवादी गुट अलगाववादी नेताओं के साथ मिलीभगत करके बड़े पैमाने पर हिंसा की साजिश रच रहे हैं। इसके चलते शांतिपूर्ण चुनाव कराना सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती है। सुरक्षा एजेंसियों ने खुफिया एजेंसियों की मदद से पूरे घाटी में सघन अभियान शुरू किया है। हर इलाके में सक्रिय आतंकी व अलगाववादी गुटों की गतिविधि खंगाली जा रही है। जिस पर भी लोकसभा चुनाव के दौरान हिंसा या अराजकता फैलाने का संदेह है या जिनकी ऐसी हिस्ट्री रही है, उन्हें हिरासत में भी लिया जा रहा है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षा बलों के अधिकारियों ने कहा कि घाटी में सुरक्षा बल आतंकियों व अलगाववादी गुटों की हर रणनीति का जवाब देने को तैयार हैं।

बालाकोट एयर स्ट्राइक का सबूत मिटा, 32 दिन बाद पाकिस्तान ने मीडिया को दिखाया आतंकी कैंप

पाकिस्तान के बालाकोट पर भारतीय वायु सेना द्वारा किए गए एयर स्ट्राइक के तकरीबन एक महीने बाद पाकिस्तान ने उस जगह पर मीडिया को जाने की इजाजत दी, जहाँं पर एयर स्ट्राइक किया गया था। बता दें कि 14 फरवरी, 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सेना के काफिले पर हुए हमले का भारतीय वायु सेना ने जिस तरह से जवाब दिया था, उससे आज भी पाकिस्तान डरा हुआ है। लेकिन सार्वजनिक तौर पर वो आज तक इसलिए नहीं बोल पा रहा क्योंकि उसे लगता है कि इससे उसकी बदनामी होगी।

सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले के ठीक 12 दिन बाद 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में जैश के ठिकानों एयर स्ट्राइक किया था, जिसमें 300 से ज्यादा आतंकियों के मारे जाने का दावा किया गया। मगर पाकिस्तान इसे नकारता रहा। पाकिस्तान ने विदेशी मीडिया को भी उस जगह जाने की इजाजत नहीं दी, जिस जगह पर भारतीय वायु सेना ने एयर स्ट्राइक किया था। अब एयरस्ट्राइक के 32 दिन बार पाकिस्तानी सेना, पत्रकारों के एक ग्रुप को घटनास्थल पर लेकर गई।

हालाँकि सच जानने गए पत्रकारों को यहाँ भी निराशा ही हाथ लगी। बालाकोट के कुछ इलाके अभी भी पाकिस्तानी अर्द्धसैनिक बलों ने घेर रखे हैं। वहाँ पर किसी को जाने की इजाजत नहीं है। रक्षा मंत्रालय से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, पाकिस्तान ने इन 32 दिनों में बालाकोट का हुलिया बदलकर दुनिया को ऐसा दिखाने को कोशिश की है, जैसे कि ये कोई आम मदरसा है। 28 मार्च को आठ मीडिया टीम के सदस्यों को बालाकोट कैंप के अंदर ले जाने से पहले 300 के करीब बच्चों को कैंप में बैठा दिया गया था और सभी बच्चों को पहले ही ये समझा दिया गया था कि उन्हें मीडिया के सामने क्या बोलना है।

इससे पहले मीडिया एजेंसी रॉयटर्स की टीम ने 28 फरवरी से लेकर 8 मार्च के बीच तीन बार बालाकोट में जाने की कोशिश की, लेकिन पाक सेना ने कभी खराब मौसम की बात कहकर तो कभी सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए तीनों ही बार उन्हें मना कर दिया।

जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान ने बालाकोट में हुए एयर स्ट्राइक के बाद से पाकिस्तानी सेना की फ्रंटियर कोर को तैनात कर दिया था। इसके बाद गुपचुप तरीके से आतंकियों के शवों को हटाया गया, तबाह हुए कैंप को सही किया गया और फिर मीडिया टीम को बालाकोट कैंप के अंदर ले जाया गया।


मोहम्मद रोशन के खिलाफ नाबालिग के यौन उत्पीड़न करने पर केस दर्ज, दर्ज हो सकता है PoCSO

कोल्लम की पुलिस टीम मार्च 18, 2019 दोपहर अपहरण की गई राजस्थानी लड़की को ओचिरा ले आई है। टीम ने उसे मंगलवार (मार्च 26, 2019)  को मुंबई के पनवेल में मुख्य आरोपित मुहम्मद रोशन के साथ पाया।

रोशन पर फिलहाल नाबालिग लड़की का अपहरण करने का आरोप है, यदि इसे यौन शोषण के साथ लगाया जाता है तो मामला गंभीर हो सकता है। रोशन को पनवेल की एक अदालत के सामने पेश किया गया और ट्रांजिट वारंट के तहत सड़क मार्ग से कोल्लम लाया गया।

