Sunday, September 29, 2024
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रवीश बाबू, राहुल की आय, सोनिया के बहनोई और प्रियंका के फ़ार्महाउस पर प्राइम टाइम कहिया होगा? (भाग 3)

यूँ तो रवीश कुमार की पत्रकारिता भीतर से जंग खाकर खोखली हो ही चुकी है, लेकिन इस खोखले पाइप पर भी तर्कों के हमले करते हुए, इसे छिन्न-भिन्न करना ज़रूरी है। इसके दो परिणाम हो सकते हैं। पहला यह कि रवीश कुमार सुधर कर सही पत्रकारिता करने लगेंगे, या, दूसरा यह कि माइक को पॉलिथीन से लपेटकर बक्सा में बंद करके रख देंगे, और हिमालय या, जो भी पहाड़ सेकुलर लगे, उधर को निकल लेंगे।

ये मेरी रवीश शृंखला का तीसरा हिस्सा है। पहले दो हिस्से में मैंने उनके ‘द वायर’ वाले साक्षात्कार में की गई फर्जी बातों को यहाँ और यहाँ लिखा है। इस कड़ी में हम उनके उसी साक्षात्कार के उन हिस्सों पर बात करेंगे जहाँ वो वैकल्पिक मीडिया के उभरने की बात करते हैं, और उसकी परिभाषा बताते हैं। आप लोग यह न समझें कि मैं उनके एक लेख से प्रतिस्पर्धा में हूँ, जिसका ब्रह्मांड की सतहत्तर करोड़ भाषाओं और बोलियों में अनुवाद हो चुका है। मेरा प्लान बस छः हिस्सों में उनकी बातों पर बात करने का है।

टीवी न देखने की बात करने वाले रवीश कुमार ने न तो टीवी पर जाना बंद किया है, न ही प्रोपेगेंडा के टायरों से जलने वाली आग पर फरेबों के पॉलिथीन फेंककर उसे लगातार प्रज्ज्वलित करने में कोताही बरती है। बस कह कर निकल लिए कि टीवी मत देखिए। कहना यह था कि ‘मेरा टीवी देखिए, बाकी चैनल मत देखिए ताकि मेरे मालिक श्री रॉय साहब पर जो मनी लॉन्ड्रिंग का मामला चल रहा है, उसका खर्चा निकलता रहे।’ लेकिन कोई इतना खुलकर कैसे कह देगा!

ख़ैर, वैकल्पिक मीडिया की परिभाषा बताते हुए श्री रवीश कुमार जी ने कहा कि ‘वैकल्पिक मीडिया को खड़ा करना पड़ेगा जो कि नैतिकता वाली, साफ पैसा वाली हो’। ज़ाहिर है कि पैसा साफ किसका है, यह फ़ैसला रवीश जी ही करेंगे क्योंकि दूरदर्शन के शो के टेप चुराकर, सूटकेसों को अहाते से बाहर फेंककर ले जाने वाले प्रणय रॉय द्वारा शुरू किए एनडीटीवी का पैसा कितना साफ है, वो सबको पता है। ये वाक़या आपको कोई भी मीडिया जानकार बता देगा, फिर भी मैं इस बात के सत्य होने की पुष्टि वैसे ही नहीं करूँगा जैसे सेक्स रैकेट वाले ब्रजेश पांडे की पुष्टि एनडीटीवी या रवीश ने नहीं की थी।

नैतिकता की बात करने की पहली शर्त स्वयं की नैतिकता और आदर्श होते हैं। जो आदमी नौकरी कर रहा हो, पूरा जीवन खोजी पत्रकारिता और ख़बरों को सूँघने में निकल गया हो, उसे अपने मालिक की सच्चाई मालूम होने के बाद भी, केस का फ़ैसला जो भी आए, वहीं होकर नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाता हो, तो सही नहीं लगता। केस तो न मोदी पर साबित हुए, न राफेल पर, न जय शाह पर, न डोभाल पर, लेकिन आपने कितने प्राइम टाइम न्योछावर कर दिए, फिर आप प्रणय रॉय वाले एनडीटीवी में क्यों हैं? नैतिकता आपको वहाँ से बाहर निकलने क्यों नहीं कहती?

आगे आपने एंकरों के डर के बारे में कहा है कि उन्हें डर लगने लगा है। ग़ज़ब की बात यह है कि इस ‘डर’ की बात वो व्यक्ति कर रहा है जिसने 2014 के बाद एक भी रात बिना सत्ता को आड़े हाथों लिए नहीं बिताई है। आपने तो डर का माहौल और आपातकाल की बात करते हुए तमाम प्राइम टाइम किए हैं, मुझे तो याद नहीं कि आप पर वॉरंट निकला है, या आपका फेसबुक अकाउंट सस्पैंड करा दिया गया। फिर एंकरों को किस डर की बात कर रहे हैं आप?

कितने पत्रकारों को सरकार ने जेल में डाल दिया है? थूक कर भागने वाली नीति अपनाने वाले लोग आज भी भर मुँह थूक लिए घूमते हैं, और पूरे देश में हर जगह थूकते फिर रहे हैं। सरकार अपनी गति से काम कर रही है, आप सब अपनी गति से। आप कहते हैं कि पेपरों में खबरें बंद हो गई हैं। पहली बात तो यह है कि द हिन्दू वाले मस्त राम से लेकर इंडियन एक्सप्रेस तक, जब मौका मिलता है खबरें छाप ही रहे हैं। आपने पढ़ना बंद कर दिया है, तो वो बात अलग है।

दूसरी बात यह भी है कि आपको घोटालों की ख़बर पढ़नी है, और आपके दुर्भाग्य से घोटाले हुए नहीं। आपने जो दो-चार फर्जीवाड़े गढ़े जिसे आपने इसी इंटरव्यू में ‘बड़ी खबरें वायर, स्क्रॉल और कैरेवेन से आई हैं’ कह कर जो कहानियाँ याद कराईं, वो तो जासूसी धारावाहिक कहानियाँ साबित हुईं। अंग्रेज़ी में तो ख़बरों को स्टोरी कहते हैं वैसे, लेकिन वायर, स्क्रॉल और कैरेवेन में तो सच्ची वाले कहानीकार भर्ती हो रखे हैं।

