वर्ष 2019 कई कारणों से सुर्ख़ियों में रहा और कई लोग अच्छे व बुरे कारणों से सुर्ख़ियों में रहे। जहाँ अच्छे कारणों से चर्चा बटोरने वाले लोगों की चर्चा हो ही रही है, हमें उन लोगों को भी याद करने की आवश्यकता है, जो बुरे कारणों से मीडिया में बने रहे। नकारात्मकता फैलाने वाले लोगों और उनकी करतूतों को याद किए बिना हम सबक नहीं ले सकते। ऑपइंडिया ने उन 10 लोगों की सूची जारी की है, जो वर्ष 2019 में ग़लतबयानी और अन्य ग़लत वजहों से सुर्ख़ियों में रहे। हो सकता है कि इनमें से कई की करतूतों को आप भूल गए हों, लेकिन हम उन्हें फिर से याद दिला रहे हैं।
10. नवजोत सिंह सिद्धू: बोलते-बोलते बोलती हो गई बंद
नवजोत सिंह सिद्धू। अर्थात, कॉन्ग्रेस के सिद्धू। वो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के भी फेवरिट हैं, जिन्होंने करतारपुर कोरिडोर के उद्घाटन के दौरान उन्हें ‘हमारा सिद्धू’ कह कर सम्बोधित किया था। सिद्धू पाकिस्तान को इतना चाहने लगे कि उन्होंने कह दिया कि परमिशन न मिलने पर वो वाघा बॉर्डर से ही पाक निकल जाएँगे। उनकी पत्नी को कॉन्ग्रेस ने किनारे कर दिया, जिसके बाद उन्होंने कॉन्ग्रेस से इस्तीफा दे दिया। पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह से उनकी लगातार लड़ाई होती रही। कैप्टेन से कलह के कारण सिद्धू ने मंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया। ‘द कपिल शर्मा शो’ से भी उन्हें हटना पड़ा।
ख़बर आई कि सिद्धू के स्पाइनल कॉर्ड में समस्या आ गई है, जिसके बाद डॉक्टर ने उन्हें कम बोलने की सलाह दी हैं। उसके बाद ख़बर आई कि वो वैष्णो देवी मंदिर में एकांतवास काट रहे हैं। राहुल गाँधी को तोप और ख़ुद को एके-47 बताने वाले सिद्धू ने अमेठी से राहुल के हारने पर राजनीति छोड़ने की बात कही थी। अमेठी से राहुल की बुरी हार हुई। कॉन्ग्रेस में साइडलाइन किए गए सिद्धू हमारी सूची में इस साल नकारात्मकता फैलाने वाले लोगों में शामिल हैं।
9. स्वरा भास्कर, शेहला रशीद: Twitter के वामपंथियों की पूज्य देवियाँ
स्वरा भास्कर की 2018 में एक ही फ़िल्म आई ‘वीरे दी वेडिंग’ और उसमें भी उन्हें बड़ा रोल नहीं मिला। स्वरा की कई साड़ियाँ बेकार हो गईं, कई ब्लाउज बेकार हो गए, जो उन्होंने आम चुनाव के दौरान मोदीविरोधियों के कैम्पेनिंग के लिए खरीदी थीं। वो जहाँ-जहाँ गईं, उनके समर्थन वाले उम्मीदवारों की हार हुई। जामिया हिंसा के दौरान उन्होंने दिल्ली पुलिस की आलोचना की। सीएए क़ानून बनने के बाद उन्होंने भारत को ‘हिन्दू पाकिस्तान’ बताया। एक 4 साल के बच्चे को ‘चु*#या’ कहने वाली स्वरा मोदी की जीत के लिए हिन्दुओं को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि भारत का भविष्य हिंसा और नफरत है।