मोहम्मद रोशन ने 3 अन्य साथियों के साथ मिलकर लड़की का 18 मार्च को ओचिरा में उसके किराए के घर से अपहरण कर लिया था। हालाँकि, लड़की ने पुलिस को बताया कि वह पिछले दो वर्षों से रोशन के साथ प्यार में थी और उसके साथ ही जीना चाहती है।

जबकि, पुलिस का कहना है कि लड़की नाबालिग है, मोहम्मद रोशन के रिश्तेदारों ने आरोप लगाया है कि लड़की के परिवार ने उसकी उम्र पर पुलिस को गुमराह किया था और वह नाबालिग नहीं थी।

पुलिस को उस लड़की के स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट की एक प्रति मिली, जिसमें उसकी जन्मतिथि सितंबर 2001 दर्ज की गई है, जिससे साबित होता है कि वह नाबालिग है। पुलिस राजस्थान के रामपुरा में उसके स्कूल का दौरा करेगी, जहाँ उसके बारे में अधिक जानकारी एकत्र की जा सकेगी।

चूँकि, अगवा की गई लड़की की उम्र सर्टिफिकेट अनुसार 18 वर्ष से कम हो गई है, इसलिए पुलिस सभी 4 आरोपितों को यौन अपराध से संरक्षण अधिनियम (PoCSO) अधिनियम, 2012 की धाराओं के साथ कार्रवाई करने पर विचार कर रही है। इस मामले में पेइन्कुझी के बिपिन (20), ओचिरा के मेमना साउथ के कानाट्टा के मुहम्मद रोशन (21) चांगंकुलंगरा के 20 साल के पियारी आरोपित हैं।

पुलिस के मुताबिक, मुहम्मद रोशन बच्ची को कोच्चि से ट्रेन में बेंगलुरु और फिर मुंबई ले गया था। पुलिस टीम ने आरोपितों को एक रिश्तेदार द्वारा मुंबई में उन्हें ट्रेस करने के लिए किए गए फोन कॉल द्वारा ट्रैक किया था। पुलिस टीम ने मुंबई में उन्हें पकड़ने से पहले राजस्थान और बेंगलुरु में जोर शोर से तलाशी की थी।

एक राजस्थानी दंपति की बेटी का मोहम्मद रोशन के नेतृत्व में एक गिरोह द्वारा कथित रूप से अपहरण कर लिया गया था। 18 मार्च की रात 10 बजे के आसपास एक किराए की कार में लड़की के माता-पिता की पिटाई की गई थी और उसके बाद नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया गया था।

राजस्थान का परिवार पिछले दो साल से ओचीरा में रह रहा है और रास्ते में मिट्टी की मूर्तियाँ बेचता है। आजकल वे ओचिरा-वलियाकुलंगारा क्षेत्र में अपनी मूर्तियाँ बेच रहे थे।

शुक्रिया TOI, ये बताने के लिए कि क्रिस गेल उर्फ़ कृष्ण गोयल ने BJP ज्वाइन नहीं की है!

हाल ही के कुछ वर्षों में ‘MEME संस्कृति’ ने इंटरनेट से लेकर लोगों के आम बोलचाल के तरीकों को बहुत हद तक प्रभावित किया है। व्यंग्य हो या फिर हंसी-मजाक के तौर पर अपनी बात रखनी हो, लोग MEME के माध्यम से राजनीति से लेकर सामाजिक गतिविधियों पर अपनी राय रखते नजर आते हैं।

इसी क्रम में भारतीय राजनीति में ये दौर तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सोशल मीडिया MEME वायरल होने शुरू हुए। इन MEME में योगी आदित्यनाथ को लोगों को फोन कॉल पर इलाहाबाद से प्रयागराज की तर्ज पर उनके नाम बदलते हुए दिखाया जाता है।

MEME ही जीवन जैसे ‘Fun Liners’ को टाइम्स ऑफ़ इंडिया (TOI) ग्रुप ने सत्य मान लिया और एक कदम आगे जाते हुए MEME का भी फैक्ट चेक कर उसकी पुष्टि कर डाली। इसी तरह से ‘दी लल्लनटॉप‘ नाम की एक वेबसाइट ने भी एक बार MEME बनाने वाले फेसबुक पेजों पर निबंध लिखकर ब्राह्मणवाद से लेकर पितृसत्ता तक को गाली देकर पत्रकारिता में नए कीर्तिमान स्थापित किए थे।

लेकिन TOI जैसे मुख्यधारा के समाचार चैनलों द्वारा इस तरह की पहले से ही भंडाफोड़ ख़बरों का भंडाफोड़ करना हास्यास्पद और निराशाजनक है। TOI ने वेस्टइंडीज के क्रिकेटर क्रिस गेल की एक तस्वीर को ये कहते हुए बताया है कि यह आदमी कृष्णा गोयल नहीं बल्कि क्रिस गेल है और इन्होने बीजेपी जॉइन नहीं की है, ना ही क्रिस गेल भाजपा के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

