Sunday, September 29, 2024
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स्थिर आँखों की एक हलचल जब जीवन की सबसे बड़ी ज़रूरत बन जाती है

मित्र हैं, बड़े भाई हैं, ज़िंदादिल और संवेदनशील व्यक्ति हैं। नाम नहीं लिख सकता क्योंकि ये पीड़ा हम में से बहुतों ने झेली होगी, और नाम रहने से ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। मुझे दो बार टीबी हुआ, एक बार दोनों फेफड़ों में कैविटी बन गई (छोटा छेद), दूसरी बार लीवर नाराज़ हो गया क्योंकि आँखों में घुसे कीड़े को मारने के लिए जिस ज़हरीली दवाई का प्रयोग किया गया था, उसने लीवर पर बहुत अत्याचार कर दिया।

पहली बार जब टीबी हुआ था तो मैं ख़ून की उल्टियाँ करता था, और लगभग 200-300 मिलीलीटर एक बार में। चूँकि मैं मरीज़ था तो मेरे लिए उल्टी करना और देखना, दोनों ही सामान्य बातें थी। फिर दिल्ली के कुछ दोस्तों ने उपचार में साथ रहकर हर संभव सहायता की। डैमेज इतना हो चुका था कि डॉक्टर ने सीटी स्कैन देखकर कहा था, “एक्सट्रीम केस में तो सर्जरी होती है, लेकिन दोनों लंग्स में कैविटी है, तो वो संभावना भी नहीं। अगर जीने की इच्छा होगी तभी बचेगा।”

ज़ाहिर है कि इच्छा थी, और बच गए। इसी समय में मेरी माँ, बिहार छोड़ कर पहली बार कहीं बाहर आई। गरीब घर की महिला ने बहुत कष्ट देखे और झेले होते हैं। लेकिन, अपनी संतान को ख़ून की उल्टी करते देख, वो बेहोश होकर गिर गई। जबकि मुझे सँभालने वाले लोग थे, पर उसने ख़ून देखा तो दरवाजा पकड़ कर बेहोशी में गिरी और बैठ गई।

साल भर बाद, मैं ठीक हुआ और फिर दूसरी बार इसी रोग ने लीवर के माध्यम से हमला बोला। सप्ताह भर में लगभग 22 किलो वज़न घट गया। मैं अपने पाँव पर खड़ा नहीं हो पाता था। शरीर का हर एक ज्वाइंट दर्द करता था। इस हालत में मैं अपने गाँव वापस गया। पहले से ही दुबले व्यक्ति के शरीर से आप 22 किलो और निकाल लीजिए, शरीर से ख़ून बस ज़िंदा रहने लायक ही बचा हो, चेहरा पीला पड़ जाए, तो वैसी संतान को घर पहुँचता देख किसी भी पिता को ख़ास ख़ुशी नहीं होती।

ये कहानी मैं पहले भी कह चुका हूँ, लेकिन आज फिर से बता रहा हूँ। संतान को खरोंच भी लगती है तो माँ-बाप के लिए उससे बड़ा दुःख नहीं होता। ऐसे मौक़ों पर, जब डॉक्टर ही आपका एकमात्र सहारा हो, आप अपनी संतान को तड़पते देखते हैं, और हर पल भीतर से मर रहे होते हैं।

सवालों के जवाब नहीं मिलते। कर्म फल के चक्कर में याद करते हैं कि आख़िर किस कर्म की सज़ा इस रूप में मिल रही है। याद करते हैं तो याद नहीं आता कि किसी का नुकसान किया हो। आदमी ऐसे समय में तर्क ढूँढने की कोशिश करता है, और तर्क होते नहीं। इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता कि ‘मेरे साथ ही क्यों?’

मेरे पिता ने जन्म से लेकर अभी तक बस मेहनत ही की है। आधे से अधिक जीवन वैष्णव होकर पूजा-पाठ और गृहस्थी में बीता है। मैंने अगर किसी का भला नहीं किया, तो बुरा भी नहीं किया है। फिर मुझे दो बार मृत्यु तक पहुँचाना किस कर्म का फल है? इसका जवाब न मेरे पिता के पास था, न मेरी माँ के। लेकिन प्रारब्ध को स्वीकार कर, जितना संभव हो सका, संतान की चलती साँसों में ही आधार ढूँढा और फिर मैं दोनों बार ठीक हो गया।

जिन बड़े भाई का ज़िक्र ऊपर किया है, उनके दुःख के सामने मेरे पिता का दुःख कहीं नहीं टिकता। हमेशा ज़िंदादिल रहने वाला व्यक्ति चाह कर भी हँस नहीं पाता, बोलता है तो एक अजीब तरह का भाव सुनाई देता है जिसे आप निराशा या नकारात्मकता नहीं कह सकते। वो भाव शायद वही है जो एक पिता या माता का अपने बच्चे की पीड़ा को देखकर उपजता है।

वह स्थिति जब आपके पास ‘मैं क्या करूँ’ का जवाब नहीं होता, जब जो चल रहा है, उस पर आपका वश नहीं, आप स्थिति को एक पैसा प्रभावित नहीं कर सकते, तब मजबूत व्यक्ति भी गिरने लगता है। लेकिन, वही अंत नहीं है। एक माँ हर मिनट एक उम्मीद से एक शांत से चेहरे को देखती रहती है कि अब वो बोल उठेगा, छोटी बहन रोना चाहती है, लेकिन रोती नहीं कि शायद भाई की आँखें देख लेंगी, पिता अपने पिता होने का बोझ लिए अपने भीतर ही भटकता रहता है, कुछ खोजता रहता है।

ऐसे समय में हम या आप उस व्यक्ति को क्या सलाह दे पाएँगे? कुछ नहीं। बात कर सकते हैं लेकिन एक अनुभवी व्यक्ति को, जिसने आप से अधिक दुनिया देखी और झेली है, ढाढ़स भी नहीं दे सकते। लगता है कि खानापूर्ति हो रही है। उन मौक़ों पर हम या आप भावनाओं के आदान-प्रदान से ही जुड़े रह सकते हैं, उसके अलावा हमारे हाथ में कुछ नहीं।

मौन का स्तर वैसा हो जाता है कि पिता और माता बिना कुछ कहे बात कर रहे होते हैं। दोनों का डर कि कहीं दूसरा न टूट जाए। माताएँ घर को घर और परिवार को परिवार बनाती हैं, पिता उसका ठोस आधार और ईंट होते हैं। संतान वो छोटे पौधे हैं जिन्हें हवा हिला देती है, बारिश का झोंका उनके पत्ते तोड़ देता है, दूसरा जीव नोंच लेता है।

माँ-बाप की बाँहों का दायरा हमें बचपन से लेकर उनकी मृत्यु तक रक्षा कवच की तरह घेरे रहता है। मेरी दादी का देहांत हुआ था तो मेरे पिता, 56 साल की उम्र में फूट-फूट कर रो रहे थे। मेरी समझ में नहीं आया कि मेरे पिता जैसा विरक्त आदमी, मेरी जर्जर और अशक्त दादी की मृत्यु पर रो क्यों रहे हैं। मैंने पूछा तो उनका जवाब था, “वो जैसी भी थी, माँ थी। उसके पास मैं अभी भी अपने भाई-बहन के झगड़े, उनकी कटु बोलियाँ, उनकी बातों को लेकर शिकायत करने जाता था। अब किसके पास जाऊँगा?”

माँ-बाप का जीवन संतानोत्पत्ति के बाद पूरी तरह से बदल जाता है। उसके जीवन का हर महत्वपूर्ण पल उनके बच्चों की ओर हो जाता है। उनका निजी जीवन वहीं खत्म हो जाता है क्योंकि उस निजी जीवन से बड़े आनंद का पल बच्चे बनकर आते हैं। उस बच्चे के नन्हें पाँवों की मालिश से लेकर उनके मल-मूत्र तक में आप निर्विकार भाव से एक आनंद पाते हैं। निजी जीवन को आप कभी भी मिस नहीं करते, क्योंकि एक तरह से, आपका निजी जीवन व्यापक हो जाता है। किसी दूसरे की खुशी आपकी अपनी हो जाती है।

वही संतान जब दो महीने से आईसीयू में हो, बोलना चाहे और आवाज न निकले, लगातार सर्जरी होती रहे, डॉक्टर आपको बताते रहे कि इसमें समय लगेगा। आप धैर्य दिखाते हैं, आप पत्नी का हाथ पकड़ते हैं, दूसरे बच्चों को गोद में सुलाते हैं, उसे सरल शब्दों में बताते हैं कि उसका भाई कल की अपेक्षा आज बेहतर है।

मैं अभी भी किसी का बेटा और भाई हूँ, मैं पिता या माता की पीड़ा को देख तो सकता हूँ, लेकिन समझ नहीं सकता। उसके लिए उस स्थिति में होना पड़ता है। हर बार, अपने दोस्तों, उनके माता-पिता आदि को ऐसी स्थिति से गुज़रते देखता हूँ तो मनाता हूँ कि किसी को ऐसा समय न देखना पड़े। लेकिन दुर्घटनाएँ होती रहती हैं, और आप तक ऐसी खबरें पहुँचती रहती हैं।

ऐसी स्थिति में एक दोस्त बन पाने के सिवा हमारे हाथ में कुछ भी नहीं होता। दोस्त की कोई तय परिभाषा नहीं होती। वो आपके तमाम रिश्तों का एक मिश्रण होता है। इसलिए दोस्त कभी पिता की तरह बोलता है, कभी बड़े भाई की तरह, कभी पत्नी की तरह सहृदय होता है, कभी छोटी बहन की तरह जिद करता है, कभी माँ की तरह आपका ख़्याल रखता है। दोस्त अहित नहीं करता।

एक-दूसरे की शारीरिक पीड़ा को हम भले न बाँट सके, लेकिन मानसिक पीड़ा को अवश्य बाँटें। कई बार पति अपनी पत्नी या परिवार से वो बातें नहीं कह पाता, जो वो एक दोस्त से कहना चाहता हो। ऐसे मौक़ों पर, एक बेहतर दोस्त बना जा सकता है। बात की जा सकती है। सर के भीतर उस चौबीस घंटे बजने वाली घंटी से ध्यान दूसरी तरफ लाया जा सकता है।

और बाकी तो हमारे हाथ में कुछ भी नहीं, भावनाओं के जाल में हम उलझे हुए वो लोग हैं, जो मूलतः प्रेम करना जानते हैं। जब डॉक्टर ने मेरे सीटी स्कैन को देखकर यह कहा था कि मेरी इच्छा होगी तो मैं बच जाऊँगा, तो उसका मतलब यह था कि सिर्फ़ दवाई ही हमें स्वस्थ नहीं करती, हमारा प्रेम, हमारी जिजीविषा हमें भी ज़िंदा रखती है, और हमारे साथ के लोगों को भी। अतः, किसी की जिजीविषा को अपने प्रेम से सींचने की कोशिश कीजिए, यह सोच कर मत रुकिए कि आपके होने या कुछ करने से क्या होगा।

गडकरी का गणित: विकास पुरुष ‘रोडकरी’ के आगे चित कॉन्ग्रेस ने नागपुर में पहले ही मानी हार

उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें महाराष्ट्र में हैं और भाजपा का शासन होने के चलते पार्टी के लिए यहाँ अच्छा प्रदर्शन करना प्रतिष्ठा का विषय है। और बात जब महाराष्ट्र के नागपुर की हो रही हो तो कहना ही क्या! राज्य की शीतकालीन राजधानी नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का मुख्यालय होने के कारण इस सीट पर देश-दुनिया की नज़रें हैं और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का क्षेत्र होने के कारण भाजपा के लिए यहाँ से भी जीत दर्ज करना ज़रूरी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में सड़क परिवहन और गंगा संरक्षण सहित कई अहम विभाग संभाल रहे गडकरी देश के ऐसे नेताओं में से हैं जिनकी प्रशंसा करते विपक्षी भी नहीं थकते। पार्टी लाइन से ऊपर उठकर नेतागण इनकी प्रशंसा कर चुके हैं यही नहीं राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल भी गडकरी के गुण गा चुके हैं।

यहाँ हम नागपुर सीट के चुनावी समीकरण की बात करेंगे और जानेंगे कि क्या कॉन्ग्रेस ने इस सीट पर पहले ही हार मान ली है? विश्लेषण की शुरुआत कल शनिवार (अप्रैल 6, 2019) को इलाक़े में हुई नितिन गडकरी की जनसभा से करते हैं। 2011 में दंगों का गवाह बन चुके मोमिनपुरा में गडकरी की जनसभा को देखनेवाला व्यक्ति यह जान जाएगा कि गडकरी का अपने क्षेत्र में क्या प्रभाव है? दरअसल, यहाँ नितिन गडकरी की सभा में हज़ारों की संख्या में मुस्लिम उपस्थित थे। कोई कुछ भी अगर-मगर करे लेकिन इस सच्चाई को सभी जानते हैं कि अधिकतर भाजपा नेताओं की रैलियों में मुस्लिमों की बड़ी भीड़ नहीं जुटती। गडकरी इसके अपवाद हैं।

समुदाय विशेष से घिरे गडकरी

2011 में जब मोमिनपुरा में हिंसक सांप्रदायिक तनाव भड़का था, तब राज्य और देश, दोनों ही जगह कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी। 2014 के बाद से यहाँ शांति है। शनिवार की जनसभा में मुस्लिमों से घिरे गडकरी ने जब उन्हें अपने विकास कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया तो सभी प्रभावित दिखे। वैसे गडकरी का मुस्लिमों के बीच जाना और दूसरे नेताओं के उनके बीच जाने में फ़र्क है। जहाँ चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता मुस्लिमों के बीच जाकर नमाज़ रूम बनवाने और टीपू सुल्तान को पूजने की बात करते हैं, गडकरी धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर सड़कों और मेट्रो की बातें करते हैं।