वहीं शेहला रशीद जम्मू कश्मीर में शाह फैसल के साथ जुड़ कर राजनीति की शुरुआत करना चाहती थीं लेकिन फैसल भारत से भागते हुए पकड़े गए और जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया। शेहला की उम्मीदें धूमिल हो गईं। लोकतंत्र की दुहाई देकर राजनीति छोड़ने वाली शेहला ने पीएम मोदी को चुनौती दी थी कि अनुच्छेद 370 हटा कर दिखाएँ और राम मंदिर बना कर दिखाएँ। उनकी दोनों चुनौतियाँ कबूल हो गईं। केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्री के साथ धक्का-मुक्की करने वाले जाधवपुर यूनिवर्सिटी के छात्रों का भी शेहला ने समर्थन किया। सेना पर झूठे आरोप लगाने के लिए उन पर देशद्रोह का भी मुक़दमा दर्ज हुआ।
8. गीतकार से ट्रोल बने जावेद अख्तर: बीवी और बेटे भी उसी राह पर
अख्तर परिवार बॉलीवुड में एकसूत्री कार्यक्रम पर निकल आया है- झूठी ख़बरें फैलाना और लोगों से लड़ाई-झगडे करना। जावेद अख्तर ने जामिया हिंसा मामले में ट्विटर पर क़ानूनी ज्ञान बघारा तो एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें खरी-खरी सुनाई। उन्होंने साध्वी प्रज्ञा की तुलना रावण से कर दी। बुर्के की तुलना घूँघट कर के उन्होंने इस्लामिक कुरीति का बचाव किया। उनकी दूसरी बीवी शबाना आजमी भी पीछे नहीं रहीं। उन्होंने भगवान गणेश की मूर्ति बनाने वालों की ‘ग़रीबी’ का जिक्र किया। गिरिराज सिंह को हराने के लिए उन्होंने बेगूसराय में कन्हैया कुमार के लिए चुनाव प्रचार किया।
जावेद के बेटे फरहान अख़्तर ने सीएए को लेकर भारत का ग़लत नक्शा शेयर किया और दावा किया कि महिलाओं व आदिवासियों को देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। करणी सेना को आतंकी बताने वाले फरहान ने बीएचयू के छात्रों को कलंक बता दिया। साध्वी प्रज्ञा को हराने के लिए फरहान ने चुनाव के बाद अपील करते हुए लिखा कि उन्हें वोट न दें। उनका ख़ूब मजाक बना। कुल मिला कर ये तिकड़ी किसी भी सकारात्मक चीज के लिए इस साल ख़बर में नहीं रही।
7. ममता बनर्जी: मोदी विरोध में ‘दीदी’ की दादागिरी
पश्चिम बंगाल में सीबीआई और पुलिस के बीच झड़प हुई। अपने क़रीबी पुलिस कमिश्नर को बचाने के लिए ममता ने सरकारी एजेंसी के कामकाज में व्यवधान डाला और धरना भी दिया। सीबीआई अधिकारियों को ही गिरफ़्तार कर लिया गया। लोकसभा चुनाव से पहले कोलकाता में एक बड़ी रैली कर ममता ने विपक्षी एकता का शक्ति-प्रदर्शन किया लेकिन बंगाल में भाजपा ने दस्तक दी और उनकी सीटें घट गईं। राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ उनका अभी भी झगड़ा चल रहा है। सीएए लागू होने के बाद मुस्लिमों की भीड़ ने क़ानून-व्यवस्था चौपट कर हिन्दुओं के घरों को जला डाला पर ‘दीदी’ ने एक्शन नहीं लिया।
पश्चिम बंगाल में भूख हड़ताल पर बैठे शिक्षकों पर रात में ही लाठियाँ बरसाई गईं। केंद्र सरकार ने तीन तलाक़ को खत्म करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया लेकिन ममता बनर्जी की सरकार ने इसे इस्लाम पर हमला बताया। उनके भतीजे अभिषेक भी फ़र्ज़ी डिग्री विवाद के कारण सुर्ख़ियों में रहे। राज्य में डॉक्टरों की हड़ताल हुई और ममता पर तानाशाही का आरोप लगा। उनकी फोटोशॉप तस्वीर शेयर करने पर एक महिला को जेल तक हो गई। ममता ने पीएम मोदी को थप्पड़ मारने की बात कही। सुरक्षा बलों तक को भी उन्होंने धमकी दी। कुल मिला कर वह एक बार भी अच्छे कारणों से चर्चा में नहीं रहीं।
