Saturday, April 20, 2024
Homeहास्य-व्यंग्य-कटाक्षशाहरुख़ आपना फिलिम में बोला... दील से चाहो तो सारा कायोनात तुम्हारा

शाहरुख़ आपना फिलिम में बोला… दील से चाहो तो सारा कायोनात तुम्हारा

शाहरुखी अंदाज़, दोनों हाथों को बाज के पंख की तरह फैलाए... यह सब को नसीब नहीं होता। जिनको होता है, वो 'बाज-इगर' बन जाते हैं। मोमता दीदी ने सोरकार बना ली... पैर पर पोट्टी चढ़ा के कायोनात को मिला लिया।

हर सयाना पाउलो कोएल्हो टाइप नहीं सोचता कि शाहरुखी अंदाज़ में दोनों हाथों को बाज के पंख की तरह फैलाए और बाईं तरफ लचक कर कहे; कहते हैं अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है। हर सयाना अमिताभ बच्चन की तरह भी नहीं सोचता जो कहे कि; पूजनीय बाबूजी कहा करते थे कि अपने मन का हो तो अच्छा और यदि अपने मन का न हो तो और अच्छा क्योंकि तब ईश्वर के मन का हो रहा होता है। हर सयाना राहुल गाँधी की तरह भी नहीं होता कि बात-बात पर दर्शन बउके। वो संजय झा की तरह भी नहीं होता कि दार्शनिक दिखने के सुख के चक्कर में अपनी बालसुलभ बातों से राजनीतिक दर्शन का निर्माण कर ले।

अधिकतर भारतीय सयाने अपने साथ में ऐसा कॉमन सेंस रखते हैं जो दर्शन वगैरह पर भारी पड़ता है। ये वीर कॉमन सेंस पर दर्शन को तभी हावी होने देते हैं जब मौज लेना चाहते हैं। दरअसल दर्शन की बात को वे या तो मंदिर से जोड़कर देखते हैं या फिर चाय-पान की दुकान से जोड़ कर। इनका मानना है कि भारत का तीन चौथाई दर्शन मंदिरों में है और बाकी का चाय-पान की दुकान पर और इन स्थलों पर मिलने वाला दर्शन विशुद्ध और पूर्ण होता है। ऐसे में अगर कोई यह क्लेम करे कि दर्शन केवल किताबों में मिलता है तो पक्की बात है कि वह कुछ बेचने की कोशिश कर रहा है।

इन सयानों का विश्वास देसी घी और देसी कॉमन सेंस में होता है। ये कभी दर्शन ठेलने पर उतरे भी हैं तो सीधा एक ही बात कहते हैं; अपना चाहा कहाँ होता है? 

और मेरा विश्वास है कि ये सही कहते हैं। अपना चाहा कभी नहीं होता। मुझे तो लगता है कि मेरे कुछ चाहने पर पाउलो कोएल्हो वाली कायनात यह सोचते हुए ओवरटाइम करने लगती है कि; इसका चाहा नहीं होने देना है। कभी-कभी तो लगता है जैसे कायनात ने अपने मुनीम को ऑर्डर दे रखा है कि; इसकी चाहतों का एक एक्सेल शीट बनाकर रोज शाम मुझे मेल कर दिया करो। उसे पढ़कर मुझे इंस्योर करना है कि; इसकी चाहतों में से कुछ भी न होने पाए। ऐसा करने के लिए मुझे ऊपर से ऑर्डर है। 