TOI द्वारा किए गए ‘फैक्ट चेक’ का स्क्रीनशॉट

यह बात एक औसत IQ वाला प्रत्येक व्यक्ति जनता है कि कौन-सी चीज हास्य के लिए और कौन-सी चीज गंभीर तरीके से इस्तेमाल की जा सकती है। इसी तरह की एक बेवकूफाना हरकत कुछ दिन पहले कुछ मीडिया गिरोहों द्वारा भी की गई थी। यह प्रमाणित करता है कि जिन लोगों को ये मीडिया गिरोह फैक्ट चेक के माध्यम से शिक्षित करने का प्रयास करते हैं, उनका हास्य और जानकारी का स्तर फैक्ट चेकर्स से कहीं ज्यादा है।

भगोड़े नीरव मोदी को नहीं मिली जमानत, गवाह को दी जान से मारने की धमकी, था भागने की फ़िराक़ में

पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी) घोटाले के मुख्य आरोपित भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी की जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू हुई। लंदन की वेस्टमिंस्टर कोर्ट में नीरव मोदी की जमानत पर सुनवाई लम्बे समय तक चली। अभी कोर्ट ने उसकी जमानत रद्द कर दी है।

टोबी कैडमैन ने अदालत में कहा कि नीरव मोदी भारतीय एजेंसियों के साथ सहयोग नहीं कर रहा है और उसके भाग जाने का डर है। टोबी ने कहा कि इस बात का डर भी है कि वह गवाहों को बरगला सकता है और सबूत नष्ट कर सकता है। कैडमैन ने अदालत में कहा कि नीरव मोदी ने एक गवाह आशीष को बुलाया और उसे जान से मारने की धमकी दी। 

भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी दूसरी बार जमानत याचिका लेकर लंदन की वेस्टमिंस्टर की मजिस्ट्रेट अदालत के सामने पेश हुआ। अदालत में भारतीय जाँच एजेंसियों की ओर से पेश हुई क्राउन प्रोसेक्यूशन सर्विस ने कोर्ट में कहा कि नीरव मोदी ने गवाहों को धमकाते हुए एक गवाह को जान से मारने की धमकी दी है। क्राउन सर्विस ने PNB घोटाला केस के गवाह आशीष लड के फोन कॉल डिटेल्स के जरिए यह खुलासा किया है।

नीरव मोदी ने आशीष को फोन करके धमकी दी है कि अगर वह कोर्ट में उसके खिलाफ गवाही देगा तो जान से हाथ धो बैठेगा। नीरव की जमानत का विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष ने कहा कि वह कोर्ट में गवाही से पहले गवाहों को प्रभावित कर सकता है। साथ ही, क्राउस एजेंसी ने कोर्ट के बताया कि नीरव कई मुल्कों की यात्रा कर चुका है। क्राउन एजेंसी ने कोर्ट को बताया कि नीरव मोदी उन देशों में निवेश करके नागरिकता लेना चाहता है, जिनके साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है।

इससे पहले लंदन के वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में भारतीय अधिकारियों की ओर से अभियोजन का प्रतिनिधित्व करने वाले टोबी कैडमैन ने समाचार एजेंसी ANI को बताया था कि नीरव मोदी को जमानत मिलने पर वो इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करेंगे। उन्होंने विश्वास दिलाया कि वह सब कुछ करेंगे जिससे वह रिहा न हो सके।

भारतीय एजेंसियों का पक्ष रख रहे क्राउन प्रोसेक्यूशन सर्विस ने पहली सुनवाई के दौरान कहा था कि नीरव मोदी करीब 2 अरब डॉलर के मनी लॉड्रिंग और धोखाधड़ी के मामले में वॉन्टेड है। शुक्रवार (मार्च 29, 2019) की सुनवाई में क्राउन प्रोसेक्यूशन सर्विस का सहयोग सीबीआई और प्रत्यर्पण निदेशालय (ED) की एक टीम कर रही है।

55 साल ‘करेंगे’ की जुमलेबाजी बनाम 55 महीने का ‘कर दिया’ वाला काम

इधर, 55 महीने में गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, किसानों, युवाओं और महिलाओं सहित देश के नागरिकों को आर्थिक सशक्तिकरण के साथ सामाजिक न्याय दिलाकर सशक्त व समृद्ध भारत न्यू इंडिया बनाने का दावा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार का हिसाब है, उधर 55 साल से कभी न पूरे होने वाले कॉन्ग्रेस के वादों की झड़ी है और विपक्ष के जुमलों की लड़ी है।

चुनावी माहौल आते ही जुमलेबाजी की रफ्तार बढ़ चुकी है। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपने परनाना जवाहर लाल नेहरू, दादी इंदिरा गाँधी, पिता राजीव गाँधी और माँ सोनिया गाँधी की तरह ही फिर से ‘गरीबी हटाओ’ का राग अलापने लगे हैं। अपने पुरखों की तरह ही उन्होंने भी गरीबी हटाओ की एक हवा-हवाई अव्यवहारिक स्कीम ‘न्याय’ का शिगूफा छोड़ा है।

