Sunday, September 29, 2024
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राहुल गाँधी ने Unitech प्रॉपर्टी को 2019 के हलफनामे में डाला, लेकिन यह 2014 में क्यों गायब था?

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने गढ़ में संभावित हार को देखते हुए अमेठी के अलावा, ‘सुरक्षित विकल्प’ के रूप में वायनाड से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन भरा। राहुल को डर है कि भाजपा के उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार सकते हैं, जो 2014 में अमेठी में हारने के बावजूद भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में अथक काम कर रहीं हैं। हालाँकि, वायनाड का यह ‘सुरक्षित सीट’ राहुल गाँधी के लिए कुछ नए सवाल खड़े कर सकती है, जिनका उनके लिए जवाब देना और भी मुश्किल होगा।

राहुल गाँधी ने गुरुवार को वायनाड, केरल से अपना नामांकन दाखिल किया, जबकि उनकी बहन प्रियंका ने वायनाड में लोगों से आग्रह किया कि वह उनके भाई का ख्याल रखें। राहुल गाँधी के चुनावी हलफनामे ने उन संपत्तियों के बारे में गंभीर सवाल खड़े किए हैं जो ऑपइंडिया ने अपने पहले के कई खुलासों में देश के सामने रखा था।

अपने 2019 के चुनावी हलफनामे में, राहुल गाँधी ने सिग्नेचर टॉवर्स-II में दो संपत्तियों की खरीद की सूची दी है, जो यूनिटेक के स्वामित्व में है। चुनावी हलफनामे के मुताबिक, राहुल गाँधी ने घोषणा की है कि उन्होंने सिग्नेचर टावर-II में ऑफिस स्पेस B-007 और B-008, दो प्रॉपर्टी खरीदी हैं। शपथ पत्र में कहा गया है कि ऑफिस स्पेस B007, 1.65 करोड़ रुपए में और B008, 6.27 करोड़ रुपए में खरीदा गया था।

दिलचस्प बात यह है कि हलफनामे में कहा गया है कि ये सम्पत्तियाँ 1 दिसंबर 2014 को खरीदी गई थीं।

राहुल गाँधी का चुनावी हलफ़नामा -2019

इससे पहले, ऑपइंडिया ने बताया था कि कैसे राहुल गाँधी ने 2010 में यही दो प्रॉपर्टी खरीदी थीं। अक्टूबर 2010 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कॉन्ग्रेस को 2 जी के सम्बन्ध में नोटिस का जवाब देने के लिए कहा गया था और 2 जी पर कैग रिपोर्ट लोकसभा में पेश किए जाने से कुछ हफ्ते पहले, राहुल गाँधी ने यूनिटेक के गुड़गाँव में ‘सिग्नेचर टॉवर-II में दो ऑफिस खरीदने के लिए यूनिटेक के साथ एक करार किया था। राहुल गाँधी ने इस आलीशान टॉवर में B-007 और B-008 के लिए 1.44 करोड़ रुपए और 5.36 करोड़ रुपए का भुगतान किया था। शेष भुगतान संपत्तियों के कब्जे के बाद भुगतान करना था।

व्हिसलब्लोअर्स ने ऑपइंडिया से बात करने के बाद, रिपब्लिक टीवी ने उन दस्तावेजों को भी जारी किया जहाँ राहुल गाँधी ने खरीद के कागजात पर हस्ताक्षर किए थे।

स्रोत -रिपब्लिक TV

यही प्रॉपर्टी, B007 और B008 जो अक्टूबर 2010 में राहुल गाँधी द्वारा खरीदे गए थे, 2019 के चुनावी हलफनामे में प्रकट हुए हैं जिसे राहुल गाँधी ने वायनाड में दायर किया है।

दिलचस्प बात यह है कि जैसा कि हमने पहले बताया था, राहुल गाँधी के 2014 के चुनावी हलफनामे में, इन दोनों संपत्तियों को राहुल गाँधी द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया गया था।

अक्टूबर 2010 में संपत्तियों को खरीदने के बाद भी 2014 में, राहुल गाँधी ने अपने चुनावी हलफनामे में केवल अपनी बहन प्रियंका गाँधी वाड्रा के साथ संयुक्त रूप से ख़रीदा गया फार्महाउस ही सूचीबद्ध किया था।

राहुल गाँधी का चुनावी हलफ़नामा -2014

यूनिटेक 2 जी घोटाले में शामिल होने के लिए बदनाम है। 2008 की शुरुआत में, यूनिटेक की सहायक कंपनी, यूनिटेक वायरलेस को सरकार द्वारा पहले आओ, पहले पाओ की नीति के तहत 1,658 करोड़ रुपए में अखिल भारतीय दूरसंचार लाइसेंस प्रदान किया गया था। इसके बाद, उसने अपने 67% शेयर नॉर्वे के टेलीनॉर को 6,120 करोड़ रुपए में बेच दिए। इससे कंपनी का मूल्य 9,100 करोड़ रुपए हो गया। इस हिस्सेदारी की बिक्री तब हुई जब कंपनी के पास कोई अन्य संपत्ति नहीं थी। इसलिए, यह मानना उचित था कि यह उस लाइसेंस का मूल्य था जो उसके पास था।

फिर, कैग रिपोर्ट ने घोटाले से पर्दा उठा दिया। इसमें कहा गया है कि सस्ती स्पेक्ट्रम बिक्री से सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ जबकि यूनिटेक जैसी निजी संस्थाओं को लाभ पहुँचाया गया। आगे यह आरोप भी लगाया गया कि इस प्रक्रिया में नियमों और दिशानिर्देशों का खुलेआम उल्लंघन किया गया, जिससे लाइसेंस प्राप्त करने वालों और एक्चुअल में इसे प्राप्त करने वालों के बीच एक मिलीभगत का पता चलता है।

हमारे पिछले एक्सपोज़ में, हमने लिखा था:

घटनाओं की पूरी शृँखला की टाइम लाइन भी दिलचस्प है। अक्टूबर 2009 में, सीबीआई ने 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में अनियमितताओं का मामला दर्ज किया। 8 अक्टूबर 2010 को, सुप्रीम कोर्ट ने घोटाले पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक या CAG की रिपोर्ट पर तत्कालीन यूपीए सरकार से जवाब माँगा। उसी साल अक्टूबर में, राहुल गाँधी ने गुरुग्राम के सिग्नेचर टावर्स-II में दो व्यावसायिक सम्पत्तियाँ खरीदीं, जो यूनिटेक के स्वामित्व में हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस संपत्ति का उनके 2014 के हलफनामे में उल्लेख नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह के कई सौदे संदिग्ध, घोटाला करने वाले व्यक्तियों द्वारा रणनीतिक रूप से किए गए हैं, जो उनके चुनावी हलफनामों में दिखाई देने से बचाने के लिए है।