नागपुर में 2015 में मेट्रो कार्यों का वास्तविक शिलान्यास हुआ और 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे हरी झंडी दिखाने पहुँचे। गडकरी का कहना है कि वो जिन परियोजनाओं का शिलान्यास करते हैं, उसका उद्घाटन भी करते हैं। ये सही है क्योंकि उनके नेतृत्व में न सिर्फ़ नागपुर बल्कि देश भर में सड़क योजनाओं का तेज़ी से सफल समापन हुआ है। नागपुर तो उनका क्षेत्र है, यहाँ की योजनाओं पर उनकी पैनी नज़र रही है, चाहे वो किसी भी विभाग का हो। नागपुर मेट्रो के उद्घाटन के समय उन्होंने कहा भी था कि वे आए दिन शिलान्यास और उद्घाटन में व्यस्त रहते हैं लेकिन अपने गृह क्षेत्र में मेट्रो परियोजना के उद्घाटन में सम्मिलित होना उनके लिए सबसे बड़ा अनुभव है।

नागपुर के चुनावी समीकरण की बात करते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि यहाँ दलित मतदाताओं की जनसंख्या अच्छी-ख़ासी है और इसीलिए दलित हितों की रक्षा का दावा करनेवाली पार्टियाँ यहाँ अच्छा प्रदर्शन करती आई हैं। भीमराव आंबेडकर के रिपब्लिकन आंदोलन का असर यहाँ देखा जा सकता है। यही कारण है कि यहाँ हुए चुनावों में रिपब्लिकन नेता अच्छा प्रदर्शन करते आए हैं। 2004 के बाद से यहाँ मायावती की बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है। इस सबके बीच भाजपा 2009 में हार चुकी थी। तीन बार यहाँ से सांसद रहे वरिष्ठ नेता बनवारीलाल पुरोहित की हार के बाद भाजपा ने नितिन गडकरी के रूप में अपने तरकश का सबसे मज़बूत तीर निकाला। बनवारीलाल अभी तमिलनाडु के राज्यपाल हैं।

गडकरी को 2014 में हुए आम चुनाव में पौने छह लाख से भी ज्यादा मत प्रात हुए थे। 54% से भी अधिक मत पाकर उन्होंने अपने विरोधी विलास मुट्टेमवर को 26% से भी अधिक मतों से पराजित किया। वरिष्ठ नेता विलास कॉन्ग्रेस सरकारों के दौरान केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं और क्षेत्र में अच्छा प्रभाव रखते हैं। 7 बार सांसद रहे विलास को भारी मतों से हराकर गडकरी ने साबित कर दिया कि वे न सिर्फ़ एक कुशल प्रशासक हैं बल्कि जनता के बीच भी उनकी स्वीकार्यता उतनी ही है। इस बार मुट्टेमवर ने शायद जनता की भावनाओं को पहले ही भाँप लिया था। 2018 में नागपुर से ही कॉन्ग्रेस के पूर्व सांसद गेव अवारी ने विलास मुट्टेमवर पर पार्टी लाइन के विरुद्ध काम करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को पत्र लिखकर शिकायत की थी

नागपुर में कॉन्ग्रेस भारी आतंरिक कलह से जूझ रही है। तभी क्षेत्र के बाहर से नाना पटोले को लाकर यहाँ लड़ाया जा रहा है। उम्मीदवारों के चयन में देरी का कारण भी यही था। बहरी उम्मीदवार को लेकर कॉन्ग्रेस ने स्थानीय पार्टी गुटों में कलह के रोकथाम की कोशिश की है। नाना पटोले ने 2014 में भाजपा के टिकट पर भंडारा-गोंदिया से जीत दर्ज की थी लेकिन तीन साल बाद उन्होंने पार्टी से असंतुष्ट होकर त्यागपत्र दे दिया था। ऐसे में, कॉन्ग्रेस ने उन्हें नागपुर से लोकसभा प्रत्याशी बनाया है। नागपुर के भीतर आने वाली सभी छह विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्ज़ा है। दक्षिण-पश्चिमी सीट पर तो ख़ुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जीत दर्ज की थी।

गडकरी के वचनंनामे के बारे में स्थानीय अख़बार में छपी ख़बर

प्रकाश अम्बेडकर की पार्टी भी यहाँ से दम ठोक रही है। बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर दलित-मुस्लिम गठजोड़ के जरिए इस सीट पर अपनी निगाह पैनी कर दी है। नितिन गडकरी का कहना है कि वो पटोले को गम्भीरतापूर्वक नहीं लेते और अपनी सभाओं में उनका नाम तक नहीं लेते। जबकि पटोले का पूरा का पूरा चुनाव प्रचार ही गडकरी के आसपास केंद्रित है। वो नागपुर के लोगों के बढ़ते ख़र्च के लिए गडकरी को जिम्मेदार ठहराते हैं और उनके विकास कार्यों में भ्रष्टाचार की बू देखने की कोशिश करते हैं। बसपा और अम्बेडकर की पार्टी के उम्मीदवारों के होने से दलित मतदाता भ्रमित है और उसके भाजपा की तरफ जाने की ही उम्मीद है।

कुल मिलाकर देखें तो आंतरिक कलह, समाज के सभी वर्गों के बीच गडकरी की स्वीकार्यता और सबसे अव्वल उनके विकास कार्यों की आड़ में दबी कॉन्ग्रेस ने यहाँ उम्मीदवार तो उतार दिया लेकिन कार्यकर्ताओं की नाराज़गी के कारण पार्टी शायद पहले से ही इस सीट को हारी हुई मान कर चल रही है। तभी तो राहुल गाँधी की नागपुर में हुई रैली में वे गडकरी को निशाना बनाने से बचते रहे। उन्होंने अम्बानी, मोदी, राफेल सबका नाम लिया लेकिन गडकरी पर हमला करने से बचते रहे। नागपुर से देश के छह बड़े शहरों में विमान सेवाएँ मुहैया कराने का वादा कर के गडकरी ने राहुल की बोलती बंद कर दी।

नितिन गडकरी ने अनोखी पहल करते हुए अपने क्षेत्र के लिए ‘वचननामा’ जारी किया है। इसमें क्षेत्र में एक और मेडिकल कॉलेज खोलने से लेकर ग़रीबों का कैंसर व हृदयरोग का मुफ़्त में इलाज कराने की बात कही गई है। रेलमार्ग, नई ट्रेनें, विमानतल का विस्तार सहित कई सुविधाओं के साथ मेट्रो शहर नागपुर व आसपास के क्षेत्र को वर्ल्ड क्लास बनाने का वादा किया गया है। गडकरी के इस वचननामे से विपक्ष चित है और उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। गडकरी ने स्वदेशी मॉल विकसित करने की बात कह स्थानीय महिलाओं व कामगारों में उम्मीद की एक नई किरण जगाई है। अब देखना यह है कि विपक्ष इस क्षेत्र में गडकरी को तोड़ ढूँढ पाता है भी या नहीं?