यह अलग बात है कि छह दशक तक न्याय की दुहाई देकर सत्ता पर कब्जा करने वाला गाँधी परिवार व कॉन्ग्रेस जनता को न्याय तो न दे सकी, हाँ… भ्रष्टाचार, वंशवाद, परिवारवाद, लोकतंत्र की हत्या करने वाला आपातकाल, आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, उग्रवाद, भारतीय भूभाग कश्मीर के एक हिस्से पर चीन व पाकिस्तान का कब्जा कराना, तिब्बत को चीन को सौंप देना, सिंधु जल बंटवारा करके भारत के लोगों का हक अन्यायपूर्ण तरीके से पाकिस्तान को दे देना, रक्षा सौदों में दलाली, बोफोर्स रिश्वत कांड (1987), जीप घोटाला (1948), आयल घोटाला, साइकिल घोटाला (1951), मुंधा घोटाला (1958), इंदिरा गांधी की संदिग्ध भूमिका वाला मारुति कार घोटाला, आयल घोटाला (1976), पनडुब्बी घोटाला (1987), स्टॉक मार्केट घोटाला, (1992), सिक्योरिटी घोटाला, एयरबस घोटाला, यूरिया घोटाला, स्टाम्प पेपर घोटाला, सत्यम घोटाला, 1 लाख 76 हजार करोड़ का 2 जी मामला, कॉमनवेल्थ घोटाला, देवास एंट्रिक्स घोटाला, हेलीकॉप्टर खरीद में गांधी परिवार को रिश्वत घोटाला, कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी और वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा नेशनल हेराल्ड की 5000 करोड़ रुपए की संपत्ति का गमन मामला, प्रियंका वाड्रा के पति राबर्ट वाड्रा के लिये देशभर में हजारों एकड़ जमीन पर कब्जा मामला, असुरक्षित सीमाएँ, हथियारों व साजोसामान से वंचित सेना, निर्दोषों को फँसाकर हिंदू आतंकवाद की थियरी गढ़ना, विजय माल्या, नीरव सहित गाँधी परिवार के करीबी अनेक बेईमानों को जनता का हजारों करोड़ रुपए लुटा देना आदि जरूर दिया।

अब जरा वर्तमान मोदी सरकार का भी हिसाब लिया जाए। विश्व बैंक के ब्रूकिंग्स संस्थान के फ्यूचर डेवलपमेंट की अद्यतन रिपोर्ट ने माना है कि 2016 के बाद भारत में गरीबों की संख्या में स्टीप फाल यानी तीव्र गिरावट आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार केवल दो साल जनवरी 16 से मई 18 तक में ही भारत में गरीबों की संख्या 12.30 करोड़ से घटकर लगभग आधी यानी 7.3 करोड़ रह गई और प्रति मिनट 44 व्यक्ति गरीबी रेखा से ऊपर जा रहा है। इसी रिपोर्ट के अनुसार इसी समयावधि में भारत ने चीन की 6.8 प्रतिशत वृद्धि दर को पीछे छोड़कर 7 प्रतिशत से अधिक वृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेज विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था बन गई।

कॉन्ग्रेस के 55 साल के शासन में देश का हर पाँचवाँ व्यक्ति घोर गरीबी में जीवनयापन कर रहा था। आज देश की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ है। पिछले पाँच साल में गरीबी उन्मूलन की सफलता की दर ऐसी रही कि गरीबों की 21.6 करोड़ से घटकर 5 करोड़ के आसपास अर्थात लगभग 3.8 प्रतिशत रह गई है। ब्रूकिंग्स ​रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान की मोदी सरकार द्वारा हासिल की गई आर्थिक संवृद्धि दर बनी रही तो 2022 तक शेष 5 करोड़ लोग भी गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो जाएँगे यानी भारत गरीबी से मुक्त हो जाएगा।

गरीबी को नारा बनाकर गरीब को बिसराने वाली कॉन्ग्रेस यदि विश्व बैंक के इन प्रमाण को झुठलाकर भ्रम की राजनीति के सहारे चुनाव जीतना चाहती है तो उसे यह जवाब तो देना होगा कि गाँधी परिवार की पाँच पीढ़ियों के गरीबों के हटाओ के नारे देने के बावजूद उनके शासनकाल में देश में गरीबी, अमीर और गरीब के बीच खाई और एक प्रतिशत धनी लोगों के पास देश का 73 प्रतिशत धन कैसे रहा?