अब बड़ी ख़बरों और वैकल्पिक मीडिया की बात से मैं आपको ऑपइंडिया द्वारा किए गए 3-4 बड़े ख़ुलासों की तरफ ले जाना चाहूँगा जिसमें राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी, रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी की कई ज़मीन डील, राफेल और यूरोफाइटर की लॉबीइंग, सोनिया के बहनोई और बोफ़ोर्स का कनेक्शन और राहुल गाँधी के चुनावी हलफनामे में FTIL और फ़ार्महाउस का नाम आया।

सबके सबूत भी हमने लगाए, एक दो मीडिया हाउस में ख़बर भी चली जिसमें आपका चैनल या फेसबुक शामिल नहीं था, फिर सवाल यह है कि क्या आप तक यह ख़बर नहीं पहुँची, या आपने इसे इग्नोर किया? हमें आपके इग्नोर करने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन ज्ञान मत दिया कीजिए ज़्यादा कि बड़ी खबरें कहाँ से आ रही हैं। इसी को हिन्दी में दोमुँहापन कहा जाता है।

आपने नहीं चलाया क्योंकि आपको ये सूट नहीं करता। आपके नैरेटिव में यह फ़िट नहीं बैठता। एक न्यूज पोर्टल की ख़बर छुप सकती है लेकिन जेटली, ईरानी और रविशंकर प्रसाद का प्रेस कॉन्फ़्रेंस एक पत्रकार की नज़रों में न आए, ऐसा मानना मुश्किल है। इसलिए, नैतिकता और आदर्श का ज्ञान बिलकुल मत दिया कीजिए।

आपने जो एक फर्जी परिभाषा गढ़ ली थी मीडिया की कि मीडिया का काम सत्ता की आलोचना है, वो बेहूदी परिभाषा है, भटकाने वाली परिभाषा है। मीडिया का काम सत्ता नहीं, लोकतंत्र का वाच डॉग बनना है। उसे सत्ता और विपक्ष की कमियों और उनके बेहतर कार्यों, दोनों को मैग्निफाय करके जनता तक लाना है। मीडिया अगर सत्ता के अभियानों में सहयोग नहीं करेगी तो न तो स्वच्छता अभियान सफल होगा, न बेटी पढ़ाओ।

आपने सत्ता की आलोचना को अपनी घृणा के सहारे खूब हवा दी, लेकिन आपने देश के नकारे विपक्ष और एक परिवार पर एक गहरी चुप्पी ओढ़े रखी। इसको अंग्रेज़ी में कन्विनिएंट साइलेन्स कहते हैं। यहाँ आप न्यूट्रल नहीं हो रहे, यहाँ आप जानबूझकर एक व्यक्ति का पक्ष ले रहे हैं ताकि उसकी छवि बेकार न हो। वरना आपकी छवि तो ऐसी रही है कि कोई भी व्यक्ति, कुछ भी, बिना किसी सबूत या आधार के मोदी या मोदी सरकार के खिलाफ बोलता है तो आपकी लाइन होती है, ‘जाँच तो होनी ही चाहिए, जाँच में क्या हर्ज है’। फिर पूरा प्राइम टाइम न सही, तीन मिनट अंत में ही बोल देते कि राहुल गाँधी पर सरकार जाँच क्यों नहीं करा रही?

आपने नहीं बोला क्योंकि आपको पता है कि कन्विक्शन तो बाद में होगा, पहले चुनावों के समय कॉन्ग्रेस की छवि खराब हो जाएगी, और आपके भक्तगण आपको संघी कहकर गरिया लेंगे। इसीलिए, आप बिहार पर खूब ज्ञान दे देते हैं कि ‘मेरा बिहार जल रहा है’ लेकिन उसी रामनवमी पर या अन्य धार्मिक मौक़ों पर बंगाल में सम्प्रदाय विशेष की भीड़ जब उत्पात मचाती है, तो आप लिखने से कतराते हैं, और लिखते भी हैं तो ममता बनर्जी का नाम तक नहीं ले पाते।

ख़ैर, रहने दीजिए, आपके हर लाइन पर एक लेख लिख सकता हूँ, लेकिन समयाभाव है। आपने राफेल पर खूब ढोल पीटा कि छपेगा ही नहीं तो दिखेगा कैसे? जबकि सत्य यह है कि आपको घमंड हो गया है कि आप जिस बात में विश्वास करते हैं, आप जो कह देते हैं, वही सार्वभौमिक सत्य है भले ही उस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दे दिया हो। आपके लिए सुप्रीम कोर्ट तभी सही लगता है जब आपके मतलब की बात हो रही हो, वरना वो लाल बलुआ पत्थरों की एक इमारत है जहाँ काले कोट में कुछ लोग आते और जाते हैं।

समस्या यह नहीं है कि ‘छपेगा नहीं तो दिखेगा कहाँ’, बल्कि इसके उलट समस्या यह है कि ‘जब है ही नहीं, तो छपेगा कैसे’। रवीश जी उस युग में हिट हुए पत्रकार हैं जब हर महीने किसी नेता पर डकैती का इल्जाम लगता था, इसलिए उनके लिए यह मानना मुश्किल है कि इस सरकार में कुछ हुआ ही नहीं। मैं उनकी बात समझ सकता हूँ क्योंकि दुकान बंद होने के कगार पर है, और नकारात्मकता बिक नहीं रही। इसलिए कई बार आपातकाल आकर अब इतनी दूर चला गया है कि बुलाने पर भी नहीं आ रहा।