उस समय हमने सोचा कि शायद 2014 के चुनावी हलफनामे में सम्पत्तियाँ लिस्ट नहीं की गई, क्योंकि हो सकता है 2010 से 2014 के बीच सम्पत्तियाँ राहुल गाँधी द्वारा बेच दी गई हों।

हालाँकि, राहुल गाँधी के 2019 लोकसभा चुनाव के हलफनामे में इन संपत्तियों के लिस्ट होने के साथ, कुछ प्रासंगिक सवाल पैदा हो रहे हैं कि राहुल गाँधी को जवाब देना चाहिए, क्यों उन्होंने इन संपत्तियों को अपने 2014 के हलफनामे में उल्लेख नहीं किया।

आइए देखते हैं, ऐसे दो संभावित परिदृश्य हैं जो उनके 2014 के चुनावी हलफनामे में इन संपत्तियों की अकथनीय अनुपस्थिति की व्याख्या करेंगे।

दृश्य- 1:

पहला परिदृश्य जो अपने 2014 के चुनावी हलफनामे से अनुपस्थित रहने वाले सिग्नेचर टॉवर की संपत्तियों की अनुपस्थिति की व्याख्या करेगा, अगर राहुल गाँधी ने 2010 की अक्टूबर में इन संपत्तियों को खरीदने के बाद अपने 2014 के चुनावी हलफनामे को दाखिल करने से पहले इन दो संपत्तियों को बेच दिया था और फिर से इसे 1 दिसंबर 2014 को खरीद लिया हो जैसा कि उनके  2019 हलफनामे में अब दावा किया गया है।

यह निश्चित रूप से, एक अधिक संभावनाहीन परिदृश्य है क्योंकि एक संपत्ति को एक बार बेचकर फिर से उसे अधिक मूल्य पर खरीदना कोई व्यावसायिक समझ की बात नहीं होगी। 2010 में, राहुल गाँधी ने इस आलीशान टॉवर में B-007 और B-008 के लिए 1.44 करोड़ रुपए और 5.36 करोड़ रुपए का भुगतान किया था। अपने 2019 के चुनावी हलफनामे में, राहुल गाँधी कहते हैं कि 2014 में ऑफिस स्पेस में B007, 1.65 करोड़ रुपए में और B008  7.93 करोड़ रुपए में खरीदा गया था।।

2010 में मूल्य जिसके लिए हस्ताक्षर किए गए एग्रीमेंट्स पेपर हैं और 2019 हलफनामे में दर्शाए गए मूल्य में पर्याप्त अंतर है। जिस संपत्ति का राहुल गाँधी ने दावा किया कि 2014 में उन्होंने खरीदी थी, वह उस लागत मूल्य से बहुत अधिक है, जो उन्होंने 2010 में साइन की थी।

इस प्रकार, यह बताने का कोई मतलब नहीं होगा कि राहुल गाँधी ने अक्टूबर 2010 में यूनिटेक से इन संपत्तियों को खरीदा, फिर अपने 2014 के चुनावी हलफनामे को दाखिल करने से पहले अपनी संपत्तियों को बेच दिया, और फिर दिसम्बर 2014 में उन्हीं संपत्तियों को बहुत अधिक मूल्य पर पुनर्खरीद करने के लिए आगे बढ़े। जो अब उनके 2019 के चुनावी हलफनामे में दिखाई दे रहा है।

दृश्य- 2

दूसरा और अधिक संभावित परिदृश्य यह है कि राहुल गाँधी ने 2014 के चुनावी हलफनामे में सभी संपत्तियों का खुलासा नहीं किया।

यदि संपत्ति को 2010 में खरीदा गया था, भले ही उस समय पूरी राशि का भुगतान किया गया हो या नहीं, संपत्तियों को 2014 के हलफनामे में सूचीबद्ध किया जाना चाहिए था। जैसा कि नहीं किया गया और इस बात का कोई तुक नहीं है कि अपनी संपत्ति बेचने और महीनों बाद, दिसम्बर 2014 में अपनी संपत्ति फिर से खरीदने की बात यह संदेह पुष्ट करता है कि राहुल गाँधी अपने 2014 के हलफनामे में सत्य बयान नहीं किया था।

झूठ बोलने का कारण, यह हो सकता है  कि वह शायद यह अच्छी तरह से जानते होंगे कि संपत्तियाँ यूनिटेक से खरीदी जा रही थीं, जो 2-जी घोटाले में आरोपित थे और जिसकी उनकी ही कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा जाँच की जा रही थी और वह इसे जनता की नज़र से छिपाना चाहते थे।

अगर वह तब झूठ बोल रहे थे तो वह अब भी झूठ बोल रहे हैं

यदि हम मानते हैं कि परिदृश्य 2 की अधिक संभावना है और यह कि संभवतः राहुल गाँधी ने 2014 के चुनावी हलफनामे में झूठ बोला था, तो इस बात के भी स्पष्ट कारण हैं कि राहुल गाँधी अपने 2019 के हलफनामे में भी झूठ बोल रहे हैं।

यदि हम स्वीकार करते हैं कि राहुल गाँधी ने अपने 2014 के चुनावी हलफनामे में झूठ बोला था और उन्होंने अक्टूबर 2010 में 2 यूनिटेक संपत्तियों की खरीद की थी और इसे अपने 2014 के हलफनामे में जोड़ने में विफल रहे, तो उनके 2019 के चुनावी हलफनामे में घोषणा की गई कि ये संपत्तियाँ दिसंबर 2014 में खरीदी गई थीं, भी सच नहीं है।

चुनावी हलफनामे में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर या गलत तरीके से पेश करना एक गंभीर अपराध है जो उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर सकता है।

इन चौंकाने वाले तथ्यों के सामने आने के बाद, कोई भी केवल यह उम्मीद कर सकता है कि भारत के चुनाव आयोग द्वारा 2019 और 2014 के चुनावी हलफनामे में विसंगतियों की पूर्ण और गहन जाँच शुरू की जानी चाहिए।

नुपुर जे शर्मा की मूल रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद रवि अग्रहरि ने किया है।

सीआईआई के बाद पीएचडी ने कहा, यहाँ हैं नौकरियाँ

मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार रोजगार का मुद्दा लगातार भोथरा होता जा रहा है। उद्योगों के समूह सीआईआई के बाद पीएचडी चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स ने भी अपने सर्वेक्षण में यह पाया कि नौकरी तलाश रहे युवाओं के घरों से 64% घरों में कम-से-कम से एक व्यक्ति को नौकरी मिली है

गौरतलब है कि इससे पहले सीआईआई के सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई थी कि केवल एमएसएमई सेक्टर की ही कंपनियों ने पिछले चार साल में 1.5 करोड़ रोज़गार प्रति वर्ष की दर से नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराए हैं। यह न केवल विपक्ष के इन दावों के खिलाफ गया कि मोदी सरकार में नौकरी पाना पहले से भी मुश्किल हो गया है, बल्कि सीआईआई की कॉन्ग्रेस के साथ मानी जाने वाली नजदीकी के चलते इस आँकड़े को सिरे से खारिज करना भी कॉन्ग्रेस के लिए मुश्किल था।

(2013 में राहुल गाँधी ने जहाँ सीआईआई में भाषण दिया था, वहीं तब गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी सीआईआई के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले उद्योग समूह फिक्की के 90वें वार्षिक समारोह में बोले थे। यही नहीं, मोदी को सीआईआई के 2003 के समारोह में भी 2002 के गुजरात दंगों को लेकर बैकफ़ुट पर धकेलने की कोशिश हुई थी। ऐसे परिप्रेक्ष्य में सीआईआई के जॉब-डेटा को नकारना कॉन्ग्रेस के लिए बहुत मुश्किल था, और अब ऊपर से पीएचडी ने सीआईआई के सर्वेक्षण पर मुहर लगा दी।)

55% शहरी, 45% ग्रामीण; मेट्रो शहर सबसे आगे

पीएचडी के सर्वे के अनुसार उसका सर्वेक्षण लगभग 27,000 लोगों के जवाबों पर आधारित है। यह संख्या किसी भी जॉब सर्वेक्षण के लिहाज से छोटी नहीं कही जा सकती। सर्वे में शामिल 55% लोग शहरी इलाकों के रहने वाले थे, वहीं 45% लोग ग्रामीण इलाकों के निवासी थे।

55% शहरी, 45% ग्रामीण घरों ने इस सर्वे में भागीदारी की

सर्वे में मेट्रो शहरों (दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलुरु) के 77% युवाओं ने नौकरी तलाशने में सफलता की बात कही, वहीं टियर-2 शहरों में 67%, टियर-1 शहरों में 61%, और ग्रामीण इलाकों के 49% लोगों को नौकरी तलाशने में सफलता मिली।

साथ में पीएचडी ने इस और ध्यान भी आकर्षित कराया कि जहाँ निजी क्षेत्र की जितनी ज्यादा पैठ है, जैसे मेट्रो और टियर-2 शहर, वहाँ नौकरियाँ उतनी ज्यादा उपलब्ध हैं। पीएचडी के अध्यक्ष राजीव तलवार ने यह बात रिपोर्ट पर चर्चा के समय कही। इसे पीएचडी चेंबर की ओर से आर्थिक उदारीकरण और आर्थिक सुधारों को जारी रखने की वकालत की तौर पर देखा जा सकता है।

मेट्रो शहरों में नौकरी तलाशना सबसे आसान, पर अवसरों की कहीं कमी नहीं

टियर-2 शहर सबसे आगे, नौकरियों की गुणवत्ता भी बढ़ेगी यहाँ

टियर-2 शहर मेट्रो शहरों से भले नौकरियों की वर्तमान संख्या में पिछड़ गए हों पर उद्योग जगत निश्चित तौर पर इन्हें ही आगामी आर्थिक बढ़त के इंजन के रूप में देख रहा है। इस सर्वे में भी नौकरियों की भविष्य की संभावनाओं को टियर-2 शहरों में सबसे तेजी से बढ़ते हुए देखा गया है। साथ ही राजीव तलवार ने इसकी भी उम्मीद जताई कि न केवल संख्या बल्कि नौकरियों की गुणवत्ता में भी टियर-2 शहरों में बहुत संभावनाएँ हैं।. साथ ही यहाँ शिक्षा के भी बहुत सारे अवसर उत्पन्न होंगे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत का यह विकास केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक-सामाजिक है।

युवा शक्ति, निजी सेक्टर नौकरियाँ पैदा करने में आगे

सर्वे में शामिल 86% लोगों को 18-35 वर्ष की आयु में इन नौकरियों को पाने वाला बताते हुए तलवार ने इसे युवाओं की बढ़ रही आर्थिक भागीदारी और उन्हें उद्योग जगत द्वारा दी जा रहे मौकों के तौर पर पेश किया।

नए रोजगारों में युवा लोगों की भागीदारी 86%

इसके अलावा 60.4% नौकरियाँ निजी क्षेत्र की हैं, 21.2% सरकारी पदों पर नियुक्ति से पैदा हुईं, और सरकारी कम्पनियों ने 5.2% प्रतिशत लोगों को नौकरी दी।

5.1% लोगों ने कहा कि वे स्वरोजगार में लगे हैं, 3.3% प्रतिशत ने निजी-सरकारी भागीदारी (पीपीपी) वाले संस्थानों में स्वयं को नियुक्त बताया, और 4.8% के रोजगार इनमें से किसी भी श्रेणी के नहीं थे।

निजी क्षेत्र दे रहा है सबसे ज्यादा नौकरियाँ, फिर क्यों खा रहा है वामपंथी गालियाँ?

वहीं अगर नौकरी देने वाली कंपनियों के आकर की बात करें तो अधिकतम (49%) नौकरियाँ देने वाली कंपनियाँ मध्यम से बड़े आकार की थीं। इनमें भी बड़े आकार की कम्पनियों की भागीदारी 30% नौकरियां पैदा करने की रही, वहीं मध्यम आकार की कम्पनियों ने 19% रोज़गार दिए।

वहीं एमएसएमई के द्वारा दी गए 51% रोजगारों की अगर बात करें (यह वही सेगमेंट है जिसके 6 करोड़ नौकरियाँ पैदा करने की बात सीआईआई के सर्वे में कही गई थी) तो इनमें लघु उद्योगों ने 22% नौकरियाँ दीं हैं। वहीं 29% नौकरियाँ लघु से मध्यम आकार के उद्योगों ने दीं हैं।

सभी आकार की कम्पनियों में हैं अवसर

कंपनियों के क्षेत्र की बात करें तो बैंकिंग सेक्टर में सबसे ज्यादा नियुक्तियाँ (12.5%) हुईं हैं, जिसके बाद शिक्षा व प्रशिक्षण क्षेत्र में 12.1% नौकरियाँ मिलीं, वहीं आईटी व इससे जुड़े सेवा क्षेत्र ने 11.6% नियुक्तियाँ की हैं। इसका निहितार्थ इस तौर पर देखा जा सकता है कि आईटी सेक्टर में दबदबा कायम रखते हुए भारत शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में भी एक ताकत के तौर पर उभरने के लिए कमर कस रहा है।

इसके अलावा फैशन डिजाइनिंग, कंसल्टिंग, टैक्स व कानूनी सेवाएँ, डाटा एनालिटिक्स, आदि क्षेत्र भी बड़े नियोक्ताओं के तौर पर उभर रहे हैं।

आईटी के साथ नॉलेज सुपरपावर बनने की तैयारी, अर्थव्यवस्था की रीढ़ सुधारने के लिए बैंकिंग पर भी जोर

जो नौकरियाँ दी जा रहीं हैं, उनमें 79% लोग पूर्णकालिक रूप से कार्यरत (full-time employment) में हैं, 7% संविदा (contract) पर हैं, 6% अंशकालिक (part-time) हैं. 5% स्वरोजगार में हैं, और केवल 3% दैनिक रोजगार (दिहाड़ी) पर हैं।

“आईटी सेल की दिहाड़ी” है 79% full-time employment?

