Thursday, April 25, 2024
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‘अमेरिका की तरह भारत में सड़कों पर लोग उतरें और दंगे करें, देश में दंगे भड़काने की तैयारी कर रहा है The Quint’

द क्विंट की पोडकास्ट प्रोड्यूसर शोरबोरी पुरकायस्था ने अपने पाठकों से अपील की है कि भारतीयों ने भी अमेरिका में जॉर्ज फ्लोएड की मौत की तर्ज पर ही भारी मात्रा में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं किए? साथ ही उकसाने वाली भाषा में लिखा गया है कि आखिर हमें घर-घर न्याय पहुँचाने के लिए किस चीज का इन्तजार है?

अमेरिका में अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लोग सड़कों पर उतारकर अमेरिकी सरकार का विरोध कर रहे हैं। लेकिन भारत का वामपंथी प्रोपेगेंडा मीडिया तंत्र इन दंगों का फायदा अपनी विचारधारा के पोषण के लिए करता नजर आ रहा है।

भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द क्विंट’ की एक ऐसी ही अपील के स्क्रीनशॉट ट्विटर पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि किस प्रकार ‘द क्विंट’ भारत के लोगों को उकसाकर उन्हें सड़कों पर उतर आने की अपील कर रहा है।

इस ट्वीट में कपिल मिश्रा ने लिखा है – “The Quint ने देश भर में हजारों ईमेल भेजी हैं। अपील की हैं – अमेरिका की तरह भारत में सड़कों पर लोग उतरें और दंगे करें। ये सीधे सीधे देश में दंगे भड़काने की तैयारी हैं। इस तरह की ईमेल भेजने वालो की जगह जेल हैं। #DeshdrohiQuint”

कपिल मिश्रा द्वारा जो स्क्रीनशॉट शेयर किए गए हैं उनमें द क्विंट की पोडकास्ट प्रोड्यूसर शोरबोरी पुरकायस्था ने अपने पाठकों से अपील की है कि भारतीयों ने भी अमेरिका में जॉर्ज फ्लोएड की मौत की तर्ज पर ही भारी मात्रा में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं किए? साथ ही उकसाने वाली भाषा में लिखा गया है कि आखिर हमें घर-घर न्याय पहुँचाने के लिए किस चीज का इन्तजार है?

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इस संदेश के साथ ही यह भी ध्यान देने की बात है कि प्रोपेगेंडा वेबसाईट द क्विंट की वेबसाइट पर यदि जाएँ तो ऐसे कई आर्टिकल मिलते हैं, जिनमें अमेरिका में हो रहे दंगों की तुलना भारत की बेहद अप्रासंगिक घटना से जोड़ने के प्रयास किए गए हैं।

सिर्फ लेख ही नहीं बल्कि पोस्टर्स के जरिए भी मासूम युवाओं की भावनाओं को भड़काने वाली पोस्टर और स्लोगन राघव बहल की वेबसाइट ‘द क्विंट’ पर देखे जा सकते हैं। इन्हीं में से एक उदाहरण इस पोस्टर में भी देख सकते हैं।

इस पोस्टर में एक ओर अमेरिका और दूसरी ओर भारत की एक काल्पनिक घटना का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि अमेरिका में एक अश्वेत द्वारा एक महिला को कुत्ते का पट्टा बाँधने की अपील करने पर उसे पुलिस बुलाने की धमकी दी गई, जबकि क्विंट के अनुसार, भारत में भी सब्जी बेचें वालों को परेशान किया गया और उन पर कोरोना वायरस फैलाने का आरोप लगाया गया। ऐसे ही अन्य बेहद अतार्किक तुलनाएँ द क्विंट ने इस ‘रिपोर्ट‘ में करने के प्रयास किए हैं।

मानो देश के इस प्रोपेगेंडा मशीनरी ने मन बना लिया हो कि सत्ता के विरोध के लिए ये तथ्यों को साफ़ तौर पर इनकार कर अपने एजेंडा को सबसे ऊपर रखेंगे। क्योंकि भारत में कोरोना वायरस फैलाने के आरोप जिन भी घटनाओं में किसी सब्जी बेचने वालों पर लगे हैं, उसके पीछे कारण या तो सही पाए गए, या फिर वो वास्तव में फल और सब्जियों पर थूक लगाते हुए पाए गए, जो कि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलाने में मददगार साबित हो सकता है।

हालाँकि, झारखंड में कुछ ऐसे सब्जीवालों को वास्तव में परेशान किया गया, जिनकी दुकानों पर भगवान या फिर धार्मिक संगठनों के झण्डे लगे हुए थे। लेकिन इस मामले में किसी भी तरह का कोई विरोध वामपंथी मीडिया द्वारा सामने नहीं आया था। उनका सारा रोना केवल ‘समुदाय विशेष’ के लिए ही होता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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