रवीश जी रुकते नहीं। एक अथक मीडियाकर्मी होने के कारण वो लगातार छिद्रान्वेषण की राह पर चलते रहते हैं। इसलिए, अमित शाह के पुत्र और अजित डोभाल के पुत्रों पर लगातार लांछन लगाने के बाद जब पोर्टलों पर मानहानि का दावा लगाया गया तो बिलबिला गए। कहने लगे कि पत्रकार का काम केस लड़ना नहीं है और ऐसा करके सरकार उनका मुँह बंद करना चाहती है।

जबकि वो भूल गए कि कोर्ट सरकार के भीतर कार्य नहीं करती। प्रभावित पार्टी कोर्ट गई, और उसने अपनी मानहानि का दावा ठोका। अब कोर्ट को लगे कि वह गलत है, तो वो अपना फ़ैसला देगी। रवीश ने जज को ही लपेट लिया कि आखिर जज ने ‘मानहानि को कैसे बर्दाश्त किया, नेता को जजों ने कैसे बर्दाश्त किया’ कह कर।

यहाँ रवीश जी स्वयं ही संविधान का अवतार बन गए क्योंकि संविधान में न्यायपालिका के अधिकार हैं जिसमें वो ये तय करती है कि क्या सही है, क्या गलत। लेकिन यहाँ रवीश तय कर रहे हैं कि क्या सही है, और क्या गलत होना चाहिए। फिर उन्होंने सवा रुपए की मानहानि की बात की है। वो यह भूल गए कि जिस अम्बानी, अडानी, टाटा, बिरला या किसी भी उद्योगपति पर घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, उनकी कम्पनी का स्टॉक एक मिनट में कितना गिर सकता है। इसलिए, भले ही रवीश कुमार का मान सवा रुपए लायक हो, लेकिन हर व्यक्ति का नहीं क्योंकि वाक़ई किसी के मान से उसकी कम्पनी का स्टॉक क्रैश कर सकता है, और हजारों लोगों की नौकरियाँ जा सकती हैं।

अब रवीश कुमार की स्थिति यह है कि उन्होंने जो भी कमाई की थी, उसका अधिकतर कैपिटल बह चुका है। अब कुछ लोग उनके भक्त बन गए हैं, जो उनकी हर बात को सही ही मानते हैं। इन्हीं तरह के भक्तों की बात उन्होंने इसी इंटरव्यू में की थी, जबकि ग़ज़ब की बात यह है कि जब वो यह बोलने लगे कि हर चैनल का अपना एक दर्शक समूह है, जो दर्शक नहीं समर्थक है, तो मुझे इन्हीं का चेहरा याद आ रहा था कि देखो, कितना ईमानदार आदमी है। इनकी ईमानदारी की दाद मैं दे देता अगर ये टीवी न देखने की सलाह देने के बाद, स्वयं उस स्टूडियो से ‘नमस्कार, मैं रवीश कुमार’ वाली लघु कविता कहना बंद कर देते। लेख की चौथी कड़ी में हम रवीश कुमार के ब्रह्मज्ञान के कुछ और बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।

देश के दूसरे NSA जे एन दीक्षित की हत्यारी कॉन्ग्रेस आज NSC को कानूनी दर्ज़ा देने की बात कर रही है

कॉन्ग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में लिखा है कि सत्ता में आने पर वे राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के पद को वैधानिक दर्ज़ा (statutory status) प्रदान करेंगे। यही नहीं कॉन्ग्रेस का यह भी कहना है कि इन संस्थानों को वे संसद के प्रति जवाबदेह भी बनाएंगे। कॉन्ग्रेस के यह वायदे लगते तो बहुत अच्छे हैं लेकिन इनके पीछे जो नीयत है वह सही नहीं लगती। इसके बहुत सारे कारण हैं। पहले हम NSA और NSC के कामकाज पर संक्षेप में चर्चा करेंगे।

हम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का इतिहास देखें तो पाएंगे कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसी संस्था बनाने के लिए एक टास्क फ़ोर्स का गठन किया था जिसके सदस्य थे कृष्ण चंद्र पंत, जसवंत सिंह और एयर कमोडोर जसजीत सिंह (सेवानिवृत्त)। दिसंबर 1998 में इस टास्क फ़ोर्स के सुझावों पर अमल करते हुए ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद’ (National Security Council) का गठन किया गया था।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद तीन अंगों वाली परिषद है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Adviser), NSC का पूरा कामकाज देखते हैं। NSC का मुख्य कार्य देश की सारी इंटेलिजेंस एजेंसियों से प्राप्त गुप्त सूचनाओं में से महत्वपूर्ण जानकारी पर प्रभावी रूप से एक्शन लेना है।

अटल जी ने यह संस्था अमेरिकी मॉडल पर बनाई तो थी लेकिन इसे संसद द्वारा पारित किसी कानून के अंतर्गत नहीं बनाया गया था। यह केवल एक प्रशासनिक आदेश द्वारा बनाई गई परिषद है जिसका कार्य प्रधानमंत्री को देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की स्थिति पर नीतिगत निर्णय लेने में सहायता करना है। अटल जी ने अपने विश्वस्त सहयोगी ब्रजेश मिश्रा को NSA नियुक्त किया था जो प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव भी थे। उस जमाने में ब्रजेश मिश्रा इतने ताकतवर थे कि गोपाल कृष्ण गाँधी ने उनको ही ‘भारत सरकार’ कहा था

बहरहाल, सत्ता का सुख अधिक दिनों तक अटल जी के भाग्य में नहीं था। सन 2004 में भाजपा ने सत्ता में वापसी नहीं की और जब कॉन्ग्रेस से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने विदेश सेवा के अधिकारी श्री ज्योतिंद्रनाथ दीक्षित को अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया। जब से जे एन दीक्षित NSA बने तभी से कॉन्ग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से उनपर पद छोड़ने का भारी दबाव बन रहा था। दीक्षित एक विद्वान और सक्षम अधिकारी थे इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विश्वस्त थे लेकिन वे कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी की आँखों में खटकते थे। दीक्षित, सोनिया का भरोसा नहीं जीत सके थे; पद संभालने के सात महीने बाद ही उन्हें आभास हो गया था कि वे ज्यादा दिनों तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर नहीं रह पाएंगे।

