Sunday, September 29, 2024
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फ़्री-लान्स विरोधकर्मी से ऑन-डिमांड-एथीस्ट बनने वाली वामपंथन से नाराज हुए मार्क्स चचा

‘दास कपिताल’ और कम्युनिस्ट घोषणापत्र लिखकर धर्म को अफीम बताने वाले कार्ल मार्क्स आज कैसा महसूस करते, जब वो देखते कि वर्तमान क्रांतिजीव कम्युनिस्ट खुद मार्क्सवाद और वामपंथ को एक कट्टर धर्म के रूप में ग्रहण कर चुके हैं और ऐसा कर के उनसे माफ़ी भी नहीं माँग रहे हैं।

आज के वामपंथी को अगर ध्यान से दो मिनट देखें, तो वो सर से  पाँव तक विचारों में नहीं बल्कि घृणा में लिप्त नजर आता है। उसके शरीर में उतनी अस्थियाँ नहीं, जितनी उसके भीतर निराशा समाई हुई है। यह ऐसी निराशा है, जिसके बारे में वामपंथ के प्रणेता तक विचार नहीं कर सके थे। इन्होंने पूर्वज आर्यों और अनार्यों की थ्योरी में सारा समय खपाया है। आर्यों को विदेशी सिद्ध करने में ही अपनी सारी बौद्धिक शक्ति झोंक दी है। ऐसा करते करते आज वामपंथ अपनी आखिरी साँसें गिन चुका है और अब जो यहाँ-वहाँ क्रांतियों की ‘चॉइस’ रखने वाले क्रांति के चितेरों में नजर आती है, वो सिर्फ दम तोड़ते वामपंथ की छटपटाहट मात्र है।

धरना प्रदर्शन के लिए किराए पर उपलब्ध आज का बौद्धिक दरिद्र कम्युनिस्ट असल मुद्दों से नहीं बल्कि घृणा से उपजने वाली विचारधारा पर तंदुरुस्त हो रहा है। आप देखिए कि यह सुबह नाश्ते में ब्राह्मणवाद को गाली देता है, सोते वक़्त पितृसत्ता को गाली देता है और उसके बाद ही स्वस्थ महसूस कर पाता है। क्या क्रांतिजीव के सुबह से शाम तक के दैनिक क्रियाकलाप के बीच में वामपंथ के मुद्दे के लिए कहीं जगह बचती भी है? या असल सवाल शायद तब ये होना चाहिए कि क्या वामपंथ में वाकई में कोई मुद्दा रह भी गया है?

मुद्दों के अभाव में अपना अस्तित्व बचाए रखना कम्युनिस्ट्स का सबसे बड़ा चैलेंज बनकर उभरा है। इसलिए अब जो वामपंथ के नाम पर सुनाई और दिखाई देता है वो सिर्फ वामपंथ का ‘हाइब्रिड वर्जन’ है। यह वामपंथ भी ‘ऑड’ और ‘इवन डेज़’ के कॉन्सेप्ट पर काम करने लगा है। इस ऑड-इवन फॉर्मूला का सबसे ताजा मामला उभरा है, वो है मुस्लिम समुदाय की किराए पर धरना-प्रदर्शन करने वाली वामपंथी JNU दुराग्रही शेहला राशिद!

2018 में सिंगर सीनिड ओ कोनोर के इस्लाम अपनाने पर जमकर उनका स्वागत करने वाली कम्युनिस्ट और ऑन डिमांड नास्तिक, शेहला राशिद अब अल्लाह के नाम पर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने से पहले वामपंथियों से माफ़ी माँगेगी?

क्या JNU की ऑन डिमांड कम्युनिस्ट शेहला राशिद आज ये स्वीकार करेंगी कि खुद को राजनीति के लिए आस्तिक बताने के उनके बयान ने अपने घोषणापत्र, यानि मेनिफेस्टो में धर्म को वामपंथ की परिधि से बाहर करने वाले कार्ल मार्क्स की आत्मा को ठेस लगाई है? जय श्री राम कहने वाले आस्तिक हिन्दुओं और वन्देमातरम के नारे लगाने वाले देशभक्तों को हेय दृष्टि से देखने वाला क्रांतिजीव कम्युनिस्ट, क्या अल्हम्दुलिल्लाह कहने वाली शेहला को अब स्वीकार करेगा? सवाल और भी हैं। आत्मचिंतन जैसे शब्दों का अभाव ऐतिहासिक कम्युनिस्ट घोषणा पत्र में आज भी बना हुआ है। कम्युनिस्ट शायद इसीलिए ऐतिहासिक गलतियाँ करते आए हैं और करते रहेंगे।

JNU के इस ताजा फ्रीलांस प्रोटेस्टर यानि शेहला राशिद की कार्य प्रणाली को समझना एक पेचीदा मसला बन चुका है। इसे समझना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि ये अक्सर अपने प्रोपेगैंडा की चॉइस के कारण किए गए सस्ते प्रचार अभियानों की वजह से सफलतापूर्वक राष्ट्रीय सनसनी भी बनकर उभरी है। देखा जाए तो राजनीतिक हालातों के बीच यह कम्युनिस्ट ‘जिओ-टैगिंग’ आधारित प्रणाली पर काम करती है। यानि, जब तक ये क्रांतिजीव JNU जैसे संस्थान में फ़्रीलांस और ‘आजाद’ प्रोटेस्टर के रूप में पहचानी जाती है, तब तक ये वामपंथी स्वरुप में रहती है, लेकिन जैसे ही इसके अक्षांश और देशांतर बदलते हैं, ये भूल जाती हैं कि धर्म जैसी चीजों को वामपंथ नकारता है, यही JNU की फ़्रीलांस प्रोटेस्टर शेहला रशीद के साथ भी होता दिख रहा है। ये JNU में रहते वक़्त ‘अकेली, आवारा और आजाद’ है, लेकिन जम्मू कश्मीर पहुँचते ही हिजाब और बुर्क़े में नजर आती हैं।

शेहला राशिद ने हाल ही में ‘समाज सेवक’ शाह फैज़ल की पार्टी ‘जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट’ में अपना दाखिला ले लिया है। फिर भी यदि उनसे उम्मीद की जा रही है कि वो अपने ईश्वर/अल्लाह का नाम ना लें, तो यह सरासर शेहला की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर कुठाराघात करने जैसा होगा। जिस तरह से उन्होंने इस पार्टी को जॉइन करने के कुछ ही दिन के भीतर वामपंथ की ‘एथीस्ट’ (नास्तिक) विचारधारा से फ़ौरन नकारा है, उससे तो यही साबित होता है कि शेहला राशिद के भीतर एक शातिर नेता बनने की पूरी क़ाबिलियत है।

लेकिन खुद को आस्तिक यानी पारलौकिक सत्ता में विश्वास जताने वाला बताकर शेहला राशिद ने JNU और ‘टाइप-JNU’ जैसे कई युवाओं के दिल को गहरा आघात लगाया है और उनके सपनों पर खुलकर लात मारी है। ये आघात ज्यादातर ऐसे युवाओं को लगा है, जिनके भविष्य में राजनीति में जाने के बहुत ज्यादा चांसेज़ और स्कोप नहीं हैं और जो सिर्फ क्रांति की रोजी-रोटी और जीवन पर्यन्त सत्ता का सताया ‘एज़ फ्रीलांस प्रोटेस्टर’ कार्यरत रहकर जीवन यापन का स्वप्न पाले बैठे थे। ऐसे ‘आम वामपंथियों’ को कोई सत्ता का सताया हुआ शाह फैज़ल भी अपनी पार्टी जॉइन करने का निमंत्रण नहीं देने वाला है, वो ये बात खूब जानते हैं।