₹31,000+ है सबसे common तनख्वाह, महिलाओं-पुरुषों के बीच का भेद भी रहा पट  

केवल नौकरियों ही नहीं, लोगों की आय के मामले में भी इस सर्वे से जो तस्वीर निकलती है, उसे निराशाजनक तो नहीं ही कह सकते। न केवल नई नौकरियाँ पाने वाले इन लोगों में 60% की तनख्वाहें ₹10,000 से ₹50,000 के बीच हैं। यह कितना अच्छा है, इसपर दोराय बेशक हो सकती है, पर यह कॉन्ग्रेस द्वारा खींचे जा रहे स्याह खाके से तो बिलकुल मेल नहीं खाता. ₹31,252.28 पीएचडी के सर्वे में सबसे आम (median) तनख्वाह मानी गई है।

वेतन बढ़ रहे हैं या स्थिर हैं, और कीमतें घट रहीं हैं – लोगों के हाथों में बच रहा है ज्यादा पैसा

यदि नौकरी पाने वालों में लैंगिक असमानता की भी बात करें तो महिलाओं(40%) और पुरुषों(60%) में अंतर केवल 10% का होना बेहद उत्साहजनक माना जाएगा।

Women empowerment खुद-ब-खुद हो रहा है- आर्थिक सशक्तिकरण सभी सशक्तिकरणों का मूल है

परिवार की अंधी कमाई पर लगी लगाम के बाद राहुल की बिलबिलाहट लाज़मी है

नागपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के बाद कॉन्ग्रेस के सत्ता में आने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जेल की धमकी दे डाली।

रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा कि चौकीदार अनिल अंबानी जैसे घरों के बाहर तैनात होते हैं न कि किसानों के घर के बाहर। राहुल ने ‘चौकीदार चोर है’ का बिगुल फूँकते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस की सत्ता आने पर देश में एक अलग चौकीदार होगा, जो जाँच करने की शुरूआत करेगा और ‘चौकीदार’ जेल जाएगा।

राहुल के ऐसे बोल यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि फ़िलहाल उन घोटालों का क्या, जिसमें गाँधी-वाड्रा परिवार के दलाली के रिश्ते उजागर हो चुके हैं। इन तमाम घोटालों पर राहुल क्या कहना चाहेंगे जिन पर गाँधी परिवार का एकछत्र राज रहा है, क्या वो उस जेल के बारे में भी बताएँगे कुछ जहाँ उन्हें भेज दिया जाना चाहिए?

बताना चाहूँगी कि राहुल गाँधी, भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुए राफ़ेल सौदे को लेकर इतना मगन थे कि उसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को तरह-तरह की धमकी तक दे रहे थे और देश की जनता को भी भ्रमित करने का दुष्प्रचार कर रहे थे, उसका क्या हुआ, आख़िर कैसे लगी उनके दुष्प्रचार पर लगाम। राहुल को इस चुप्पी का कारण बताना चाहिए था कि जिसे वो वेवजह का मुद्दा बनाकर बरगलाने का काम करते रहे असल में वो राफ़ेल डील यूपीए के मुक़ाबले 2.86% सस्ती थी और इसका ख़ुलासा कैग की रिपोर्ट से हुआ था।

एक के बाद एक हुए ख़ुलासे के बाद गाँधी-वाड्रा परिवार की मिलीभगत उजागर हुई जिसमें ज़मीनी सौदे और रक्षा सौदे शामिल थे, उन पर राहुल कोई सफ़ाई क्यों नहीं देते?

हथियारों के सौदागर संजय भंडारी के साथ अपने ख़ुद के प्रगाढ़ रिश्ते के बारे में क्या वो कभी अपनी चुप्पी तोड़ेंगे? अफ़वाह तो यह भी है कि राहुल गाँधी भारत में राफ़ेल डील के ख़िलाफ़ थे और यूरोफाइटर की पैरवी कर रहे थे। इस बात का ख़ुलासा एबीपी के पत्रकार ने किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि राहुल गाँधी जर्मनी में यूरोफाइटर के प्रतिनिधियों से मिले थे।

राहुल गाँधी जिस ‘चौकीदार’ को जेल का रास्ता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं असल में वो अपनी बौखलाहट को पचा नहीं पा रहे हैं क्योंकि उनके और उनके परिवार की अंधी कमाई पर लगाम जो लग गई है। इसके अलावा राहुल गाँधी बोफ़ोर्स तोप घोटाले के बारे में क्या कहेंगे जिसके तार सोनिया गाँधी और उनके बहनोई तक से जा जुड़े? अब यह बात अलग है कि बात चाहे राहुल की माँ सोनिया गाँधी के बहनोई की हो या उनके ख़ुद के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा की हो, घोटालों के बेताज़ बादशाह तो दोनों ही हैं, यहाँ तो वो कहावत एकदम सटीक बैठती है, ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’।

ज़रा गहराई से सोचिए कि भारत में अब तक जितने बड़े घोटाले हुए हैं उसके पीछे कौन है? इसकी तह तक जाने पर पता चलता है कि कॉन्ग्रेस ने ही हर बड़े घोटाले की नींव डाली है। चाहे वो वर्षों पुराना हो या ताज़ा मामला हो जिसमें पता चला है कि यूपीए का कार्यकाल (2004-14) में राहुल की इनकम में 1600% की वृद्धि हुई और मोदी काल में मात्र 70% की वृद्धि हुई। इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि गाँधी परिवार के राजकुमार कितने मेहनती हैं और ख़ून-पसीने की कमाई का हिसाब भी ठीक से नहीं लगा पाते क्योंकि एक सांसद के तौर पर इतना पैसा इकट्ठा करना असंभव है। घोटाले का पैसा जमा करना, फिर उसे संभालना, फिर छिपाए रखना और कड़ी मशक्कत के बावजूद भी अगर घोटालों में ‘परिवारवाद की छवि‘ उजागर हो भी जाए तो अनंत काल तक मौन धारण किए रखना, जानते हो कितने साहसिक और जोखिम भरा काम है? और इस साहसिक काम में गाँधी-वाड्रा परिवार को पुश्तैनी महारत हासिल है।

यह कहना ग़लत नहीं होगा कि चोरों के बीच में रहकर राहुल की फ़ितरत ही अनरगल भाषणबाजी की हो गई है। इसलिए हर जगह उन्हें चोर ही चोर नज़र आते हैं और उसमें भी मोदी का चेहरा सबसे पहले नज़र आता है। अब इसे राहुल का दुर्भाग्य ही कह सकते हैं कि जिन बेबुनियादी झूठे दावों के बलबूते वो आगामी लोकसभा चुनाव में फ़तह हासिल करना चाहते हैं वो इतने खोखले हो चुके हैं कि जर्जर होकर ढह जाने को तत्पर हैं। अभी देखना बाक़ी है कि अगली सरकार कितनी मुस्तैदी के साथ किसको किस जेल में भेजती है!