दरअसल, देश की राजनीति की दिशा हवा-हवाई नारों और खोखले वादों के दौर से निकलकर पॉलीटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस की ओर बढ़ चली है। हाल ही हुए सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के सर्वे में 64 प्रतिशत लोगों ने माना है कि 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार बनने के बाद सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म हुआ है। इस सर्वे के आँकड़े यह भी बताते हैं कि 57 प्रतिशत लोगों का कहना है, मोदी सरकार में आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगी है और जीवन लागत घटी है। जबकि 75 प्रतिशत लोगों की राय है कि सरकार की कार्यशैली व प्रदर्शन उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप रहा है। 48 प्रतिशत लोगों का कहना था कि सरकार ने बेरोजगारी की समस्या के समाधान की दिशा में संतोषजनक कार्य किया है। 55 प्रतिशत लोगों ने माना कि मोदी सरकार के कार्यकाल में महिलाओं व बच्चों के विरुद्ध अपराध कम हुए हैं। संसद के कामकाज को लेकर 65 प्रतिशत लोग मोदी सरकार के संसदीय प्रबंधन एवं कार्यों को संतोषप्रद बताया है। बड़ी संख्या में लोगों ने यह भी माना कि इस सरकार में आतंकवाद व सांप्रदायिकता की घटनाएं कम हुई हैं और सरकार ने पाकिस्तान के मामले ठीक से हैंडल किया है।

इस सर्वे में 30 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि मोदी सरकार ने उनकी आशाओं और आकांक्षाओं से बढ़कर काम किया है, जबकि 45 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि मोदी सरकार उनकी आकांक्षाओं को पूरा कर रही है। इस प्रकार 75 प्रतिशत लोगों ने माना है कि मोदी सरकार पाँच साल के अपने कामों के माध्यम से जनता की आकांक्षाओं पर खरी उतरी है। इस सर्वे में मोदी सरकार द्वारा पिछले पाँच साल में शुरू किये गए मिशनों व कार्यक्रमों जैसे आयकर में कटौती, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिये आरक्षण, स्टार्टअप के लिए एंजल टैक्स, आयुष्मान भारत के माध्यम से जन स्वास्थ्य सुरक्षा आदि के आधार पर नागरिकों से फीडबैक लिया गया।

यह देखकर कहा जा सकता है कि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं को देश का चौकीदार बताते हैं, उसी तरह जनता भी चौकीदार बनकर बड़ी बारीकी से सरकारों के कामकाज की निगरानी कर रही है और अच्छा या ख़राब का निर्णय स्वयं लेने लगी है। ऐसे में हवा-हवाई और अव्यवहारिक घोषणाएँ करके चुनाव जीतने की घिसी-पिटी राजनीति के चादर में लिपटे दलों का हश्र क्या होगा, यह आगामी 23 मई को सामने आ जाएगा। किंतु एक बात तय है कि अब जनता के निर्णय का पैमाना बदल चुका है और प्रेरक राजनीति और सकारात्मक प्रगतिशील सुशासन इसका आधार बनने लगा है।

प्रियंका गाँधी ने ‘मनरेगा’ पर बोले लगातार झूठ, ये रहे सही आँकड़े

अभी-अभी राजनीति में क़दम रखने वाली प्रियंका गाँधी को राजनीति की इतनी समझ नहीं है जिसका वो दिखावा करती हैं। इसी दिखावे का प्रचार करने आज वो अयोध्या पहुँची जहाँ उन्होंने मोदी सरकार की जमकर आलोचना की।

अयोध्या से अपनी प्रत्याशी निर्मल खत्री के समर्थन में पहुँची प्रियंका ने अपने तंज भरे शब्दों से मोदी सरकार की एक के बाद एक मनगढ़ंत कमियों का बखान किया, इसमें उन्होंने कहा कि ये लोग संविधान, लोकतंत्र और संस्थाओं को नष्ट कर देना चाहते हैं। जबकि संविधान औऱ लोकतंत्र, जनता को मज़बूत बनाते हैं। चूँकि मोदी सरकार काम करने की बजाए सिर्फ़ बातें करती है इसलिए आपको मज़बूत नहीं होने देना चाहते। मोदी सरकार को निशाना बनाते हुए प्रियंका ने कहा कि देश में वर्तमान सरकार से दुर्बल सरकार और कोई सरकार नहीं रही है।

वर्तमान सरकार को दुर्बल सरकार बताने वाली प्रियंका गाँधी अपने इन कथनों से केवल और केवल पीएम मोदी को घेरने का प्रयास करती नज़र आईं। जबकि सच्चाई यह है कि इस समय कॉन्ग्रेस ख़ुद दुर्बलता की कगार तक पहुँच चुकी है। यह कॉन्ग्रेस की लाचारी और बेबसी ही है जो रह-रह कर इस रूप में बाहर आती है।

अपने भाषण में प्रियंका ने कई ऐसे मुद्दे उठाए जिनका सच्चाई से कोई लेना-देना ही नहीं था। अपने भाषण में प्रियंका ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अपने पाँच साल के कार्यकाल में चीन, अमेरिका, जापान और अफ्रीका समेत बाकी सारी दुनिया का भ्रमण करते हैंं लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र और ग्रामीण इलाक़ों में नहीं जाते। इसके पीछे वजह यह है कि गाँव में उन्हें सच्चाई दिखाई देती है।

प्रियंका गाँधी की इस तरह की बचकानी बातों को उनका कोरा ज्ञान ना कहा जाए तो भला और क्या कहा जाए। वाराणसी का कायाकल्प आज की तारीख़ में जगज़ाहिर है। उनके लगभग साढ़े चार साल के कार्यकाल में वहाँ 126 प्रोजेक्ट को पूरा करवाया गया। कुल 4679.79 करोड़ रुपए की लागत से वाराणसी के कायाकल्प में वे सभी आधारभूत सुधार शामिल हैं जिनसे आम जन-जीवन लाभान्वित हुआ।

