मीडिया हलचल
मीडिया से जुड़ी खबरों और पत्रकारों के बयानों का विश्लेषण
परमादरणीय रवीश कुमार, भारत का दिल छोटा नहीं, आपकी नीयत में खोट है
समाचारों की दुनिया के रुमानी वाचक रवीश कुमार का कहना है कि भारतीयों का आत्मविश्वास कमज़ोर है। उनका दिल छोटा है। वे दुनिया का केवल खाते हैं, खिलाते नहीं। आँकड़े कहते हैं कि रवीश झूठे हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान बताता है कि उनके शब्द प्रोपगेंडा की चाशनी में सने हैं।
प्रिय BBC तुम्हारे बाप पहले ही आग लगा कर जा चुके हैं, तुम ख़बरों को मुसलमान बनाना कब छोड़ोगे?
BBC ने जब इस खबर को सोशल मीडिया पर शेयर किया तो उसकी हेडिंग, "असम: पुलिस ‘पिटाई’ से मुसलमान महिला का गर्भपात" रखी, जबकि वेबसाइट पर इसी ख़बर की हेडिंग थी - "असम: पुलिस ‘पिटाई’ से महिला का गर्भपात"। सोशल मीडिया पर शेयरिंग के दौरान हेडिंग में 'मुसलमान' शब्द जोड़ना बीबीसी की नीयत को साफ़ कर देता है।
‘न्यायपालिका बिकी हुई है’: वामपंथी गिरोह का अगला नैरेटिव क्योंकि इनके बाप-दादा फँस रहे हैं
यासीन मलिक पर मुकदमा खुल चुका है, 84 के दंगों पर दोबारा केस खुला है, नेशनल हेराल्ड केस है, चिदंबरम हैं, अगस्ता-वेस्टलैंड है, रामजन्मभूमि है, एनडीटीवी का प्रणय रॉय है, क्विंट का राघव बहल है, 370 का मामला सुप्रीम कोर्ट ने देखने का वादा किया है, अर्बन नक्सलियों पर मामले चल रहे हैं…
रवीश जी को पुरस्कार मिलने पर मोदी (नरेंद्र) ने क्यों नहीं दी बधाई? जलते हैं क्या?
यह ब्रह्मांड का पहला पुरस्कार है, जो जीतने वाले को उस चीज के लिए मिला है, जिसको वो गलत ठहराता और झूठ कहता रहा। देश में असहिष्णुता है, डर का माहौल है और अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, ऐसा कहने वाले रवीश जी को अपनी अभिव्यक्ति के लिए ही पुरस्कार मिल गया।
‘प्लीज़ GDP वाली वीडियो पूरी देखो’ कहने वाले रवीश-भगत जब चलाते हैं PM मोदी की अधूरी क्लिप
चंद्रयान-2 की 'विफलता' की खबरों से उत्साहित लेफ्ट-लिबरल वर्ग की खुशियाँ ज्यादा देर तक नहीं बनी रह सकी क्योंकि इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसरो वैज्ञानिकों का हौंसला बढ़ाने वाला वीडियो लोकप्रिय होने लगा। इसके बाद शुरू हुआ इस देश के लेफ्ट लिबरल्स का प्रलाप और प्रपंच।
लेफ़्ट-लिबरल इकोसिस्टम की नई चाल को काटने के लिए कितने तैयार हैं आप?
लेफ़्ट-लिबरलों का एक नया खेल शुरू हो गया है। "फेक न्यूज़" चिल्लाने से काम बनता नहीं देख उन्होंने उसी शराब को नई बोतल में डालकर "मिसइंफॉर्मेशन" का लेबल लगा दिया है। अब 'स्थानीय' गिरोह को वैश्विक लेफ़्ट-लिबरलों के नेटवर्क के सरगनाओं का साथ मिल रहा है।
बधाई हो रवीश जी, आज आपने विदेशियों को अंग्रेजी में बताया कि भारत नॉर्थ कोरिया बन गया है
पिछले पाँच सालों में रवीश की पूरी पत्रकारिता, सेलेक्टिव रही है। यह कह कर उन्माद फैलाने की कला सिर्फ रवीश को आती है कि जिसमें बार-बार एक समुदाय को कहा जाता है कि 'डर का माहौल है', हिन्दू तुम्हें लिंच कर रहे हैं, संभल कर रहो। भारत की स्थिति सोमालिया या नॉर्थ कोरिया से भी बदतर बताने में ये आदमी लायडिटेक्टर मशीन को भी धोखा दे देगा।
JNU की रोमिला थापर से CV माँग कर गुनाह किया है इस क्रूर, घमंडी, तानाशाही सरकार ने
जहाँ कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री से डिग्री दिखाओ जी कहा जा रहा था, वहाँ एक रिटायर हो चुके प्रोफेसर से, सीवी माँगना गलत क्यों है? अगर वो कहें कि ये ऐसी जगह है जहाँ डिग्री की जरूरत ही नहीं होती, तो ये भी पूछिएगा कि प्रधानमंत्री होने के लिए कौन सी शैक्षणिक योग्यताएँ जरूरी हैं?
घोघो रानी… चुल्लू भर ही था पानी, इसलिए छेनू उसमें डूब के मर न सका!
लोकतंत्र के चार खम्भे जब गिनवाए जाते हैं तो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद पत्रकारिता का नंबर भी आता है। जब पहले तीन से जनता सवाल कर सकती है तो आखिर ऐसा क्यों है कि पत्रकारिता सीजर्स वाइफ की तरह सवालों से बिलकुल परे करार दी जाती है?
मीडिया को सत्ता का गुंडा बताने वाले रवीश के 4P- प्रपंच, पाखंड, प्रोपेगेंडा, प्रलाप
रवीश कुमार ने बीजगणित के अध्याय की तरह सब कुछ अब 'मान लिया' है। इससे बड़ी हानि यह है कि वो चाहते हैं कि उनके इसी 'मान लेने' को बाकी लोग भी मान लें, जबकि उनकी यह बीजगणित एकदम ऊसर है, इससे कुछ भी सृजन नहीं हो सकता है।