हालाँकि, शेहला राशीद द्वारा दिया गया हृदयाघात वामपंथी युवा के जीवन की पहली ऐसी घटना नहीं है। इसी तरह का ‘सिमिलर’ हृदयाघात आखिरी बार अभागे कम्युनिस्ट्स को उनके नए नवेले राजकुमार कन्हैया ने स्वयं को भूमिहार बताकर दिया था। इसके बाद चारा घोटाले से ‘लेस’ लालू के पाँव छू कर ‘फासिस्ट’ सरकार से बदला लेने का संकल्प लेने वाले कन्हैया कुमार ने नव-वामपंथियों के लिए वामपंथ की नई लकीर खिंच डाली थी। अभागे नव-क्रांतिजीव ने तब तक अपने फेसबुक अकाउंट से ठीक से मार्क्सवाद और कम्युनिज़्म के पोस्ट भी पूरे नहीं पढ़े थे, ना ही नव-क्रांतिजीव के तब तक दूध के दाँत टूटे थे। लेकिन वो वापमंथी ही क्या जिसकी पूँछ सीधी हो जाए, उसे तो बस क्रांति से मतलब है।

शेहला रशिद द्वारा खुद को आस्तिक बताए जाने के बाद नव-क्रांतिजीव इस ‘हाइब्रिड वामपंथ‘ अवतार से आशावान महसूस कर रहा है। वो चाहता है कि कार्ल मार्क्स आज दुबारा धरती पर अवतार लेकर एक पन्ना और जोड़ दे, जिसमें लिखा हो कि राजनीति का स्वप्न देखने वाले वामपंथियों के लिए देश, काल और वातावरण के अनुसार ऑन डिमांड आस्तिक बनना स्वीकार्य होगा।

मार्क्सवाद खालिस अर्थशास्त्र से पैदा होकर एक अलग धर्म बनकर तैयार हुआ है। ये कूप-मंडूक कम्युनिस्ट मार्क्सवादी किसी कट्टरपंथी मजहबी से भी ज्यादा उच्चकोटि के कट्टरपंथी हैं। खुद को विचारों का पुरुष सूक्त (पुरुषसूक्त, ऋग्वेद संहिता के दसवें मण्डल का एक प्रमुख सूक्त यानि मंत्र संग्रह) मानने वाले वामपंथ की यह वैचारिक मृत्यु दयनीय है। वामपंथ खुद को तार्किक बताता फिरता है, उसने अन्धविश्वास से अपने हर संबंध को हमेशा नकारा है। लेकिन आज देखने को मिलता है कि आज क्रांतिजीव को वाद-विवाद, तर्क, अर्थशास्त्र, विज्ञान कुछ नहीं चाहिए, उसे अगर कुछ चाहिए तो सिर्फ क्रांति! यही क्रांति इसका धर्म है, यही कट्टरता ही इसका स्वभाव है और मौकापरस्ती ही इसका ‘-इज़्म’ है।  

आज नहीं तो कल किसी भी उग्र, हिंसक विचार का अंत सुनिश्चित है। वामपंथ का महज कुछ सदियों में अस्त हो जाना किंचित भी अस्वाभाविक और गैर प्राकृतिक नहीं है। शेहला राशिद के गिरगिट-ओ-लॉजी से आज कट्टर वामपंथी स्वयं को कोड़े मार रहा है। वो इसलिए स्वयं को कोड़े मार रहा है क्योंकि मार्क्स की दृष्टि में ईसाइयत का ईश्वर भी अंधविश्वास था। मार्क्स का मानना था कि अंधविश्वास से ठगी और शोषण होता है और इसी संदर्भ में उसने ईश्वर को अफीम कहा था।

किसी विचार के बजाए घृणा और नफरत से जन्मे ‘-वादों’ का दुखद वर्तमान यह है कि स्वयं को सही साबित करने के लिए हर दूसरे शब्द के बाद ‘JNU जैसे संस्थान’ का हवाला देने वाले कुतर्की कम्युनिस्ट अपनी भारत विरोधी टिप्पणियों के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला देते हैं। लेकिन दूसरे पक्ष के सही और संवैधानिक तथ्य को भी ‘लोकतंत्र की हत्या’ और ‘थोपा जाना’ बताते हैं। इन्हें देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम चुनाव जीतने का हथकंडा लगता है। इन्हें देशभक्ति अस्वाभाविक और मूर्खों का आचरण नजर आता है, राष्ट्रगान गाना असहिष्णुता लगता है। नव-कम्युनिस्ट का मानना है कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता की निष्ठा अपरिहार्य होना ‘हायपर नेशनलिज़्म’ है।

इस वर्तमान क्रांतिजीव की हालिया गतिविधियों के तार अगर एक सिरे से जोड़ते हुए देखा जाए, तो पता चलता है कि ये कोई विद्यार्थी या नेता या समाजवादी नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ एक शहरों में रहने वाला अनपढ़, कूप-मण्डूक, गतानुगतिक है, जिसे किसी भी हाल में क्रांति की तलाश थी और समय आने पर उसने अपनी क्रांति को परिभाषित भी कर डाला है, जिसका उदाहरण ऑन डिमांड आस्तिकता वाले लोग हैं। इनको ही ध्यान में रखते हुए हरिशंकर परसाई जी कह गए थे कि “तुम क्रांतिकारी नहीं, बल्कि तुम एक बुर्जुआ बौड़म हो

चाहे राजनीतिक परिदृश्य कुछ भी हों, क्रांतिजीवों के विषय चाहे नरेंद्र मोदी से लेकर पितृसत्ता तक ही क्यों न घूमते रहें, कुछ सवाल वामपंथियों से हमेशा किए जाते रहने चाहिए; मसलन, कम्युनिस्ट गाँधी का विरोध क्यों करते रहे? क्रांति के नाम पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस का समर्थन क्यों नहीं किया गया? उन्हें 1857 को स्वाधीनता संग्राम मानने में समस्या क्यों होती है? नरेंद्र मोदी के ‘फासिज़्म’ और इंदिरा गाँधी के आपातकाल में क्या समानताएँ हैं?

वर्चस्व की इस उग्र विचारधारा का इतिहास ये है कि भारतीय कम्युनिस्ट समाजवाद को हमेशा से ही अपना पेटेंट मानते आए हैं। ऐसा भी समय आया जब 1934 में उन्होंने कॉन्ग्रेस सोशलिस्ट पार्टी को ‘सोशल फासिस्ट’ बताया। भूत, भविष्य और वर्तमान के इन सभी उदाहरणों से वामपंथ का कलेक्टिव निष्कर्ष यही निकलता है कि उनकी हाँ में हाँ का स्वर रखने वाला ही क्रांतिकारी कहलाए जाने के योग्य होगा और यदि उसी समकालीन परिदृश्य में जो उसी के सामान नया विचार और तथ्य रखे, वह फासिस्ट!