6. एचडी कुमारस्वामी: रोते-रोते गँवा दी सरकार, एक्सपेरिमेंट फेल
भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए एचडी कुमारस्वामी कॉन्ग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने थे। इस साल उनकी सरकार चली गई। लेकिन, कुमारस्वामी ने सत्ता में रहते कोई ऐसा मौक़ा नहीं छोड़ा, जब उन्हें रोने का मौक़ा मिला हो। उनकी सरकार के दौरान हुई फोन टैपिंग का मामला अभी भी ख़बरों में है। अगस्त में उन्होंने बयान दिया कि वो ‘ग़लती से’ मुख्यमंत्री बन गए थे और वो राजीनीति से संन्यास लेना चाहते हैं। मुख्यमंत्री रहते जब लोग उनके पास समस्याएँ लेकर आएँ तो उन्होंने लोगों को फटकारते हुए मोदी के पास जाने की सलाह दी। सरकारी बस से यात्रा करने और चटाई पर सोने के बावजूद उनके ‘विलेज स्टे’ में करोड़ों ख़र्च हुए।
उनके राज में स्थिति ये रही कि देवगौड़ा परिवार के बारे में लिखने पर पत्रकारों पर पुलिसिया कार्रवाई की गई। उन्होंने अपने एक बयान में वंशवादी राजनीति को देश के विकास के लिए सही ठहराया। सेना का अपमान करते हुए उन्होंने कहा कि जिनके पास खाने के लिए नहीं होता है, वो भी सेना में चले जाते हैं। पीएम मोदी और अपने चेहरे की तुलना को लेकर भी उन्होंने अजीबोगरीब बयान दिए। जब वो मुख्यमंत्री थे, तब कहते थे कि वो कॉन्ग्रेस के दबाव में क्लर्क बन गए हैं। रोते-रोते उनका ये साल भी बीत गया।
5. बेहाल बिहार में विकल्पहीनता के दो चेहरे: एक छत पर, दूसरा Twitter पर
पटना में जलजमाव का आलम ऐसा रहा कि उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी तक को रेस्क्यू करने के लिए एसडीआरएफ की टीम को जाना पड़ा। नीतीश कुमार छत पर छाता लेकर मंद-मंद मुस्कुराते हुए बारिश का आलम देखते रहे। जब पजामा ऊँचा कर निरीक्षण के लिए निकले, तब पूछ डाला कि क्या अमेरिका और मुंबई में बाढ़ नहीं आता? कभी आँगनबाड़ी सेविकाएँ, कभी शिक्षक, कभी छात्र तो कभी विपक्षी कार्यकर्ता- पटना की सड़कों पर पुलिस के डंडों का शिकार कौन नहीं बना? उधर सुशील मोदी ट्विटर पर अख़बारों की कतरन शेयर कर के अपने ऑपरेशन का हालचाल देते रहे। राबड़ी को बिहार का नेहरू बनाते रहे।
राजगीर में बलात्कार की घटना हुई। राज्य के कई अन्य हिस्सों में भी अपराध की घटनाएँ घटीं। नीतीश कुमार ‘ठीक’ से ‘ठीके’ हो गए लेकिन अफ़सोस, राज्य में सवाल पूछने वाले नहीं बचे हैं। बाढ़, चमकी, बेरोजगारी, मर्डर, बलात्कार… नीतीश के बिहार में अब यही सब चल रहा है। मुजफ्फरपुर में जापानी इंसेफ्लाइटिस से सैंकड़ों बच्चे मर गए। नीतीश आरएसएस कार्यकर्ताओं की कुंडली निकलवाते रहे। चमकी बुखार से निपटने में नाकामयाब नीतीश सरकार विधानसभा में आम बाँटने में पीछे नहीं रही। इस साल ‘नीकु-सुमो’ की जोड़ी बिहार की विकल्पहीनता का चेहरा बन कर उभरी।
4. नहीं काम आया ‘रा-फ़ेल’ मुद्दा: न अध्यक्ष रहे, न बने पीएम
इस वर्ष लोकसभा चुनावों के दौरान ‘राफेल में चोरी हुई है’ और ‘चौकीदार चोर है’ जैसे नारों के साथ सियासी समर में उतरे राहुल गाँधी की नैया ऐसी डूबी कि कॉन्ग्रेस का उद्धार होना तो दूर, वो ख़ुद अमेठी से हार गए। हार से निराश राहुल ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी माँ अंतरिम अध्यक्ष बनीं। हाल ही में जिस तरह से दिल्ली में हुई रैली में उनके पोस्टर-बैनर दिखे और प्रियंका ने उन्हें अपना नेता बताया, सम्भावना है कि वो फिर से अध्यक्ष पद पर वापसी करें। ‘सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि चौकीदार चोर है’- इस बयान के लिए देश की उच्चतम अदालत ने उन्हें फटकार लगाई, जिसके बाद उन्हें माफ़ी माँगनी पड़ी।
‘सारे मोदी चोर हैं’- इस बयान के लिए भी उन्हें कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ा। नेशनल हेरलड मामले में वो जमानत पर बाहर हैं। उधर उनके जीजा रॉबर्ट वाड्रा भी बीकानेर से लेकर लंदन तक की सम्पत्तियों को लेकर जाँच का सामना कर रहे हैं। संसद में आँख मारना हो या पीएम मोदी को हास्यास्पद ढंग से गले लगाना, राहुल गाँधी मजाकिया कारणों से चर्चा में रहे। साल का अंत होते-होते असली मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने के बजाय सावरकर पर बयान देकर एक बार फिर उन्होंने कॉन्ग्रेस की नैया डाँवाडोल कर दी। झारखण्ड व महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान भी वो उतने सक्रिय नहीं रहे और न ही टिकट वितरण में दिलचस्पी दिखाई। शायद ‘जस्ट Chill-Chill’ उनका नया मोटो है।
3. कट्टरपंथियों की हिजाबी जोड़ी: जामिया के उपद्रवियों की ‘नायिकाएँ’
आयशा रेना और लदीदा फरज़ाना को मीडिया के एक बड़े वर्ग ने सूडान आंदोलन के दौरान लोकप्रिय हुई आला सलाह की तरह पेश करना चाहा। जामिया के छात्रों के उपद्रव को ढकने और भारत सरकार को बदनाम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रोपेगंडा चलाया गया। दोनों युवतियों को पुलिस से भिड़ते हुए दिखाया गया। सब कुछ सुनियोजित तरीके से किया गया और वीडियो शूट कर वायरल किया गया। आयशा आतंकी याकूब मेमन की समर्थक हैं और भारत को फासिस्ट देश मानती हैं। वहीं लदीदा ‘अल्लाहु अकबर’ नारे का बचाव करते हुए बाकी नारों को सेक्युलर बताती हैं और कहती हैं उन्होंने उन नारों को छोड़ दिया है।
लदीदा ने एक लम्बे-चौड़े फेसबुक पोस्ट में आज़ादी से पहले हिन्दुओं का नरसंहार करने वाले इस्लामी कट्टरपंथी नेताओं को अपना आदर्श बताया, अपना पिता बताया। केरल से शाहीन अब्दुल्लाह को उठा कर लाया गया, जो पुलिस से बचते हुए इन युवतियों के पास पहुँचा और इन दोनों से उसे बचाते हुए वीडियो शूट कराया। बरखा दत्त को इन दोनों के साथ देखा गया, तभी कई लोगों को भनक लग गई कि इन्हें उभारा जाना एक पूर्व-नियोजित साज़िश है। दोनों युवतियों को एक दीवार पर खड़ा किया गया, जैसे सूडान की आला सलाह कर पर खड़ी हुई थी। रवीश के शो से लेकर ओवैसी से मिलने तक, दोनों चर्चा में रहीं।