प्रधानमंत्री कार्यालय के अन्य अधिकारियों की तरह दीक्षित की पहुँच सोनिया गाँधी तक नहीं थी। वे जब भी मिलने की इच्छा जताते तो सोनिया गाँधी की तरफ से नकारात्मक उत्तर ही मिलता। वास्तव में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनते ही NSA पद के लिए झगड़ा प्रारंभ हो चुका था। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद के लिए अधिकारी के नाम की घोषणा होने से चार दिन पहले पूर्व आईबी निदेशक एम के नारायणन दीक्षित से ‘पूछताछ’ करने चेन्नई से दिल्ली आए थे। जब दीक्षित ने उनसे पूछा कि इतनी दूर आने कि क्या आवश्यकता थी तो नारायणन ने कहा कि उन्हें सोनिया गाँधी ने भेजा था।

इसके बाद दीक्षित को NSA बना दिया गया और नारायणन को प्रधानमंत्री कार्यालय में आंतरिक सुरक्षा के लिए विशेष सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। ये दोनों ही पद ऐसे थे कि दीक्षित और नारायणन में टकराव की स्थिति उत्पन्न होनी निश्चित थी। मामला तब और बिगड़ गया था जब एक भारतीय इंटेलिजेंस अधिकारी रविंद्र सिंह देश से गद्दारी कर अमेरिका की सीआईए के लिए काम करने लगा था। नारायणन इस बहुचर्चित मामले का ज़िम्मेदार रॉ (RAW) को मानते थे क्योंकि रविंद्र रॉ अधिकारी था।

नारायणन ने रॉ के सभी उच्च अधिकारियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया जिसमें अमर भूषण, एन के शर्मा और रॉ चीफ सी डी सहाय शामिल थे। लेकिन चूँकि आधिकारिक रूप से NSA जे एन दीक्षित आईबी और रॉ समेत सारी इंटेलिजेंस एजेंसियों के चीफ थे इसलिए नारायणन की बात मानने को बाध्य नहीं थे। फिर भी नारायणन अपने राजनैतिक रसूख के चलते रॉ चीफ को दंडित करना चाहते थे। दीक्षित इसके तैयार नहीं थे क्योंकि एक भारतीय एजेंट के गद्दार होने से ज्यादा बड़ी इंटेलिजेंस असफलताएँ देश कारगिल युद्ध में झेल चुका था। ऐसे में एक केस के लिए रॉ चीफ को पद से हटा देने को वे ठीक नहीं समझते थे।

नारायणन ने इसे अपनी नाक की लड़ाई बना ली थी। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यालय में निरंतर दीक्षित पर पद छोड़ने का दबाव बनता जा रहा था। उन्हें सोनिया गाँधी से मिलकर अपनी बात कहने का मौका भी नहीं दिया गया था। इस मानसिक अवसाद को वे झेल नहीं सके और एक दिन चल बसे। उनके निधन पर एक उच्च सरकारी अधिकारी ने कहा था, “They Killed Him“. देहांत से पहले उनके पास भारत पाकिस्तान को लेकर एक डिप्लोमैटिक रोडमैप था। वे कहते थे कि मैं ऐसा कुछ करना चाहता हूँ जिससे देश को मुझपर गर्व हो। लेकिन न तो मनमोहन सिंह और न ही सोनिया गाँधी को ज्योतिंद्रनाथ दीक्षित की कोई चिंता थी। दीक्षित के दुनिया छोड़ने के बाद नारायणन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिया गया।

पूर्व आईबी चीफ रहे एम के नारायणन ने NSA का पद तो संभाल लिया लेकिन उनकी अक्षमता 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले में सामने आई। उस समय के अख़बारों और मीडिया में लगातार खबरें छपती थीं कि पाकिस्तानी आतंकी समुद्र के रास्ते हमला करने के ट्रेनिंग ले रहे हैं लेकिन इन सभी सूचनाओं को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के स्तर पर महत्व नहीं दिया जाता था। यह बात पूर्व इंटेलिजेंस अधिकारियों विक्रम सूद और वप्पाला बालाचंद्रन ने अपनी पुस्तकों में भी लिखी हैं। इंटेलिजेंस एजेंसियों का काम होता है सूचनाएँ जुटाना। उन सूचनाओं पर समय रहते कार्यवाही करने का काम NSA और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का होता है।

सोनिया गाँधी ने दीक्षित की मृत्यु के बाद एक ऐसे व्यक्ति को NSA बनाया था जिसने NSA रहते अपना दायित्व नहीं निभाया। यही नहीं कॉन्ग्रेस ने 2008 के मुंबई हमले के बाद 2014 में सरकार जाने तक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को वैधानिक दर्ज़ा देने के बारे में नहीं सोचा न ऐसा कोई कानून लाने की बात की गई। अब क्योंकि पिछले 5 साल में किसी आतंकी बम हमले में नागरिकों की जान नहीं गई है और वह भी इसलिए क्योंकि देश में एक सक्षम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार है अतः कॉन्ग्रेस भविष्य में इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति के हाथ पाँव काटना चाहती है।  

कॉन्ग्रेस यह चाहती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और परिषद को संसद के प्रति उत्तरदायी बनाकर इस संस्थान के सभी अधिकार सार्वजनिक कर दिए जाएँ। लेकिन भारत की सुरक्षा प्रणाली अभी इतनी परिपक्व और सुदृढ़ नहीं है कि NSC को कानून और संसद के दायरे में लाने भर से सारी समस्याओं का हल निकाला जा सके। जितनी भी गोपनीय सूचनाएँ NSC को प्राप्त होती हैं उनपर यदि संसद में चर्चा और मीडिया में बहस होने लगेगी तो देश की सुरक्षा का क्या हाल होगा इसकी कल्पना मात्र में सिहरन होती है।

तर्क दिया जा सकता है कि अमेरिका में NSC, 1947 में कानून लाकर बनाई गई थी। लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में हमें हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका के हित भारत से भिन्न और बड़े हैं। अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल के इतिहास और कार्यशैली पर डेविड रॉथकोप्फ ने एक पुस्तक लिखी है: Running the World: The Inside Story of the National Security Council and the Architects of American Power.

इस पुस्तक में रॉथकोप्फ लिखते हैं कि यद्यपि नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल कानूनी तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति और उनके अधिकारियों को असीम शक्ति प्रदान करती है लेकिन कानून और इतिहास उतने महत्वूर्ण नहीं हैं जितना राष्ट्रपति और उनके विश्वस्त अधिकारियों के बीच संबंध। इससे हमें पता चलता है कि भले ही कोई एजेंसी क़ानूनी तौर पर बनी हो लेकिन उसका सुचारू रूप से कार्य करना अधिकारियों की दक्षता पर निर्भर करता है। ऐसे में कॉन्ग्रेस की सरकारों के पूर्व में किए कारनामों के कारण उन पर भरोसा करना संभव नहीं।

‘भारत 16 से 20 अप्रैल के बीच पाकिस्तान पर फिर करेगा हमला, विश्वसनीय सूत्र से मिली जानकारी’

भारतीय वायु सेना द्वारा बालाकोट पर किए गए एयर स्ट्राइक के सदमे से पाकिस्तान अभी तक बाहर नहीं निकल पाया है। पाकिस्तान को अभी भी डर है कि भारत उस पर हमला कर सकता है। पाकिस्तानी विदेशी मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने दावा किया है कि भारतीय फौज पाकिस्तान पर हमला करने की तैयारी कर रही है। उन्होंने इसको लेकर एक निश्चित तारीख भी बताई है।

कुरैशी का दावा है कि ये हमला भारत में चल रहे चुनाव के दौरान होगा। उनका कहना है कि भारत अप्रैल महीने के तीसरे सप्ताह में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने की योजना बना रहा है। उन्होंने इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से दखल देने की गुहार लगाई है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने मुल्तान में मीडिया से बातचीत के दौरान दावा किया कि पाक सरकार के पास विश्वसनीय सूत्र हैं कि भारत एक नई योजना की तैयारी कर रहा है। उनकी जानकारी के अनुसार, यह कार्रवाई 16 से 20 अप्रैल के बीच हो सकती है।

शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि इसकी जानकारी पहले ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य देशों (चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका) को दे दी गई है। हालाँकि कुरैशी ने यह नहीं बताया कि उन्होंने 16 से 20 अप्रैल के बीच होने वाले हमले की बात किस आधार पर कही।

गौरतलब है कि 14 फरवरी को पुलवामा में हुए सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले के बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान स्थित बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर आतंकी कैंपों को ध्वस्त कर दिया था, जिसमें तकरीबन 250 आतंकियों के मरने की खबर आई थी।  

घर से भाग कर रचाई थी शादी, 20 वर्ष बाद अनीस ने पत्नी को शक़ के आधार पर मार डाला

उत्तर-पूर्व दिल्ली के जाफराबाद से एक संगीन आपराधिक मामला सामने आया है। यहाँ एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को मार डाला और फिर उसके बीमार होने की बात कही। अनीस ने अपने इस अपराध को ढकने के लिए एक कुटिल योजना भी बनाई। उसने बच्चों को विश्वास दिलाने के लिए झूठ कहा कि आसमाँ की तबियत ख़राब थी और इसी कारण वो नीचे गिर गईं। उसने अपनी बीवी के पेट में जोर का दर्द होने का बहाना बनाया। मामले की सच्चाई तब सामने आई जब पुलिस ने कब्रगाह पहुँच कर मृत शरीर की पड़ताल की। 48 वर्षीय अनीस और उसकी पत्नी आसमाँ ने 20 वर्ष पहले अपने परिवारों की इच्छा के विरुद्ध घर से भागकर शादी रचाई थी।

डीसीपी अतुल कुमार ठाकुर ने कहा कि अनीस के ख़िलाफ़ हत्या और सबूतों से छेड़छाड़ करने का मामला दर्ज कर लिया गया है। असल में पुलिस को इस घटना की जानकारी एक स्थानीय व्यक्ति द्वारा मिली जिसने अपने पड़ोस में एक महिला की मृत्यु होने की बात कही। बाद में पता चला कि उक्त महिला को कब्रगाह में दफ़ना दिया गया, जहाँ उसके पति व परिवार के अन्य लोगों ने अंतिम क्रिया पूरी की। जब पुलिस को अनीस के बयानों पर भरोसा नहीं हुआ तो उसने कब्रगाह पहुँच कर मृत शरीर को ज़ब्त कर लिया।

दरअसल, अनीस ने पहले तो कहा कि उसकी पत्नी के पीट में जोर का दर्द हुआ और वो नीचे गिर पड़ी लेकिन बाद में उसने कहा कि उसकी पत्नी को कई सालों से एक बीमारी थी, जिसके बढ़ने के कारण उसकी मौत हुई। पुलिस ने शव को अस्पताल पहुँचाने का बंदोबस्त किया, जहाँ पोस्टमॉर्टम सहित अन्य औपचारिकताएँ पूरी की गई ताकि मौत के कारणों से पर्दा उठाया जा सके। इस दौरान डॉक्टरों को मृत शरीर पर ऐसे कोई भी निशान नहीं मिले, जिससे महिला के गिरने की पुष्टि होती हो।

जब डॉक्टरों ने मृत शरीर के गर्दन पर गला दबाने का निशान पाया, तब मामले का ख़ुलासा हुआ। पुलिस की सख़्त पूछताछ के बाद अनीस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उसने ही अपनी पत्नी का ख़ून किया है। उसे शक था कि उसकी पत्नी के विवाहेतर सम्बन्ध हैं और इसी कारण दोनों में अक्सर झगड़ा भी हुआ करता था। इस बार भी ऐसा ही झगड़ा हुआ। अनीस को शक हुआ कि उसकी पत्नी अपने प्रेमी को फोन से मैसेज कर रही है, जिसके बाद दोनों में फिर से झगड़ा हुआ।

ये झगड़ा तब हिंसक हो गया जब अनीस ने अपनी पत्नी का गला दबा कर मार डालने की कोशिश करने लगा। उसने अपनी पत्नी की ही चुन्नी का इस्तेमाल कर उसका गला दबा दिया। जब आसमाँ की मौत हो गई तो उसने उसे बीमारी से जोड़कर बचने की कोशिश की लेकिन अंततः पुलिस की सक्रियता के कारण धरा गया।

कॉन्ग्रेस को EC से झटका: कैंपेन सॉन्ग में नफरत और ‘समुदाय’ को भड़काने की बात, हटाई गईं लाइनें

सभी राजनीतिक पार्टियाँ जोर-शोर से लोकसभा चुनाव के प्रचार-प्रसार में जुटी हैं। चुनाव आयोग भी सभी पार्टियों पर अपनी गहरी नजर बनाए हुए है। इस बीच कॉन्ग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए नया नारा जारी कर दिया है। बता दें कि चुनाव आयोग की आपत्ति के बाद कॉन्ग्रेस का नया नारा जारी किया गया।

दिल्ली में चुनाव आयोग की मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति (MCMC) की टीम ने कॉन्ग्रेस के कैंपेन सॉन्ग की कुछ लाइनों को आपत्तिजनक बताते हुए उसमें बदलाव करने के लिए कहा था। इन लाइनों में मोदी सरकार द्वारा नफरत फैलाने और समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने का आरोप लगाया गया था। चुनाव आयोग द्वारा जताई गई आपत्ति के बाद उसमें सुधार कर उसे दोबारा MCMC के पास भेजा गया। इसके बाद आयोग ने इस चुनाव अभियान प्रचार गीत को हरी झंडी दे दी है।

इसको कॉन्ग्रेस ने ‘अब होगा न्याय’ नाम दिया है। रविवार (अप्रैल 7, 2019) को कॉन्ग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा और रणदीप सुरजेवाला ने ‘अब होगा न्याय थीम’ पर चुनाव लड़ने की जानकारी दी है। आनंद शर्मा ने बताया कि कॉन्ग्रेस के थीम सॉन्ग को जावेद अख्तर ने लिखा है। इस गाने में कॉन्ग्रेस ने केन्द्र की मोदी सरकार पर सीधे सवाल उठाए हैं। गाने के बोल में रोजगार के बुरे हालातों, नोटबंदी, महिलाओं की सुरक्षा, जीएसटी और किसानों में बढ़ती आत्महत्या के प्रमुख मुद्दे उठाए गए हैं।

गौरतलब है कि कॉन्ग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव का घोषणापत्र जारी कर दिया है। जिसमें कॉन्ग्रेस ने सत्ता में आने पर गरीबों को न्यूनतम आय योजना के तहत हर साल ₹72 हजार दिए जाने का वादा किया है। इसी न्यूनतम आय योजना ‘न्याय’ को ही चुनावी नारा बनाते हुए कॉन्ग्रेस ने ये नारा जारी किया है।

नहीं टूटेगा मंदिर: फ्लाईओवर के लिए 25 फ़ीट खिसकाया जा रहा यह मंदिर, लगाए गए 350 जैक

तमिलनाडु के नारायणपुरम में मदुरै-नाथम एलिवेटेड राजमार्ग निर्माण का कार्य चल रहा है। इस दौरान एक फ्लाईओवर भी बनाया जाना है लेकिन ऐन वक्त पर एक समस्या खड़ी हो गई। दरअसल, फ्लाईओवर निर्माण के लिए जो नक्शा प्रस्तावित था, उसमें रास्ते में एक मंदिर था। अधिकारियों के मुताबिक़, 21 वर्ष पुराने इस मंदिर के कारण फ्लाईओवर का काम रुक रहा था। प्रशासन ने पहले तो इस मंदिर को तोड़ने तक की भी योजना बनाई लेकिन बाद में प्लान में बदलाव किया गया। 350 टन वजन वाले इस मंदिर को अब 25 फ़ीट अलग खिसकाने का निर्णय लिया गया है।

नेपाल, बिहार और हरियाणा से आई टीमों को इस मंदिर को खिसकाने की प्रक्रिया में लगाया गया है। अमर उजाला में प्रकाशित ख़बर के अनुसार, मंदिर के पुजारी ए दामोदरन ने बताया कि पहले मंदिर के 15 फ़ीट के हिस्से को तोड़ने की बात कही गई थी। बाद में कमिटी ने अनुमान लगाया कि इसे दुबारा बनवाने में सवा करोड़ के आसपास ख़र्च आएगा। इसीलिए कमिटी ने आर्थिक रूप से सस्ता तरीका निकाला। कमिटी के नए अनुमान के मुताबिक़, मंदिर को खिसकाने में 22 लाख रुपए का ख़र्च आएगा।

इंजीनियर धर्मालिंगम ने अधिक जानकारी देते हुए बताया कि अगर शिखर को भी मिला दें तो 4225 वर्गफीट में बने इस मंदिर की ऊँचाई 25 फीट है। दूसरी जगह बगल में ही मंदिर को शिफ्ट करने के लिए स्थान तैयार कर लिया गया है। वहीं पर मंदिर को शिफ्ट किया जाएगा। इस कार्य के लिए 350 जैक लगाए गए हैं।

शुक्रवार (अप्रैल 5, 2019) को सुबह में मंदिर को खिसकाने की प्रक्रिया शुरू की गई। लेकिन, तीन घंटे में इसे महज तीन फ़ीट ही खिसकाया जा सका। हालाँकि, मंदिर को 15 फ़ीट ही खिसकाने की ज़रुरत थी लेकिन भविष्य में होने वाले निर्माण कार्यों को देखते हुए इसे 25 फ़ीट खिसकाने का निर्णय लिया गया है। मंदिर के मुख्य भाग के साथ इसके साथ बने तीन अन्य छोटे-बड़े मंदिरों को भी खिसकाया जाएगा।

बता दें कि मदुरै-नाथम राजमार्ग के लिए केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने हरी झंडी दी थी। नवम्बर 2017 में गडकरी ने बताया था कि भारत सरकार ने तमिलनाडु में सड़क परियोजनाओं के लिए एक लाख करोड़ से भी अधिक की राशि स्वीकृत की है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलनीसामी ने इस कार्य के लिए गडकरी को धन्यवाद दिया था।

बिरयानी को लेकर कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं में हुई जमकर जूतम-पैजार: चले लाठी-डंडे, कई घायल

बिजनौर सीट से कॉन्ग्रेस उम्मीदवार नसीमुद्दीन सिद्दीकी के समर्थकों के बीच बिरयानी खाने को लेकर हुई झड़प और जूतम-पैजार में कई लोग घायल हो गए। बता दें कि बिना मंजूरी के एक चुनावी सभा के दौरान बिरयानी परोसने और पहले खाने की होड़ में विवाद हो गया। इसके बाद जमकर लाठी-डंडे चले, जिसके कारण कई घायल हो गए।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, घटना के बाद मौके पर पुलिस पहुँची और कार्रवाई करते हुए इस मामले में नौ लोगों को गिरफ्तार किया। पूरा मामला कुछ यूँ है। काकरौली थाना क्षेत्र के टडहेड़ा गाँव में शनिवार (अप्रैल 6, 2019) को हाल ही में कॉन्ग्रेस में शामिल हुए पूर्व विधायक मौलाना जमील के आवास पर चुनावी सभा आयोजित की गई थी। चुनावी सभा के बाद दोपहर के भोजन के लिए बिरयानी परोसी जानी थी लेकिन वहाँ मौजूद लोगों में पहले बिरयानी खाने की होड़ में भयंकर मल्ल-युद्ध छिड़ गया। नौबत यहाँ तक आ गई कि लोगों ने लाठी-डंडों का भी सहारा लिया। बिरयानी की भूख तब शांत हुई जब कई लोग लहूलुहान हो गए।

हालाँकि, बताया जा रहा है कि जल्द ही सूचना मिलने पर पहुँची पुलिस ने घटनास्थल पर हिंसक भीड़ को तितर-बितर न किया होता तो बिरयानी लूटने के लिए ये एक-दूसरे की जान ले लेते। क्षेत्राधिकारी राम मोहन शर्मा ने बताया कि आईपीसी की विभिन्न धाराओं और आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन में जमील और उनके बेटे नईम अहमद समेत 34 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। घटना के संबंध में अभी तक नौ लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।

संभावित तनाव को देखते हुए गाँव में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है। बता दें कि जमील ने गत सप्ताह बसपा का साथ छोड़कर कॉन्ग्रेस का हाथ थाम लिया था। वह 2012 में मीरापुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। बिजनौर में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होगा।

बकरियों, मुर्गियों व अण्डों से पाकिस्तान को महाशक्ति बनाएँगे इमरान ख़ान, जनता हैरत में

पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान ख़ान ने अपने देश की ग़रीबी, भूखमरी और आर्थिक बदहाली को दूर करने के लिए बकरियों, मुर्गियों व अण्डों का सहारा लेने की बात कही है। इससे पाकिस्तान की जनता तो हैरत में है ही, दुनियाभर में अन्य लोग भी इसके लिए इमरान ख़ान का मज़ाक बनाने में लगे हुए हैं। अब ज़रा आप भी पाकिस्तान के पीएम की इस दूरदर्शी योजना के बारे में जान लीजिए। बकौल इमरान, इस योजना से सभी संवेदनशील समुदायों, खासकर महिलाओं की ग़रीबी दूर होगी। इतना ही नहीं, इस योजना के लिए संविधान में भी संशोधन किया जाएगा। इससे ग़रीबों को आवास, भोजन, स्वास्थ्य और कपड़ा जैसी मूलभूत सुविधाएँ देना सरकार के लिए अनिवार्य हो जाएगा।

दरअसल, पाकिस्तानी पीएम ने कहा कि वे ग़रीबो को बकरियाँ देंगे ताकि उन्हें दूध मिले और बच्चों को दूध मिले। साथ ही उन्होंने कहा कि देहात में औरतों को मुर्गियाँ दी जाएँगी। उन्होंने कहा कि मुर्गियों व बकरियों से देहात में बड़ा बदलाव आएगा। लोगों ने इमरान ख़ान का जम कर मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि अब पाकिस्तान बकरियों और मुर्गियों का उपयोग कर विश्व महाशक्ति बनेगा।

एक ट्विटर यूजर ने चुटकी लेते हुए कहा कि पाकिस्तान विश्व में ‘ऑमलेट का राजा’ और ‘ब्रेड का बादशाह’ के रूप में जाना जाएगा। नीचे हम कुछ ऐसे ट्वीट्स संलग्न कर रहे हैं, जिससे आप भी इस हास्यपूर्ण सिलसिले का गवाह बन सकें।

इसी तरह पाकिस्तान गदहों को भी बेचता रहा है। चीन में गदहों की बढ़ती माँग से परेशान अफ्रीकी देशों ने जब उसे गदहे बेचना बंद कर दिया तो उसने इन देशों में लोगों के गदहे चुराने शुरू कर दिए। इस मामले में हमने एक गंभीर विश्लेषण कर बताया था कि चीन में क्यों गदहों की माँग बढ़ रही है और कैसे पाकिस्तान में गदहों की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करने के लिए उन्हें चीन को बेच दिया जा रहा है?