फासिस्ट शब्द पिछले कुछ वर्षों में खूब भुनाया गया है। JNU से लेकर मीडिया गिरोहों के जरिए फासिस्ट शब्द को प्रमुख और प्रिय गाली का दर्जा दिया गया। इन्हीं ‘हाँ में हाँ’ ना मिलाने वाले समीकरणों के अंतर्गत मोदी सरकार को भी समय समय पर फासिस्ट घोषित किया जाता रहा है, और राष्ट्रवाद और देशभक्ति की बात करने वालों को मूर्ख कहा जाने लगा। यह प्रदर्शनकारी वामपंथी दूसरे की प्रतिक्रिया और दूसरे की अभिव्यक्ति से घबराता क्यों है?

इसी तरह समय बीतता गया और एक दिन अल्हम्दुलिल्लाह स्वर ‘हर हर महादेव’ और ‘जय श्री राम’ उद्घोषों पर भारी पड़ गया, क्योंकि अल्हम्दुलिल्लाह का स्वर JNU के मतावलम्बियों के श्रीमुख से निकला है। उम्मीद जताई जा सकती है कि शेहला राशिद के धार्मिक और राजनीतिक ट्वीट्स के बाद अब हिन्दुओं का खुद को आस्तिक बताना उन्हें साम्प्रदायिकता नहीं ठहराएगा। उम्मीद है कि अब जय श्री राम का नारा हिन्दुओं को ‘सभ्य वामपंथियों’ की नजरों में घृणित नहीं बनाएगा।

नाम: राहुल गाँधी, कमजोरी: गणित, परिणाम: कॉन्ग्रेस की पीसी में बीसी

राहुल गाँधी जब आईना देखते होंगे तो भ्रम में पड़ जाते होंगे कि उनके जिन डिम्पलों की दीवानी आम जनता और चरमसुख पाते बुद्धिजीवी हैं, उनकी संख्या कितनी है। उनकी गिनती और गणित पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। ये बात और है कि आदमी ख़ुमारी में हो तो बहुत कुछ याद न रहे, सर दर्द करता हो, दोस्तों से नींबू उधार माँगा जा रहा हो, और जो बोला जा रहा हो, वो एक उदास चेहरे के साथ बोला जाता हो, लेकिन क्यूट चेहरे के साथ कोई राफेल का दाम ₹1600 से ₹1600 करोड़ तक ले जाए, तो लगता है कि गलती कहीं और है।

राहुल गाँधी पैदाइशी नेता हैं, जिनकी कुंडली में बहुत कुछ लिखा हुआ है। शायद यही कारण है कि वो कुछ भी बोलकर निकल लेते हैं, और कॉन्ग्रेस का खड़ाऊँ सर पर लेकर घूमने वाले चाटुकार नेता-प्रवक्ता-पूर्व मंत्री आदि उनकी मूर्खता को जस्टिफाय करने के लिए प्रेस कॉन्फ़्रेंस करते हैं। राफेल पर उन्होंने इतनी बार ग़लतियाँ की कि अब वो स्वयं ही इस पर चर्चा नहीं करते। वैसे, ऑपइंडिया ने उनकी राफेल डील के पीछे पड़ने की असली वजह बता दी थी, तभी से वो शांत पड़ गए थे। 

इंदिरा गाँधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का जादुई नारा दिया था और सत्ता में आ गई थीं। फिर कॉन्ग्रेस ने लगातार देश के एक बड़े तबके को वित्तीय व्यवस्था से जानबूझकर दूर रखा, ताकि उनकी माँ-सास-दादी के इस कालजयी नारे को उनकी याद में ज़िंदा रखा जा सके। फिर लगातार कॉन्ग्रेस ने ग़रीबों को गरीब रखा। 

आजकल, कॉन्ग्रेस के बाकी मोहरे पिट जाने के बाद चिरयुवा अध्यक्ष को ग़रीबों की याद फिर से आई है। और जब याद आई है, तो प्रेस को बुलाकर कुछ भी बोलकर राहुल गाँधी चले आए। राहुल गाँधी ने कह दिया कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो देश के सबसे ज़्यादा ग़रीब 20% परिवारों को ₹72,000/वर्ष की आमदनी सुनिश्चित करेंगे। सुनने में ये बात लाजवाब लगती है, लेकिन इंदिरा-राजीव-मनमोहन के 30-35 सालों के कार्यकाल के बाद भी भारत में कितने लोग गरीब हैं, ये सुनकर आपके होश उड़ जाएँगे। उस पर चर्चा थोड़ी देर में। 

राहुल ने जब यह बोल दिया, और फिर कैलकुलेटर लेकर चिदम्बरम सरीखे जानकार लोग बैठे तो पता चला कि आलू से सोना भी बनने लगे, हर खेत में फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर, उसकी छतों पर भी खेती की जाए, फिर भी इतना पैसा पैदा करना नामुमकिन हो जाएगा। पैसा पैदा ही करना होगा क्योंकि सब्सिडी समेत कई जन-कल्याणकारी योजनाओं के कारण भारत का फिस्कल डेफिसिट लगभग तीन प्रतिशत रहता ही है। जिसका सीधे शब्दों में अर्थ है कि भारत कमाता सौ रुपए हैं, और ख़र्च ₹103 करता है। इसके ऊपर अगर और फ्री पैसे बाँटने की बात की जाए, तो उसका दबाव और बढ़ेगा।

इस सूचना के साथ यह भी बताया गया कि ये एक ‘टॉप अप’ सुविधा होगी जहाँ परिवारों की आमदनी ₹72,000/वर्ष करने की कोशिश होगी। इसका मतलब है कि अगर आपकी आमदनी प्रतिवर्ष 50,000 है, तो आपको ऊपर से ₹22,000 मिलेगा। इसके बाद कॉन्ग्रेस के डेटा एनालिटिक्स डिपार्टमेंट के प्रवीण चक्रवर्ती ने बताया कि ये टॉप अप नहीं है, नीचे के 20% परिवारों को इतना पैसा मिलेगा ही। प्रवक्ता रणदीप सूरजेवाला ने भी यही बात कही, और कहते-कहते यह भी कह गए कि यह महिलाओं के खाते में जाएगा। 

मालिक कुछ बोलकर निकल लिए, कर्मचारी अलग बोल रहे हैं, चाटुकार उसमें नई बात जोड़ रहे हैं। ये सब तो कॉन्ग्रेस में होता रहता है। लेकिन, ये जो बीस प्रतिशत की बात हुई है, वो किस आधार पर हुई, ये किसी को नहीं पता। जब आप भारत के आँकड़े देखेंगे तो ये ₹12,000/महीने की आय वाले दायरे में कितनी बड़ी जनसंख्या आती है, यह जानकर आपका माइंड इज़ इक्वल टू ब्लोन हो जाएगा। मने, दिमाग ब्रस्ट कर जाएगा। 

वर्ल्ड इनिक्वालिटी डेटाबेस के आँकड़ों के अनुसार भारत में चालीस प्रतिशत जनसंख्या ₹4,000/महीने से कम कमाती है। इसके बाद, अगर माननीय राहुल गाँधी के ₹12,000/महीने की बात की जाए तो भारत की नब्बे प्रतिशत, जी 90%, जनसंख्या उससे कम कमाती है। यह आँकड़ा व्यक्तिगत आय की बात करता है, और हर परिवार से दो लोगों को भी कमाता हुआ माना जाए फिर भी ये जनसंख्या राहुल गाँधी के दायरे से बाहर ही रहेगा।

भारत में औसत मासिक आय

परिवारों की भी बात की जाए तो एक बहुत बड़ा हिस्सा ₹6,000/महीने से कम कमाता है, इसलिए यह कहना कि इस 20% परिवारों को पैसे देने की स्कीम के बाद कोई भी परिवार उससे कम आय वाला नहीं रहेगा, बेतुका लगता है। 

कॉन्ग्रेस ने एक बार फिर ‘आशा’ बेचने की कोशिश की है क्योंकि हाल ही में खत्म हुए चुनावों में ‘कर्ज माफ़ी योजना’ की बात एक वोट लाने वाली योजना की तरह फलित होती दिखी। इसलिए, इस तरह की बात कहकर एक डिबेट शुरु करना कॉन्ग्रेस की नई रणनीति हो सकती है। 

लेकिन यहाँ बात वही है कि पहले कॉन्ग्रेस स्वयं ही इस भ्रम से बाहर निकले कि वो लोग कहना क्या चाहते हैं, और करना क्या चाहते हैं। भारत में ऐसा कोई आँकड़ा इकट्ठा करने की संस्था या तकनीक नहीं है जिससे उन पाँच करोड़ परिवारों का पता लगाया जा सके। सैंपल आधारित सर्वे या जनगणना से आय के बारे में सही डेटा नहीं मिलता।

हमारे पास जो आँकड़े होते हैं, वो ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर के हैं। जो एक व्यवस्थित तरीके से काम करते हैं, और जिनकी आमदनी का पता कम्पनियों के माध्यम से चल सकता है, उन्हीं की जानकारी सरकार को मिलती है। जबकि सत्य यह है कि मज़दूरों, छोटे किसानों, या भयंकर गरीबी झेल रहे परिवारों की स्थिति का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। 

वर्ल्ड बैंक के आँकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 58% जनसंख्या ₹7,000/महीने से कम पर गुज़ारा कर रही है। फ़ोर्ब्स में एडम इन्स्टिट्यूट लंदन के फेलो टिम वोरस्टॉल की (जून 2015) एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 18 करोड़ परिवार ऐसे हैं जिनमें ‘प्राइम अर्नर’ (जिसकी आय पर परिवार आश्रित है) की मासिक आय ₹5,000 से कम है। अगर हम ऐसे परिवारों के सदस्यों की संख्या औसतन पाँच भी रखें, और कमाने वालों में एक और भी जोड़ दें, तो भी यह आँकड़ा राहुल गाँधी के आँकड़े से बहुत दूर नजर आता है।

कॉन्ग्रेस ने यह भी कहा है कि भारत में 22% लोग गरीब हैं, जिनकी गरीबी उनकी सरकार दूर कर देगी। इस आँकड़े और ₹72,000/वर्ष के आँकड़े में कोई सामंजस्य नहीं है।

खैर, हमेशा की तरह कॉन्ग्रेस ने कुछ कहा ही है, इसे ज़मीनी स्तर पर लाया कैसे जाएगा, इस पर कोई विचार नहीं रखा गया। कहते-कहते यह भी कह दिया कि इसमें राज्यों की भी हिस्सेदारी होगी। मतलब, ये सिर्फ योजना बना देंगे, राज्य कितना प्रतिशत पैसा देगा, ये पैसा कहाँ से आएगा, इस पैसे का उपयोग किस मद में होगा, क्या सब्सिडी हटाई जाएगी, क्या लोक कल्याण से जुड़ी योजनाओं से पैसे काटे जाएँगे, इन सब पर तमाम ट्वीट और प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बाद भी कोई क्लैरिटी नहीं है।

अगर अभी की सरकार की बात करें तो सरकार प्रति व्यक्ति, प्रति वर्ष, कुल ₹1,06,800 रुपए कई सब्सिडी वाली स्कीम के ज़रिए ख़र्च करती है। फिर, अगर कॉन्ग्रेस का गणित देखें तो यह समझ में आता है कि इन्होंने बस शिगूफ़ा छोड़ा है, जोड़-घटाव न इनके अध्यक्ष के वश की बात है, न पार्टी की।

प्रेस कॉन्फ़्रेंस ही जब की गई तो वहाँ इसकी पूरी रूपरेखा पर बात की जाती, जहाँ यह समझाया जाता कि भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति के हिसाब से, अगर मई में इन्हें सत्ता मिल जाती है, तो ये पैसा कहाँ से लाएँगे, ऐसे परिवारों की पहचान किस आधार पर करेंगे, कौन सी संस्था आँकड़े लाएगी, कौन-से स्कीम खत्म किए जाएँगे, कहाँ टैक्स बढ़ाया जाएगा, फिस्कल डेफिसिट का टार्गेट क्या होगा…

लेकिन जो पार्टी अपनी बातें और भविष्य की रूपरेखा बताने की जगह अपने पाँच साल सत्ता को कोसने, नए घोटाले गढ़ने, सांप्रदायिक आग लगाने, लोगों को ग़लतबयानी से भरमाने, अपने आप को हिन्दुवादी घोषित करने आदि में झोंक रखा हो, वह पार्टी लोगों को समझाने के लिए गणित और विवेक का प्रयोग कैसे करेगी। उनके लिए तो लोगों को इसी तरह की आसमानी बातें करके बहलाने और झुनझुना पकड़ाने के और कुछ बचा भी नहीं है।

इसलिए, जब मालिक पिछत्तीस बार भी कलाकारी करके निकल जाता है, तो भी गुर्गे सैंपत्तीसवीं बार डैमेज कंट्रोल में तो जुटेंगे ही। इसी कलाकारी को डिफ़ेंड करने की प्रक्रिया को कूल डूडों के शब्दकोश में बीसी कहा गया है। 

इस आर्टिकल का वीडिओ यहाँ देखें:

फैक्ट चेक: क्या कलराज मिश्र ने BJP की रैली में दी थी गोली मारने की धमकी, जानिए पूरा सच

चुनाव के नज़दीक आते ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो जाता है और इस मामले में कॉन्ग्रेस के नेता काफी सक्रिय रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप के साथ ही किसी नेता के भाषण को तोड़-मरोड़कर पेश करना भी इन्हें बखूबी आता है। विपक्षी को नीचा दिखाने की कला में इन्हें महारत हासिल होती है।

इन्हीं में से एक हैं कॉन्ग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, जिन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र का एक वीडियो ट्वीट करते हुए दावा किया कि वो जनता को गोली मारने की धमकी दे रहे हैं। सुरजेवाला ने अपने ट्वीटर पर लिखा- भाजपा की हिंसक मानसिकता का ताज़ा नमूना, कलराज मिश्र जी ने फरीदाबाद सांसद के विरोध में नारे लगाने वालों को धमकी भरे लहजे में कहा, “अगर यह उनका प्रदेश होता तो इस तरह गड़बड़ करने वालों को वह स्टेज से उतरकर गोली मार देते। क्या ये है भाजपा का संदेश- सवाल पूछो तो गोली खाओ!

सुरजेवाला का ये ट्वीट काफी तेजी से वायरल हुआ और कलराज मिश्र ने खुद इस ट्वीट का खंडन करते हुए जवाब दिया। उन्होंने वीडियो के साथ ट्वीट करते हुए लिखा, “कॉन्ग्रेस का जनता को मूर्ख बनाने का ताज़ा नमूना। सुरजेवाला जी ऐसी ओछी हरकत आपको शोभा नहीं देती, जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य निभाएँ और जनता को बेवकूफ बनाना बंद करें। सुनिए क्या कहा था, “अगर मेरा प्रदेश होता तो मैं नीचे उतर के वहीं बात करता।”

ये है असली सच

बता दें कि कलराज मिश्र के भाषण का असली वीडियो उनके फेसबुक पेज पर उपलब्ध है। हमने जब उस वीडियो को गौर से सुना, तो पाया कि कलराज मिश्र ने तो गोली मारने की बात की ही नहीं है, बल्कि उन्होंने तो कहा- “अगर ये हमारा प्रदेश होता तो मैं नीचे उतरकर वहीं बात करता।”

असली वीडियो को देखने के बाद ये बात साफ है कि सुरजेवाला ने कलराज मिश्र के भाषण के वीडियो को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हुए भाजपा की छवि को खराब करने की कोशिश की है। हम आपको बताते हैं कि कलराज मिश्र के भाषण को किस तरह से तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया और क्या है इसके पीछे का पूरा सच? दरअसल, फरीदाबाद में रविवार (मार्च 24, 2019) को भाजपा की ‘विजय संकल्प रैली’ में हरियाणा लोकसभा के प्रभारी कलराज मिश्र और फरीदाबाद के सांसद कृष्ण पाल गुर्जर ने हिस्सा लिया था। इस दौरान कृष्ण पाल गुर्जर का भारी विरोध हुआ, जिससे कलराज मिश्र काफी नाराज हो गए थे और उन्होंने कहा कि इस तरह से हंगामा ना करें। जिन्हें हंगामा करना है, उनसे प्रार्थना है कि वो यहाँ से चले जाएँ। अगर ये उनका प्रदेश होता तो वो नीचे उतरकर वहीं पर बात करते।

सुरजेवाला ने वीडियो के इसी भाग को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हुए फेक वीडियो शेयर किया। मगर अब ये उन पर भारी पड़ सकता है। उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। बता दें कि, बीजेपी के आईटी सेल के पदाधिकारियों ने कलराज मिश्र के बयान को तोड़-मरोड़ कर वायरल करने पर सुरजेवाला के खिलाफ एआईआर दर्ज करने की माँग की है। उन्होंने इसे कॉन्ग्रेस पार्टी और सुरजेवाला की सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने व दंगा भड़काने की साजिश बताया है। पुलिस ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई करने का आश्वासन भी दिया है।

शकील अंसारी को रिश्वत लेते हुए ACB ने रंगे हाथ पकड़ा, घबराकर फाड़े रुपए

सोमवार (मार्च 25, 2019) को हैदराबाद में शकील अंसारी नाम के सरकारी वकील को एंटी करप्शन ब्यूरो ने रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया। जिसके बाद उस अधिकारी ने सबूतों को मिटाने के लिए रुपयों को पहले फाड़ा और फिर रुपयों के टुकड़ों को टॉयलट में फ्लश करने की कोशिश की।

अंसारी शादनगर शहर में जूनियर फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट (जेएफसीएम) अदालत में काम करते हैं। उन्होंने प्रभाकर रेड्डी नाम के शख्स से एक केस में प्रभाकर की माँ का नाम शामिल नहीं करने के लिए ₹ 8,000 की माँग की थी। जिसके बाद रेड्डी ने भ्रष्टाचार रोधी एजेंसी (एसीबी) के पास इसकी शिकायत दर्ज कराई, और फिर अधिकारी को रंगे हाथों पकड़ने के लिए जाल बिछाया।

सोमवार को जब अपने हैदराबाद के बशीरबाग स्थित घर पर अंसारी रेड्डी से रिश्वत ले रहे था तभी एसीबी की टीम वहाँ पर पहुँच गई। अंसारी को जैसे ही इसकी जानकारी लगी उन्होंने रुपयों को फाड़ना शुरु कर दिया और टॉयलट में फ्लश कर दिया। लेकिन एसीबी के अधिकारियों ने किसी तरह सबूतों को सहेजा और अंसारी को गिरफ्तार किया।

आरोपित को एसीबी की विशेष अदालत में पेश किया गया और बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। बता दें कि पिछले हफ्ते, ब्यूरो ने कडथल के एक मंडल राजस्व निरीक्षक सहित पाँच लोगों को आधिकारिक तौर पर
₹20,000 की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया।

इसके अलावा पिछले महिने भी एसीबी ने एक मंडल राजस्व निरीक्षक को राज्य की कल्याण लक्ष्मी योजना के तहत एक आवेदन को आगे बढ़ाने के लिए ₹5,000 की रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ा था।

1 अप्रैल से आयकर विभाग नहीं बनेगा ‘फूल’, टैक्स चोर सावधान, अब बचना होगा मुश्किल

आगामी वित्त वर्ष की शुरुआत से ही आयकर विभाग की निगाह आप पर और कड़ी होने वाली है। अब आयकर विभाग केवल आपके बैंक खातों और आपके द्वारा दाखिल किए गए रिटर्न तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उसकी नज़र आपकी ज़िन्दगी के हर उस पहलू पर होगी जिससे आपके टैक्स चुराने का सुराग मिल सके।

इसके लिए आयकर विभाग ‘प्रोजेक्ट इनसाइट’ नामक एक टैक्स-ट्रैकर का इस्तेमाल करेगा, जिसे कई सालों की मेहनत और ₹1,000 करोड़ की लागत से तैयार किया गया है। ‘बिग डेटा’ तकनीकी पर आधारित यह ट्रैकर कर-दाताओं के बारे में जानकारी निकालने के कई अपारंपरिक स्रोतों का भी इस्तेमाल करेगा। इसमें आपकी रिलेशनशिप और सोशल मीडिया अकाउंटों की जानकारी भी शामिल हैं

15 मार्च को ही मिल गई थी हरी झण्डी

मीडिया में आ रही विभिन्न ख़बरों के अनुसार आयकर विभाग ने अधिकारियों को 15 मार्च को ही इसके प्रयोग के लिए जरूरी अनुमति दे दी है।

इस सॉफ्टवेयर के डेटाबेस में टैक्स देने वालों के साथ-साथ न देने वालों को भी शामिल किया जाएगा ताकि टैक्स दायरे में आने से ही बच रहे लोगों को भी लपेटे में लिया जा सके। सॉफ्टवेयर में हर व्यक्ति की प्रोफाइल को कई हिस्सों में बाँटा जाएगा- एक हिस्सा, मसलन पूरी तरह केवल जानकारियों का होगा जैसे कि नाम, पैन संख्या, पता, हस्ताक्षर, टैक्स रिटर्न्स इत्यादि। इसे मास्टर प्रोफाइल कहा जाएगा। एक दूसरा हिस्सा बिज़नेस इंटेलिजेंस हब का होगा, जहाँ उनकी सभी जानकारियों का विश्लेषण कर यह पता लगाने का प्रयास किया जाएगा कि कहीं वे टैक्स तो नहीं चुरा रहे हैं।

यानि यदि आप अपनी आय नून-रोटी खाने वाली दिखाते हैं और आपका इन्स्टाग्राम ताज होटल में खाते हुए सेल्फियों से भरा पड़ा है तो संभव है कि इनकम टैक्स वाले आपके घर का एक-आध चक्कर मारने में रुचि दिखाने लगें।

नोटबंदी वाले घपलेबाजों पर भी कसेगा शिकंजा  

सरकार इस डेटाबेस और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल उन लोगों पर भी नकेल कसने में करेगी जिन्होंने नोटबंदी के समय अपने पैसे किसी और के खाते में जमा कराए थे। किसी के भी खाते में, किसी भी समय एकाएक संदेहास्पद जमा या निकासी का भी पता कर लिया जाएगा। इसके लिए सरकार ने प्रोजेक्ट इनसाइट को मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी युक्त करने का प्रबंध किया है।