2. नकारात्मकता का बेताज बादशाह: ‘डर के माहौल’ का शहंशाह
नाम ही काफ़ी है। एनडीटीवी के धरोहर। भारत में ‘डर का माहौल’ दिखा कर लोगों को भड़काने वाले रवीश कुमार। इस पर चर्चा करना ही बेकार है कि इन्होने इस साल क्या-क्या किया, बल्कि सवाल तो ये है कि इन्होंने इस साल क्या-क्या नहीं किया? हाल ही में जब झारखण्ड विधानसभा चुनाव परिणाम के दौरान कुछ देर के लिए भाजपा की स्थिति सुधरती दिखर ही थी तो इन्होने युवाओं को ही कोसना शुरू कर दिया। ऑरिजनल आर्टिकल पढ़े बिना इन्होने ‘विशेषज्ञों के हवाले से’ ख़ूब फर्जीवाड़ा फैलाया। मोदी से कठिन सवाल पूछने की चाह रखने वाले ‘पत्रकारिता के एकमात्र झंडाबरदार’ रवीश सपा-बसपा के मंच पर देखे गए। मैग्सेसे अवॉर्ड लिया लेकिन विदेश में जाकर अंग्रेजी में कहा कि भारत में अब लोकतंत्र नहीं रहा।
रवीश ने यहाँ तक कह दिया कि भारत का दिल छोटा है। कारवाँ, क्विंट और वायर के हवाले से उन्होंने जनता को बरगलाने में कसर नहीं छोड़ी। रवीश ने न्यूज़लॉन्ड्री के एक लेख को शेयर कर सीधा ऑपइंडिया पर निशाना साधा। उन्हें रेप में जात तो दिख गया लेकिन मजहबी अपराधों पर उनकी खतरनाक चुप्पी कायम रही। अपने गृह जिले चम्पारण पहुँच कर उन्होंने अपने विरोधियों को ‘लबरा’ बता दिया। अयोध्या दीपोत्सव को कवर करने पर एक रिपोर्टर को ही भला-बुरा कह दिया। कमलेश तिवारी की हत्या पर वो चुप रहे, उस दिन वो मेक्सिको-अमेरिका का झगड़ा दिखाते रहे। कुल मिला कर इस साल ‘रवीश अनंत, रवीश की नकारात्मकता अनंता’ वाली स्थिति रही।
1. जातिवादी ज़हर बोने वाला मंडल, विषैले नाग से भी ख़तरनाक
राजनीति में जातिवाद। सोशल मीडिया में जातिवाद। शिक्षण संस्थानों में जातिवाद। दिलीप ‘सी’ मंडल एक ऐसा नाम है, जो देश में विभाजन पैदा करने की क़सम खा कर अपने घर से बाहर निकलता है। उसने ब्लू टिक के लिए ट्विटर को घेरा और कहा कि दलितों के एकाउंट्स को वेरिफाई नहीं किया जा रहा। उसने ‘जय भीम ट्विटर’ अभियान चलाया। माखनलाल यूनिवर्सिटी में उसने छात्रों को उनकी जाति पूछ कर प्रताड़ित किया। विरोध के स्वर उठे तो 23 छात्रों को निष्काषित कर दिया गया। उसके करतूतों के विरोध की ऐसी सज़ा मिली कि छात्रों को कड़ाके की ठण्ड वाली रात में कपड़े उतरवा कर 20 किलोमीटर घुमाया गया। वो छात्रों में जातिवादी ज़हर बो कर विभाजन पैदा कर रहा है।
फेसबुक पर लगातार जातिवादी पोस्ट लिख कर लोगों को भड़काने वाले दिलीप मंडल को हर चीज में ब्राह्मणों को दोष देने में विशेष प्रकार का मजा आता है। उसका पूरा साल यही करते हुए बीता। लोगों का मानना है कि ऐसे जातिवादी जहर फैलाने वाले का शिक्षण संस्थानों में घुसना, राजनीतिक संरक्षण मिलना और सोशल मीडिया में समर्थन मिलना देश के भविष्य के लिए सही नहीं है। वह शिक्षण संस्थानों में अपने जैसे ऐसे कितने दिलीप मंडल पैदा करने में लगा हुआ है, इसे भी देखना चाहिए। कुल मिला कर इस साल ये व्यक्ति सबसे ज़्यादा ज़हर फैलाने के मामले में अव्वल रहा।