यह सच है। ताज़ा चाहतों को ही ले लें। मैं चाहता था लॉकडाउन ख़त्म हो जाए तो सरकार ने पंद्रह दिनों के लिए लॉक डाउन बढ़ा दिया। मैं चाहता था सरकार ट्विटर पर बैन लगाए तो उसने केवल चेतावनी देकर छोड़ दिया। मैं चाहता था कि चेतन भगत विदेशी वैक्सीन के प्रमोशन में खुद को आइडियावान तार्किक बुद्धिजीवी बनाकर पेश न करें तो उन्होंने अपने तर्कों की मात्रा पैंतालीस प्रतिशत तक बढ़ा दी। मैं चाहता था कि राइट विंगर के वीर इकोसिस्टम को लेकर चिंता कम करें तो उसे लेकर चिंतित रहने वालों की संख्या चौसठ प्रतिशत तक बढ़ गई। मैं चाहता था कि आशुतोष अपने विश्लेषणों में महात्मा गाँधी को न लाएँ तो वे महात्मा के साथ-साथ सुभाष चंद्र बोस को भी लाने लगे। मैं चाहता था कि केजरीवाल हर पाँच किलोमीटर पर यू-टर्न लेना बंद कर दें तो उन्होंने हर एक किलोमीटर पर लेना शुरू कर दिया। 

मने कुल मिलाकर कायनात ओवरटाइम करते हुए मेरी चाहतों को धराशायी करने में लगी हुई है।

फिर एक समय मुझे लगा कि जाने दो। आखिर ऐसा केवल मेरे साथ थोड़े हो रहा है। और लोगों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। देश चाहता था कि कोरोना से राहत मिले तो उसकी दूसरी लहर आ गई। भाजपा चाहती थी कि बंगाल में उसकी सरकार बने तो ममता की बन गई। राहुल गाँधी चाहते थे कि मोदी और उनकी सरकार को बदनाम करने का उनका टूलकिटी प्रोग्राम चलता रहे तो टूलकिट ही लीक हो गया। सोनिया गाँधी चाहती हैं कि राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बन जाएँ तो वे अपनी पार्टी का अध्यक्ष बनने से भी मना कर देते हैं। समर्थक चाहते हैं कि मोदी जी बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा दें तो वे वहाँ तूफान से नुकसान का जायजा लेने चले जाते हैं। केजरीवाल चाहते हैं कि उन्हें और ऑक्सीजन मिलता रहे तो सुप्रीम कोर्ट ऑक्सीजन ऑडिट करवा देता है। 

स्वामी चाहते हैं कि मोदी उनकी बात सुने तो वे ध्यान नहीं देते। ट्विटर चाहता था कि सरकार उससे डर जाए तो सरकार ने लताड़ दिया। जनता चाहती है कि पत्रकार केजरीवाल से सवाल पूछें तो पत्रकार उनकी और बड़ाई करने लगे। सचिन वझे चाहते थे कि उनका साम्राज्य चलता रहे तो वो धराशायी हो लिया। अनिल देशमुख चाहते थे कि हर महीने सौ करोड़ कमाएँ तो उन्हें पद से इस्तीफ़ा देना पड़ गया। राज्य सरकारें चाहती थीं कि खुद वैक्सीन खरीद लें तो उन्हें वैक्सीन नहीं मिली। बंगाल के अफसर चाहते थे कि उनके इलाके में तूफान आ जाए तो तूफ़ान वाया झारखंड, बिहार जा पहुँचा। IMA चाहता था कि रामदेव उससे माफ़ी माँगें तो उन्होंने सवाल खड़े कर दिए। IMA चाहता था कि सरकार उन्हें अरेस्ट कर ले, उन्होंने कह दिया; किसी का बाप भी अरेस्ट नहीं कर सकता।

मने पाउलो कोएल्हो वाली वही कायनात औरों के खिलाफ भी काम कर रही है।

इसी सप्ताह केआरके की चाहत के साथ भी ऐसा ही हुआ। वे चाहते थे कि उनके फैंस की तरह ही सलमान उन्हें फिल्म क्रिटिक समझें तो सलमान ने उन्हें अवांछित तत्व समझ लिया। वे चाहते थे सलमान खान एक्टिंग करें तो सलमान ने उन पर मुकदमा कर दिया। शायद यह सोचते हुए कि; तू चाहने वाला कौन है कि मैं एक्टिंग करूँ? या शायद यह सोचते हुए कि एक्टिंग भी कोई करने की चीज है? जब करने के लिए पीआर है, चैरिटी है, लॉबिंग है, मुकदमा है तो कोई एक्टिंग क्यों करे? 