विशिष्ट क्लब में शामिल होगा भारत   

इस कदम से भारत ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा जैसे उन चुनिन्दा देशों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा जो आयकर चोरों को पकड़ने के लिए बिग डेटा तकनीकी का प्रयोग कर रहे हैं। इससे ऐसे कई केसों के पकड़ में आने की उम्मीद है जो बिना उत्कृष्ट तकनीकी के कर चोरी कर बच निकलने में सफल होते थे।

The Tashkent Files: विवेक अग्निहोत्री-पल्लवी जोशी के सुलगते सवाल जो आपको सोचने पर विवश कर देंगे

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर बनी फ़िल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ का ट्रेलर रिलीज हो चुका है। ट्रेलर लॉन्च के दौरान निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने ऑपइंडिया से कई मुद्दों पर बीतचीत की। हमने आपको बताया कि कैसे शास्त्री जी के बेटे सुनील शास्त्री अपने पिता और पीएम मोदी में समानताएँ देखते हैं। इसके अलावा हमने दिवंगत पीएम शास्त्री जी के नाती संजय नाथ सिंह का भी संस्मरण बताया, जिसमें उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय मंत्रियों द्वारा शास्त्री जी की मृत्यु को लेकर बोले गए झूठ को बेनक़ाब किया।

लेकिन, प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने कुछ ऐसी बातें कहीं, कुछ ऐसे सवाल दागे, जिसे आपको सुनना चाहिए। ऐसे सवाल, जो कमर्शियल फ़िल्मों को लेकर पागलों की तरह रिपोर्टिंग करने वाले कई मेनस्ट्रीम मीडिया शायद आपको नहीं बताएँगे। यहाँ हम दोनों के द्वारा कही गई बातों को व्यवस्थित ढंग से आपके सामने रख रहे हैं। पढ़िए और मनन कीजिए।

पल्लवी जोशी द्वारा कही गई महत्वपूर्ण बातें:

शास्त्री जी का निधन हुए 50 वर्षों से भी अधिक हो गए लेकिन उनके बेटे सुनील शास्त्री को आज तक ये पता नहीं चल पाया है कि उनके पिता की मृत्यु कैसे हुई। सोचिए एक बेटे के रूप में उन पर क्या बीत रही होगी। एक बेटे को ये पता नहीं कि उसके पिता की मृत्यु की असली वजह क्या थी। मैंने सोचा कि सच्चाई बाहर आनी चाहिए। शास्त्री जी का परिवार लम्बे समय से यह लड़ाई लड़ रहा है। ठीक है, भारत के एक नागरिक होने के नाते मेरा या आपका अधिकार है कि हमें अपने पूर्व प्रधानमंत्री की मृत्यु के असली कारणों का पता चले। लेकिन, ज़रा सोचिए कि क्या उनके परिवार का पहला हक़ नहीं बनता कि उन्हें शास्त्री जी की मृत्यु की वजह बताई जाए।

संजय नाथ सिंह का अधिकार है कि उन्हें पता चले कि उनके नानाजी के साथ आख़िर हुआ क्या था? मैं पूछती हूँ, कौन सी ऐसी ताक़त है दुनिया में जो उन्हें इस बात से वंचित रख रही है? सुनील जी नहीं जान पाए कि उनके पिता के साथ क्या हुआ? संजय जी आज तक नहीं जान पाए कि उनके नानाजी के साथ क्या हुआ? यह सही नहीं है। इसीलिए हमने ‘द ताशकंद फाइल्स’ बनाने का निर्णय लिया। मैंने विवेक से कहा कि हमलोग ख़ुद इस फ़िल्म को प्रोड्यूस करेंगे क्योंकि इसे ईमानदारी से बनाना ज़रूरी है।

आपको बता दूँ कि मैं एक माँ के तौर पर इस फिल्म का हिस्सा बनी। मैंने इस बात पर गौर किया कि उस 17 वर्ष के बच्चे पर क्या बीती होगी, जिसके पिता की मृत्यु हो गई और उसे उस मृत्यु का कारण ही नहीं बताया गया। कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं, जिनकी शुरुआत अच्छी होती है। हो सकता है कि शास्त्री जी का इसमें कोई हाथ हो, जिस से फ़िल्म अच्छी बन गई है। लेकिन, मैं आपको बताना चाहती हूँ कि इस फ़िल्म में ऐसे धुरंधर एक्टर्स हैं, जिन्हें डायरेक्ट करना इतना आसान नहीं था।

मैं 1991 में आई सुपरहिट फ़िल्म सौदागर का हिस्सा थी। उस दौरान मैंने देखा कि निर्देशक सुभाष घई साहब को राज कुमार और दिलीप कुमार को सँभालने में कितनी दिक्कतें आ रही थीं। हमें लगा था कि मिथुन चक्रवर्ती और नसीरुद्दीन शाह के रहते हमें भी परेशानियाँ आएँगी लेकिन मैं आपको बता नहीं सकती कि ये फ़िल्म कितने प्यार से बन कर तैयार हो गई। एक भी ईगो प्रॉब्लम नहीं, एक भी Conflict नहीं, किसी ने अपने मेक-अप और लंच तक के लिए भी कभी कोई शिकायत नहीं की। एक प्रोड्यूसर को ये सारी समस्याएँ झेलनी पड़ती हैं लेकिन ‘द ताशकंद फाइल्स’ के निर्माण के दौरान सब कुछ हँसते-खेलते पूरा हो गया।

एक और ख़ास बात है, जो मैं आपको बताना चाहूँगी। हर एक्टर को स्क्रिप्ट के अलावा उस दिन शूट किए जाने वाले दृश्यों के बारे में एक प्रिंट आउट निकाल कर दिया जाता है, जिसे हम साइट्स कहते हैं। इस फ़िल्म के निर्माण के दौरान हमें साइट्स प्रिंट करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। सभी को सेट पर पहुँचने से पहले ही सारी चीजें याद रहती थीं। ऐसा बहुत कम ही होता है जब सारे के सारे एक्टर्स किसी फ़िल्म में इतने मशगूल हो जाएँ।

विवेक अग्निहोत्री द्वारा कही गई महत्वपूर्ण बातें:

सभी फ़िल्म निर्माता का कोई ड्रीम प्रोजेक्ट होता है। वो उसके लिए संघर्ष करते हैं। उसे बनाने के लिए बहुत कुछ करते हैं। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि ये फ़िल्म बस हो गई, बस मेरे से बन गई। हो सकता है कि इस विषय को जनता के बीच पहुँचने के लिए किसी माध्यम की ज़रूरत थी। आज से तीन-चार वर्ष पहले जब मैं 2 अक्टूबर के समाचार पत्र खोला करता था तो सभी जगहों पर सिर्फ़ गाँधीजी ही गाँधीजी दिखते थे। मेरा बेटा छोटा था। यकीन मानिए, मुंबई के सबसे अच्छे स्कूलों में से एक में पढ़ने वाले उस बच्चे को ये पता ही नहीं था कि लाल बहादुर शास्त्री कौन थे? ये कैसी शिक्षा प्रणाली है?