‘अगर मोदी की सुनोगे तो तुम सब इसका गंभीर परिणाम भुगतोगे’ चंद्रबाबू नायडू ने दी IT अधिकारियों को धमकी

देश में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी जगह-जगह छापेमारी कर रहे हैं। इसी बीच TDP प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू विजयवाड़ा में धरना दे रहे हैं। नायडू का कहना है कि ये धरना इनकम टैक्स द्वारा TDP कार्यकर्ताओं और समर्थकों के यहाँ छापेमारी के विरोध में है।

IT विभाग की छापेमारी से बौखलाए चंद्रबाबू नायडू ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जाँच नहीं रोकी गई तो उन्हें इसका परिणाम भुगतना होगा। इतना ही नहीं, इनकम टैक्स के जाँच अधिकारियों को भी TDP प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने धमकी देते हुए कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री की बात नहीं माननी चाहिए और अगर उन्होंने ऐसा किया, तो उन सबको भी इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि TDP नेताओं के यहाँ छापेमारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर की जा रही है, एक बार जब चुनावों की घोषणा हो जाने के बाद सब कुछ चुनाव आयोग की निगरानी में आ जाता है। नायडू ने कहा कि सभी पार्टियों के पास सामान अधिकार है और एक पार्टी जो उनका समर्थन नहीं करती है, वो उसे इस तरह से दबा नहीं सकते।

बता दें कि फिलहाल पूरा प्रशासन चुनाव आयोग के हाथ में है, हाल ही में भारिप बहुजन महासंघ (BBM) पार्टी के प्रमुख प्रकाश अम्बेदकर के खिलाफ भी चुनाव आयोग को धमकी देने के आरोप में FIR दर्ज हुई है। वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी चुनाव आयोग और इनकम टैक्स की छापेमारी से परेशान हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को अपना काम करने दिया जाए, लेकिन केवल संदेह के आधार पर हमें परेशान नहीं किया जाना चाहिए।

भाजपा ने जारी की गुजरात में स्टार प्रचारकों की सूची, विवेक ओबेरॉय भी इसमें शामिल

आज (अप्रैल 5, 2019) को भाजपा ने गुजरात में अपने स्टार कैंपेनर्स की लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में भाजपा से जुड़े 40 बड़े चेहरों के नाम है।

एक तरफ जहाँ इस लिस्ट में नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, शिवराज सिंह चौहान, देवेंद्र फडनवीस, निर्मला सीतारमण, स्मृति इरानी, योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नाम भी है। वहीं भाजपा की इस लिस्ट में हेमा मालिनी, परेश रावल और विवेक ओबेरॉय जैसे बॉलीवुड कलाकारों का नाम भी शामिल है।

राज्य के 26 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव मतदान के तीसरे चरण में यानी 23 अप्रैल को होंगे। वैसे तो इस सूची में अधिकतर नामों से जनता परिचित है। लेकिन, अब देखना है कि गुजरात में भाजपा ने जो यकीन विवेक पर दिखाया है, वो उसे सही साबित करने में कितने सफल हो पाते हैं।

बता दें इन दिनों विवेक प्रधानमंत्री मोदी पर बनी फिल्म में उनका किरदार निभाने के कारण ज्यादा चर्चाओं में है। रिपब्लिक भारत को दिए साक्षात्कार में विवेक ने यह भी कहा कि वह साफ़ कर देना चाहते हैं कि वो भाजपा के साथ नहीं हैं, बल्कि वो अपने देश के साथ हैं।

कार्टूनिस्टों का सर काटने पर ₹51 करोड़ देने वाले कसाई याकूब को बसपा का टिकट, शैम्पेन लिबरल्स ‘खामोश’

नरेंद्र मोदी सरकार पर अभिव्यक्ति की आज़ादी ख़त्म करने का आरोप अक्सर लगता रहा है। यह आरोप लगाने वाले भी ज्यादातर या तो महागठबंधन वाले होते हैं या फिर महागठबंधन वालों के वैचारिक समर्थक ‘शैंपेन लिबरल्स’। और महागठबंधन के लिए महत्वपूर्ण बसपा द्वारा याकूब कुरैशी नामक कसाई, जिन्होंने पैगम्बर माने जाने वाले मुहम्मद का कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट का सर कलम करने के लिए ₹51 करोड़ का इनाम रखा था, को अपना मेरठ लोकसभा क्षेत्र का उम्मीदवार बनाया है

बताते हैं कि यह केवल उनके गुस्से की क्षणिक अभिव्यक्ति नहीं थी, बल्कि जब फ़्रांसीसी पत्रिका शार्ली हेब्दो के 8 पत्रकार सच में मार डाले गए (उन्होंने कार्टून बनाने वाले के समर्थन में वह कार्टून फिर से छापा था) तो याकूब कुरैशी ने अपना बयान दोहराया, और कहा कि वे अभी भी इनामी राशि उन कसाइयों (pun intended) को देने के लिए तैयार हैं

और साक्षी महाराज- साध्वी प्राची के बयानों को देश में बढ़ती असहिष्णुता का सबूत मानने वाले शैम्पेन लिबरल्स आज चुप हैं।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर हिंसा का भी आरोपित

कसाई कुरैशी पर इसी फरवरी में पर्यावरण कार्यकर्ताओं के साथ भी हिंसा करने का आरोप लगा था। वह कार्यकर्ता पर्यावरण बचाने के लिए (जो कि शैम्पेन लिबरल्स के पसंदीदा विषयों में से एक माना जाता है) के लिए माँस संयंत्रों पर प्रतिबन्ध चाहते थे। पर्यावरण सुधार संघर्ष समिति के पीड़ित पदाधिकारियों ने यह आरोप लगाया कि उन पर हमला 20-25 लोगों ने किया, जिनमें कुरैशी के माँस संयंत्र के मैनेजर साहब भी थे। मैनेजर साहब हमले वाली जगह के आस-पास ही कहीं रहने वाले बताए गए। हमले से पहले समिति के लोगों को धमकी भी दी गई थी। 15 दिन पहले भी हमला किया गया था।

अवैध होने के कारण बंद हुआ था कसाईखाना, बेटे पर जमीन कब्जियाने का आरोप

कसाई कुरैशी का कत्लखाना बंद करने के पीछे अधिकारियों ने जो कारण बताए थे, उनमें सबसे बड़ा उसके कई हिस्सों का अवैध होना था। बिना कई हिस्सों का नक्शा पास हुए उस कसाईखाने में भैंसे काटे जा रहे थे। मेरठ का पर्यावरण वैसे ही कसाईखानों की भीड़ से चरमरा रहा था। लिहाजा कसाई कुरैशी का कत्लखाना बंद कर दिया गया। उसी मामले में उन कत्लखानों के दोबारा चालू किए जाने का विरोध कर रही पर्यावरण सुधार संघर्ष समिति के लोग हमले का शिकार बने।

इसके अलावा कसाई कुरैशी के बेटे पर भी अवैध तरीके से एक किसान की जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगा था। पीड़ित की जमीन हथियाने के अलावा उसे जान से मार डालने की धमकी भी मिली थी

प्रकाश अंबेदकर ने चुनाव आयोग को दी जेल भेजने की धमकी, दर्ज हुई FIR

लोकसभा चुनाव 2019 तारीख के नजदीक आते ही चुनावी तपिश और तेज हो गई है और इसके साथ ही नेताओं की बिरादरी इस चुनावी महासमर में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए हर वो कदम उठा रही है, जिससे मतदाताओं को लुभाया जा सके। इसको लेकर नेताओं की जुबानी तल्खियाँ भी बढ़ती जा रही हैं। ‘भारिप बहुजन महासंघ’ (बीबीएम) पार्टी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेदकर विपक्षी नेताओं पर तो वार करते ही रहते हैं, मगर इस बार उन्होंने अपने संबोधन में चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को भी नहीं छोड़ा।

संविधान निर्माता डॉक्‍टर भीमराव अंबेदकर के पोते प्रकाश अंबेदकर ने यवतमाल में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अगर वो सत्ता में आते हैं तो चुनाव आयोग को कम से कम दो दिन के लिए जेल भेजेंगे। उन्होंने चुनाव आयोग का हवाला देते हुए कहा कि वो कहते हैं पुलवामा पर बात नहीं करनी चाहिए। लेकिन वो इस मुद्दे पर बात करेंगे, हमें इसके लिए संविधान ने अधिकार दिया है। प्रकाश अंबेदकर के इस बयान के बाद चुनाव आयोग ने प्रतिनिधि कार्यालय से इस संबंध में रिपोर्ट माँगी है। स्थानीय जिला निर्वाचन अधिकारी से इस संबंध में जल्द रिपोर्ट करने को कहा है। प्रकाश अंबेदकर के खिलाफ आईपीसी की धारा 503, 506 और 189 के तहत आपराधिक धमकी और एक लोक सेवक को धमकाने की वजह से मामला दर्ज किया गया है।

हालाँकि, यह पहली बार नहीं है जब प्रकाश अंबेदकर ने इस तरह का विवादित बयान दिया है। अंबेदकर ने पिछले साल अक्टूबर में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत पर हमला करते हुए दावा किया था कि उनके पास अवैध हथियार हैं और शस्त्र अधिनियम के तहत उनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। बता दें कि, प्रकाश आंबेडकर ‘वंचित बहुजन आघाडी’ (वीबीए) की टिकट पर महाराष्ट्र की सोलापुर और अकोला लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। ‘वंचित बहुजन आघाडी’ (वीबीए), अंबेदकर के नेतृत्व वाले ‘भारिप बहुजन महासंघ’ और असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी ‘एआईएमआईएम’ का गठबंधन है।

गौरतलब है कि दलित नेता प्रकाश अंबेदकर ने कहा था कि उनका राजनीतिक मोर्चा महाराष्ट्र की सभी 48 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगा। उनके इस ऐलान से राज्य में कॉन्ग्रेस और राकांपा के भाजपा के खिलाफ ‘महागठबंधन’ बनाने की कोशिशों को झटका लगा था। अंबेदकर ने कहा कि भाजपा विरोधी गठबंधन में शामिल होने के लिए कॉन्ग्रेस के साथ कोई बातचीत नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा, “कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन बनाने के लिए कई प्रस्ताव सामने आए, लेकिन उसमें रोड़े आ गए। हम महाराष्ट्र में सभी 48 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।”

राहुल गाँधी: मिडिल क्लास की जेब में ऐसे हाथ डालूँगा और यूँ ₹72,000 वाला ‘न्याय’ निकाल लूँगा

राहुल गाँधी मुझे कई कारणों से प्रिय हैं। वो न सिर्फ भाजपा के स्टार कैम्पेनर हैं, बल्कि राजनीति के सर्कस में लालू जैसे जोकरों की कमी को कुछ हद तक पूरा करते हैं। लालू तो खैर विदूषक था और अपना बोया, जेल में काट रहा है, लेकिन राहुल अभी तक सिर्फ काट ही रहे हैं, वो भी अपनी पार्टी का। 

कई तरह की मशीनों, कई तरह के मेड इन xyz, कई तरह के किसान लुभावन योजनाओं के बाद अब राहुल गाँधी ने ग़रीबों को ‘न्याय’ दिलाने के लिए फटे कुर्ते के नीचे के पाजामे पर बेल्ट कस लिया है। बहन फ्री-यंका ने भी भाई की कलाई पर न्याय बाँधा है, और बाकी चाटुकार मंडली तो बता ही रही है कि कहाँ से, किसका, क्या काटा जाएगा इसके लिए।

राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस दोनों को ही बजट और जीडीपी की समझ नहीं है, या इतनी ज़्यादा समझ है कि वो यह मानकर चलते हैं कि आम आदमी को तो बिलकुल ही नहीं है। इस पर हमने कल एक रिपोर्ट बनाई थी जहाँ कॉन्ग्रेस के घोषणापत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य पर जीडीपी का 9% ख़र्च करने की बात कही गई है। आपको लगेगा कि सही बात है, इतना तो होना ही चाहिए। बस, इसी ‘होना ही चाहिए’ का फायदा उठाकर धूर्त नेता लोगों को उल्लू बना जाते हैं। 

भारत की जीडीपी लगभग ₹190 लाख करोड़ है, और इस बार का बजट ₹28 लाख करोड़ के लगभग। सीधा गणित लगाएँ, तो हमारा बजट जीडीपी का कुल 14.7% पर आता है। कॉन्ग्रेस चाहती है कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर 9% (₹17 लाख करोड़) ख़र्च होना चाहिए, मतलब बाकी के 5.7% (₹11 लाख करोड़) में रक्षा, कृषि, इन्फ़्रास्ट्रक्चर, सरकारी कर्मचारियों के वेतन, नदियों की सफ़ाई से लेकर जितने भी विभाग हैं, सब आ जाएँगे। मनरेगा, फ़ूड सिक्योरिटी, ग़रीबों के आवास, उनको मिलने वाली सब्सिडी आदि सब इसी 5.7% में। 

जीडीपी और बजट को अगर सीधे तरीके से समझना है तो यह समझिए कि जीडीपी आपके घर, खेत, गाड़ी, गहने, बग़ीचे सबका का पूरा मूल्य है, जो कि एक करोड़ रुपया हो सकता है, लेकिन बजट आपके खेतों से होने वाली आमदनी और आपकी सैलरी ही है। या बग़ीचे के आम बेचने के बाद एडिशनल पैसा। मतलब ये कि आपके घर, कार और खेतों का मूल्य तो है, लेकिन उस स्थिति में जब आप उसे बेच रहे हों। 

अब आपके घर का बजट वह पैसा है जो आप इन एसेट्स से होने वाली आमदनी और अपनी नौकरी से पाते हैं, जिसे आप अपने परिवार की बेहतरी के लिए ख़र्च करते हैं। तो मानिए कि आपके घर में तमाम स्रोतों से पंद्रह लाख रुपए आ रहे हैं। इसी में, कभी आपको बिटिया की पढ़ाई, बच्चे के इलाज या माताजी द्वारा नानी को गिफ्ट देने के लिए कुछ एक्स्ट्रा पैसों की ज़रूरत हो जाती है। फिर आप उधार लेते हैं। 

यही उधार जब सरकार लेती है, तो उसकी आमदनी से ज्यादा होने वाले ख़र्च के कारण फिस्कल डेफिसिट यानी वित्तीय घाटा बढ़ता है। इस उधार पर सरकार को आप ही की तरह ब्याज देना पड़ता है जो अगले साल की आमदनी से कटता है। अगर आमदनी बढ़ेगी नहीं, तो आप अगले साल फिर पीछे रह जाएँगे। साथ ही, आदमी एक बार में कार बेच सकता है, खेत का एक टुकड़ा बेच सकता है, लेकिन वो पूरे जीवन में एक से दो बार ही, क्योंकि उसके बाद आपके पास कुछ होगा नहीं बेचने को। या घर बेचकर आप बेघर हो जाएँगे, परिवार सड़क पर आ जाएगा।

अब इसे भारत के परिप्रेक्ष्य में समझिए। राहुल गाँधी ने बजट की जगह जीडीपी को ख़र्च करने की बात कही है। अब देश के एसेट्स को तो आप एक या दो बार बेच सकते हैं, किसी सरकारी कम्पनी के प्राइवेटाइजेशन के ज़रिए कुछ पैसा पा सकते हैं, या आपको कहीं तेल या सोने का भंडार मिल जाए तो अचानक थोड़ा बूस्ट मिल सकता है, लेकिन जितनी बूस्ट राहुल गाँधी घोषणापत्र में बता रहे हैं, वो माइंड इज़ इक्वल टू ब्लोन टाइप का है। उसके लिए आपको घर बेचना पड़ेगा।

और देश के संदर्भ में घर का मतलब देश ही है। वैसे आम आदमी तो घर बेच लेगा… एक मिनट… तो राहुल गाँधी भी तो देश बेच सकते हैं! ये मैंने बिलकुल भी ख़्याल नहीं किया था। ख़ैर, कहने का मतलब यह है कि आप ख़र्च करने की बात तो खूब कह रहे हैं, चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं, लेकिन उसके लिए आप पैसे कहाँ से लाएँगे इस पर आप या आपके पित्रोदा, बनर्जी और राजन कुछ खास नहीं बता रहे।

एक ने कहा कि मिडिल क्लास को कमर कसनी होगी कि वो टैक्स ज़्यादा दे, एक ने कहा इनकम टैक्स बढ़ा देंगे, अब राहुल ब्रो कह रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं करेंगे। पैसा बैंकिंग सिस्टम के उन लोगों से आएगा जिन्होंने इसे डोमिनेट किया हुआ है। क़ायदे से इस स्टेटमेंट का कोई अर्थ नहीं निकलता क्योंकि राहुल गाँधी ने फिर से एक फर्जी बात कह दी है, लेकिन वो भूल गए कि बैंकिंग सिस्टम स्वयं ही बहुत बेहतर स्थिति में नहीं है, क्योंकि उनके माताजी की सरकार ने नीरव मोदी, विजय माल्या जैसे चोरों को हजारों करोड़ बाँटे। 

ग़रीबों को राहुल गाँधी ‘न्याय’ योजना से पैसे देने की बात कह रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई क्रेडिबल सोर्स ऑफ इनकम इन्होंने नहीं बताया। ये बात बिलकुल ही अलग है कि नेहरू जी ने दो-चार सोने की खानें कहीं छुपा रखी हो, जिससे अचानक से जीडीपी तीन गुणा बढ़ जाए, तो न्याय के लिए पैसे निकल आएँगे। लेकिन, इसकी जानकारी मैनिफ़ेस्टो में नहीं है, तो मैं इस पर कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं हूँ। 

फिर से बजट की बात करना चाहूँगा क्योंकि जनसामान्य के लिए ये एक कॉम्प्लेक्स विषय की तरह पेश किया जाता है। मान लीजिए कि देश में टैक्स और अन्य स्रोतों से सौ रुपए आते हैं, तो ख़र्च भी उन्हीं सौ में से होंगे। अब अगर, आपने कोई नई स्कीम लाने की कोशिश की तो उसके ख़र्चे के लिए रुपए तो सौ ही हैं, योजनाएँ पहले दस थीं, अब हो गई ग्यारह। मतलब बाकी की योजना से पैसे काट कर, नई में लगाई जाएगी, या फिर आमदनी बढ़ाने की कोशिश होगी। 

आमदनी बढ़ाने के लिए टैक्स बढ़ाना होगा, चाहे लोगों पर हो, या वस्तुओं पर। दोनों ही स्थिति में भार वापस आम आदमी पर ही पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि बैंकिंग सिस्टम में पैसा रखा हुआ है, और सरकार जब चाहे निकाल लेगी। राहुल गाँधी को यही लगता है कि इतने बैंक हैं, वहाँ से पैसे ले लेंगे। राहुल गाँधी ऐसा सोच सकते हैं, क्योंकि वो राहुल गाँधी हैं। 

बैंक के पास जब आप पैसे जमा करते हैं तो बैंक आपके पैसे को कहीं और लगाती है। वो किसी को ब्याज पर देती है, कहीं अपने व्यवसाय में लगाती है, जिससे उसे आमदनी होती है और आपको बैंक अपनी आमदनी का एक हिस्सा देती है। हमारे या आपके जैसे लोग दस-दस हजार जमा करते हैं, तो सौ लोगों का पैसा दस लाख बनकर बैंक के पास जाता है, जिसे बैंक किसी बड़े उद्योग में लगाती है। फिर उस उद्योग का फायदा, कुछ बैंक अपने पास रखती है, कुछ हमें देती है। 

अब, जैसे कि कॉन्ग्रेस ने लोन माफ़ी की बात कर दी। लोन बैंक ही देती है, और सरकार ने उसके पैसे अब डुबा दिए। अब बैंक उस घाटे को, अगर ब्याज न भी ले, कहाँ से पूरा करेगी? बैंक अपने फायदे से उसे पाटने की कोशिश करेगी, या सरकार उसका घाटा सहेगी। दोनों ही स्थिति में फ़र्क़ किसे पड़ेगा? आम आदमी को। बैंक ने सहा, तो वो घाटे में जाएगी और अपना घाटा हमारी जेब तक कम ब्याज के रूप में पहुँचाएगी। अगर सरकार ने सहा, तो ज़ाहिर है कि किसी और सेक्टर का पैसा कृषि की लोनमाफी पर जाएगा, तो वो सेक्टर इससे प्रभावित होगा। 