अच्छा, ऐसा ही सलमान खान के साथ भी हुआ। वे चाहते हैं कि केआरके भी उन्हें यंग हीरो कहें तो केआरके उन्हें दद्दू कहते हैं। वे चाहते थे उनकी मूवी राधे को हिट समझा जाए तो लोग उसे फ्लॉप समझ लेते हैं। वे चाहते हैं लोग उनकी मूवीज को आर्ट वर्क समझें तो लोग उन्हें कचरा समझ लेते हैं। वे चाहते थे कि उनके समर्थन में आकर कोई राधे को अच्छी फिल्म बताए तो उनके अब्बा ने कहा कि; राधे इज नॉट अ ग्रेट मूवी। यह अलग बात है कि उनकी बात सुनकर तमाम लोग यह सोचते हुए अपना सिर खुजलाने लगे कि कहीं इनके कहने का मतलब यह तो नहीं कि राधे को छोड़कर सलमान की बाकी मूवीज ग्रेट हैं? 

मने आम आदमी हो, नेता हो या अभिनेता, कायनात ने सबको रगड़ कर रखा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यही हाल है। हमास चाहता था कि इजराइल उसके रॉकेट से डर जाए तो इजराइल ने धुनक कर धर दिया। इमरान खान चाहते थे कि चीन से लोन मिल जाए तो चीन ने सिक्यूरिटी माँग लिया। चीन चाहता था कि बांग्लादेश क्वैड में न जाए तो बांग्लादेश ने उसे रगड़ दिया। बिल गेट्स चाहते थे कि उनके एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स छिपे रहें, उनकी इन्क्वाइरी हो गई। डॉक्टर फॉची चाहते थे कि उनकी इज़्ज़त पहले जैसी बची रहे तो वो बेइज़्ज़त हो रहे हैं। WHO चाहता है कि लोग उसे गंभीरता से लें तो लोग दुत्कार देते हैं। चीन चाहता है उसकी वैक्सीन की भी पूछ हो तो उसे कोई पूछता नहीं।

इतने सब के बीच केवल ममता बनर्जी हैं, जिनके केस में इसका उल्टा हुआ है। ऐसे में वे मेरी ये बातें सुन लें तो बोलेंगी; आरे तूमको कूछ नेही पता है। ऐसा नेही होता है। हामको देखो, हाम चाहता था पोश्चिम बोंगो का सीएम बनना अउर बन भी गया। जानता है क्यों? काहे कि हमारा साथ शाहरुख है। हमारा सोरकार का एम्बेसेडर। आरे ओही शाहरुख़ जो आपना फिलिम में बोला था कि; कहते है आगर कोई चीज को दील से चाहो तो सारा कायोनात उसको तुम्हारा साथ मिलाने का पूरा चेष्टा में लाग जाता है।

आर सुनो, इये पाउलो टाउलो का बात नेही है, इये शाहरुख़ का बात है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘PM मोदी की गारंटी पर देश को भरोसा, संविधान में बदलाव का कोई इरादा नहीं’: गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- ‘सेक्युलर’ शब्द हटाने...

अमित शाह ने कहा कि पीएम मोदी ने जीएसटी लागू की, 370 खत्म की, राममंदिर का उद्घाटन हुआ, ट्रिपल तलाक खत्म हुआ, वन रैंक वन पेंशन लागू की।

लोकसभा चुनाव 2024: पहले चरण में 60+ प्रतिशत मतदान, हिंसा के बीच सबसे अधिक 77.57% बंगाल में वोटिंग, 1625 प्रत्याशियों की किस्मत EVM में...

पहले चरण के मतदान में राज्यों के हिसाब से 102 सीटों पर शाम 7 बजे तक कुल 60.03% मतदान हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश में 57.61 प्रतिशत, उत्तराखंड में 53.64 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe