Sunday, September 29, 2024
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पटना दफ्तर में कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं में चले ताबड़तोड़ लात-घूँसे, पूर्व MP को टिकट न मिलने से थे नाराज

लोकसभा चुनाव 2019 की गहमा-गहमी के चलते पूरे देश में चहल-पहल का माहौल है। राजनीतिक बयानबाजी के साथ ही टिकट नहीं मिलने से नाराज कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी उभरकर सामने आ रही है। कभी कोई अपनी नाराजगी सोशल मीडिया के जरिए व्यक्त कर रहा है, तो कुछ नेता हाथ छोड़कर अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त कर रहे हैं।

इसी तरह की एक निंदनीय घटना बिहार की राजधानी पटना से सामने आई है, जिसमें कॉन्ग्रेस कार्यालय में कार्यकर्ताओं ने अपनी नारजगी खुलकर व्यक्त करते हुए एक दूसरे पर जमकर लात-घूसे बरसाए दिए। बताया जा रहा है कि कार्यकर्ताओं में टिकट वितरण को लेकर विवाद हुआ था और बढ़ते-बढ़ते बात मारपीट तक आ गई। कुछ नेताओं द्वारा बीच-बचाव कर मामला शांत करवाया गया। इस तरह से ये भी पता चल रहा है कि में कॉन्ग्रेस की मुश्किलें आसान होने नाम नहीं ले रही हैं।

हुआ यूँ कि बिहार की औरंगाबाद सीट से कॉन्ग्रेस सांसद निखिल कुमार ने टिकट की माँग की थी, लेकिन पार्टी ने महागठबंधन में शामिल हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के उपेंद्र प्रसाद को चुनावी मैदान में उतराने का फैसला लिया है। इसी बात को लेकर पटना कॉन्ग्रेस कार्यालय में बैठक के दौरान दोनों नेताओं के समर्थकों में बहस हो गई और बात मारपीट तक आ गई।

राहुल गाँधी पर फ़िल्म बनाता तो अधिकतर शूटिंग थाईलैंड में करनी पड़ती: विवेक ओबेरॉय

प्रधानमंत्री मोदी की बायोपिक पर बनी फ़िल्म को लेकर विवेक ओबेरॉय काफी जद्दोज़हद करते नज़र आ रहे हैं। बता दें कि यह फ़िल्म आगामी 5 अप्रैल को रिलीज़ होने वाली है। फ़िल्म को लेकर विवेक काफी चिंता में हैं जिसकी वजह है इस पर लगे तमाम तरह के आरोप। इसमें ‘बैकडोर फंडिंग’ और ‘राजनीतिक प्रचार’ के आरोप शामिल हैं। इसलिए अपनी फ़िल्म का बचाव करते हुए वो समाचार स्टूडियो के चक्कर लगा रहे हैं।

हाल ही में, उन्होंने उन सवालों के जवाब देने के लिए NDTV स्टूडियो का दौरा किया। विष्णु सोम को एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि इस फ़िल्म को बनाने का निर्णय लेने में उन्हें केवल 30 सेकंड लगे।

साक्षात्कार के दौरान ही सोम ने उनसे पूछा कि क्या वो कभी राहुल गाँधी की भूमिका निभाएँगे? इस पर विवेक ने तुरंत जवाब दिया, “अगर उन्होंने (राहुल गाँधी) भूमिका निभाने लायक कुछ किया होता, तो मैं निभाता।” राहुल गाँधी के लगातार विदेशी दौरों पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए मुझे फ़िल्म की अधिकतर शूटिंग थाईलैंड में करनी पड़ती। विवेक के इस जवाब के बाद दर्शकों के बीच हँसी के ठहाके गूँज उठे।

विवेक ने पूरे साक्षात्कार में इस बात को स्वीकार किया कि वो पीएम नरेंद्र मोदी पर विश्वास करते हैं और आज के समय में देश को उनके जैसे नेता की ही आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी के चाय वाले बनने से लेकर एक विश्व नेता बनने तक की कहानी हर दूसरे वैश्विक नेता के लिए प्रेरणादायक है।

विवेक ओबेरॉय ने बार-बार ज़ोर देकर कहा है कि उन्होंने भले ही अतीत में भाजपा के लिए प्रचार किया है, लेकिन वे पार्टी के सदस्य अभी तक नहीं हैं। उन्होंने साक्षात्कर्ता सोम से कहा कि वह (विवेक) प्रधानमंत्री के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। NDTV के पत्रकार ने यह भी पूछा कि क्या नरेंद्र मोदी ने फ़िल्म की स्क्रिप्ट की समीक्षा की थी या कम से कम इसे पढ़ा था। इस पर विवेक ने कहा, “एक आदमी जो राष्ट्र चलाता है, उसके पास इन चीजों के लिए समय कैसे हो सकता है?” सोम ने चुटकी लेते हुए कहा, “वह प्रतिदिन 18 घंटे काम करते हैं, वह एक पटकथा तो पढ़ सकते थे।” इस पर विवेक ने कहा कि हाँ, वो बहुत काम करते हैं यही उनकी कुशल कार्यशैली की पहचान है और इसीलिए उनके पास स्क्रिप्ट के लिए समय नहीं होता।

MP में कॉन्ग्रेस नेता को ट्रैफिक सूबेदार ने बताई उसकी जगह, पुलिस विभाग ने किया लाइन हाज़िर

कर्तव्य के प्रति निष्ठा और ईमानदारी आज के समय में भी अचानक से ही सही लेकिन देखने को मिल जाती हैं। मंगलवार (मार्च 02, 2019) को इंदौर के राजबाड़ा इलाके में पुलिस विभाग के अरुण सिंह ने एक बड़ी मिसाल पेश की है। हालाँकि, तारीफ़ करने के बजाए पुलिस विभाग द्वारा फिलहाल उन्हें तनाव पर काबू करने के लिए स्पेशल सेशन अटेंड करने भेज दिया गया है।

मंगलवार को राजवाड़ा क्षेत्र में चालान बनाने की बात को लेकर ट्रैफिक सूबेदार अरुण सिंह का झगड़ा कॉन्ग्रेस के एक नेता से हो गया था। नेता मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चला रहे थे, इस पर ट्रैफिक सूबेदार ने उसे रोका और कार्रवाई की बात कही। इस वीडियो में युवक मध्य प्रदेश में ‘कॉन्ग्रेस-राज’ का जिक्र करते हुए ट्रैफिक सूबेदार पर कार्रवाई नहीं करने का दबाव बना रहा था।

ड्यूटी पर तैनात ट्रैफिक सूबेदार अरुण सिंह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, इस वीडियो के वायरल होने के 24 घंटे के भीतर पुलिस विभाग ने अरुण सिंह को सप्ताह भर के प्रशिक्षण के नाम पर लाइन हाजिर कर दिया है। वीडियो में जिस बाला बच्चन का जिक्र किया गया है, वो मध्य प्रदेश के गृह मंत्री और इंदौर के प्रभारी मंत्री बाला बच्चन हैं। वही बाला बच्चन, जिन्होंने गत फरवरी माह में कार्यकर्ताओं की बैठक के दौरान अधिकारियों से कहा था कि वे कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं को अधिक महत्व दें।

वीडियो में सूबेदार अरुण सिंह का कहना था कि उन्होंने चलती बाइक पर मोबाइल से बात कर रहे नीलेश जैन नाम के एक व्यक्ति को रोका था। इस पर नीलेश के साथी अखिलेश जैन नेताओं की धौंस देने लगे। इन तथाकथित नेता और उनके रिश्तेदारों ने सूबेदार से कहा कि अब प्रदेश में कॉन्ग्रेस का राज है और आपको यहाँ रहना है तो बात माननी पड़ेगी।

मैं सूबेदार अरुण सिंह थाना यातायात पश्चिम… गलती होने पर चालान कार्रवाई जरूर करूँगा

अरुण सिंह इस वीडियो में कह रहे हैं, “हमने इन्हें मोबाइल पर बात करते हुए रोका, तो इन्होंने खुद को पूर्व विधायक अश्विन जोशी का भाँजा बताया और उनसे बात करने को कहा। हम व्यस्तता के कारण हर इनसान से बात नहीं कर सकते। ये नियम नहीं है कि फँसे हैं तो बात करें। ये बोल रहे हैं कि कॉन्ग्रेस का राज है, आपको ये करना पड़ेगा। राजबाड़ा में आपको रहना है तो आपको यह बात माननी पड़ेगी। मैं सूबेदार अरुण सिंह थाना यातायात पश्चिम… मैं किसी की बात नहीं मानूँगा। कोई गलत मिला तो चालानी कार्रवाई बिलकुल करूँगा। चाहे आप बाला बच्चन की धमकी दें या किसी और की। ये अपने आप को कॉन्ग्रेस का बता रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारा राज है और हमारी चलेगी। ये कह रहे हैं कि तुम्हारी वर्दी उतार दूँगा। मैं सब को बता रहा हूँ, जो भी इस वीडियो को देख रहे हैं या सुन रहे हैं, मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा। मैं किसी शासन की नहीं सुनूँगा। मैं वर्दी पहने हूँ, इसके पैसे मुझे शासन से मिलते हैं। सही कार्रवाई करूँगा।”

सूबेदार अरुण सिंह को लाइन हाजिर करने की सूचना मिलते ही मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट पर इस घटना की निंदा की। उन्होंने लिखा कि कमलनाथ सरकार ने निडर पुलिस अफसर को अपना कर्तव्य निभाने के लिए और कॉन्ग्रेस की गुंडागर्दी को न मानने पर लाइन अटैच करवा दिया है। इस ट्वीट में उन्होंने कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी को भी टैग किया है, लेकिन वो शायद नए लोकसभा क्षेत्र में वोट की अपील में व्यस्त हैं।

वहीं अखिलेश जैन का कहना है कि उनके मित्र नीलेश जैन मोबाइल पर बात करते हुए जा रहे थे। पुलिसकर्मी ने उन्हें रोका। एक हजार रुपए लेकर 500 रुपए की रसीद दे रहा था। इसकी जानकारी मुझे मिली तो मैं पहुँचा और अपना परिचय दिया तो वह वीडियो बनाकर हम पर हावी होने लगे।

अरुण सिंह का इस घटना के बारे में कहना है, “मैं अपनी ड्यूटी पूरी ईमानदारी से कर रहा था। वर्दी और कानून से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है। आगे भी मैं इसी तरह से बिना किसी दबाव में आए अपना फर्ज निभाता रहूँगा।”

इस प्रकरण में सही और गलत का निर्णय होना अभी बाकी है, लेकिन फिलहाल सूबेदार अरुण सिंह को एक हफ्ते के स्ट्रैस मैनजमेंट सेशन के लिए भेज दिया गया है। PTI से बात करते हुए SSP इंदौर रूचि वरधान मिश्रा ने बताया है कि प्रेशर के वक्त उनका रवैया सही नहीं था, जो उन्हें सीखने की ज़रूरत है। इसलिए उन्हें स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए भेज दिया गया।

कॉन्ग्रेस का ‘कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’: राजद्रोह और AFSPA जैसे कानूनों में बदलाव देश की अखंडता पर संकट है

कुछ दिनों पहले कॉन्ग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अपना मैनिफेस्टो जारी किया जिसमें कुछ कानूनों में संशोधन करने का वादा किया गया है। कांग्रेस का कहना है कि यदि वह सत्ता में आई तो ‘राजद्रोह’ को परिभाषित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (A) को समाप्त कर देगी। इसके पीछे कॉन्ग्रेस पार्टी का तर्क है कि इस धारा का दुरुपयोग होता है। इसके अतिरिक्त चुनावी घोषणापत्र में यह भी लिखा गया कि कॉन्ग्रेस के सत्ता में आते ही सशस्त्र सेना (विशेषाधिकार) अधिनियम (1958)- जिसे सामान्यतः ‘AFSPA’ कहा जाता है- में भी संशोधन किया जाएगा।

दोनों ही कानूनों का प्रयोग विशेष परिस्थितियों में किया जाता है और इन्हें संशोधित करने अथवा समाप्त करने की बात चुनावी घोषणापत्र में कहना यह दिखाता है कि कश्मीर के आतंकियों और देश में चुनी हुई सरकार से नफरत करने वालों के तुष्टिकरण लिए कॉन्ग्रेस कितनी तत्पर है। हम इतिहास देखें तो कम्युनिस्ट और माओवादी विचारधारा वाली पार्टियाँ भी ऐसे हर कानून को समाप्त करने की बात समय-समय पर उठाती रही हैं जो देश की एकता और अखंडता को सुरक्षित रखने में सहायक हैं।

कॉन्ग्रेस पार्टी का इतिहास देखें तो 2004 में सत्ता में आते ही इन्होंने आतंकवाद के विरुद्ध सम्पूर्ण भारत में लागू होने वाले देश के पहले कानून ‘पोटा’ (Prevention of Terrorism Act) को समाप्त कर दिया था जिसका खामियाज़ा देश को आने वाले एक दशक तक भुगतना पड़ा था। आज आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने वाला एक ही कानून देश में बचा है जिसे Unlawful Activities (Prevention) Act 1967 कहा जाता है। बीते कुछ सालों में UAPA के अंतर्गत पकड़े गए आतंकियों और अर्बन नक्सलियों ने इस कानून के विरुद्ध अभियान चला रखा है।

ध्यान रहे कि आनंद तेलतुंबडे की गिरफ्तारी और जेकेएलएफ पर प्रतिबंध UAPA के अंतर्गत ही संभव हो पाया था। इसीलिए अर्बन नक्सली गुटों ने तुरंत इंडिया सिविल वाच जैसी संस्था पैदा की और सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा जैसों के लिए समर्थन जुटाया। इस समर्थन का उद्देश्य UAPA को ‘draconian’ घोषित कर इसे भी समाप्त करना है। वास्तव में कॉन्ग्रेस और वामपंथी-माओवादी एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं जो हर वो कानून समाप्त कर देना चाहते हैं जिससे देश की एकता और अखंडता सुरक्षित रहती है।    

राजद्रोह को परिभाषित करने वाला कानून: IPC सेक्शन 124 (A)

राजद्रोह कानून समाप्त करने या न करने के पीछे ढेरों तर्क दिए जा सकते हैं। सामान्यतः यह समझा जाता है कि आईपीसी 124 (A) के अंतर्गत ‘देशद्रोह’ की परिभाषा बताई गई है लेकिन ऐसा नहीं है। यह कानून विधि द्वारा स्थापित सरकार के विरुद्ध शत्रुता उत्पन्न करने के उद्देश्य से दिए गए बयान या अन्य माध्यमों से किए गए ऐसे किसी आचरण पर दंड का प्रावधान स्थापित करता है। इसमें देश से द्रोह नहीं बल्कि विधि द्वारा स्थापित सरकार से द्रोह को परिभाषित किया गया है।

जहाँ एक तरफ यह कानून विधि द्वारा स्थापित सरकार के विरोध में घृणास्पद अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाता है वहीं दूसरी तरफ संविधान के अनुच्छेद 51A में लिखित मूलभूत दायित्वों की रक्षा भी करता है। संविधान में लिखित मूलभूत दायित्व यह कहते हैं कि प्रत्येक नागरिक को देश की एकता, अखंडता, संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान नहीं करना चाहिए। यहाँ यह समझना आवश्यक है कि जनादेश और विधि द्वारा स्थापित सरकार भारतीय संविधान के अधीन कार्य करने वाली संस्था है। यह कैसे हो सकता है कि कोई नागरिक संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करे लेकिन उसी संविधान द्वारा स्थापित निर्वाचन प्रक्रिया और विधि द्वारा स्थापित सरकार के विरुद्ध शत्रुता फैलाने वाला आचरण करे?  

ध्यान देने वाली बात है कि मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए तो हम कोर्ट जा सकते हैं लेकिन कोई नागरिक अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहा है या नहीं यह सुनिश्चित करने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। ऐसे में राजद्रोह कानून देश के नागरिकों में एक प्रकार से अनुशासन की भावना जगाता है कि विधि द्वारा स्थापित देश की सरकार की आलोचना करो लेकिन शासन व्यवस्था के प्रति शत्रुता मत पालो। निर्वाचन प्रक्रिया द्वारा विधिवत चुनी गई सरकार की नीतियाँ गलत हो सकती हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम उसको शत्रु मानकर हथियार उठा लें और क्रांति करने निकल पड़ें।

राजद्रोह कानून वामपंथी माओवादी जैसी रक्तपिपासु विचारधारा से देश को बचाने का कार्य भी करता है क्योंकि इस विचारधारा का बीजमंत्र ही मौजूदा सरकार को उखाड़ फेंकना और समानांतर सरकार चलाना है। देश के माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों की समानांतर सरकारें ही तो चलती रही हैं। नक्सली विधि द्वारा स्थापित भारत सरकार के विरुद्ध घृणा फ़ैलाने का काम कई दशकों से करते रहे हैं इसीलिए आज नक्सलवाद देश की एकता और अखंडता पर संकट बन चुका है। ऐसे में कॉन्ग्रेस का यह आश्वासन देना कि उनके सत्ता में आते ही राजद्रोह कानून समाप्त हो जाएगा, यही दिखाता है कि उनका गठबंधन अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र विरोधी ताकतों से है।

जहाँ तक किसी कानून के दुरुपयोग की बात है तो देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जिसका दुरुपयोग न हुआ हो। कानून का सदुपयोग अथवा दुरुपयोग सरकार की नीयत पर निर्भर करता है। किसी कानून का अस्तित्व देश की तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था पर संभावित संकट की स्थिति पर निर्भर करता है। अभी देश में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं हुई है कि आईपीसी की धारा 124A को समाप्त करने का वादा चुनावी घोषणापत्र में किया जाए।

दूसरी बात यह कि राजद्रोह का कानून अंग्रेज़ों के जमाने का कानून है। यदि कॉन्ग्रेस को इसे हटाना ही था तो स्वतंत्रता के पश्चात 60 वर्ष के शासनकाल में क्यों नहीं हटाया गया? सन 2012 में असीम त्रिवेदी को संविधान पर मूत्र विसर्जन करने वाले कार्टून के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार करने वाली इसी कॉन्ग्रेस पार्टी की सरकार थी। क्या उस समय धारा 124A का दुरुपयोग नहीं हुआ था?  


सशस्त्र सेना (विशेषाधिकार) अधिनियम [AFSPA 1958, 1990]

स्वतंत्र भारत में सशस्त्र सेना (विशेषाधिकार) अधिनियम या ‘अफ्स्पा’ से अधिक विवादास्पद कानून कोई नहीं हुआ। कॉन्ग्रेस का घोषणापत्र कहता है कि सत्ता में आते ही इसमें भी संशोधन किया जाएगा। अफ्स्पा में संशोधन करने के पीछे जो तर्क दिया गया है उसके शब्दों पर ध्यान देना आवश्यक है। कॉन्ग्रेस ने घोषणापत्र में लिखा है: “Congress promises to amend the Armed Forces (Special Powers) Act, 1958 in order to strike a balance between the powers of security forces and the human rights of citizens and to remove immunity for enforced disappearance, sexual violence and torture.”

अर्थात कॉन्ग्रेस पार्टी दुनिया के सामने यह मानती है कि कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा लोगों को जबरन गायब करवाया गया और सेना के जवानों द्वारा यौन हिंसा और अत्याचार किया गया। इससे अधिक शर्मनाक बात और क्या होगी कि भारत की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध जारी प्रोपेगंडा युद्ध का हिस्सा बन चुकी है। इस प्रोपेगंडा युद्ध को समझे बिना कॉन्ग्रेस की कारस्तानी समझना कठिन है। यह सर्वविदित है कि जन्म लेते ही पाकिस्तान ने भारत विरोधी गतिविधियाँ आरंभ कर दी थीं। गत 70 वर्षों में उन गतिविधियों ने एक पैटर्न का रूप लिया।

इस पैटर्न में पहले भारत के साथ प्रत्यक्ष युद्ध (1947, 1965, 1971) किया गया जिसमें असफल होने पर पाकिस्तान ने आतंकवाद रूपी परोक्ष युद्ध लड़ा जो अभी तक जारी है। इसी क्रम में आईएसआई अब भारत के साथ प्रोपेगंडा युद्ध कर रही है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर पाकिस्तानी हुक्मरान यह कहते हैं कि भारतीय सेना कश्मीर में मानवाधिकार हनन में लिप्त है। भारत में पाकिस्तान समर्थित अर्बन नक्सली नित नए फर्ज़ी उदाहरण सामने लाते हैं और सेना को बदनाम करते हैं। इसी प्रक्रिया में अब कॉन्ग्रेस पार्टी भी सम्मिलित हो चुकी है।  

कॉन्ग्रेस और कम्युनिस्ट विचारधारा की पैदाइश अर्बन नक्सलियों द्वारा अफ्स्पा के विरोध में लंबे-लंबे लेक्चर दिए जाते हैं लेकिन इन्हें गिलगित बल्तिस्तान और बलोचिस्तान में पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा रोज़ाना किए जा रहे क़त्लेआम पर आँसू बहाने का समय नहीं मिलता। अफ्स्पा के विरोध में यह कहा जाता है कि यह ‘draconian law’ है और सेना इसका दुरुपयोग करती है। यह सही है कि सेना के कुछ अधिकारियों और जवानों द्वारा इसका दुरुपयोग किया गया है, लेकिन यह भी सच है कि उन अधिकारियों और जवानों को सिविल और सैन्य कानून के दायरे में दंड भी मिला है।

अफ्स्पा वास्तव में सन 1958 से 1990 के बीच जम्मू कश्मीर और उत्तर पूर्वी राज्यों में अलग-अलग समय पर लागू किए गए कानून हैं। सबसे पहले 1958 में यह कानून जवाहरलाल नेहरू पूर्वोत्तर राज्यों के लिए लाए थे क्योंकि वहाँ उग्रवादी गतिविधियाँ जन्म ले रही थीं। बाद में जब जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पनपा तो 1990 में वहाँ भी अफ्स्पा लागू किया गया। अफ्स्पा सशस्त्र सेनाओं के अधिकारियों और जवानों को यह विशेषाधिकार देता है कि वे यदि उन्हें उचित लगता है तो वे किसी संदिग्ध व्यक्ति या वाहन की जाँच कर सकते हैं, बिना वारंट गिरफ्तार कर सकते हैं या गोली तक मार सकते हैं।

ऐसे सख्त कानून की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के कारण परिस्थितियाँ विकराल रूप धारण कर चुकी थीं। स्थिति ऐसी थी कि यदि सेना को इतने अधिकार न दिए जाते तो पूर्वोत्तर की सात बहनें भारत का साथ छोड़ चुकी होतीं। जैसे-जैसे परिस्थितियाँ सामान्य हुईं, पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों से यह कानून हटा लिया गया। लेकिन कश्मीर में आज भी हालात युद्ध जैसे ही हैं इसलिए वहाँ अफ्स्पा लागू रहना अनिवार्य है।

ऐसा नहीं है कि भारत अकेला ऐसा देश है जहाँ सेना देश के भीतर छिपे शत्रुओं से लड़ रही है। कनाडा के ओका में 1990 में जब समस्या हुई तब वहाँ की सेना ने विद्रोह को कुचला था। ब्रिटिश सेनाओं ने 1969 से 2007 तक आयरलैंड में विद्रोह को कुचला। सन 1996 में फ़्रांस ने आंतरिक सुरक्षा के लिए ‘ऑपरेशन विजिपायरेट’ के अंतर्गत 2,00,000 सैनिकों की तैनाती की थी। लेकिन भारत में जिन क्षेत्रों में अफ्स्पा लागू है उस ‘कन्फ्लिक्ट ज़ोन’ की प्रकृति को समझने की आवश्यकता है।

जहाँ अफ्स्पा लागू है वहाँ पाकिस्तान समर्थित परोक्ष युद्ध के हालात हैं। हम जम्मू कश्मीर में पारंपरिक युद्ध नहीं लड़ रहे हैं इसलिए वहाँ स्थिति संभालने के लिए हमें अफ्स्पा जैसे कानून की आवश्यकता है। भारत ने अफ्स्पा के अंतर्गत सेना को जो विशेषाधिकार दिए हैं वह उन क्षेत्रों में दिए हैं जहाँ वास्तविक शत्रु अपने देश का नागरिक नहीं बल्कि दूसरे देश का मज़हबी घुसपैठिया है। यदि अर्बन नक्सलियों के स्थापित नैरेटिव के अनुसार भारत ‘अपने ही देश के नागरिकों के साथ युद्ध’ कर रहा होता तो अफ्स्पा नक्सल-माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में भी लागू किया जाता जबकि ऐसा नहीं है।

कॉन्ग्रेस और वामपंथियों को इसका भी उत्तर देने की आवश्यकता है कि यदि अफ्स्पा में संशोधन किया जा सकता है तो अनुच्छेद 370 और 35A में संशोधन क्यों नहीं किया जा सकता जिनके कारण जम्मू कश्मीर राज्य में वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी और वाल्मीकि समुदाय समेत अनेक समुदाय के लोगों के साथ कानूनी रूप से भेदभाव किया जाता है। आज़ादी की लड़ाई लड़ने का दंभ भरने वाली कॉन्ग्रेस को यह पता होना चाहिए कि नेहरू के विश्वस्त गोपालस्वामी आयंगर ने संविधान में अनुच्छेद 370 जुड़वाने के पीछे यही कारण बताया था कि जम्मू कश्मीर में युद्ध की स्थिति थी।

अफ्स्पा भी नेहरू 1958 में इसीलिए लाए थे क्योंकि पूर्वोत्तर में युद्ध जैसे हालात थे। ये अलग बात है कि 1990 में नेहरू की ‘कश्मीर गलती’ को सुधारने के लिए अफ्स्पा को जम्मू कश्मीर में भी लागू करना पड़ा। इस दृष्टि से यदि अफ्स्पा संशोधित हो सकता है तो इसका निष्कर्ष यह होगा कि कश्मीर की स्थिति अब बेहतर है। और यदि ऐसा है तो कॉन्ग्रेस को अपने घोषणापत्र में अनुच्छेद 370 में भी संशोधन करने का वादा करना चाहिए।  

शिवलिंग का ‘अपमान’, फिल्म का हीरो सलमान खान: BJP चाहती है दर्ज हो FIR

मध्य प्रदेश में एक जगह है – महेश्वर। नर्मदा नदी के किनारे बसे हुए इस शहर का नाम भगवान शिव के ऊपर रखा गया है। 1-2 दिनों से यह शहर चर्चा में है। चर्चा में क्योंकि यहाँ सलमान खान ‘पधारे’ हैं। दबंग-1 और दबंग-2 की अपार सफलता के बाद अब वो दबंग-3 बनाने के लिए यहाँ पूरे लाव-लश्कर के साथ आ पहुँचे हैं।

फिल्म बननी शुरू हो, उससे पहले ही उसका प्रचार हो जाए, इसको मार्केटिंग कहते हैं। महेश्वर में फिल्म के डायरेक्टर प्रभु देवा की ओर मुँह किए, नीले रंग की शर्ट पहने, पीछे कॉलर में ऐविएटर चश्मा खोंसे सलमान ने अपनी फोटो इंस्टाग्राम पर डाल कर 14 लाख लोगों (और ट्विटर पर लगभग 60000 लोग) को अपने ‘दबंग’ होने का अहसास भी करा दिया। लेकिन फिल्म की यूनिट से एक गलती हो गई और सारी मार्केटिंग पर भारी पड़ गई।

शिवलिंग के सामने पैर करके बैठा शूटिंग क्रू का बंदा (फोटो साभार: भास्कर)

हुआ यह कि जिस जगह शूटिंग चल रही थी, वहाँ एक शिवलिंग है। शूटिंग आराम से हो, इसके लिए क्रू के लोगों ने शिवलिंग के ऊपर तखत (टेबल के आकार का, हाइट में कम) रख दिया। और तो और क्रू के दो मेंबर उस तखत के ऊपर चढ़कर बड़े आराम से प्री-शूटिंग का काम कर रहे थे। शूटिंग देखने गए लोगों ने इस सीन का वीडियो बना लिया, कुछ ने फोटो ले ली। बस फिर क्या था, सोशल मीडिया में यह बात आग की तरह फैल गई।

शिवलिंग के ऊपर रखे तखत पर चढ़ कर काम करते शूटिंग क्रू के लोग (फोटो साभार: नई दुनिया)

ख़बर वायरल हो गई। भगवान शिव का अपमान हो और लोग चुप बैठें! स्थानीय लोग और मीडिया शूटिंग रुकवाने पहुँच गए। बात बिगड़ती देख कर सलमान खान ने भावनात्मक अपील की। उन्होंने कहा कि वो बड़े शिव भक्त हैं और मुख्यमंत्री कमल नाथ के कहने पर शूटिंग करने आए हैं। यह स्वीकार भी किया कि शिवलिंग का सम्मान करते हुए उसके ऊपर तखत उन्होंने ही रखवाया था और जब कुछ लोगों ने उसका दुरुपयोग किया तो तत्काल हटवा भी दिया।

पब्लिक के गुस्से को शांत करने के लिए उन्होंने स्टार फीलिंग वाली अपील की। उन्होंने लोगों से कहा कि शूटिंग से पहले और बाद में वो जितनी चाहे उतनी फोटो उनकी ले सकते हैं, बस शूटिंग के दौरान न लें। अपने आप को लोगों और मीडिया से जुड़ा दिखाने के लिए उन्होंने अपने ही बाउंसर को एक थप्पड़ भी मार दिया। स्थानीय पुलिस और फैन का शुक्रिया अदा करने के लिए ट्विटर पर छोटा सा एक वीडियो भी डाल दिया। ठीक ही कहा है किसी ने – बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ!

यह मामला तब और बिगड़ गया जब भाजपा के विधायक रामेश्वर शर्मा ने सलमान खान के खिलाफ केस दर्ज करने की माँग की। विधायक रामेश्वर शर्मा का कहना है कि जब से राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार आई है, तब से हिन्दू धर्म और प्रतीकों को नीचा दिखाने का खेल खेला जा रहा है। एक अन्य भाजपा नेता हितेश वाजपेयी ने तो यहाँ तक कह दिया कि जो ‘लोग’ वंदे मातरम बोलने तक से परहेज करते हैं, वो अब शिवलिंग के ऊपर चढ़ कर नाचेंगे!

अगस्ता वेस्टलैंड डील: ED का दावा, 2004 से 2016 के बीच ‘RG’ को मिले ₹50 करोड़

प्रवर्तन निदेशालय ने दावा किया है कि संक्षिप्त रूप से ‘RG’ के नाम से जाने जाने वाले व्यक्ति को अगस्ता वेस्टलैंड सौदे के संबंध में 2004 से 2016 के बीच ₹50 करोड़ मिले हैं।

इंडिया टुडे की एक ख़बर के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आरोपी सुशेन गुप्ता को हिरासत में लेते हुए एक चौंकाने वाला ख़ुलासा किया है। सुशेन को ED ने मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (PMLA) के तहत 25 मार्च की देर रात को गिरफ़्तार किया था।

ED के आवेदन में कहा गया है, “सुशेन गुप्ता जानबूझ कर अपनी डायरी में ग़लत संक्षिप्त विवरण देकर जाँच को ग़लत ठहरा रहे हैं, जिसमें ‘RG’ का इस्तेमाल एक एब्रिवेशन (संक्षिप्त विवरण) के तौर पर कई पन्नों के अलावा पेन ड्राइव डेटा में भी मिला है।”

ED ने अपने आवेदन में कहा, “2004 से 2016 के बीच ₹50 करोड़ से अधिक की राशि ‘RG’ द्वारा प्राप्त की गई है, जबकि सुशेन गुप्ता द्वारा ‘RG’ की पहचान रजत गुप्ता के रूप में की गई, जिसके द्वारा 2007 से सुशील गुप्ता के साथ नकद लेन-देन स्वीकार किया गया था।

प्रवर्तन निदेशालय का मानना ​​है कि सुशील गुप्ता जानबूझकर उस व्यक्ति की वास्तविक पहचान का ख़ुलासा नहीं कर रहे हैं, जिसे ‘RG’ कहा जाता है। सुशेन गुप्ता ने दावा किया है कि उक्त “RG” एक रजत गुप्ता, जो राम हरि राम ज्वैलर्स का निदेशक है।

कथित तौर पर, ED ने सुशेन गुप्ता के दावों को प्रमाणित करने के प्रयास किया और रजत गुप्ता से भी पूछताछ की। हालाँकि, रजत गुप्ता ने ED को यह कहते हुए जवाब दिया कि उन्हें ’RG’ के संक्षिप्त नाम से कोई सरोकार नहीं है और इसे केवल सुशेन गुप्ता ही बता सकते हैं।

इससे पहले, ED ने एक बम गिराते हुए यह उल्लेख किया था कि केस के सिलसिले में क्रिश्चियन मिशेल से पूछताछ के दौरान श्रीमती गाँधी का भी नाम सामने आया था।

हाल ही में, सीबीआई की विशेष अदालत ने मामले में राजीव सक्सेना की याचिका को मंज़ूर कर लिया था। 1973 की दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 के तहत अपने आवेदन में, राजीव सक्सेना ने पूर्ण और सच्चे प्रकटीकरण के मामले में क्षमा के लिए प्रार्थना की थी।

बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल को दुबई से भारत लाए जाने के बाद से ही अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाले की जाँच में बड़ा घटनाक्रम देखने को मिला है। “इटैलियन लेडी”, “इटैलियन लेडी का बेटा R”, के नाम से, क्रिश्चियन मिशेल यूरोफाइटर की पैरवी कर रहे थे और राफ़ेल सौदे के ख़िलाफ़, कैसे उसने कॉन्ग्रेस के शासनकाल में पीएमओ तक अपनी पहुँच बनाई थी, इससे संबंधित अनेकों ख़ुलासे हुए।

‘स्पीडब्रेकर’ ममता के बंगाल में भाजपा बूथ कार्यालय पर लटकी मिली मज़दूर की लाश

सिलिगुड़ी में अभी नरेंद्र मोदी की विशाल जनसभा को हुए एक दिन भी नहीं बीता कि वहाँ से आज (अप्रैल 4, 2019) सुबह खबर आ गई कि 42 साल के एक व्यक्ति का शव बीजेपी के बूथ ऑफिस में लटका हुआ मिला है।

मीडिया खबरों के मुताबिक ये घटना म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन वॉर्ड नम्बर 36 में हुई है। मृतक की पहचान नित्या मंडल के रूप में की गई है, जो वहाँ मज़दूर का काम करता था। पुलिस अभी तक मौत के कारण की पुष्टि नहीं कर पाई है, लेकिन मामले की जाँच शुरू कर दी गई है।

यहाँ बता दें कि कल (अप्रैल 3, 2019) ही पीएम मोदी ने सिलीगुड़ी जनसभा को संबोधित करने के दौरान ममता बनर्जी को राज्य के विकास में ‘स्पीडब्रेकर’ बताया था। और ठीक एक दिन बाद बीजेपी को अपने कार्यालय में मज़दूर की मौत का ऐसा दृश्य देखने को मिल गया।

वैसे तो पश्चिम बंगाल हमेशा से राजनैतिक हिंसा और हत्याओं के कारण खबरों में रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल विशेष रूप से भाजपा के खिलाफ गंभीर राजनीतिक हिंसा के लिए जाना गया। इसका हालिया उदाहरण- कुछ समय पहले पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर में भाजपा कार्यकर्ता अपूर्बा चक्रवर्ती को टीएमसी के गुंडों ने बेरहमी से पीटा था। जिसके बाद से चक्रवर्ती की हालत अब भी गंभीर है और वह वर्तमान में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज में भर्ती हैं।

इतना ही नहीं मालदा में, भाजपा ग्राम पंचायत के सदस्य उत्पाल मंडल के भाई पटानू मंडल को भी टीएमसी के गुंडों ने उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके अलावा टीएमसी के एक अन्य विधायक सोवन चटर्जी और उनके मित्र बैशाखी चटर्जी को भी कथित तौर पर एक बंगले में सिर्फ़ इसलिए कैद रखा गया था क्योंकि उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें थीं। इतना ही नहीं पिछले साल पंचायत के चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार की एक गर्भवती रिश्तेदार का टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा रेप तक कर दिया गया था।

स्मृति ईरानी पर अश्लील बयानबाजी मामले में महागठबंधन नेता गिरफ्तार, बेल पर रिहा

स्मृति ईरानी पर अभद्र बयान देने वाले महागठबंधन नेता जयदीप कवाडे को इसी मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है। उन पर अश्लीलता फैलाने, मानहानि, और चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन जैसी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज हुआ है। बाद में पुलिस ने बयान दिया कि उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

मालूम हो कि पीपल्स रिपब्लिकन पार्टी के नेता कवाडे ने नागपुर के बगाड़गंज में एक चुनावी सभा में बयान दिया था कि केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी लगातार पति बदलतीं हैं, और पति बदलने के साथ उनकी बिंदी का आकार बढ़ता जाता है। इस बयान पर भाजपा और राजग ने कड़ी आपत्ति दर्ज की थी।

कवाडे पार्टी के अध्यक्ष जोगेंद्र कवाडे के सुपुत्र हैं और उनकी पार्टी शरद पवार की राकांपा और कॉन्ग्रेस के साथ महाराष्ट्र में महागठबंधन में है।

भाजयुमो ने दर्ज कराया मामला, शिवसेना नेत्री का स्मृति को समर्थन और चुनाव आयोग से गुज़ारिश

नागपुर लोकसभा क्षेत्र के भाजयुमो (भारतीय जनता युवा मोर्चा) कार्यकर्ताओं ने चुनाव अधिकारी मदन सूबेदार के पास यह शिकायत दर्ज कराई थी। सूबेदार ने मामला आईपीसी की धाराओं 295(A) [दूसरों की मजहबी भावनाओं को जानबूझ कर ठेस पहुँचाने की दुर्भावना से कार्य करना], 500 [मानहानि], 294 [अभद्र कृत्य अथवा गाने], और 171(G) [चुनावों के सम्बन्ध में झूठ बोलना] के तहत मामला दर्ज किया है।

शिवसेना नेत्री नीलम गोढ़े ने इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए केन्द्रीय चुनाव आयोग से ऐसा तंत्र विकसित करने की अपील की जिसके अंतर्गत नेत्रियों के व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेप करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की जा सके। उन्होंने यूरोप का उदाहरण दिया जहाँ ऐसे तंत्र स्थापित और क्रियाशील हैं।

मौजूद कॉन्ग्रेस नेताओं ने नहीं तोड़ी चुप्पी

भाजयुमो का यह भी आरोप है कि जब कवाडे ने यह हरकत की तो वहाँ राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस नेता अशोक चव्हाण, कॉन्ग्रेस नेता विलासराव मुत्तेमवार, कॉन्ग्रेस उम्मीदवार नाना पटोले समेत पार्टी के कई नेता मौजूद थे पर किसी ने इस पर आपत्ति दर्ज नहीं की।

यदि भाजयुमो का यह आरोप सही है तो यह कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की महिला सशक्तिकरण की राजनीति पर गंभीर सवाल उठाता है।

लॉ स्टूडेंड का दावा मुस्लिम होने के कारण किया गया परेशान, फैकल्टी ने आरोपों से किया इनकार

ट्विटर पर एक लॉ स्टूडेंट, उमाम खानम ने अपने साथी छात्रों और अपने फैकल्टी के सदस्यों के ख़िलाफ़ परेशान किए जाने संबंधी गंभीर आरोप लगाए। अपने ट्वीट्स में खानम ने दावा किया कि परेशान करने वाले छात्र शराब के नशे में थे।

खानम ने आरोप लगाया कि छात्रों ने उसे बीजेपी की टोपी पहनने के लिए मजबूर किया। इसी के लिए उसे परेशान किया गया क्योंकि खानम ने वो टोपी पहनने से इनकार कर दिया था। खानम ने अपने ट्वीट में यह भी लिखा कि जब वो छात्र उसे टोपी पहनने के लिए मजबूर कर रहे थे और परेशान कर रहे थे तो वहाँ मौजूद पुरुष अध्यापकों ने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ किया।

इस मामले की जाँच करने पर चिंतित नेटिजन्स ने पाया कि उनके ट्वीट थ्रेड में जिन पुरुष अध्यापकों का उल्लेख किया गया है, वह मेरठ के दीवान लॉ कॉलेज के विभागाध्यक्ष थे। कॉमेडियन अहमद शरीफ के साथ रेड पिल्स पॉडकास्ट के साथ चाई के सह-होस्ट दुष्यंत दुबे ने H.O.D से संपर्क किया। दूबे की अंबुज शर्मा से फोन पर हुई बातचीत से पता चला कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। कॉल की रिकॉर्डिंग OpIndia.com द्वारा एक्सेस की गई है।

दुबे से बात करते हुए, शर्मा ने पुष्टि की कि खानम वास्तव में कॉलेज की छात्रा हैं और वह ख़ुद इस ट्रिप पर जाने वाले शिक्षकों में से एक था। उन्होंने यह भी दावा किया कि खानम के आरोप बेबुनियादी हैं उसका सच से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था।

एक अन्य व्यक्ति जिसने H.O.D से संपर्क किया। मधुर सिंह हैं जो हैंडल @ThePlacardGuy के तहत ट्वीट करते हैं। सिंह से बात करते हुए, शर्मा ने कहा, “नहीं, इसमें से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बच्चों ने एक ट्रिप का आयोजन किया इसलिए हम इनके साथ गए। बच्चों ने इस ट्रिप का आनंद लिया।” पुरुष फैकल्टी के वहाँ मौजूद होने के बावजूद पूरी बात को नज़रअंदाज़ करने की बात पर, शर्मा ने कहा,” अगर वह ऐसा कह रही है, तो वह ग़लत हैं।”

OpIndia.com ने भी शर्मा से मामले की जानकारी लेने के लिए संपर्क किया। शर्मा ने हमसे बात करते हुए पूरी घटना से इनकार किया और कहा कि वह इस मामले को देखेंगे जब वह कॉलेज में जाएँगे। उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि किसी छात्र ने शराब का सेवन किया था।

TikTok बैन से ध्रुव राठी, कुणाल कामरा, केजरीवाल आदि के मानवाधिकार हनन की योजना बना रही है मोदी सरकार- सूत्र

मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता के बाद अखंड भारत में सीधा आजादी के बाद 2 ऐसी सभ्यताओं का उदय हुआ था, जिनके कारण आम जनमानस का जीवन सुलभ हो सका था, पहली थी नेहरुवियन सभ्यता, जिसके साक्ष्य आज भी मौजूद हैं और यदाकदा पुरस्कार वापसी के दौरान खुदाई में वो नजर भी आते हैं और दूसरी है टिकटॉक सभ्यता। आम चुनावों के बीच टिकटॉक जैसे क्रिएटिव प्लेटफॉर्म पर प्रतिबन्ध लगाने जैसी ख़बरें निराशाजनक और निहायत ही दुखदायी हैं।

मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि टिकटॉक एप्लीकेशन की डाउनलोडिंग और मीडिया द्वारा प्रसारण पर भी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। पिछले 4-5 सालों में तमाम तरह की कॉन्सपिरेसी थ्योरी का प्रतिपादन कर चुके तर्कशास्त्री भी ये बात नहीं जान पाए कि टिकटॉक को प्रतिबंधित करना फासिस्ट मोदी सरकार की एक दीर्घकालीन योजना है, जिसके जरिए वो विपक्ष को लगभग शोले फिल्म के ठाकुर जैसा बना देने पर उतर आई है। पत्थरबाजों की कुटाई और आतंकवादियों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर के लोकतंत्र की जमकर हत्या करने के कारण चर्चा में आई मोदी सरकार अब नई साजिश लेकर आई है, जिसे समझना जरुरी है।

वास्तव में, इस टिकटॉक नाम की एप्प ने जितना रोजगार सृजन का अवसर लोगों को दिया है, वो आँकड़े चकित करने वाले हैं। हालाँकि, ये आँकड़े विभिन्न भाषाओं में फेसबुक पोस्ट का अनुवाद करने वाले पत्रकारों के स्रोतों ने नहीं जारी किए हैं, इसलिए इनकी विश्वसनीयता पर शक करना गलत होगा। जिस उम्र में हम गाँव में मिट्टी घरों में खोदकर मिट्टी खाया करते थे उस उम्र में आज का युवा पेसिफिक मॉल की पार्किंग में अपने लायक स्पेस तलाश कर ‘तूतक तूतक तूतिया’ गाने पर कदमताल कर के दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा साबित कर रहा है तो इसमें नरेंद्र मोदी सरकार का हाईकोर्ट के जरिए हस्तक्षेप करवाना क्या उन युवाओं की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर हमला नहीं है?