देश की अखंडता को हज़ार खतरे हैं साहब! बंद कीजिए ‘अहीर-चमार’ रेजीमेंट बनाने की लड़ाई

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शुक्रवार(अप्रैल 5, 2019) को अपनी पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया। इसमें उन्होंने चुनाव जीतने पर अहीर रेजीमेंट बनाने का वादा किया है। जिसके बाद भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण ने उनपर जमकर निशाना साधा। दरअसल, चंद्रशेखर ने अखिलेश की अहीर बख्तरबंद रेजीमेंट और गुजरात इन्फैंट्री वाले बिंदु को आधार बनाकर कहा कि अखिलेश ने अपनी पार्टी के घोषणा पत्र में अहीर रेजीमेंट बनाने का वादा किया है, लेकिन वो चमार रेजीमेंट बनाना भूल गए हैं।

चंद्रशेखर ने 7 अप्रैल को ट्वीट करते हुए कहा, “अखिलेश यादव जी आपको अहीर रेजिमेंट तो याद रही परंतु चमार रेजिमेंट को भूल गए, जबकि हम काफी समय से चमार रेजिमेंट को बहाल करने की माँग कर रहे हैं। अभी से हमारे समाज की अनदेखी करना शुरू कर दिया है। प्रमोशन में रिजर्वेशन बिल पर भी आपने अबतक जुबान नहीं खोली है।”

सपा और बसपा में हुए गठबंधन के बाद एक तरफ जहाँ चंद्रशेखर रावण कई मौकों पर खुद को मायावती का बेटा बताते रहे हैं, वहीं सपा से उनका मनमुटाव समय-समय पर देखने को मिलता रहा है। हाल ही में अखिलेश और मुलायम सिंह को वह बीजेपी का एजेंट तक बता चुके हैं। इस छींटाकशी का कोई अंत नहीं है क्योंकि एक बार तो चंद्रशेखर रावण मायावती को मनुवादी भी बता चुके हैं

ऐसी परिस्थितियों में कहना गलत नहीं होगा कि इस समय पूरे विपक्ष की हालत एक जैसी हो चुकी है। सब भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए लुभावने वादे कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस का हाल हम उसके घोषणा पत्र में देख ही चुके हैं। अब अखिलेश, मायावती और चंद्रशेखर की राजनीति भी उनपर सवालिया निशान लगा रही है। एक तरफ जहाँ सरकार ‘सबका साथ-सबका विकास’ का नारा देकर देश को एकजुट करने का प्रयास कर रही है, वहीं ये नेता देश में अलग-अलग जातियों की रेजीमेंट बनाने को चुनावी मुद्दा मानकर बैठे हुए हैं।

दलितों के उत्थान पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ये लोग आज जातिवाद को खत्म करने की जगह पर जातियों को पहचान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। यकीनन आजादी से पहले बाद के भारत में दलितों को ‘दलित’ बताकर पहचान दिलाने के लिए ऐसे ही राजनेता जिम्मेदार हैं, जो जाति को आधार बनाकर राजनीति करते नहीं थकते। यहाँ यह भी याद रखना आवश्यक है कि भारतीय सेना में रेजिमेंट सिस्टम अंग्रेज़ों का बनाया हुआ है। अंग्रेज़ों ने कुछ क्षेत्रों और जातियों के लोगों को ‘मार्शल कास्ट’ घोषित किया था। ब्रिटिश अधिकारी नस्लभेदी विचारधारा से ग्रसित होते थे इसीलिए कुछ क्षेत्र विशेष या जाति के लोगों के प्रति उनकी यह धारणा थी कि उस जाति के लोगों का जन्म युद्ध लड़ने के लिए ही हुआ है।

क्षेत्र और जाति विशेष के आधार पर ही अंग्रेज़ों ने सेना की इन्फैंट्री में रेजिमेंट बनाई थी। आज की भारतीय सेना एक मॉडर्न फ़ोर्स है और वह उस पुरातन औपनिवेशिक अवधारणा में विश्वास नहीं करती। हालाँकि रेजीमेंट सिस्टम आज भी हैं और प्रत्येक रेजिमेंट का अपना गौरवशाली इतिहास है। लेकिन यह भी सत्य है कि सेना में देश के प्रत्येक क्षेत्र या जातीय समुदाय की अपनी अलग रेजिमेंट नहीं है। और यदि किसी क्षेत्र या जाति के नाम पर रेजिमेंट नहीं है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उस क्षेत्र अथवा जाति, समुदाय, पंथ के लोग हीन हैं। वास्तव में स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना ने यह निर्णय लिया था कि रेजिमेंट का नाम किसी क्षेत्र या समुदाय के नाम पर नहीं रखा जाएगा। 

‘बापू ने देखा था कॉन्ग्रेस के विसर्जन का सपना, साकार करने निकले भाई-बहन’

उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर 11 अप्रैल को पहले चरण में ही मतदान होना है। सभी प्रमुख दलों ने यूपी की आठ सीटों पर होने वाले चुनाव पर अपना पूरा दम झोंक दिया है। इसी क्रम में सोमवार (अप्रैल 8, 2019) को बिजनौर में एक रैली को संबोधित करते हुए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कॉन्ग्रेस पर जबरदस्त हमला बोला। सीएम योगी ने राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी पर तंज कसते हुए कहा कि बापू के कॉन्ग्रेस को विसर्जित करने के सपने को साकार करने के लिए भाई-बहन आ चुके हैं।

इस दौरान योगी ने कहा, “बापू ने 1947 में कहा था, कॉन्ग्रेस का काम समाप्त, अब कॉन्ग्रेस का विसर्जन कर दो। वो जानते थे कि कॉन्ग्रेस का मतलब अब एक परिवार होने जा रहा है। बापू के सपने को साकार करने के लिए भाई-बहन आ चुके हैं।” इस तरह योगी आदित्यनाथ ने बगैर नाम लिए ही भाई-बहन कहकर राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी पर निशाना साधा।

योगी आदित्यनाथ ने बिजनौर से कॉन्ग्रेस प्रत्याशी बनाए नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बहाने मायावती, राहुल और प्रियंका पर हमला बोला। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि उन्होंने जो प्रत्याशी दिया है वो तो उससे भी बड़ा बागी है। भाई-बहन का जो प्रत्याशी यहाँ पर है, उसने तो पिछली बार बहन जी (मायावती) को जीरो पर पहुँचा दिया था। इस बार भाई-बहन को भी जीरो पर पहुँचा देगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।” बता दें कि, नसीमुद्दीन सिद्दीकी 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान सिद्दीकी बिजनौर से बसपा के उम्मीदवार थे, जो कि अब बसपा को छोड़कर कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए हैं।

सीएम योगी ने कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी पर तंज कसते हुए कहा कि प्रियंका गाँधी अयोध्या में श्रीराम जन्मस्थान को विवादित कह रही हैं। इसके साथ ही उन्होंने राहुल के वायनाड रैली पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि वायनाड में राहुल गाँधी की रैली में कॉन्ग्रेस के झंडे या तिरंगे की बजाय हरा रंग लहरा रहा था। क्या चांद-सितारे वाले झंडे से देश चलेगा? उनका कहना था कि कॉन्ग्रेस देश में पाकिस्तानी तिरंगा लहराना चाहते हैं, इसीलिए उनकी रैली में कॉन्ग्रेसी झंडे या फिर तिरंगे की जगह हरा रंग लहरा रहा था।

वहीं गठबंधन पर निशना साधते हुए योगी ने कहा कि, 38 सीट पर चुनाव लड़ने वाले प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहें हैं। उनका ये सपना कभी पूरा नहीं होगा। इस लोकसभा चुनाव में बसपा फिर एक नया अंडा लेकर आने वाली है। इसके साथ ही उन्होंने सभी विपक्षी पार्टियों की हमला करते हुए कहा कि सपा, बसपा व कॉन्ग्रेस ने राजनीति का अपराधीकरण व अपराधियों का राजनीतिकरण किया है।

BJP का संकल्प पत्र: आर्टिकल 35A | राष्ट्रीय सुरक्षा | किसानों की आय | दोगुने डॉक्टर | 3rd आर्थिक महाशक्ति

कॉन्ग्रेस द्वारा अपना चुनावी घोषणापत्र ज़ारी करने के कुछ ही दिनों बाद आज सोमवार (अप्रैल 8, 2019) को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने भी अपना घोषणापत्र ज़ारी कर दिया। भाजपा के इस ‘संकल्प पत्र’ में देश की सुरक्षा, किसानों और सबरीमाला सहित कई मुद्दों पर पार्टी द्वारा आगे किए जाने वाले कार्यों को लेकर बातें स्पष्ट की गई हैं। जहाँ एक तरफ घुसपैठ पर रोक लगाने की बात कही गई है तो दूसरी तरफ किसानों की आमदनी दुगुनी करने का लक्ष्य भी रखा गया है। सीमा सुरक्षा को सुदृढ़ करने से लेकर ग्रामीण सड़कों के व्यापक निर्माण तक, भाजपा के घोषणापत्र में सब कुछ है। एक बात ध्यान देने लायक है कि भाजपा के घोषणापत्र में कुछ भी हवा-हवाई नहीं रखा गया है। पार्टी अपनी मूल विचारधारा पर अभी भी कायम है और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जो भी कार्य किए गए या प्रगति पर हैं, उन्हें और अच्छे तरीके से आगे बढ़ाने संकल्प लिया गया है।

यहाँ भाजपा के घोषणापत्र में कही गई मुख्य बातों की चर्चा करने के साथ-साथ ये भी जानेंगे कि चुनाव बाद सरकार बनने की स्थिति में भाजपा का क्या एजेंडा होगा और किन चीजों पर पार्टी आगे बढ़ेगी?

राष्ट्रीय सुरक्षा पर सख़्त, घुसपैठ को टा-टा, बाय बाय

राष्ट्रीय सुरक्षा पर भारतीय जनता पार्टी ने कड़ा रुख अपनाया है। भाजपा ने कहा है कि वो आतंकवाद और उग्रवाद पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति का अनुसरण करती रहेगी और सुरक्षा बलों को ‘फ्री हैंड’ वाली पॉलिसी पर भी कायम रहेगी। पार्टी ने केंद्रीय सुरक्षा बलों के आधुनिकीकरण और उपकरण ख़रीद पर ‘मेक इन इंडिया’ के तहत आत्मनिर्भर होने की बात कही। सबसे बड़ी बात सेवानिवृत्त सैनिकों को लेकर कही गई है। पार्टी ने ऐसे सैनिकों के रिटायरमेंट से 3 वर्ष पहले ही उनके लिए पुनर्वास, कौशल प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता सहित कई अन्य सुविधाएँ देने की बात कही है। केंद्रीय बलों के साथ पुलिस के आधुनिकीकरण के लिए भी वित्त उपलब्ध कराया जाएगा। पूर्वोत्तर में घुसपैठ रोकने के लिए सीमा सुरक्षा सुदृढ़ की जाएगी।

भाजपा ने वामपंथी उग्रवाद पर विकास की नीतियों के साथ-साथ कड़ी कार्रवाई से चोट करने के लिए अपनी सरकार की नीति की सराहना की है और कहा है कि इसी के साथ आगे बढ़ा जाएगा। अब राष्ट्रीय सुरक्षा के अंतर्गत कही गई सबसे प्रमुख बात पर आते हैं। जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने आर्टिकल 35A हटाने की बात कही है। इसके लिए अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते हुए पार्टी ने कहा कि ये आर्टिकल राज्य के विकास में बाधा है।

किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 से ही किसानों की आय बढ़ाने की बात करते आ रहे हैं। पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में किसानों के लिए किए गए अपने कार्यों का जिक्र करते हुए कहा है कि अब किसानों को बीज उचित दाम पर मुहैया कराए जाएँगे और उनके घर के पास ही इसकी जाँच की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। सरकार भण्डारण पर ख़ास ध्यान देगी और राजमार्गों के किनारे राष्ट्रीय वेयरहाउसिंग ग्रिड का निर्माण कराया जाएगा। इन सबके अलावा कृषि के अन्य सहयोगी सेक्टर्स को भी विकसित किया जाएगा।

मधुमक्खी उद्योग, कोऑपरेटिव सहित भूमि के डिजिटलाइजेशन की बात भी कही गई है। पार्टी ने कहा कि ये काम रिकॉर्ड समय में पूरा किया जाएगा। पशुपालन और मछलीपालन पर ध्यान देकर इन सबके लिए विभिन्न योजनाएँ बनाने की बात कही गई है।

भारत बनेगा विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था

आर्थिक क्षेत्र में भाजपा ने अपनी मौजूदा नीतियों के साथ-साथ कई नई चीजों की भी घोषणा की है। 1991 के बाद सबसे अधिक जीडीपी वृद्धि दर के लिए अपनी पीठ थपथपाते हुए भाजपा ने कहा है कि वो कर की दर घटाने की अपनी नीति जारी रखेगी ताकि ईमानदार करदाताओं को फ़ायदा हो। जीएसटी की प्रक्रिया को और सरल करने के लिए सभी हितधारकों से बातचीत की जाएगी। 2024 तक बुनियादी क्षेत्र में 100 लाख करोड़ रुपए का निवेश करने का वादा किया गया है।

कारोबारी सुगमता को और बढ़ाते हुए भारत को विनिर्माण का हब बनाया जाएगा। एक नई औद्योदिक नीति की घोषणा की बात भी कही गई है। जीडीपी में योगदान ढाई प्रतिशत तक बढ़ाया जाएगा। 2024 तक 50,000 नए स्टार्टअप की स्थापना में मदद की जाएगी।

स्वास्थ्य क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण घोषणाएँ करने की बात कही गई है। 2024 तक एमबीबीएस और डॉक्टर्स की संख्या दोगुनी कर दी जाएगी। 2022 तक सभी गर्भवती महिलाओं व बच्चों के सम्पूर्ण टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है। भाजपा ने केंद्र एवं राज्यों में वित्त की बचत के लिए एक साथ चुनाव को समर्थन देने और उसके लिए प्रयास करने की अपनी नीति को दुहराया है। वैकल्पिक विवाद समाधान सिस्टम को मजबूत कर भारत को मध्यस्तथा का केंद्र बनाने की बात भी कही गई है।

अजब-गजब उम्मीदवार: ‘अर्थी बाबा’ ने गले में डाली सैनेटरी पैड की माला, श्मशान पर बनाएँगे कार्यालय

आगामी चुनावों के मद्देनज़र इन दिनों सियासी पारा अपनी चरम पर पहुँच चुका है। हर पार्टी और उसका प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे आजमा रहे हैं। जिसके कारण हमें ‘बिरयानी पर हुई लड़ाई‘ जैसी खबरें सुनने को मिल रही है। इसी कड़ी में निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे ‘अर्थी बाबा’ अपने अजीबोगरीब चुनाव प्रचार के कारण सुर्खियों में बने हुए हैं।

अर्थी बाबा के नाम से मशहूर हो चुके राजन यादव ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र में चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। यहाँ उनका मुकाबला अखिलेश के अलावा दिनेश लाल यादव (निरहुआ) से भी होगा। राजन ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत श्मशान घाट से की है। प्रचार के दौरान उन्होंने अपने गले में सैनेटरी पैड की माला लटकाई।

ख़बरों के अनुसार, राजन चुनाव प्रचार के दौरान गले में सैनेटरी पैड की माला पहनकर घर-घर जाकर महिलाओं को सैनेटरी पैड के बारे में जागरूक करेंगे। साथ ही उनका दावा है कि अगर वो चुनावों में जीत गए तो प्राप्त वेतन से वह मुफ्त में महिलाओं को सैनेटरी पैड बाँटेंगे।

अजीबोगरीब तरीके से प्रचार करके सुर्खियाँ बटोरने वाले राजन गोरखपुर के रहने वाले हैं। खबरों के मुताबिक वह अपना चुनाव कार्यालय हर बार की तरह श्मशान घाट में खोलेंगे। राजन इससे पहले विधानसभा और लोकसभा के भी चुनाव लड़ चुके हैं। 2009 में उन्होंने योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा था। उनकी माने तो सपा और भाजपा दोनों के कार्यकाल में जनता के हित में कोई काम नहीं हुआ है।

बता दें कि चुनाव प्रचार के दौरान राजन अर्थी पर बैठकर निकलते हैं। चार लोग उन्हें उठाकर हर ओर घुमाते हैं। जिसके कारण लोग उन्हें ‘अर्थी बाबा’ बुलाने लगे हैं। 2019 का चुनाव जीतने के लिए वो चिता की पूजा करते हैं और अपनी जीत के लिए शवों की आत्माओं को जगाने का भी प्रयास कर रहे हैं ताकि वे उनकी मदद करें। जानकारी के अनुसार, वह आजमगढ़ सीट से पर्चा दाखिल करने से पहले वह अघोरी बाबाओं से मिलेंगे और उनसे जीत का आशीर्वाद माँगेंगे।

गाँधी फैमिली के अनकहे-अनसुने कीर्तिमानों का खुलासा: BJP वाले भी करेंगे शत-शत नमन!

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने हाल ही में खुलासा किया था कि पीएम मोदी ने बिना हवाई जहाज उड़ाए या बन्दूक चलाए एयर स्ट्राइक का श्रेय ले लिया।

बात भी सही थी- क्योंकि राहुल गाँधी का खुद का परिवार जिन-जिन चीज़ों पर अपना नाम लिखवाता है, वह इस बात का ध्यान रखता है कि उनमें उसका सीधा योगदान हो। इसलिए राहुल गाँधी का मोदी से भी समान आचरण की उम्मीद करना लाज़मी है।

और जिन्हें यह बात झूठ लग रही है, उन बेशर्मों के लिए प्रस्तुत है पत्रकारिता के इतिहास में पहली बार गाँधी परिवार के कुछ ऐसे कामों के खुलासे, जो उन्होंने देश पर अहसान न लादने के लिए नहीं बताए।

महान जिमनास्ट राजीव गाँधी के नाम पर खेल रत्न दिया जाता है। महान कैंसर स्पेशलिस्ट राजीव गाँधी के नाम पर अस्पताल हैं। महान बँदूकची राहुल गाँधी ने विशेष शूटिंग कोटा में कॉलेज में प्रवेश पाया था।

No captions needed…

महान नाविक नोहा ने प्रलय काल मे सृष्टि की रक्षा की। बर्मन दा की धुन पर वे ‘ओ नोहा रे’ की धुन पर नाव खे रहे थे। ‘नोहा रे’ कालांतर में अपभ्रंश होकर ‘नेहरू’ कहलाया। मनुष्य जाति उनकी सदैव ऋणी रहेगी।

श्रीमती इंदिरा गाँधी ने बक-बक करने वाली अफ़सरशाही की शब्द-सीमा ‘जी’ और ‘यस’ तक निर्धारित की। इंदिरा जी द्वारा स्थापित परंपरा मे आगे ‘जी’ ‘यस’ की परंपरा मे धर्मात्मा जीजस हुए, और उनके उत्तराधिकारियों ने जनेऊ धारण कर के हिंदुत्व का उद्धार किया।

दोनों को आता था ज़माने को उंगलियों पे नचाना

राहुल जी के चाचाजी और इंदिरा जी के प्रतापी पुत्र सँजय गाँधी हुए जिन्हें वन्य जीवों से अगाध प्रेम था। अपने जीवन काल मे देश को चिड़ियाघर बनाने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए, जिसके कारण कृतज्ञ राष्ट्र ने अनेकानेक प्राणी अभयारण्यों का नाम सँजय गाँधी प्राणी उद्यान रखा।

यह संजय गाँधी के पशु-प्रेम का ही प्रताप था कि उनकी अंखियों की गोली खाके आस-पास का हर इन्सान भीगी बिल्ली बन जाता था

विवाह के पंद्रह वर्ष बाद सोनिया जी के भारतीय नागरिकता लेने के निर्णय से चक्रवर्ती राजीव जी चौंक गए थे, इसीलिए उनके नाम पर दिल्ली मे राजीव चौक बनाया गया। सँघी लोग अफ़वाह फैलाते हैं कि राजीव जी कनॉट प्लेस पर ट्रैफ़िक हवलदार थे जो पूर्णतया असत्य है। नो इंडिया आफ्टर नेहरू पढ़ें।

राजीव गए थे चौंक, hence Rajiv Chow(n)k

पर्यावरण प्रेमी राजीव जी विशाल वृक्षों से बहुत प्रेम करते थे, और जब भी कोई बड़ा पेड गिरता था तो उनका हृदय आहत हो जाता था इसी कारण कर्नाटक मे उनके नाम पर वन संपदा का नाम रखा गया।

सोनिया जी ने जेंडर इक्वालिटी के लिए अभूतपूर्व कार्य किया और प्रथम बार एक महान नदी का लिंग निरपेक्ष नामकरण ‘नर-मादा’ के नाम पर किया जिसके लिए मध्य प्रदेश अनंत काल तक महिषि का आभारी रहेगा। नमन है।

माईने ठो नामखारन का श्रेया बी नाही लिया… एक बारात राटना टो बंटा आए (अर्थ जानने के लिए हम भी Mrs. Gandhi के ऑफिस के संपर्क में हैं। पता चलते ही यहाँ अपडेट करेंगे)

सोनिया जी की महानता थी कि एक कबाड़ी को भद्रलोक मे प्रतिष्ठित कर के राष्ट्रीय कृषक का स्थान दिया। उन्हीं भूमिपुत्र नरश्रेष्ठ राबर्ट भद्र का नाम आगे चल के राबर्ट वाड्रा पड़ा।

stalking में व्यस्त सॉल्ट न्यूज़ वाले इस फोटो को सत्यापित करने के लिए समय नहीं निकाल पाए हैं।