महिला ‘मानवाधिकार’ वकील को एयर इंडिया क्रू मेंबर पर थूकने के लिए 6 महीने जेल

पिछले साल नवंबर में एयर इंडिया के विमान द्वारा मुंबई से लंदन जाते समय आयरलैंड की एक महिला वकील सिमोन बर्न्स ने क्रू मेंबर्स के साथ बदतमीज़ी और दुर्व्यवहार किया था। इस आचरण के लिए मानवाधिकार की हितैषी उस महिला को छह महीने के लिए जेल भेज दिया गया है। महिला द्वारा किया गया अभद्रतापूर्ण व्यवहार कैमरे में कैद था, जिसमें दिखाया गया कि उस महिला ने शराब न दिए जाने पर क्रू मेंबर्स से बदतमीजी की थी। यही नहीं क्रू द्वारा बात न मानने उसने क्रू मेंबर पर थूक दिया था और गालियाँ भी दी थीं। ध्यान दिला दें कि सिमोन बर्न्स मानवधिकार वकील हैं।

ख़बर के अनुसार, गुरुवार (4 अप्रैल) को लंदन में आईलवर्थ (Isleworth) क्राउन कोर्ट में सुनवाई के दौरान बर्न्स को ‘शराबी और उद्दंड’ बताया गया। उसने फ्लाइट अटेंडेंट को भी उकसाया। न्यायाधीश ने इसे नोट किया और इसे ‘अपमानजनक और परेशान करने वाला कृत्य’ कहा। न्यायाधीश निकोलस वुड ने एक विमान में नशे में धुत होने और हमले के लिए 50 वर्षीय बर्न्स को छह महीने की जेल की सज़ा सुनाई।

बर्न्स के अभद्र व्यवहार की निंदा करते हुए उन्होंने कहा, “आप शुरू से लेकर अंत तक लगभग नशे में थी। आपने निंदापूर्ण, तिरस्कारपूर्ण ​​और झगड़ालू किस्म की और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया।” अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि मानवाधिकार वकील ने केबिन क्रू को “पैसे ऐंठने वाले भारतीय” कहने से पहले शराब की तीन बोतलें पी ली थी। इसके बाद महिला वकील के अधिक नशे में होने के कारण क्रू द्वारा और रेड वाइन देने से इनकार कर दिया गया।

रेड वाइन न दिए जाने पर महिला वकील ने अपनी प्रतिष्ठा का रौब भी दिखाया। इसके अलावा उन्हें धूम्रपान करते भी देखा गया जिस पर उन्हें कई बार चेतावनी भी दी गई। एयर इंडिया के केबिन क्रू के एक सदस्य ने कहा कि उन्होंने अपने 34 साल के एविएशन करियर के दौरान ऐसा कभी नहीं देखा था।

जानकारी के अनुसार, बर्न्स ने दुनिया भर के शरणार्थियों के साथ काम किया है, इस पर भी जज ने दृष्टि डाली, लेकिन महिला द्वारा किया गया इस तरह का आचरण पूरी तरह से निंदनीय था। इससे एयरलाइन के सभी कर्मचारियों को काफ़ी परेशानी हुई।

मुंबई: 5 साल की बच्ची के रेप पर हुई जेल, छूटने पर 9 साल की बच्ची का रेप कर हत्या की

मुंबई से इंसानियत को शर्मशार करने वाली एक घटना सामने आई है। विले पार्ले इलाके में 9 साल की बच्‍ची के साथ दुष्‍कर्म और उसके बाद उसकी बेरहमी से हत्‍या करने का एक मामला सामने आया है। बच्ची का शव एक सार्वजनिक शौचालय में पाया गया। पुलिस ने इस मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार व्यक्ति का नाम वडिवेल देवेंद्र उर्फ गुंडप्प है। देवेंद्र को शनिवार (अप्रैल 6, 2019) को POCSO अदालत में पेश किया गया। जिसके बाद उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 201, 302, 363, 376 और POCSO अधिनियम की धाराओं 4, 8 और 12 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

बच्ची की गुमशुदगी की रिपोर्ट गुरूवार (अप्रैल 4, 2019) को जुहू पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई थी जिसके बाद से पुलिस छानबीन में जुटी हुई थी। पुलिस ने बताया कि 2 दिन पहले बच्ची की माँ ने बच्ची को चाय पत्ती लाने के लिए दुकान पर भेजा था, जिसके बाद बच्ची घर वापस नहीं लौटी। बच्ची की तलाशी में जुटी पुलिस ने जब उस जगह का सीसीटीवी कैमरा चेक किया तो उसमें उसने बच्ची को गुंडप्प के साथ देखा। जिसके बाद पुलिस ने उसे हिरासत में लिया और पूछताछ करना शुरू किया। पहले तो उसने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि उसने बच्ची को वहींं पर छोड़ दिया था, उसके बाद उस बच्ची का क्या हुआ, उसे नहीं पता, मगर फिर शनिवार (अप्रैल 6, 2019) को सुबह उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया।

गौरतलब है कि देवेंद्र 6 महीने पहले ही जेल से रिहा हुआ है। साल 2013 में गुंडप्प ने एक 5 साल की बच्ची का रेप किया था, जिसके लिए उसे सजा मिली थी। जेल में किए गए अच्छे व्यवहार की वजह से गुंडप्पा की सजा को कम करते हुए सजा की निश्चित अवधि से पहले ही रिहा कर दिया गया। मगर जेल से बाहर आने के 6 महीने बाद ही उसने जिस तरह की वारदात को अंजाम दिया है, उससे साफ जाहिर हो रहा है कि जेल के अंदर का उसका व्यवहार महज एक दिखावा था। उसके अंदर का वहशीपन और क्रूरता अभी भी जिंदा है तभी तो उसने 9 साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म करने के बाद निर्ममता से उसकी हत्या कर दी।

बच्‍ची की लाश मिलने के बाद लोगों का गुस्‍सा भड़क गया। परिजनों और सैंकड़ों लोगों ने जुहू पुलिस स्टेशन के बाहर पहुंचकर जमकर हंगामा किया। जुहू पुलिस ने परिजन समेत हजारों की संख्या में प्रदर्शन कर रहे लोगों को आश्वासन दिया है कि पुलिस इस मामले में आरोपी पर सख्त कार्रवाई करेगी और कोर्ट से अपील करेगी कि उसे सख्त से सख्त सजा दी जाए।