राहुल गाँधी को ऐसा नहीं लगता। राहुल गाँधी को लगता है कि बैंक में पैसा होता है, जिसे निकाला जा सकता है। इसलिए उन्होंने ये कह दिया कि न्याय योजना का पैसा बैंकों से आएगा। फिर से, यह भी ध्यान रहे कि भारत के जीडीपी में ये बैंक भी आते हैं। मतलब, जो है, सीमित है। जीडीपी ग्रोथ की जब बात होती है तो वो एक तय तरीके से बढ़ती है क्योंकि भारत के लोग या उद्योग (सरकारी या प्राइवेट) सरकार की नीतियों के दायरे में बढ़ते हैं। 

इसलिए, जीडीपी में अचानक से उछाल नहीं आता। चूँकि, जीडीपी में अचानक से उछाल नहीं आता, तो बजट के लिए सरकार के पास आने वाली आमदनी में भी, अचानक से वृद्धि नहीं हो सकती। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। एक को छेड़ने के लिए, दूसरे को भी छेड़ना पड़ेगा। राहुल गाँधी या कॉन्ग्रेस के धूर्त नेता जनता की अनभिज्ञता का फायदा उठाकर लोकलुभावन बातें तो कर देते हैं, लेकिन तरीके नहीं बताते।

इसी कारण भ्रम की स्थिति पैदा होती है। लोगों को बजट या जीडीपी की परिभाषा स्कूलों में बता दी जाती है, लेकिन उसके बाद उस विषय की समझ के नाम पर वो कभी आगे नहीं बढ़ता। हम या आप यह भी नहीं जानते कि सरकार पैसे क्यों छापती है, कितना छाप सकती है। इसी का फायदा राहुल गाँधी या कॉन्ग्रेस पार्टी उठाते हैं, जब वो कुछ भी कह कर निकल लेते हैं। 

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फर्जी IFS जोया खान हुई गिरफ्तार, आवाज बदलकर अफसरों पर झाड़ती थी रौब

नोएडा में गुरुवार (अप्रैल 4, 2019) को जोया खान नाम की फर्जी महिला आईएसएफ अधिकारी को उसके पति के साथ गिरफ्तार किया गया। महिला पर आरोप है कि वह प्रॉक्सी मेल और आवाज़ बदलने वाले ऐप के जरिए पुलिस को झाँसा देती थी। इस ऐप की मदद से खुद ही वह पीए अनिल शर्मा बनकर अधिकारियों से फोन पर बात करती थी। पुलिस की मानें तो जोया, रिश्तेदारों और अपने परिवार वालों को फायदा पहुँचाने के लिए, स्कूलों में दाखिला कराने के लिए, रौब दिखाने के लिए फर्जी IFS होने का नाटक करती थी।

इस जोड़े के पास से नीली बत्ती लगी XUV और मर्सिडीज कार बरामद हुई है। साथ ही 3 फर्जी यूनाईटेड नेशन के आईकार्ड भी बरामद हुए है। इनकी एक गाड़ी पर भी यूनाइटेड नेशन का लोगो लगा हुआ था। इसके अलावा दो वॉकी-टॉकी, पिस्टलनुमा लाइटर, दो लैपटॉप, चार एंड्रॉयड फोन बरामद किए गए हैं।

मीडिया खबरों के अनुसार जोया खान ने एसएसपी वैभव कृष्ण से खुद को गाजियाबाद निवासी बताकर संपर्क किया था। इस दौरान जब उसने ज्यादा रौब दिखाने की कोशिश की तो एसएसपी वैभव को उसपर शक हुआ। जब जाँच हुई को एसएसपी का शक सही निकला। इसके बाद आरोपी जोया को उसके पति के साथ पकड़ लिया गया है।

खबरों की मानें तो जोया ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए किया है। लेकिन जोया कि हरकतों को देखकर लगता है जैसे उसने इस तरह के फर्जीवाड़े में पीएचडी कर रखी हो। जोया फर्जी मेल आईडी बनाकर पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारियों को पर्सनल मेल करती थी। उसका उद्देश्य अपनी फर्जी पहचान के साथ दबदबे को कायम रखना था।

यहाँ पर बता दें कि पुलिस की गिरफ्त में आई जोया खान मेरठ के कैंट इलाके की रहने वाली हैं। वह खुद को पीएम की सुरक्षा में तैनात प्रमुख सचिव भी बताती थी। जोया के पिता डॉक्टर हैं। जोया ने हर्ष प्रताप सिंह से कोर्ट मैरिज की थी, लेकिन उसके माता-पिता ने उसकी शादी की जानकारी होने से इंकार किया है।

नेशनल हेराल्ड हाउस नहीं करना होगा खाली, SC ने लगाई हाईकोर्ट के फ़ैसले पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फ़ैसले के आदेश पर रोक लगा दी जिसमें हेराल्ड हाउस को खाली करने का निर्देश दिया गया था। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ एसोसिएटिड जर्नल लिमिटेड (AJL) की अपील पर भूमि और विकास कार्यालय को नोटिस जारी किया है।

इससे पहले AJL ने 28 फरवरी के दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, ताकि नई दिल्ली के आईटीओ में स्थित हेराल्ड हाउस को खाली करवाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाए जाने वाले सख़्त क़दम को रोका जा सके। अपनी याचिका में AJL ने शहरी विकास मंत्रालय के 30 अक्टूबर 2018 के हेराल्ड हाउस को खाली न करने के नोटिस पर भी रोक लगाई की माँग की थी।

1 मार्च को हाईकोर्ट की दो सदस्यी पीठ द्वारा हेराल्ड हाउस खाली करने के ख़िलाफ़ दायर AJL की अपील ख़ारिज कर दी गई थी। दिया था। AJL ने सिंगल बेंच के 21 दिसंबर के उसे आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें केंद्र सरकार के नोटिस के ख़िलाफ़ दायर याचिका को ख़ारिज कर दिया था।

ख़बर के अनुसार, 7 मार्च को केंद्र सरकार द्वारा AJL को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए 13 मार्च तक जवाब माँगा गया था। इस कारण बताओ नोटिस में केंद्र ने  AJL से पूछा था कि दिल्ली के आईटीओ स्थित हेराल्ड हाउस को खाली करने का आदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए?

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा था कि AJL के 99 प्रतिशत शेयर्स यंग इंडिया (YE) को ट्रांसफर करने पर उसकी 400 करोड़ से अधिक की संपत्ति भी गुप्त तरीके से ट्रांसफर हो जाती है। बता दें कि यंग इंडिया में सोनिया और राहुल गाँधी शेयरधारक हैं। हाईकोर्ट से AJL की याचिका ख़ारिज होने के बाद सरकार ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था।