फ़ैक्ट चेक: TheNewsMinute ने मुस्लिम आरोपितों का लिखा हिन्दू नाम, बाद में माँगी माफ़ी

ऑनलाइन समाचार पोर्टल द न्यूज़ मिनट (TNM) की एक ऐसी चालबाजी पकड़ी गई जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है। दरअसल, द न्यूज़ मिनट ने अपनी एक ख़बर में बलात्कार के दो आरोपितों को पहले तो काल्पनिक हिंदू नाम दिया और फिर बाद में ख़ुद ही ख़ुलासा किया कि बलात्कार के वे आरोपी वास्तव में मुस्लिम समुदाय के थे।

कर्नाटक के बंटवाल क्षेत्र से बाल शोषण और बलात्कार की एक घटना सामने आई थी, जहाँ एक 42 वर्षीय व्यक्ति पर अपनी नाबालिग बेटी के साथ बार-बार बलात्कार करने का आरोप लगाया गया। द न्यूज मिनट ने बताया था कि नाबालिग लड़की का उसके पिता दिनेश और उसके चाचा प्रदीप द्वारा एक साल से अधिक समय से बलात्कार किया जा रहा था।

TNM की ख़बर में आरोपी व्यक्तियों का वास्तविक नाम शामिल नहीं है, और इसमें काल्पनिक नामों का उल्लेख किया गया था। लेकिन प्रदीप और दिनेश नामों का उल्लेख करके यह जताने का प्रयास किया गया कि अपराधी हिंदू थे।

TNM ने अपने पहले के लेख में बलात्कार के आरोपी के रूप में हिंदू प्रदीप और दिनेश का नाम लिखा था।

तस्वीर आभार: अंकुर सिंह

लेकिन जल्द ही इस घटना को अन्य मीडिया संगठनों द्वारा उजागर किया गया, और तब यह पता चला कि लड़की के पिता का नाम दाऊद है। कथित तौर पर, दाऊद की चार पत्नियाँ हैं, और जबकि उसकी पहली पत्नी उसे छोड़ चुकी है, बाक़ी तीन पत्नियाँ अलग-अलग जगहों पर रह रही हैं। पीड़िता उसकी दूसरी पत्नी की बेटी है।

इसके बाद, TNM को यह लगा कि वो फ़र्ज़ी ख़बरों को प्रचारित करते हुए कहीं पकड़े न जाएँ तो उसने पीड़िता के पिता का नाम बदलकर अली कर दिया और चाचा का नाम बदलकर अब्दुल कर दिया, ये नाम भी काल्पनिक तौर पर इस्तेमाल किए गए हैं। इससे दोनों व्यक्तियों की धार्मिक पहचान उजागर होती है।

तस्वीर आभार: द न्यूज़ मिनट

चाचा द्वारा 17 वर्षीय नाबालिग के बलात्कार की घटना सामने आई और जाँच के दौरान पता चला कि पीड़िता के साथ उसके पिता ने भी बलात्कार किया था। नाबालिग लड़की की माँ ने शिक़ायत दर्ज कराई थी कि उसकी 17 वर्षीय बेटी का बलात्कार उसके देवर द्वारा कई बार किया गया था। नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने के वाले चाचा को अगले दिन उल्लाल पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया।

चौंकाने वाली बात यह है कि लड़की के चाचा ने पुलिस को बताया कि नाबालिग लड़की का पिता पिछले एक साल से अपनी बेटी के साथ बलात्कार कर रहा था। पीड़िता और उसकी माँ बलात्कारी चाचा की माँ से मिलने के लिए बंटवाल से उल्लाल गई थी, जो बीमार थी और उल्लाल के ही अस्पताल में भर्ती थी। उसी रात, चाचा ने कथित तौर पर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया और उसे धमकी दी कि अगर उसने इस बारे में किसी को भी कुछ बताया तो उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

न्यूज़ मिनट ने पूरी घटना की सूचना तो दी, लेकिन काल्पनिक नाम इस्तेमाल करने के लिए प्रदीप और दिनेश जैसे हिन्दू नाम का उल्लेख किया जिससे समाज में यह संदेश गया कि बलात्कार करने वाले दोनों व्यक्ति हिंदू थे। न्यूज मिनट ने अपनी सेक्युलर साख को बढ़ाने के लिए कुछ काल्पनिक हिंदू नामों का इस्तेमाल किया।

अपडेट: न्यूज मिनट के एडिटर-इन-चीफ़ धन्या राजेंद्रन ने अब एक स्पष्टीकरण पेश किया है। उन्होंने कहा है कि एक काल्पनिक नाम का उपयोग किया गया था क्योंकि पिता का नाम के साथ पीड़िता की पहचान उजागर हो सकती थी। उन्होंने यह भी कहा है कि एक मुस्लिम अपराधी के लिए हिंदू काल्पनिक नाम का उपयोग करना ग़लत था इसमें संपादक द्वारा अनजाने में एक गलती हुई। हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि आख़िर क्यों ‘दाऊद’ या ‘अब्दुल’ के नाम की जगह ‘प्रदीप’ का नाम लिख दिया गया।

‘डर’ पर किसका ज़ोर होता है चिदंबरम साहब, ‘ये तो वो पैमाना है जो छलक ही जाता है’

भारत जैसे विशाल देश में लोकसभा चुनाव एक राजनीतिक उत्सव की तरह होता है। इसे देश की राजनीतिक पार्टी अपने-अपने अंदाज़ से मनाती हैं। कोई किसी पर आरोप मढ़ता है, तो कोई किसी को विलेन घोषित करता है। कोई गरीबों का मसीहा बनने का दावा करता है, तो कोई अपने चुनावी घोषणापत्र के ज़रिए गरीबों को पैसा बांटने का भ्रम फैलाता है।

कहीं तो ये उत्सव एक डर के रूप में भी सामने आता है। हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के क़रीबियों के यहाँ आयकर विभाग द्वारा छापेमारी की गई। 50 से अधिक ठिकानों पर छापेमारी के दौरान करोड़ों रुपए कैश के अलावे अहम दस्तावेज़ भी बरामद किए गए। आयकर विभाग की यह कार्रवाई टॉप सिक्रेट थी, इसकी जानकारी भोपाल पुलिस को भी नहीं थी। अब इस तरह की कार्रवाई का डर पी चिदंबरम को भी सता रहा है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, “मुझे जानकारी मिली है कि आईटी विभाग शिवगंगा और चेन्नई में मेरे आवास पर छापेमारी की योजना बना रही है, हम सर्च पार्टी का स्वागत करेंगे।”