हमें याद रखना चाहिए कि 2 अक्टूबर को गाँधी जी के साथ-साथ लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिवस होता है। आज के युवा वर्ग को उनके बारे में कैसे पता चलेगा, जब हमारी शिक्षा व्यवस्था ही ऐसी है। शास्त्री जी ज़मीन से जुड़े एक ऐसे नेता थे, जिन्हें सभी प्यार करते थे। स्वतंत्र भारत का पहला युद्ध जिताने वाले पीएम के बारे में किसी को नहीं पता। लोगों ने मुझे सोशल मीडिया पर लिखना शुरू किया ताकि सच को बाहर निकाला जा सके। मैं Conspiracy Theories में विश्वास नहीं रखता लेकिन जहाँ हज़ारों लोग ऐसा लिख रहे हों, वहाँ रिसर्च एक ज़रूरत बन जाती है।

रिसर्च के दौरान मुझे कई ऐसी चीजें मिलीं, जो इस पूरी कहानी में झोल-मोल की तरह थी। कई ऐसी चीजें थीं, जिन पर विश्वास करना मुश्किल हो रहा था। अगर कोई चीज कही जा रही है तो उसे साबित करने के लिए आपके पास डॉक्यूमेंट्स भी होने चाहिए। इसके बाद शास्त्री जी के परिवार के लोगों से मेरी बात हुई। उन लोगों ने भी मुझे यही कहा कि उन्हें शास्त्री जी की ज़िंदगी के अंतिम पन्ने पर सच्चाई चाहिए, कवर-अप नहीं। सबसे अव्वल तो यह कि इस सच्चाई को पता करने की आज तक किसी ने कोशिश ही नहीं की।

तभी मैंने निर्णय ले लिया कि मुझे इस पर काम करना है। इसके लिए पुख्ता जानकारियाँ होनी चाहिए। इसके बाद मैं और मेरे लोगों ने इस पर काम शुरू किया। हम आरटीआई फाइल कर-कर के जानकारियाँ जुटाने लगे। आपको बता दूँ कि हम सब वस्तुतः Whistle Blowers बन गए थे। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर विदेश या रक्षा मंत्रालय तक शास्त्री जी की मृत्यु से जुड़ा कोई दस्तावेज नहीं है। न पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट है, न उच्चायोग के पास कुछ है। क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का पीएम, एक बड़ा युद्ध जीतने के बाद ताशकंद जाता है, उसकी मृत्यु हो जाती है, और सरकार के पास कोई रिकॉर्ड्स नहीं है!

मैंने ये फ़िल्म नहीं बनाई है। मैंने इसके लिए कोई मेहनत नहीं की है। चीजें बस होती गईं और फ़िल्म बनती चली गई। अपने-आप सब कुछ सही होता चला गया और आपने अभी ट्रेलर भी देखा। ये लाल बहादुर शास्त्री जी को हमारी श्रद्धांजलि है।

पाकिस्तान की डूबती नैया को चीन ने दिया 2.2 बिलियन डॉलर का सहारा

आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को चीन ने बड़ी रकम देकर मदद की है। सोमवार (मार्च 25, 2019) को पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने ट्वीट करके इस बात की जानकारी दी है कि चाइना ने उन्हें ₹15 हजार करोड़ ($2.2 बिलियन) दिए हैं। चीन की इस मदद से पाकिस्तान जिन ऋणों में डूबा हुआ है उसका समय पर भुगतान कर पाएगा। साथ ही इससे पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की चरमराई स्थिति में भी सुधार होने की संभावना है।

‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में प्रकाशित खबर के अनुसार चीन द्वारा मिली इस बड़ी मदद से पाकिस्तान चालू वित्त वर्ष में अपने मित्र देशों से $9.1 अरब की आर्थिक सहायता प्राप्त कर चुका है। इसमें चीन ने पाकिस्तान को $4.1 अरब की सहायता दी है। दूसरी ओर संयुक्त अरब अमीरात से $2 अरब और सऊदी से $3 अरब की मदद मिली है।

चीन से प्राप्त हुई इस राशि पर पाकिस्तानी वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता खकान हसन नजीब ने बताया कि एसबीपी के पास जमा कराई गई राशि से देश की स्थिरता में मज़बूती आएगी। यहाँ बता दें कि नवंबर 2018 में चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग और प्रधान मंत्री इमरान खान के बीच बीजिंग में एक बैठक के बाद, चीन ने कहा था कि वह पाकिस्तान को वित्तीय संकट से उभरने के लिए सहायता की पेशकश करने को तैयार है।

हालाँकि, तब सहायता किस तरह की जाएगी और कितनी राशि तक की जाएगी, कुछ मालूम नहीं था। इसके बारे में पिछले हफ्ते तक किसी को कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन वित्त मंत्रालय की घोषणा के बाद इसकी जानकारी सबको लगी कि पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक को चीन से 2.2 बिलियन डॉलर की राशि प्राप्त हुई हैं।

कोलकाता कमिश्नर के ख़िलाफ़ CBI के आरोप बहुत ही ज्यादा गंभीर: CJI रंजन गोगोई

आपको याद होगा कि कैसे शारदा स्कैम मामले में सीबीआई और कोलकाता पुलिस में ठन गई थी। मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कोलकाता के चीफ कमिश्नर राजीव कुमार पर सीबीआई द्वारा लगाए गए आरोपों को काफ़ी गंभीर बताया। सुप्रीम कोर्ट ने राजीव कुमार को 10 दिनों के भीतर सीबीआई के आरोपों का जवाब देने को कहा है। जस्टिस गोगोई ने कहा कि सीबीआई द्वारा कही गई कुछ बातें बहुत बहुत गंभीर है। मामले की सुनवाई कर रही बेंच में जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल थे।

बता दें कि सीबीआई की रिपोर्ट को एक सील्ड कवर में फाइल किया गया। इस कारण सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो दूसरे पक्ष को बिना सुने इस समय किसी भी प्रकार के ऑर्डर जारी नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो चार्जेज और काउंटर-चार्जेज को सुनने के बाद ही कोई निर्णय लेगा। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई प्रमुख ऋषि कुमार शुक्ला को राजीव कुमार के ख़िलाफ़ शारदा चिट फण्ड स्कैम की जाँच में सबूतों व फाइलों से की गई छेड़छाड़ को साबित करने के लिए चार्जशीट फाइल करने को कहा था। ज्ञात हो कि राजीव कुमार उस स्पेशल टीम का हिस्सा थे, जो शारदा चिट फण्ड घोटाले की जाँच कर रही थी।

कोर्ट को दी गई एफिडेविट में सीबीआई ने कहा था कि 2009 में केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार को आगाह किया था कि चिट फण्ड कम्पनियाँ लोगों को धोखा दे सकती हैं लेकिन राज्य सरकार ने केंद्र की बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया और उलटा इस घोटाले को होने दिया। जाँच एजेंसी ने कहा कि इस घोटाले के पीछे बहुत बड़ी साज़िश है। इस घोटाले से जुड़े एक टीवी चैनल को 6.21 करोड़ रुपए दिए गए थे, जिस पर कार्रवाई चल रही है। इसी तरह तृणमुल कॉन्ग्रेस द्वारा संचालित समाचार पत्र ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा बनाई गई पेंटिंग को 6.5 करोड़ रुपए में बेची। इस पर भी सीबीआई की नज़र है।