वाराणसी में विकास के तहत नगर के इंफ्रास्ट्रकचर में ज़बरदस्त सुधार, मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का भव्य पुनर्निर्माण, सड़कों का निर्माण, गलियों-चौराहों की बेहतरी, अंडरग्राउंड वायरिंग से बिजली के तारों को व्यवस्थित करना, पेयजल की व्यवस्था, सीवरेज व्यवस्था, नगर पहले से अधिक साफ़-सुथरा है, बीएचयू ट्रामा सेंटर, बुनकरों के लिए ट्रेड फेसिलिटेशन सेंटर, अस्सी घाटों की सफ़ाई, बैटरी रिक्शों का वितरण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, गंगा सफ़ाई परियोजना, गंगा में सीवर जाना बंद किया गया, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए और वंदे भारत एक्सप्रेस और बिजली व्यवस्था को दुरुस्त करने से लेकर तमाम ढाँचागत परियोजनाओं को समय पर पूरा किया गया।

कॉन्ग्रेस को यह बख़ूबी मालूम है कि पीएम मोदी ने पिछले पाँच साल में न सिर्फ़ अपने संसदीय क्षेत्र में विकास किया बल्कि समूचे भारत में विकास की नींव को मज़बूत भी किया।

आगे बढ़ते हैं और आपको बताते हैं कि प्रियंका गाँधी जब मंच से बोलती हैं तो झूठ बोलने की हद से भी गुज़र जाती हैं। अयोध्या के ही मंच से उन्होंने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि ग्रामीण इलाक़ों में हर परिवार को 100 दिन के रोज़गार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना को वो ख़त्म कर देना चाहते हैं और साथ ही आरोप लगाया कि पिछले छह महीने से भुगतान नहीं किया जा रहा है। मनरेगा का पैसा ठेकेदारों को दिया जा रहा है और वे ठेकेदार क्षेत्र के ग्रामीणों के बजाय मज़दूरों से काम करा रहे हैं। उनका यह कथन इतना बेबुनियादी है इसका जवाब तो सोशल मीडिया पर लोगों ने खरी-खोटी सुनाकर दिया।

एक यूज़र ने ट्वीट किया कि प्रियंका गाँधी झूठी हैं और 2017-18 में मनरेगा का 85% भुगतान 15 दिनों के भीतर किया गया जबकि कॉन्ग्रेस के शासनकाल में 15 दिनों के भीतर केवल 34% भुगतान किया गया। सवालिया होते हुए लिखा कि मोदी सरकार ने 1 करोड़ फ़र्ज़ी जॉब कार्ड और 3 करोड़ फ़र्ज़ी लाभार्थियों को हटा दिया, आख़िर वो पैसा कौन ले रहा था?

एक अन्य ट्विटर यूज़र ने लिखा कि 2013-14 के बीच 34%, 2017-18 के बीच 85% और 2018-19 के बीच 93% भुगतान किया गया, बावजूद इसके कोई न्यूट्रल पत्रकार गाँधी परिवार से सवाल नहीं करेगा।

ट्विटर पर ही अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करते हुए एक यूज़र ने लिखा कि कॉन्ग्रेस केवल झूठ बोलना जानती है, इससे ज़्यादा की कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। 2013-14 के बीच वो (प्रियंका गाँधी) वाड्रा के पैसे गिनने में व्यस्त थीं। इसके जवाब में एक अन्य यूजर ने ट्वीट किया कि प्रियंका गाँधी का भाई झूठ बोलता है, मम्मी झूठ बोलती हैं, उनका पति झूठ बोलता है और वो ख़ुद भी झूठ बोलती हैं…पूरा परिवार झूठा है।

इन सभी प्रतिक्रियाओं से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि गाँधी-वाड्रा परिवार के कारनामें लोगों को ज़ुबानी याद हैं जिसे वो खुलकर उजागर भी करते हैं। बावजूद इसके कॉन्ग्रेस झूठ की चरस बोने से कभी बाज नहीं आती। यह जानते हुए कि पिछले पाँच वर्षों में मोदी सरकार द्वारा किया गया विकास उसकी सोचने से भी परे है। लेकिन कॉन्ग्रेस की सच से मुँह फ़ेरने की आदत पुरानी है जिसे वो चाहे भी तो भी नहीं छोड़ सकती।