जो युवा सप्ताह और महीने भर तक एक कमरे से दूसरे में उठकर नहीं जाते थे वो भी अब सुबह नहा-धोकर टिकटॉक पर अपने वीडियो पोस्ट करने के लिए मेकअप कर के, तरह-तरह के बालों डिजाइन से पिरामिड और मीनारें बनाकर लोगों को दिखाने लगे हैं, तो इस राष्ट्रवादी सरकार को इस तरक्की से समस्या होनी शुरू हो गई है। स्पष्ट है कि यह युवा विरोधी सरकार है।

टिकटॉक ने सिर्फ इन मनचले युवाओं को ही नहीं बल्कि कुछ ऐसे कॉमेडियंस को भी रोजगार और प्लेटफॉर्म दिया है, जिन्हें कभी अर्चना पूरण सिंह बात-बात पर टीवी पर ‘स्टैंडिंग ओवेशन्स’ दिया करती थी। जिस दिन स्टैंडिंग ओवेशन देने के तरीकों की शॉर्टेज पड़ी थी, उसी दिन से कॉमेडी के नाम पर चल रहे इन कॉमेडी प्रोग्राम्स को बंद करना पड़ा था।

लेकिन राजनीति के नजरिए से भी यह एप्प बहुत सहायक साबित होने वाली है। मई में आम चुनाव निपट जाने के बाद ये महागठबंधन के सामूहिक रोजगार के काम आ सकती है।

संकट की घड़ी में किन लोगों का सच्चा साथी साबित हो सकता है टिकटॉक

केजरीवाल एंड पार्टी के जमानत जब्त वालंटियर्स

वो सभी नेता, जिनकी इस बार भी जमानत जब्त होने के प्रबल आसार बन रहे हैं (यदि गठबंधन हो पाया तो) उनके लिए तो ख़ासतौर से अपनी प्रतिभा के विस्तार के लिए टिकटॉक ही एकमात्र क्रिएटिव जरिया बाकी रह जाएगा। देखा जाए तो टिकटॉक एप्प के आविष्कार की प्रेरणा चीन ने आम आदमी पार्टी और इसके अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल से ही ली होगी। गुप्त सूत्रों का तो यहाँ तक मानना है कि नई वाली राजनीति के नाम पर जो चकल्लस आम आदमी पार्टी ने जनता के बीच प्रस्तुत की है, असल में टिकटॉक का मूल वर्जन और प्रस्तावना उसी से प्रेरित है। लेकिन इस सरकार ने कभी क्रेडिट और दर्जा देना नहीं सीखा है।

चिरयुवा नेता राहुल गाँधी एवं समस्त ईष्ट मित्रगण

विपक्ष के कद्दावर नेता और रॉबर्ट वाड्रा के साले राहुल गाँधी की चुनावी तैयारियों को देखकर तो अब तक यही लग रहा है कि वो अगले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर के बजाए वो टिकटॉक की प्राचीर से राष्ट्र के नाम सम्बोधन देते हुए हुँकार भरते हुए देखे जाएँगे। क्योंकि जो तीव्र छटपटाहट सत्ता में बने रहने की नेहरुवियन सभ्यता में पली-बढ़ी गाँधी परिवार के भीतर है, मुझे नहीं लगता है कि एक और हार के बाद वो खुद को संभाल पाने की स्थिति में रहेंगे भी। ऐसे में टिकटोक पर तो कम से कम राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बनने का अभिनय करने की अपनी तीव्र इच्छा पूरी कर सकेंगे। इसलिए मद्रास हाईकोर्ट को इस एप्प पर बैन लगाने का तुगलकी फरमान वापस लेना चाहिए।

महागठबंधन

अपनी सरकार बनाने से ज्यादा नरेंद्र मोदी को हराने के लिए लड़ रहे विपक्ष का सबसे बड़ा आविष्कार महागठबंधन नामक प्लेटफॉर्म है। लेकिन अगर नरेंद्र 2019 में फिर एक बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हैं, तो इस महागठबंधन के पदाधिकारी अपनी संतुष्टि के लिए एक-दूसरे को टिकटॉक पर आपस में विभाग बाँटकर आपस में किए गए अपने वायदों को पूरा कर सकते हैं। इस तरह से यह भी उनकी मनोवैज्ञानिक जीत ही मानी जाएगी, इसलिए सरकार को महागठबंधन के अरमानों का गला निर्ममता से नहीं घोंटना चाहिए।

सस्ते कॉमेडियंस और अनुवादक

कॉन्ग्रेस द्वारा हायर किए गए कुछ कॉमेडियन्स, जो कि मोदी सरकार के दौरान हुए काल्पनिक घोटालों को साबित करने के लिए दूसरी आकाशगंगाओं से आँकड़े जुटाकर लोगों का मनोरंजन करने के लिए कुख्यात हैं, उनके लिए भी टिकटॉक एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। क्योंकि जिस तरह के मनगढंत तथ्य और घटनाक्रम जुटाकर वो मोदी सरकार को घेरने का प्रयास करते हैं, उन पर हँसने और उन्हें सत्य मानने वाले तर्कशास्त्रियों की टिकटॉक जैसी कालजयी सभ्यता में कोई कमी नहीं है। इसलिए इन सस्ते कॉमेडियंस को डेडिकेटेड ‘फैनक्लब’ जो टिकटॉक पर मिल सकता है वो अन्यत्र कहीं संभव नहीं है।

पेड ट्रॉल ध्रुव राठी और कॉमेडी के नाम पर स्वयं कॉमेडी कुणाल कामरा

मोदी सरकार के दौरान अस्तित्व में आए कुछ नामों में ये 2 नाम लोगों के प्रिय बहुत प्रिय रहे हैं। कुणाल कामरा सड़कों पर लोगों द्वारा कूटे जाने के कारण, (जो कि निंदनीय व्यवहार था) और इंटरनेट पर दैनिक सस्ते इंटरनेट डाटा की मेहरबानी से वायरल हुए महागठबंधन के प्रॉपेगैंडा मंत्री ध्रुव राठी विशेष चर्चा में रहे हैं। इनकी ख़ास बात ये है कि इन लोगों को रोजगार सिर्फ इस बात को दिन में 5 बार पढ़ने और लोगों को रटाने के कारण मिला है कि मोदी सरकार में रोजगार नहीं मिला।

अगर टिकटॉक प्रतिबंधित कर दिया जाता है और विपक्ष मोदी सरकार को हराने में नाकामयाब रहता है, तो ऐसे हालातों में इनके अच्छे दिन सिर्फ टिकटॉक पर अपने सस्ते वीडियोज़ बेचकर और बैकग्राउंड में बादशाह और नेहा कक्कड़ के रैप संगीत बजाकर ही आ सकेंगे। हालाँकि, जनमत संग्रह और सॉल्ट न्यूज़ फैक्ट चेकर्स का दावा है कि इनका काम अभी भी मनोरंजन करना ही है, लेकिन इन्हें अभी इनकी योग्यतानुसार ठीक प्लेटफॉर्म नहीं मिल पा रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि टिकटॉक पर इनके द्वारा जारी किए जाने वाले खुलासों के ज्यादा कद्रदान नेहरुवियन सभ्यता के दौरान अस्तित्व में आए समाचार चैनलों में नहीं, बल्कि टिकटॉक पर मौजूद हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि वो टिकटॉक सभ्यता को सुरक्षित रखने की दिशा में प्रयास करे, ना कि इसके दमन पर।