भले ही पी चिदंबरम अपने इस ट्वीट के ज़रिए यह दिखाना चाहते हों कि उन्हें आयकर विभाग की छापेमारी से डर नहीं लगता, लेकिन सच्चाई तो यह है कि वो सीएम कमलनाथ के क़रीबियों के ठिकानों पर अचानक हुई छापेमारी से सहमे हुए हैं। वजह साफ़ है। उनके बेटे कार्ति चिदंबरम और उनकी पत्नी नलिनी चिदंबरम के कारनामे उन्हें कभी भी ले डूब सकते हैं। पी चिदंबरम को यह डर है कि कहीं एयरसेल-मैक्सिस डील में पिता-पुत्र के घोटाले उन्हें चुनावी दंगल में परास्त न कर दें।पिता-पुत्र ने यह घोटाला तब किया था जब यूपीए की सरकार में सीनियर चिदंबरम (पी चिदंबरम) वित्त मंत्री थे। उन्होंने पद पर रहते हुए ग़लत तरीक़े से विदेशी निवेश को मंज़ूरी दी थी।

जूनियर चिदंबरम (कार्ति चिदंबरम) ने अपने पिता के ज़रिए INX मीडिया को विदेशी निवेश की मंज़ूरी दिलाई थी, जिससे कंपनी को ₹305 करोड़ का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था। बेटे के ख़िलाफ़ मनी लॉड्रिंग केस तो चल ही रहा है, वो जेल भी जा चुका है। ऐसे में सीनियर चिदंबरम का डर तो लाज़मी ही है कि पता नहीं कब उनके भ्रष्टाचारों के ख़ुलासे में इज़ाफ़ा हो जाए।

पी चिदंबरम के डर की एक और वजह है जिसने निश्चित तौर पर उनका सुख-चैन हराम किया ही होगा। वो वजह है ख़ुद उनकी पत्नी नलिनी चिदंबरम, जिनके तार शारदा चिटफंड घोटाले से जुड़े हुए हैं। नलिनी के ख़िलाफ़ CBI ने चार्जशीट दाखिल की थी जिसमें यह कहा गया था कि शारदा चिटफंड घोटाले में उन्होंने साल 2010 से 2012 के बीच ₹1.4 करोड़ लिए थे। इसके अलावा नलिनी चिदंबरम के ख़िलाफ शारदा कंपनियों के समूह के प्रॉपराइटर सुदीप्तो सेन के साथ मिलकर आपराधिक साज़िश रचने, ठगी और रुपयों के गबन के आरोप भी लगाए गए थे। इस ख़ुलासे के बाद सीनियर चिदंबरम का सकते में आना तो बनता ही है, क्योंकि शारदा चिटफंट घोटाले में उनकी पत्नी शामिल हैं, ये बात जगज़ाहिर हो चुकी है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पी चिदंबरम पहले से ही अपने परिवार के कारनामों का दंश झेल रहे हैं और उस पर आयकर विभाग के छापे का डर उन्हें जीने नहीं दे रहा है।

पी चिदंबरम ट्विटर पर अपने असली दर्द को तो शेयर नहीं कर सकते क्योंकि वो उनके बस की बात नहीं, लेकिन ‘आईटी की छापेमारी का स्वागत’ करने वाली उनकी लाइन बहुत कुछ बयाँ करती है, जिसे पढ़ने वाले उनके असली दर्द को आसानी से समझ सकते हैं।

भले ही इस चुनावी मौसम में देश की जनता को अपने खेमे में लाने की क़वायद अपने चरम पर होती है, लेकिन, ये जो पब्लिक है, वो सब जानती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे कई मौक़े आते हैं जब वो खुलकर बोलती भी है, जैसे हाल ही में तमिलनाडु के मदुरै में महिलाओं ने कार्ति चिदंबरम के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था। इसकी वजह थी कथित तौर पर कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने कार्ति के आगमन पर ‘आरती की व्यवस्था’ की थी। इसके लिए 25 महिलाओं को बुलाया गया था और उन्हें ₹500 (प्रत्येक को) देने का वादा भी किया गया था। लेकिन महिलाओं को तय राशि देने की बजाए केवल ₹800 थमाए गए और कहा गया कि आपस में बाँट लो। इस पर एक महिला ने कार्ति द्वारा ₹6000 देने की बात पर कहा कि जो वादा किए हुए ₹500 नहीं दे सकते वो ₹6000 क्या देंगे।

डर के साए में जीते पी चिदंबरम इस समय हताशा और निराशा की कगार पर हैं, तभी वो अक्सर ऐसा कुछ कह देते हैं जिससे उनकी यह दशा खुलकर सामने आ जाती है। हाल ही में एक आर्टिकल में उन्होंने बीजेपी की ख़िलाफ़त करते हुए वर्तमान शासन व्यवस्था को सर्कस का नाम दिया था। अपने इस तरह के कारनामों से चिदंबरम अपना ख़ुद का दर्द हल्का करने का काम करते हैं, जिससे उनका ध्यान अपने बेटे और पत्नी के धोखााधड़ी मामलों से भटका रहे।

साले को PM बनाने के लिए ‘जीजाजी’ करेंगे चुनाव प्रचार, स्मृति ईरानी ने कहा अपनी जमीन बचाओ

प्रियंका गाँधी के सियासी मैदान में उतरने के बाद अब उनके पति रॉबर्ट वाड्रा कॉन्ग्रेस के लिए प्रचार अभियान में जोर लगाने वाले हैं। वाड्रा ने कहा है कि यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाँधी और कॉन्ग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गाँधी के नामांकन पत्र भरने के बाद वह पूरे भारत में कॉन्ग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करेंगे।

रॉबर्ट वाड्रा ने रविवार (अप्रैल 7, 2019) को कहा कि वह अमेठी और रायबरेली में राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के नामांकन भरते समय उनके साथ मौजूद रहेंगे। वह इन दोनों नेताओं के लोकसभा क्षेत्रों में जाकर चुनाव प्रचार भी करेंगे। राहुल गाँधी 10 अप्रैल को अमेठी में तो सोनिया गाँधी 11 अप्रैल को रायबरेली लोकसभा सीट से नामांकन पत्र दाखिल करेंगी।

कॉन्ग्रेस के लिए रॉबर्ट वाड्रा के चुनाव प्रचार में शामिल होने की खबर पर केंद्रीय वित्त मंत्री और वरिष्‍ठ भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा, “मुझे नहीं पता यह कॉन्ग्रेस के चुनाव प्रचार के लिए फायदेमंद होगा या फिर भाजपा के चुनाव प्रचार के लिए।”

वहीं, अरुण जेटली के अलावा केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने भी रॉबर्ट वाड्रा के इस ऐलान पर चुटकी ली है। स्मृति ईरानी ने वाड्रा के इस बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा, “मैं इतना ही कहना चाहूँगी कि जहाँ-जहाँ रॉबर्ट वाड्रा प्रचार करने जाना चाहते हैं, वहाँ की जनता आगाह हो जाए और अपनी जमीनें बचा ले।”

गौरतलब है कि, मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में फंसे रॉबर्ट वाड्रा को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने 1 अप्रैल, 2019 को ₹5 लाख के निजी मुचलके पर अग्रिम जमानत दे दी थी। वाड्रा के खिलाफ विदेश में आय से अधिक संपत्ति को लेकर जाँच चल रही है। रॉबर्ट वाड्रा ने कुछ दिनों पहले संकेत दिए थे कि अगर उनके ऊपर लगे आरोप खत्‍म हो जाएँगे तो वह राजनीति में आ सकते हैं।