आपको याद होगा कि रविवार (फरवरी 3, 2019) को जब जब CBI के अधिकारीगण राजीव कुमार के बंगले पर पहुँचे थे, तब बंगाल पुलिस ने न सिर्फ़ केंद्रीय एजेंसी की कार्यवाही में बाधा पहुँचाई, बल्कि उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया था और उन्हें अपराधियों की तरह उठा कर थाने ले गए थे। सैंकड़ों की संख्या में पुलिस फ़ोर्स ने केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के आधिकारिक परिसरों को घेर लिया था। पुलिस यहीं नहीं रुकी, जाँच एजेंसियों के अधिकारियों के आवासीय परिसरों को भी नहीं बख़्शा गया। ममता बनर्जी ने मामले को रफा-दफा करते हुए इसे केंद्र बनाम राज्य बना कर राजनीतिक रंग से पोत दिया और धरने पर बैठ गई थीं। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने राजीव कुमार को शिलॉन्ग में सीबीआई के समक्ष पेश होने का आदेश दिया।

ISI जासूस मोहम्मद परवेज गिरफ्तार, 18 साल में 17 बार पाकिस्तान गया था

राजस्थान पुलिस ने सोमवार (मार्च 25, 2019) को दिल्ली के एक 42 वर्षीय व्यक्ति मोहम्मद परवेज को पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया है।

राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) द्वारा राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के बाद, वह 2017 से ही न्यायिक हिरासत में था। अब उसे राज्य पुलिस ने आगे की पूछताछ के लिए हिरासत में लिया है।

अधिकारी ने खुलासा किया कि मोहम्मद परवेज ने कथित तौर पर गोपनीय और रणनीतिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए नकली पहचान के माध्यम से भारतीय सेना के सैनिकों को फँसाया और पैसे लेकर उन्हें आईएसआई को भेज दिया।

पूछताछ के दौरान, परवेज ने खुलासा किया कि वह आईएसआई के अधिकारियों के संपर्क में था और पिछले 18 वर्षों में 17 बार पाकिस्तान की यात्रा की थी।

परवेज दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग में त्वरित वीजा के लिए आया हुआ फोटो और पहचान पत्र की कॉपी पर मोबाइल सिम कार्ड प्राप्त कर लेता था। इन्हीं से वो जासूसी कार्यों को अंजाम देता था। गिरफ्तारी के बाद परवेज को जयपुर की अदालत में पेश किया गया। अदालत ने उसे चार दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया।

पिछले साल, राजस्थान पुलिस ने एक सेना के जवान को जैसलमेर में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था। पूछताछ के बाद पता चला कि वह सोशल मीडिया के जरिए पाकिस्तानी आईएसआई के गुर्गों के संपर्क में था।

कुछ महीने पहले, नागपुर में ब्रह्मोस के एक इंजीनियर निशांत अग्रवाल को कथित तौर पर जासूसी करने और उनके आईएसआई संचालकों को संवेदनशील सूचना देने के लिए गिरफ्तार किया गया था। तब भी पाकिस्तानी हैंडलर्स ने अग्रवाल को हनीट्रैप करने के लिए सोशल मीडिया अकाउंट का इस्तेमाल किया था।

पिछले साल सितंबर में, उत्तर प्रदेश एटीएस की टीम ने एक बीएसएफ जवान, मध्य प्रदेश के रीवा जिले के निवासी अच्युतानंद मिश्रा को गिरफ्तार किया था, जो भारत की रक्षा तैयारियों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए एक पत्रकार होने का दावा करने वाली महिला द्वारा हनी ट्रैप में फँसाया गया था।

वामपंथी का पेज घंटों में रि-स्टोर, दक्षिणपंथी अंशुल को फेसबुक ने हफ्ते भर लटकाया

सोशल मीडिया वेबसाइट फेसबुक किस कदर दक्षिणपंथियों के प्रति दुराग्रह से ग्रस्त है, इसकी एक और झलक हाल में देखने को मिली। फेसबुक ने दक्षिणपंथी ब्लॉगर व सोशल मीडिया पर्सनैलिटी अंशुल सक्सेना के पेज को पिछले सप्ताह अकारण निलंबित कर दिया। यही नहीं, लगातार अंशुल सक्सेना की शिकायत के बावजूद एक सप्ताह तक फेसबुक ने उन्हें लटकाए रखा।

‘न्यूडिटी’-विरोधी पर न्यूडिटी फैलाने का आरोप

मामला दरअसल यह था कि अंशुल सक्सेना ने बंगलुरु के एक चित्रकार की चित्र प्रदर्शनी के खिलाफ लिखा था। इस प्रदर्शनी में चित्रकार के मंगलसूत्र पहनीं नग्न महिलाओं के चित्रों का प्रदर्शन होना था। अंशुल सक्सेना ने इस पर आपत्ति जताते हुए फेसबुक पर इसे हटवाने का सामाजिक दबाव बनाने के लिए अपील की थी।

इसके बाद खुद अंशुल सक्सेना के पेज को फेसबुक ने नग्नता फैलाने के आरोप में निलंबित कर दिया। इसके बाद अंशुल ने जब इसके खिलाफ अपील की तो फेसबुक ने अपनी गलती तो मान ली पर उनका पेज चालू नहीं किया। यही नहीं, उस पेज का संचालन करने वाले उनके निजी अकाउंट को भी फेसबुक ने निलंबित कर दिया।

12 घंटे तक फेसबुक ने जब उनके पेज और अकाउंट को वापस चालू नहीं किया तो अंशुल ने ट्विटर पर फेसबुक को टैग करते हुए इसकी शिकायत की।

और आज जाकर के, सात दिन बाद, अंशुल सक्सेना का पेज फेसबुक ने दोबारा चालू किया।

ध्रुव राठी के मामले में गतिमान फेसबुक

इसी फेसबुक पर कुछ दिन पहले आम आदमी पार्टी के समर्थक माने जाने वाले ब्लॉगर और यू-ट्यूबर ध्रुव राठी ने ऐसी ही शिकायत की थी। उन्होंने हिटलर की जीवनी के कुछ अंशों को उठाकर उनकी आलोचनात्मक तुलना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की, जिसे फेसबुक ने हिटलर की प्रशंसा मानते हुए ध्रुव राठी को 30 दिन के लिए प्रतिबंधित कर दिया था।

तब ध्रुव राठी ने आगामी चुनावों के मद्देनजर खुद को बैन किए जाने का आरोप लगाया था। इसके बाद फेसबुक ने बड़ी ही तत्परता से उनका पेज फिर से चालू कर दिया था।

सवाल यह है कि यदि ध्रुव राठी के मामले में अपनी गलती समझ में आने के बाद फेसबुक इतनी तेज गति से भूल-सुधार कर सकता है तो अंशुल सक्सेना के मामले में क्यों नहीं?

फेसबुक के राजनीतिक पूर्वग्रह का लग रहा है मामला

प्रथमदृष्टया यह फेसबुक के राईट-विंग यानि दक्षिणपंथियों के खिलाफ पूर्वग्रह का मामला लग रहा है। भारत ही नहीं, दुनिया भर के दक्षिणपंथी फेसबुक पर दक्षिणपंथियों के खिलाफ दुराग्रह का आरोप लगाते रहे हैं। ऑपइंडिया ने पिछले दिनों एक खबर प्रकाशित भी की थी जिसमें फेसबुक के इस राजनीतिक पूर्वग्रह के बारे में उसकी ही पूर्व कर्मचारी के खुलासे पर बात की गई थी। साथ ही हमने पहले ही फेसबुक द्वारा भारत के आगामी चुनावों में वाम-समर्थक दखल का भी अंदेशा पहले ही जताया था