बता दें कि 2014 के बाद से एक आम जन के जीवन में जो सुधार आया है वो पहले लोगों की सोच से भी परे था। देश के भीतर तो तमाम योजनाओं के माध्यम से विकास किया ही गया साथ ही वैश्विक स्तर पर भारत ने अपने संबंधों की बुनियाद को भी मज़बूत  किया गया। लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि कॉन्ग्रेस अपने ख़ुद के दु:खों से पार ही नहीं पा रही है, जिसकी वजह से ले-देकर उसे एक मोदी ही दिखते हैं जिनपर वो अपनी भड़ास निकालकर ख़ुश होने के नए आयाम तलाशती है। सच पूछो तो कॉन्ग्रेस की बेबसी अब किसी से छिपी नहीं है लेकिन सत्ता की भूख और लालसा उसे इस हद तक गिरने पर मजबूर कर रही है, जिसका प्रदर्शन आए दिन इन्हीं मंचो से होता रहता है।

बिहार में शराब बंदी ने दिया है महिलाओं को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार

शराब-बंदी और दहेज विरोधी आंदोलनों का भारत में अपना इतिहास रहा है। इन आंदोलनों को आश्चर्यजनक तरीके से भारत में अलग अलग तरीकों से स्त्रियाँ चलाती रही हैं। जिसका एक सिरा समाज सुधार से जुड़ता है तो वहीं दूसरा सिरा नारीवादी आंदोलनों की पृष्ठभूमि को आधार देता है। नारीवादी आंदोलन की पृष्ठभूमि ही स्वतंत्र भारत में महिलाओं की उपेक्षा,शोषण और श्रम में लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने तथा बराबरी के सिद्धांतों की नीति को लेकर आगे बढ़ा।

जनवरी, 1930 में महात्मा गाँधी ने इर्विन के नाम ग्यारह सूत्री माँग जारी किया था, जिसमें आम तथा खास, सभी प्रकार की माँगें उठाई गईं थीं। इन माँगों में शराब बंदी (पूर्णरूपेण मदिरा निषेध) सबसे सबसे अधिक प्रभावी था। महत्मा गाँधी ने कई स्थलों पर माना है कि शराब बंदी के जरिए ही स्त्री-हिंसा पर बहुत हद तक काबू किया जा सकता है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि महात्मा गाँधी स्त्रियों को मुख्यधारा में लाने के सबसे बड़े पैरवीकार थे। हालाँकि, दांडी मार्च की सूची में जब गाँधी ने किसी महिला को शामिल नहीं किया था, तो उस समय राष्ट्रवादी महिलाओं ने गाँधी का मुखर विरोध भी किया था और बाद में महिलाएँ भी इस ऐतिहासिक आंदोलन में शामिल हुई थीं। महिलाओं की जिद और उपेक्षा के कारण ही गाँधी को झुकना पड़ा था। सरल भाषा में कहूँ तो यह वही समय था, जब भारत में महिला आंदोलनकारियों की छवि निर्मित हो रही थी।

नारीवाद के इस आंदोलन ने आजाद भारत में कई रूपों में अपना विस्तार किया। सत्तर-अस्सी के दशक में इसी आंदोलन ने सरकार से लेकर, न्यायालयों तक को दहेज, बाल-विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों की ओर ध्यान खींचा। सत्तर-अस्सी के दशक में घरेलू-हिंसा, दहेज-हत्या के मामले बढ़ने लगे। पत्र-पत्रिकाओं में इससे संबन्धित मुद्दों पर विचार होने लगे। उस दौर में प्रकाशित ‘इन सर्च ऑफ आंसर्स’ में 6 नवविवाहिताओं की आत्महत्या से पूर्व लिखे पत्रों को छापा गया, जिसमें एक पत्र बहुत भावुक कर देने वाला था। राजनीति के गलियारों से लेकर, चौराहों तक पर इसे पढ़ा गया। इस पत्र ने दहेज विरोधी आंदोलन को एक मुकाम तक पहुँचाया और दहेज-हत्या को लेकर कानून बनवाया।

पत्र का अंश

”मैं बहुत दूर जा रही हूँ। मुझे माफ कर देना….
जब से मैं आपके घर में आई हूँ, आपके परिवार की कठिनाइयाँ बढ़ गई हैं। मेरा आपके घर आना आपके लिए शुभ नहीं है, इसलिए मैं दूर जा रही हूँ। मैं इस बात की पूरी कोशिश कर रही हूँ कि मैं किसी भी हाल में जीवित न बचूँ क्योंकि मेरे जीवित बच जाने से मेरे साथ साथ आपका जीवन भी तबाह हो जाएगा। मुझे इलाज के लिए अस्पताल न ले जाना।
मैं अपने साथ मेरे गर्भ में पलने वाले आपके बच्चे को भी लेकर जा रही हूँ। इसके लिए भी मुझे माफ कर देना। आपकी दुबारा विवाह करने की इच्छा थी, दूसरा विवाह जरूर करना। दहेज में जो कपड़े मैं अपने साथ लाई थी, आप उन्हें या तो जला देना या फिर मेरे माता- पिता को वापस कर देना। जो कपड़े मुझे आपके परिवार की ओर से दिये गए थे, आप उन्हें प्रेस करवा कर नई दुल्हन के लिए रख देना।
नई दुल्हन के आने के बाद उसकी बातों को सुनने की कोशिश करना, उसके साथ झगड़ा मत करना। अगर उसके माँ-बाप आपका ज्यादा ख्याल न रखें तो भी खुश रहना। आपको ऐसी बातों को नजरंदाज करना होगा, वरना उसकी जिंदगी भी बर्बाद हो जाएगी। अगर वह तुमसे अकेले में कोई बात करे, तो उस बात को अपने घर के भीतर किसी अन्य सदस्य को मत बताना।
‘केवल तुम्हारी’

समकालीन नारीवादी आंदोलन में दहेज के विरुद्ध प्रारम्भिक विरोध हैदराबाद में वर्ष 1975 में प्रगतिशील महिला संगठन द्वारा दर्ज करवाया गया था। फिर बाद में नए सिरे से यह आंदोलन दिल्ली में शुरू हुआ, जो देश के कई कोनो तक पहुँचने में सफल रहा। 1979 में दहेज के खातिर दिल्ली में ही तरविंदर कौर ही हत्या कर दी गई, पुलिस ने इसे आत्महत्या बताकर केस को ख़त्म करने की कोशिश की, जिसके प्रतिकार में भयंकर जुलूस निकला और उसके बाद प्रदर्शनों की बाढ़ सी आ गई।

दहेज-विरोधी आंदोलन के एक वर्ष बाद अनेक राज्य सरकारों ने दहेज हत्या के विरुद्ध कानून बनाना शुरू कर दिया। सन 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने दहेज के लिए महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिए संसद के अगले सत्र में विधेयक प्रस्तुत करने की पहल की। दिल्ली पुलिस ने दहेज से संबन्धित घटनाओं को देखने के लिए अलग समिति बनाई। समाज सुधारकों ने दहेज-लोलुप परिवारों को सामाजिक बहिष्कार की घोषणा की ।

इस प्रकार दहेज को सामाजिक अपराध घोषित करने की परिकल्पना तो मूर्त हो सकी, लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह बहुत हद तक अमूर्त ही बना रहा। इसके कई कारण हैं। समाज सुधारकों ने इसे अपना टास्क मान लिया और राजनेताओं ने अपने सुधारवाद को बहुत हद तक सीमित कर लिया। राजनीतिक एजेंडे से धीरे-धीरे यह गायब होता चला गया।

आश्चर्यजनक रूप से यह भी देखा गया कि नारीवादी आंदोलन कई मुद्दों पर बिखर भी गया और अधिकांश नारीवादी महिलाओं ने नारीवाद की पाश्चात्य व्याख्या करनी शुरू कर दी। देहमुक्ति आंदोलन इसी मानसिकता का प्रतिफल है। भारतीय महिलाओं की रोज की दिक्कतों से दूर नारीवाद देहवादी व्याख्या में मशगूल हो गया। उसके एजेंडे से समरसता और सामंजस्य का लोप हुआ और उसने पितृसत्ता की आड़ में अपने निशाने पर पुरुष-समाज को ही ले लिया। बहुत ऐसे संदर्भ भी सामने आए, जहाँ परिवार के बच सकने की संभावनाओं के बाबजूद भी आत्मनिर्भरता की पैरवी करते हुए नारीवादियों ने स्वछंद जीवनशैली को प्रश्रय दिया। यह नारीवादी मुहिम की सीमा है। बहुत जरूरी है इसके आवश्यक संदर्भों के विस्तार की। पार्टीगत राजनीतिक एजेंडे को बढ़ाने के खातिर नारीवाद का सर्वाधिक नुकसान हुआ। प्रगतिशीलता को सामयिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य दिये बगैर उनका मिशन अधूरा रहेगा।

आज प्रगतिशील महिलाओं की चुप्पी बहुत ही बड़ी निराशाजनक और संदेहास्पद है। बिहार में पूर्ण शराबबंदी और दहेज विरोधी कानून के लागू होने के मसले पर बिहार की महिलाएँ खुश हैं। आंदोलन की शुरुआत भले ही बंगाल और दिल्ली से हुई थी, लेकिन उसका सकारात्मक प्रभाव बिहार में ही दिख रहा है।

शराबबंदी और दहेजबंदी दोनों ही मसले एक दूसरे से जुड़कर ही औरतों को समाज में सम्मान दिलवा सकते हैं। आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमने औरतों के लिए आरक्षण के प्रावधान किए हैं। हालाँकि, शराब एकमात्र कारण नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से एक कारण है, जिसकी वजह से औरतों को केवल देह के रूप में देखने की परिपाटी विकसित हुई। इसी कारण घरेलू-हिंसा को बल मिलता रहा। आज बिहार औरतों की मुक्ति की प्रस्तावना लिखने जा रहा है। यह ‘मौन-क्रांति’ ही है, जो अब किसी भी बिहार की बेटी को दहेज और घरेलू -हिंसा के खातिर आत्महत्या के दहलीज तक नहीं पहुँचने देगी।

महिला सशक्तिकरण के जरिए बिहार के राजनीतिक और सामाजिक जीवन में बदलाव पर यह समीक्षा बशिष्ठनारायण सिंह जी की फेसबुक वॉल से लिया गया है।